तत्पुरुष समास में दूसरा पद प्रधान होता है, यह कारक से युक्त समास होता है। इसके विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। उदाहरण के लिए- देश के लिए भक्ति = देशभक्ति, राजा का पुत्र = राजपुत्र।
Index Tatpurush samas-
तत्पुरुष समास, संस्कृत में
‘उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः तत्पुरुष’ – समास में उत्तरपद के अर्थ की प्रधानता रहती है।
‘परलिंग तत्परुषे‘– तत्पुरुष समास होने पर समस्त भाग को उत्तरपद का लिंग प्राप्त होता है। जैसे—धान्येन अर्थः- धान्यार्थः ।
‘रात्राहनाः पुमांसः‘ – तत्पुरुष समास होने से समस्त भाग के अन्तस्थित रात्र अहन और अह पुंल्लिग होते हैं।
‘रात्रं नपुंसक संख्यापूर्वम्‘ – संख्यावाचक शब्द पूर्व में रहने पर ‘रात्र’ शब्द नपुंसकलिंग होता है।
‘पुण्यादहः‘ – ‘पुण्य’ शब्द के परवर्ती ‘अह’ नपुंसक लिंग होता है।
तत्पुरुष समास के भेद
- व्यधिकरण तत्पुरुष
- समानाधिकरण तत्पुरुष
व्यधिकरण तत्पुरुष समास
वि + अधिकरण = व्यधिकरण पूर्व पद में जो विभक्तियाँ लगी होती हैं, वे भिन्न भिन्न होती हैं। इन्हीं के नाम पर इसमें आनेवाले तत्पुरुषों के नाम रखे गए हैं। ये 6 प्रकार के होते हैं-
- द्वितीया तत्पुरुष
- तृतीया तत्पुरुष
- चतुर्थी तत्पुरुष
- पंचमी तत्पुरुष
- षष्ठी तत्पुरुष
- सप्तमी तत्पुरुष
1. द्वितीया तत्पुरुष
इसमें प्रथम पद में द्वितीया विभक्ति रहती है, जो समास होने के बाद लुप्त हो जाती है।
द्वितीया तत्पुरुष समास के उदाहरण एवं उनके हिन्दी अर्थ
समस्तपद | समास-विग्रह | हिन्दी अर्थ |
---|---|---|
कृष्णश्रितः | कृष्णं श्रितः | (कृष्ण को प्राप्त) |
दुःखातीतः | दुःखम् अतीतः | (दुःख को पार कर गया हुआ) |
कूपपतितः | कूपम् पतितः | (कुएँ में गिरा हुआ) |
तुहिनात्यस्तः | तुहिनम् अत्यस्तः | (बर्फ में फंसा हुआ) |
जीवनप्राप्तः | जीवनम् प्राप्त | (जीवन को प्राप्त) |
सुखापन्नः | सुखम् आपन्नः | (सुख को पाया हुआ) |
गर्तपतितः | गर्त्तम् पतितः | (गड्ढे में गिरा हुआ) |
अस्तंगतः | अस्तम् गतः | (अस्त को प्राप्त) |
धनापन्नः | धनम् आपन्नः | (धन को प्राप्त) |
ग्रामयमी – | ग्रामं गमी | गाँव को जानेवाला) |
कष्टश्रितः | कष्टं श्रितः | – |
खट्वारूढ़ः | खट्वाम् आरुढ़ः | खाट पर बैठा हुआ) |
मासगम्यः | मासं गम्यः। | – |
वर्षभोग्यः | वर्ष भोग्यः | – |
स्वायंकृतिः | स्वयं कृतस्यापत्यम् | – |
मासप्रमितः | मासं प्रमितः | – |
मुहूर्तसुखम् | मुहूर्त सुखम् | – |
2. तृतीया तत्पुरुष समास
तृतीयान्त सुबन्त पद का तत्कृत गुणवाचक शब्द के साथ और अर्थ के साथ समास होता है।
‘कर्तृकरणे कृता बहुलम्’ – यदि पहला पद कर्ता हो और तृतीया विभक्ति से युक्त हो या पहला पद करण कारक में हो और दूसरा पद कृदन्त तो इन दोनों का तृतीया तत्पुरुष समास होता है। जैसे –
- नखैः भिन्नः (तृतीया विभक्ति) = नखभिन्नः (कृदन्त)
‘पूर्व सदृश समोनार्थजजजकलहनिपुणमिश्रश्लक्ष्णैः’ – तृतीयान्त सुबन्त पद पूर्वादि शब्दों के साथ तत्पुरुष समास होता है। जैसे-
- मासेन पूर्वः = मासपूर्वः
तृतीया तत्पुरुष समास के उदाहरण एवं उनके हिन्दी अर्थ
समास-विग्रह | समस्तपद | हिन्दी अर्थ |
---|---|---|
व्यासेन कृतम् | व्यासकृतम् | व्यास द्वारा किया |
शंकुलया खण्डः | शंकुलाखण्डः | शंकुल (सरीते) से खण्ड किया |
धान्येन अर्थः | धान्यार्थः | अन्न से मतलव |
बाणेन बेधः | बाणवेधः | बाण से वेधा हुआ |
दानेन अर्थः | दानार्थः | दान से प्रयोजन |
मासेन पूर्वः | मासपूर्वः | माह से पहले |
पित्रा सदृशः | पितृसदृशः | पिता के समान |
भ्रात्रा समः | भ्रातृसमः | भाई के समान |
ज्ञानेन हीनः | ज्ञानहीनः | ज्ञान से हीन । |
वाचा कलहः | वाक्कलहः | बाताबाती / गाली-गलौज |
आचारेण निपुणः | आचारनिपुणः | आचार से निपुण |
गुडेन मिश्रः | गुडमिश्रः | गुड़ से मिला हुआ । |
आचारेण श्लक्ष्णः | आचारश्लक्ष्णः | आचरण में सहज |
हरिणा त्रातः | हरित्रातः | हरि के द्वारा रक्षित |
धर्मेण रक्षितः | धर्मरक्षितः | धर्म से रिक्षत |
नखैः भिन्नः | नखभिन्नः | नखों से भिन्न किया गया |
सर्पण दष्तः | सर्पदष्तः | साँप से डॅसा गया |
मासेन अवरः | मासावरः | एक मास छोटा |
मात्रा सदृशः | मातृसदृशः | माता के समान |
3. चतुर्थी तत्पुरुष समास
इस समास में पहला पद चतुर्थी विभक्ति में रहता है।
‘चतुर्थीतदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः’ – चतुर्थ्यन्त सुबन्त पदों का ‘तदर्थ’ तथा ‘हित’ के अर्थ में समास होता है।
चतुर्थी तत्पुरुष समास के उदाहरण एवं उनके हिन्दी अर्थ
समास-विग्रह | समस्तपद | हिन्दी अर्थ |
---|---|---|
यूपाय दारु | यूपदारु | यूप के लिए लकड़ी |
रन्धनाय स्थाली | रन्धनस्थाली | राँधने के लिए थाली |
भूताय बलिः | भूतबलिः | जीव के लिए बलि |
गवे हितम् | गोहितम् | गाय के लिए भलाई । |
पित्रे सुखम | पितृसुखम् | पिता के लिए सुख |
गवे रक्षितम् | गोरक्षितम् | गाय के लिए रखा गया । |
द्विजाय सूपम् | द्विजार्थसूपः | द्विज के लिए दाल |
4. पंचमी तत्पुरुष समास
इस समास में पहला पद पंचमी विभक्ति युक्त होता है।
‘पंचमीभयेन‘- भयार्थक शब्दों के योग में पंचम्यन्त शब्दों का समास होने पर पंचमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे-
- चोरात् भयम् = चौरभयम् = चोर से भय
‘अपेतापोठमुक्तपतितापत्रस्तैरल्पशः‘ – अपेतादि शब्दों के साथ पंचमी तत्पुरुष समास होता है। जैसे-
सुखात् अपेतः = सुखापेतः – सुख से दूर।
पंचमी तत्पुरुष के अन्य उदाहरण
समास-विग्रह | समस्तपद | हिन्दी अर्थ |
---|---|---|
प्रेतात् भीतिः | प्रेतभीतिः | प्रेत से डर |
सर्पात् भीतः | सर्पभीतः | सर्प से डरा हुआ |
व्याघ्रात भीतः | व्याघ्रभीतः | बाघ से डर |
गृहात् निर्गतः | गृहनिर्गतः | घर से निकला हुआ |
आचारात् भ्रष्टः | आचारभ्रष्टतः। | आचारण से भ्रष्ट |
धर्मात् च्युतः | धर्मच्युतः । | धर्म से च्युत । |
वृक्षात् पतितः | वृक्षपतितः | वृक्ष से गिरा हुआ |
बन्धनात् मुक्तः | बंधनमुक्तः | बंधन से मुक्त |
वृकात् भीतिः | वृकभीतिः | भेड़िये से भय । |
कल्पनायाः अपोठः | कल्पनापोठः | कल्पना से शून्य |
स्वर्गात् पतितः | स्वर्गपतितः | स्वर्ग से पतित |
तरंगात् अपत्रस्तः | तरंगापत्रस्तः | तरंग से घबराया हुआ |
5. षष्ठी तत्पुरुष समास
‘षष्ठी‘- षष्ठ्यन्त सुबन्त का समर्थ सुबन्त के साथ समास होता है। परन्तु; ‘यतश्च निर्धारणम्‘ सूत्र से निर्धारण में होनेवाली षष्ठी विभक्ति का समास नहीं होता। जैसे-
- कवीनां कालिदासः श्रेष्ठः। (कवियों में कालिदास श्रेष्ठ) इसमें समास नहीं हुआ है।
षष्ठी तत्पुरुष समास के उदाहरण
समास-विग्रह | समस्तपद | हिन्दी अर्थ |
---|---|---|
गजानां राजा | गजराजः | गजों का राजा |
राष्ट्रस्य पतिः | राष्ट्रपतिः | राष्ट्र का पति / स्वामी। |
राज्ञः पुरुषः | राजपुरुषः | राजा का पुरुष |
राज्ञः पुत्रः | राजपुत्रः | राजा का पुत्र |
गंगायाः जलम् | गंगाजलम् | गंगा का जल |
देवानां भाषा | देवभाषा | देवभाषा |
पशूनां पतिः | पशुपतिः | पशुओं का पति / स्वामी |
द्विजानां राजा | द्विजराजः | द्विजों का राजा |
पाठस्य शाला | पाठशाला | पाठ का शाला / घर |
विद्यायाः आलयः | विद्यालयः | विद्या का आलय /घर |
सूर्यस्य उदयः | सूर्योदयः | सूर्य का उदय |
जगतः अम्बा | जगदम्बा | जगत् की अम्बा / माता |
नराणाम् इन्द्रः | नरेन्द्रः | नरों का द्वन्द्र राजा |
मातुः जंघा | मातृजंघा | माता की जाँघ |
मूषिकाणां राजा | मूषिकराजः | चूहों का राजा |
कपोतानाम् राजा | कपोतराजः | कबूतरों का राजा |
काल्पाः दासः | कालिदासः | काली का दास |
विप्रस्य पुत्रः | विप्रपुत्रः | विप्र / ब्राह्मण का पुत्र |
नद्याः तटम् | नदीतटम् | नदी का तट |
जलस्य प्रवाहः | जलप्रवाहः | जल का प्रवाह |
रक्षसां सभा | रक्षः सयम् | राक्षसों की सभा |
धर्मस्य सभा | धर्मसभा | धर्म की सभा |
विदुषां सभा | विद्वत्सभा | विद्वानों की सभा |
6. सप्तमी तत्पुरुष समास
इसमें पूर्वपद सप्तम्यन्त रहता है।
‘सप्तमी शौण्डैः‘ – सप्तम्यन्त शौण्ड (चालाक / धूर्त / निपुण) आदि शब्दों के साथ सदा सप्तमी तत्पुरुष समास होता है।
सप्तमी तत्पुरुष समास के उदाहरण
समास-विग्रह | समस्तपद | हिन्दी अर्थ |
---|---|---|
अक्षेषु शौण्डः | अक्षशौण्डः | जुए में धूर्त / निपुण |
शास्त्रे प्रवीणः | शास्त्रप्रवीणः | शास्त्र में प्रवीण |
सभायां पण्डितः | सभापंडितः | सभा में पंडित |
प्रेमिण धूर्त्तः | प्रेमधूर्तः | प्रेम में धूर्त |
कर्मणि कुशलः | कर्मकुशलः | कर्म में कुशल |
दाने वीरः | दानवीरः | दान में वीर |
व्याकरणे पटुः | व्याकरणपटुः | व्याकरण में निपुण |
कलायां कुशलः | कलाकुशलः | कला में कुशल |
व्यवहारे चपलः | व्यवहारचपलः | व्यवहार में चपल |
काव्ये प्रवीणः | काव्य प्रवीणः | काव्य में प्रवीण |
रणे पंडितः | रणपंडितः | रण में पंडित |
सप्तम्यन्त सुबन्त का ‘सिद्ध‘ आदि शब्दों के साथ समास होता है। जैसे-
समास-विग्रह | समस्तपद | हिन्दी अर्थ |
---|---|---|
मंत्रे सिद्धः | मंत्रसिद्धः | मंत्र में सिद्ध |
आतपे शुष्कः | आतपशुष्कः | धूप में सूखा हुआ |
चक्रे बन्धः | चक्रबन्धः | चक्र में बँधा हुआ |
घृते पक्वः : | घृतपक्वः | घी में पका हुआ |
समानाधिकरण तत्पुरुष समास
समानाधिकरण तत्पुरुष की परिभाषा
समानाधिकरण तत्पुरुष समास को ‘कर्मधारय समास‘ भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें दोनों पद समान विभक्ति वाले होते हैं। इसमें विशेषण / विशेष्य तथा उपमान / उपमेय होते हैं । कहीं कहीं पर दोनों ही पद विशेष्य या विशेषण हो सकते हैं। कहीं-कहीं पर उपमान और उपमेय में अभेद स्थापित करते हुए रूपक समानाधिकरण तत्पुरुष हो जाता है। जैसे-
समानाधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण एवं अर्थ
समास-विग्रह | समस्तपद | हिन्दी अर्थ |
---|---|---|
कृष्णः सर्पः | कृष्णसर्पः | काला साँप |
महान् पुरुषः | महापुरुषः | महान् पुरुष |
सत् वैद्यः | सवैद्यः | अच्छा वैद्य |
महत् काव्यम् | महाकाव्यम् | महाकाव्य |
महान् जनः | महाजनः | बड़े आदमी |
महान् देवः | महादेवः | महादेव |
महान् कविः | महाकविः | महाकवि |
नीलम् उत्पलम्ः | नीलोत्पलम् | नीला कमल |
नीलम् कमलमुः | नीलकमलम् | नीला कमल |
श्वेतः अम्बरः | श्वेताम्बरः | श्वेत अम्बर |
महान् राजा | महाराजः | महाराज |
प्रियः सखाः | प्रियसखः | प्रिय सखा |
अपरः अर्धः | पश्चार्धः | बाद का आधा |
घनः इव श्यामः | घनश्यामः | घनश्याम |
विद्युत् इव चंचला | विद्युच्चञ्चला | बिजली की तरह चंचल |
नवनीतम् इव कोमलम् | नवनीतकोमलम् | नवनीत मक्खन के समान कोमल |
चन्द्रः इव उज्ज्वलः | चन्द्रोज्ज्वलः | चन्द्र-सा उज्ज्वल |
नरः सिंहः इव | नृसिंहः | नरों में सिंह के समान |
पुरुषः व्याघ्रः इव | पुरुषव्याघ्रः | पुरुषों में बाघ के समान |
नरः शार्दूलः इव | नरशार्दूलः | नरों में चीते के समान |
अधरः पल्लवः इव | अधरपल्लवः | अधर पल्लव के समान |
कुत्सितः सखा | किंसखा | बुरा सखा / मित्र |
कुत्सितः प्रभुः | किंप्रभुः | बुरे मालिक |
कुत्सितः नरः | किन्नरः | बुरे आदमी |
कुत्सितः पुरुषः | कापुरुषः | बुरा पुरुष |
कुत्सितः अश्वः | कदश्वः | खराब घोड़ा |
कुत्सितम् अन्नम् | कदन्नम् | खराब अन्न/ अनाज |
करः एव कमलम् | करकमलम् | कर जो कमल है |
कमलम् एव मुखम् | कमलमुखम् | मुख जो कमल है |
नीलश्च लोहितश्च | नीललोहितः | नीला और लाल |
सुकेशी भार्या | सुकेश भार्या | * |
कृष्ण चतुर्दशी | कृष्णचतुर्दशी | * |
सुन्दरी नारी | सुन्दरनारी | * |
विश्वे देवा | विश्वदेवाः | * |
मधुरम् वचनम् | मधुरवचनम् | * |
नवम् अन्नम् | नवान्नम् | नया अनाज |
उष्णम् उदकम् | उष्णोदकम् | गरम जल |
ज्ञानम् एवं धनन् | ज्ञानधनम् | ज्ञान ही धन है |
मानसम् एव विहंगः | मानसविहंगः | मानस जो विहंग है |
Tatpurush samas in hindi
इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। यह कारक से जुदा समास होता है। इसके विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
तत्पुरुष समास के उदाहरण (Tatpurush samas ke udaharan)
- देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
- शर से आहत = शराहत
- राह के लिए खर्च = राहखर्च
- तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
- राजा का महल = राजमहल
तत्पुरुष समास के भेद (Tatpurush samas ke bhed)
वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं।
समानाधिकरण तत्पुरुष समास (कर्मधारय समास) (Samanadhikaran tatpurush samas)
जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ ‘कर्मधारय तत्पुरुष समास‘ होता है।
व्यधिकरण तत्पुरुष समास (Vyadhikaran tatpurush samas)
जिस तत्पुरुष समास में प्रथम पद तथा द्वतीय पद दोनों भिन्न-भिन्न विभक्तियों में हो, उसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं। उदाहरणतया- राज्ञ: पुरुष: – राजपुरुष: में प्रथम पद राज्ञ: षष्ठी विभक्ति में है तथा द्वतीय पद पुरुष: में प्रथमा विभक्ति है। इस प्रकार दोनों पदों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ होने से व्यधिकरण तत्पुरुष समास हुआ।
व्यधिकरण तत्पुरुष समास 6 प्रकार का होता है –
- कर्म तत्पुरुष समास
- करण तत्पुरुष समास
- सम्प्रदान तत्पुरुष समास
- अपादान तत्पुरुष समास
- सम्बन्ध तत्पुरुष समास
- अधिकरण तत्पुरुष समास
कर्म तत्पुरुष समास (Karm tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण (Karm tatpurush samas ke udaharan)
- रथचालक = रथ को चलने वाला
- ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
- माखनचोर =माखन को चुराने वाला
- वनगमन =वन को गमन
- मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
- स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
- देशगत = देश को गया हुआ
- जनप्रिय = जन को प्रिय
- मरणासन्न = मरण को आसन्न
करण तत्पुरुष समास (Karan tatpurush samas)
जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह य विभक्ति “के द्वारा” और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।
करण तत्पुरुष समास के उदाहरण (Karan tatpurush samas ke udaharan)
- स्वरचित =स्व द्वारा रचित
- मनचाहा = मन से चाहा
- शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
- भुखमरी = भूख से मरी
- धनहीन = धन से हीन
- बाणाहत = बाण से आहत
- ज्वरग्रस्त =ज्वर से ग्रस्त
- मदांध =मद से अँधा
- रसभरा =रस से भरा
- भयाकुल = भय से आकुल
- आँखोंदेखी = आँखों से देखी
सम्प्रदान तत्पुरुष समास (Sampradan tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति “के लिए” होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
सम्प्रदान तत्पुरुष समास के उदाहरण (Sampradan tatpurush ke udaharan)
- विद्यालय =विद्या के लिए आलय
- रसोईघर = रसोई के लिए घर
- सभाभवन = सभा के लिए भवन
- विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
- गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
- प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
- देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
- स्नानघर = स्नान के लिए घर
- सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
- यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
- डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
- देवालय = देव के लिए आलय
- गौशाला = गौ के लिए शाला
अपादान तत्पुरुष समास (Apadan tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह (से) या विभक्ति ‘से अलग’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
अपादान तत्पुरुष समास के उदाहरण (Apadan tatpurush samas ke udaharan):
- कामचोर = काम से जी चुराने वाला
- दूरागत =दूर से आगत
- रणविमुख = रण से विमुख नेत्रहीन = नेत्र से हीन
- पापमुक्त = पाप से मुक्त
- देशनिकाला = देश से निकाला
- पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
- पदच्युत =पद से च्युत
- जन्मरोगी = जन्म से रोगी
- रोगमुक्त = रोग से मुक्त
सम्बन्ध तत्पुरुष समास (Sambandh tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति “का, के, की” होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।
सम्बन्ध तत्पुरुष समास के उदाहरण (Sambandh tatpurush samas ke udaharan)
- राजपुत्र = राजा का पुत्र
- गंगाजल =गंगा का जल
- लोकतंत्र = लोक का तंत्र
- दुर्वादल =दुर्व का दल
- देवपूजा = देव की पूजा
- आमवृक्ष = आम का वृक्ष
- राजकुमारी = राज की कुमारी
- जलधारा = जल की धारा
- राजनीति = राजा की नीति
- सुखयोग = सुख का योग
- मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
- श्रधकण = श्रधा के कण
- शिवालय = शिव का आलय
- देशरक्षा = देश की रक्षा
- सीमारेखा = सीमा की रेखा
अधिकरण तत्पुरुष समास (Adhikaran tatpurush samas)
इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘ में ‘, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
अधिकरण तत्पुरुष समास के उदाहरण (Adhikaran tatpurush samas ke udaharan)
- कार्य कुशल =कार्य में कुशल
- वनवास =वन में वास
- ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- दीनदयाल = दीनों पर दयाल
- दानवीर = दान देने में वीर
- आचारनिपुण = आचार में निपुण
- जलमग्न =जल में मग्न
- सिरदर्द = सिर में दर्द
- क्लाकुशल = कला में कुशल
- शरणागत = शरण में आगत
- आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
- आपबीती =आप पर बीती
तत्पुरुष समास के उपभेद (Tatpurush samas ke upbhed)
- नञ् तत्पुरुष समास
- उपपद तत्पुरुष समास
- लुप्तपद तत्पुरुष समास
उपपद तत्पुरुष समास
ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है। जैसे- नभचर , कृतज्ञ , कृतघ्न , जलद , लकड़हारा इत्यादि।
लुप्तपद तत्पुरुष समास
जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है।जैसे –
- दहीबड़ा – दही में डूबा हुआ बड़ा
- ऊँटगाड़ी – ऊँट से चलने वाली गाड़ी
- पवनचक्की – पवन से चलने वाली चक्की आदि।
नञ तत्पुरुष समास (Nav samas in hindi)
इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
नञ तत्पुरुष समास के उदाहरण (Nav tatpurush samas ke udaharn):
- असभ्य =न सभ्य
- अनादि =न आदि
- असंभव =न संभव
- अनंत = न अंत
Samas in Sanskrit, Samas in Hindi
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