सम्प्रदान कारक
परिभाषा
जिसके लिए कोई कार्य किया जाए, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। अथवा – कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। लेने वाले को संप्रदान कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ हैं।
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सम्प्रदान का अर्थ देना होता है। जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए तो वहां पर सम्प्रदान कारक होता है। सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिन्ह के लिए या को हैं।
उदाहरण
1. मैं दिनेश के लिए चाय बना रहा हूँ। – इस वाक्य में ‘दिनेश’ संप्रदान है, क्योंकि चाय बनाने का काम दिनेश के लिए किया जा रहा।
2. स्वास्थ्य को (लिए सूर्य) नमस्कार करो। – इस वाक्य में ‘स्वास्थ्य के लिए’ संप्रदान कारक हैं।
3. गुरुजी को (लिए सूर्य) फल दो। – इस वाक्य में ‘गुरुजी को’ संप्रदान कारक हैं।
सम्प्रदान कारक चतुर्थी विभक्ति, संस्कृत (Sampradan Karak in Sanskrit)
1. सम्प्रदाने चतुर्थी
सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-
- नूतन ब्राह्मणाय भोजनं पचति । नुतन ब्राह्मण के लिए भोजन पकाती है।
2. दानार्थे चतुर्थी
जिसे कोई चीज दान में दी जाय, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-
- राजा ब्राह्मणेभ्यः वस्त्रम् ददाति । राजा ब्राह्मणों को वस्त्र देता है।
3. तुमर्थात्य भाववचनात् चतुर्थी
तुमुन् प्रत्ययान्त शब्दों के रहने पर चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे—
- फलेभ्यः उद्यानं गच्छति संजयः । फलों के लिए उद्यान जाता संजय।
- भोजनाय गच्छति बालकः । भोजन के लिए जाता बालक।
4. नमः स्वस्ति स्वाहास्वधाऽलं वषट्योगाच्च
नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम और वषट् के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-
- तस्मै श्रीगुरवे नमः। उन गुरु को नमस्कार है।
- अस्तु स्वस्ति प्रजाभ्यः । प्रजा का कल्याण हो ।
- अग्नये स्वाहा। आग को समर्पित है।
- पितृभ्यः स्वधा । पितरों को समर्पित है।
- अलं मल्लो मल्लाय। यह पहलवान उस पहलवान के लिए काफी है।
- वषड् इन्द्राय । इन्द्र को अर्पित है।
5. रुच्यर्थानां प्रीयमाणः
जिस व्यक्ति को जो चीज अच्छी लगती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-
- सर्वेभ्यः रोचते श्लाघा । सबों को श्लाघा अच्छी लगती है।
- ब्राह्मणाय मधुरं प्रियम् । ब्राह्मण को मधुर प्रिय है।
- मह्यं संस्कृतं रोचते। मुझे संस्कृत अच्छी लगती है।
6. स्पृहेरीप्सितः चतुर्थी
स्पृह (इच्छा) धातु के योग में जिस चीज की इच्छा होती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-
- बालः पुष्पेभ्यः स्पृहयति । बच्चा फूलों को पसंद करता है।
- ज्ञानाय स्पृह्यति ज्ञानी। ज्ञानी ज्ञान पसंद करता है।
7. धारेरुत्तमर्णः चतुर्थी
‘धारि’ धातु के अर्थ में उत्तमर्ण (कर्जदार) में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे—
- अवधेशः मह्यं शतं धारयति। अवधेश मेरा सौ रुपयों का कर्जदार है।
8. क्रुधदुहेसूयार्थानां यं प्रति कोपः
क्रुध, द्रुह, ईष्र्या और असूयार्थ वाले धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोधादि भाव हो, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-
- कंसः कृष्णाय क्रुध्यति। कंस कृष्ण पर क्रोध करता है ।।
- दुष्टः सज्जनाय द्रुह्यति। दुष्ट सज्जन से द्रोह करता है।
- प्रणयः अरविन्दाय ईष्यति। प्रणय अरविन्द से ईष्र्या करता है।
- रामकुमारः गौरीशंकराय असूयति। रामकुमार गौरीशंकर से द्वेष करता है।
9. कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम्
जहां कर्म के योग में जिस चीज की इच्छा होती है, उसमें सम्प्रदान कारक होता है। जैसे-
- राजा याचकाय वस्त्रं ददाति।
- सः बालकाय फ़लम् ददाति।
सम्प्रदान कारक के उदाहरण, हिन्दी(Sampradan Karak in Hindi)
- माँ अपने बच्चे के लिए दूध लेकर आई।
- मेरे लिए खाना लेकर आओ।
- विकास ने तुषार को गाडी दी।
- वह मेरे लिए चाय बना रहा है।
- मैं हिमालय को जा रहा हूँ।
- रमेश मेरे लिए कोई उपहार लाया है।
- साहिल ब्राह्मण को दान देता है।
1. नरेश मीना के लिए फल लाया है।
वाक्य में जैसा कि आप देख सकते हैं, के लिए चिन्ह का प्रयोग किया जा रहा है। इससे हमें पता चल रहा है कि किसी के लिए काम किया जा रहा है।
जब किसी के लिए काम किया जाता है तो तब वहां सम्प्रदान कारक होता है। अतः यह उदाहरण भी सम्प्रदान कारक के अंतर्गत आएगा।
2. विकास तुषार को किताबें देता है।
उदाहरण में देख सकते हैं कि को विभक्ति चिन्ह का प्रयोग करता है। यह चिन्ह बताता है कि किसी ने किसी को कुछ दिया है।
यहाँ विकास ने तुषार को किताबें दी हैं। जैसा कि हमें पता है कि जब किसी को कुछ दिया जाता है तो वहां सम्प्रदान कारक होता है।
3. भूखे के लिए रोटी लाओ।
दिए गए वाक्य में देख सकते हैं कि के लिए विभक्ति चिन्ह का प्रयोग किया जा रहा है। यह चिन्ह हमें बताता है कि किसी के लिए काम किया जा रहा है।
एवं जब किसी के लिए काम किया जाता है तो वहां सम्प्रदान कारक होता है। यहाँ पर भूखे के लिए रोटी लायी जा रही है। अतः यह उदाहरण सम्प्रदान कारक के अंतर्गत आएगा।
कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में अंतर
कर्म कारक और सम्प्रदान कारक में को विभक्ति का प्रयोग होता है। कर्म कारक में क्रिया के व्यापार का फल कर्म पर पड़ता है और सम्प्रदान कारक में देने के भाव में या उपकार के भाव में को का प्रयोग होता है।
पढ़ें KARAK के अन्य भेद-
मुख्य प्रष्ठ : कारक प्रकरण – विभक्ति
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