द्वन्द्व समास की परिभाषा
‘दौ दो द्वन्द्वम्’-दो-दो की जोड़ी का नाम ‘द्वन्द्व है। ‘उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्ध:‘- जिस समास में दोनों पद अथवा सभी पदों की प्रधानता होती है। जैसे – द्वन्द्व समास के उदाहरण, धर्मः च अर्थः च = धर्मार्थी, धर्मः च अर्थः च कामः च = धमार्थकामाः।
द्वन्द्व समास के उदाहरण
- धर्मः च अर्थः च = धर्मार्थी
- धर्मः च अर्थः च कामः च = धमार्थकामाः।
द्वन्द्व समास के प्रकार या भेद
द्वन्द्व समास तीन प्रकार के होते हैं – इतरेतर द्वन्द्वः, एकशेषद्वन्दः और समाहार द्वन्द्वः।
1. इतरेतर द्वन्द्वः
जिस द्वन्द्व समास में भिन्न-भिन्न पद अपने वचनादि से मुक्त होकर क्रिया के साथ संबद्ध होते हैं। जैसे- कृष्णश्च अर्जुनश्च = कृष्णार्जुनौ, हरिश्च हरश्च = हरिहरी
इतरेतर द्वन्द्व समास के उदाहरण
- कृष्णश्च अर्जुनश्च = कृष्णार्जुनौ
- हरिश्च हरश्च = हरिहरी
- रामश्च कृष्णश्च = रामकृष्णौ
- रामः च लक्ष्मणः च = रामलक्ष्मणौ
- सुखं च दुःखं च = सुखदुखे
- पुण्यः च पापं च = पुण्यपापे
- जाया च पतिः च = जायापती/जम्पती/दम्पती
- पिता च पुत्रश्च = पितापुत्री
- पुत्रः च कन्या च = पुत्रकन्ये
- स्त्री च पुत्रः च राज्यं च = स्त्रीपुत्रराज्यानि
- मृगश्च काकश्च = मृगकाको
2. एकशेषद्वन्दः
इसमें एक ही पद शेष रहता है अन्य सभी लुप्त हो जाते हैं। जैसे- रामः च रामः च = रामौ (राम और राम) हंसः च हंसी च = हंसी।
एकशेषद्वन्दः समास के उदाहरण
- रामः च रामः च = रामौ (राम और राम)
- हंसः च हंसी च = हंसी।
- बालकः च बालिका च = बालको
- पुत्रः च पुत्री च = पुत्री
- भ्राता च स्वसा च = भ्रातरौ
- पुत्रः च दुहिता च = पुत्री
- माता च पिता च = पितरौ
- श्वश्रूः च श्वशुरश्च = श्वशुरौ
3. समाहार द्वन्द्वः
इस समास में एक ही तरह के कई पद मिलकर समाहार (समूह) का रूप धारण कर लेते हैं— ‘इन्द्धश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम्‘।
समाहार द्वन्द्व एकवचन और नपुंसकलिंग में होता है। प्राणि, वाद्य, सेनादि के अंगों का समाहार द्वन्द्व एकवचन में होता है।
‘स नपुंसकम्‘–एकवचन वाला यह द्वन्द्व समास नपुंसकलिंग में होता है। जैसे- पाणी च पादौ च तेषां समाहारः = पाणिपादम्।
समाहार द्वन्द्व समास के उदाहरण
- पाणी च पादौ च तेषां समाहारः = पाणिपादम्।
- मार्दङ्गिकश्च पाणविकश्च तथोः समाहारः = मार्दङ्गिपाणविकम्
- रथिकाश्च अश्वारोहाश्च तेषां समाहारः = रथिकाश्वारोहम्।
- अहिश्च नकुलश्च तयोः समाहारः = अहिनकुलम् ।
- गौश्च व्याघ्रश्च तयोः समाहारः = गोव्याघ्रम् ।
- मार्जाराश्च मूषिकाश्च तेषां समाहारः = मार्जारमूषिकम् ।
- गङ्गा च शोणश्च तयोः समाहारः गंगाशोणम् ।
- यूकाश्च लिक्षाश्च तासां समाहारः = यूकालिक्षम्।
- दासश्च दासी च तयोः समाहारः = दासीदासम्
- तक्षाः च अयस्काराश्च तयोः समाहारः = तक्षायस्कारम्।
- छत्रं च उपानही च तेषां समाहारः = छत्रोपानहम्
Dvandva Samas Ke Udaharan
- अहश्च रात्रिश्च = अहोरात्रः
- कुशश्च लवश्च = कुशीलव
- घौश्च भूमिश्च = द्यावाभूमी
- अग्निश्च सोमश्च = अग्नीसोमी
- अहश्च निशा च = अहर्निशम्
- द्यश्च पृथिवीय = द्यावापृथिव्यौ
- द्वौ वा त्रयौ वा = द्वित्रा
- पञ्च वा षड् वा = पञ्चषाः
- मित्रश्च वरूणश्च = मित्रावरूणौ
- सूर्यश्च चन्द्रमा च = सूर्याचन्द्रमसी
- अग्निश्च वायुश्च = अग्निवायू
- उदकं च अवाक् च उच्चावयम्
- वाक् च मनश्च = वाङ्मनसः
- गावश्च अश्वाश्च = गवाश्वम्
हिन्दी में द्वन्द्व समास
इस समास में दो पद होते हैं तथा दोनों पदों की प्रधानता होती है। इनका विग्रह करने के लिए “और, एवं, तथा, या, अथवा” शब्दों का प्रयोग किया जाता है। द्वंद्व समास में योजक चिन्ह (-) और ‘या’ का बोध होता है। इसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। विग्रह करने पर बीच में ‘और’ / ‘या’ का बोध होता है ।
परिभाषा
द्वन्द्व समास में समस्तपद के दोनों पद प्रधान हों या दोनों पद सामान हों एवं दोंनों पदों को मिलाते समय “और, अथवा, या, एवं” आदि योजक लुप्त हो जाएँ, वह समास द्वंद्व समास कहलाता है।
उदाहरण
- अन्न-जल : अन्न और जल
- अपना-पराया : अपना और पराया
- राजा-रंक : राजा और रंक
- देश-विदेश : देश और विदेश
- रात-दिन : रात और दिन
- भला-बुरा : भला और बुरा
- छोटा-बड़ा : छोटा और बड़ा
- राधा-कृष्ण : राधा और कृष्ण
- राजा-प्रजा : राजा और प्रजा
- गुण-दोष : गुण और दोष
- नर-नारी : नर और नारी
- एड़ी-चोटी : एड़ी और चोटी
- लेन-देन : लेन और देन
- भला-बुरा : भला और बुरा
- जन्म-मरण : जन्म और मरण
- पाप-पुण्य : पाप और पुण्य
- तिल-चावल : तिल और चावल
- भाई-बहन : भाई और बेहेन
- नून-तेल : नून और तेल
- आटा-दाल : आटा और दाल
- पाप-पुण्य : पाप और पुण्य
- देश-विदेश : देश और विदेश
- लोटा-डोरी : लोटा और डोरी
- सीता-राम : सीता और राम
- ऊंच-नीच : ऊँच और नीच
- खरा-खोटा : खरा और खोटा
- रुपया-पैसा : रुपया और पैसा
- मार-पीट : मार और पीट
- माता-पिता : माता और पिता
- दूध-दही : दूध और दही
- भूल-चूक : भूल या चूक
- सुख-दुख : सुख या दुःख
- गौरीशंकर : गौरी और शंकर
सभी उदाहरणों में देख सकते हैं यहां एड़ी चोटी, जन्म-मरण जैसे शब्दों का समास होने पर योजक चिन्ह का लोप हो गया है। इन शब्दों में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। द्वंद्व समास कि भी बिलकुल ऐसी ही विशेषताएं होती हैं जिनमें दोनों पद प्रधान होते हैं एवं जोड़ने पर योजक लुप्त हो जाते हैं। अतः यह उदाहरण द्वंद्व समास के अंतर्गत आयेंगे।
Samas in Sanskrit, Samas in Hindi
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