मुक्तक काव्य (Muktak Kavya)

Muktak Kavya
Muktak Kavya

मुक्तक-काव्य महाकाव्य और खण्डकाव्य से भिन्न प्रकार का होता है। इस काव्य में एक अनुभूति, एक भाव या कल्पना का चित्रण किया जाता है। इसमें महाकाव्य या खण्डकाव्य जैसी धारावाहिता नहीं होती। फिर भी वर्ण्य-विषय अपने में पूर्ण होता है। प्रत्येक छन्द स्वतन्त्र होता है। जैसे कबीर, बिहारी, रहीम के दोहे तथा सूर और मीरा के पद।

मुक्तक काव्य के भेद

मुक्तक-काव्य के दो भेद होते हैं-

  1. पाठ्य-मुक्तक
  2. गेय-मुक्तक

1. पाठ्य मुक्तक

इसमें विषय की प्रधानता रहती है। किसी मुक्तक में किसी प्रसंग को लेकर भावानुभ का चित्रण होता है और किसी मुक्तक में किसी विचार अथवा रीति का वर्णन किया जाता है। कबीर, तुलसी, रहीम के भक्ति एवं नीति के दोहे तथा बिहारी, मतिराम, देव आदि की रचनाएँ इसी कोटि में आती हैं।

2. गेय मुक्तक

इसे गीतिकाव्य या प्रगीति भी कहते हैं। यह अंग्रेजी के लिरिक का समानार्थी है। इसमें भावप्रवणता, आत्माभिव्यक्ति, सौन्दर्यमयी कल्पना, संक्षिप्तता, संगीतात्मकता आदि गुणों की प्रधान होती है।