संथाली भाषा – लिपि, वर्णमाला और इतिहास, in Hindi

Santali Bhasha
Santali Bhasha

संताली भाषा संथाल लोगों द्वारा बोली जाने वाली ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार की शाखा “मुंडा परिवार” की प्रमुख भाषा है। मुंडा परिवार में हो, मुण्डारी और भूमिज आदि प्रमुख भाषाएं है। यह भारतीय राज्य झारखंड के साथ-साथ ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बोली जाती हैं। संथाली भाषा के कुल लगभग 76 लाख वक्ता हैं, जो इसे बोलने वालों की संख्या के मामले में सबसे बड़ी ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषाओं में से एक बनाता है। हिन्दी भाषा की तरह ही संताली की लिपि ओल चिकी लिपि है, जिसे 19वीं शताब्दी के अंत में पंडित रघुनाथ मुर्मू ने विकसित किया गया था।

लिपि ओल चिकी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक)
बोली क्षेत्र असम, झारखंड, ओड़िशा, छत्तीसगढ, बिहार, त्रिपुरा तथा बंगाल में संताल जनजाति
वक्ता 76 लाख
परिवार मुंडा भाषा परिवार (ऑस्ट्रो-एशियाटिक)
आधिकारिक भाषा झारखंड, पश्चिम बंगाल

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • संताली भारत की 22 संवैधानिक भाषाओं में से एक है। इसे झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों की अतिरिक्त आधिकारिक भाषा के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।
  • संताली ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा-परिवार की मुंडा शाखा की एक भाषा है, जो हो, मुण्डारी और भूमिज से संबंधित है।
  • यह असम, झारखंड, ओड़िशा, छत्तीसगढ, बिहार, त्रिपुरा तथा बंगाल में संताल जनजाति द्वारा बोली जाती है।
  • अंग्रेजों के शासन काल में संताली रोमन लिपि में लिखी जाती थी।

संथाली भाषा का विकास:

संताली भाषा के विकास को कई चरणों में विभाजित किया जा सकता है, जिनमें से प्रत्येक का भाषा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।

  1. प्राचीन काल: संथाली का प्राचीन काल अच्छी तरह से प्रलेखित नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि भाषा की जड़ें ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार में हैं और इस क्षेत्र में हजारों वर्षों से बोली जाती रही है।
  2. मौखिक परंपरा: संताली की एक समृद्ध मौखिक परंपरा है और यह कहानी कहने, संगीत और धार्मिक समारोहों के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। इस अवधि के दौरान, भाषा ने एक जटिल तानवाला प्रणाली और बड़ी संख्या में स्वर और व्यंजन विकसित किए।
  3. लेखन प्रणालियों का विकास: संताली के लिए पहली लेखन प्रणाली 19वीं शताब्दी के अंत में विकसित की गई थी और इसे ओलचिकी लिपि कहा जाता था। यह लिपि आज भी प्रयोग में लाई जाती है और संताली भाषा के संरक्षण और संवर्धन में सहायक रही है।
  4. शिक्षा और मीडिया का विस्तार: 20वीं सदी में, संताली भाषा की पाठ्यपुस्तकों के विकास और रेडियो और टेलीविजन कार्यक्रमों जैसे संताली भाषा के मीडिया के निर्माण सहित संताली भाषा को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के प्रयास किए गए।
  5. पुनरुद्धार और मान्यता: हाल के वर्षों में, संताली भाषा में रुचि का पुनरुद्धार हुआ है, और इसे भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में मान्यता देने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह मान्यता भाषा को अधिक संसाधन और समर्थन प्रदान करेगी, और इसके निरंतर विकास और उपयोग को सुनिश्चित करने में मदद करेगी।

संथाली भाषा का बोली क्षेत्र:

संथाली भाषा भारत में असम, झारखंड, ओड़िशा, छत्तीसगढ, बिहार, त्रिपुरा तथा बंगाल में संताल जनजाति द्वारा बोली जाती है। और इन राज्यों की सीमाओं से लगे कुछ देशों जैसे बांग्लादेश, नेपाल, भूटान में भी यह भाषा बोली जाती है।

संथाली भाषा की लिपि

संताली भाषा मुख्यतः मौखिक भाषा थी, लेकिन पंडित रघुनाथ मुर्मू ने 1925 में ओल चिकी लिपि का विकास किया। ओल चिकी अल्फाबेटिक है और किसी भी इंडिक स्क्रिप्ट के सिलेबिक गुणों से मेल नहीं खाती हैं, और अब संताली भाषा को इंडिया में लिखने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल होती है।

ओल चिकी लिपि बाएं से दाएं लिखी जाती है, और प्रत्येक वर्ण एक शब्दांश या अक्षरों के संयोजन का प्रतिनिधित्व करता है। लिपि की अपनी अनूठी विशेषताएं हैं, जिनमें डायक्रिटिकल अंक शामिल हैं जो प्रत्येक अक्षर के स्वर को इंगित करते हैं।

संथाली भाषा की वर्णमाला:

वर्ण उच्चारण आईपीए (IPA) देवनागरी बंगाली ओड़िया
la /ɔ/ अ/ऑ
laa /a/
li /i/
lu /u/
ov /w̃/ उं
le /e/
lo /o/
aak /k/
ag /k’/, /g/
ang /ŋ/
uch /c/
aaj /c’/, /j/
iny /ɲ/
ott /ʈ/
edd /ɖ/
err /ɽ/ ड़ ড়
unn /ɳ/
at /t/
ud /t’/, /d/
en /n/
ep /p/
ob /p’/, /b/
aam /m/
uy /j/ য়
ir /r/
al /l/
aaw /w/, /v/ ওয়
is /s/
ih /ʔ/, /h/
oh /ʰ/

संथाली में संख्याये:

अंक 0 1 2 3 4 5 6 7 8 9
ओल चिकी
बांग्ला
देवनागरी
ओड़िया

संथाली की शब्द संरचना

संताली भाषा की शब्द संरचना अपेक्षाकृत सरल है, जिसमें अधिकांश शब्द एक शब्दांश या दो या तीन अक्षरों के संयोजन से युक्त होते हैं। इस भाषा में स्वरों और व्यंजनों की एक समृद्ध प्रणाली है, जो समान वर्तनी या अर्थ वाले शब्दों के बीच अंतर करने में मदद करती है।

कुछ सरल संथाली शब्दों के उदाहरण:

  1. Amma – Mother (English), माँ (Hindi)
  2. Baba – Father (English), पिता (Hindi)
  3. Didi – Older sister (English), बहन (Hindi)
  4. Bhai – Brother (English), भाई (Hindi)
  5. Dular – Love (English), प्यार (Hindi)
  6. Khana – Food (English), खाना (Hindi)
  7. Noksa – No (English), नहीं (Hindi)
  8. Han – Yes (English), हाँ (Hindi)
  9. Aasa – Hope (English), आशा (Hindi)
  10. Jibon – Life (English), जीवन (Hindi)

संथाली साहित्य

संथाली साहित्य की एक समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत है, जिसमें मौखिक कहानी कहने और लिखित साहित्य का एक लंबा इतिहास है। संताली साहित्य की कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में शामिल हैं:

  • बहा – यह मौखिक कहानी कहने का एक रूप है जिसमें एक कथाकार एक महान नायक के कारनामों का वर्णन करता है। बहा कहानियां लोककथाओं और सांस्कृतिक परंपराओं में समृद्ध हैं, और संथाल लोगों के विश्वासों और रीति-रिवाजों की एक झलक प्रदान करती हैं।
  • संथाल भजन – संथाल लोगों की धार्मिक भजनों और गीतों की एक समृद्ध परंपरा है, जिनका उपयोग विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भों में किया जाता है। भजन संताली भाषा में लिखे गए हैं, और संताल लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
  • खेरवाल बीर – यह कहावतों और कहावतों का संग्रह है जो संताली संस्कृति में व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं। कहावतें ज्ञान और अंतर्दृष्टि से समृद्ध हैं, और अक्सर नैतिक और नैतिक शिक्षा देने के लिए उपयोग की जाती हैं।
  • संथाल लोककथाएँ – संताली लोककथाएँ कहानियों और किंवदंतियों से समृद्ध हैं, जिनमें से कई पीढ़ियों से चली आ रही हैं। इन लोककथाओं में अक्सर जानवरों, आत्माओं और अलौकिक प्राणियों जैसे चरित्र होते हैं, और इनका उपयोग नैतिक और नैतिक शिक्षा देने के लिए किया जाता है।

अंत में, संताली एक समृद्ध और जीवंत भाषा है जिसका एक लंबा इतिहास और सांस्कृतिक विरासत है। यह संथाल लोगों द्वारा बोली जाती है, एक स्वदेशी समूह जो मुख्य रूप से पूर्वी भारत और बांग्लादेश में पाया जाता है, और इसकी अपनी अनूठी लिपि, ओल चिकी लिपि है। दैनिक जीवन में भाषा का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, और इसमें मौखिक कहानी कहने, धार्मिक भजनों और लिखित साहित्य की समृद्ध परंपरा है। संथाली ने संताल लोगों की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और एक जीवंत और जीवित भाषा बनी हुई है जो संताल लोगों की सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़ी हुई है।