80+ Kabir ke Dohe: कबीरदास के दोहे, जो देते हैं जीवन का असली ज्ञान

Kabir Ke Dohe - Kabirdas Ke Hindi Dohe

Kabirdas Ke Doheगुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय। बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय॥” यह कबीर के प्रसिद्ध दोहों में से एक है। इस प्रष्ठ में कबीरदास के सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय दोहे सम्मिलित किए गए हैं। हम कबीर के अधिक से अधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं। तो आइए, इस पोस्ट के माध्यम से Kabir Ke Dohe in Hindi, की लिस्ट पढ़ें और उनके अर्थ को जानकर जीवन का असली ज्ञान प्राप्त करें।

कबीरदास कौन थे?

कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म सन 1398 ई, में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय लहरतारा तालाब के किनारे हुआ था। जहां से नीमा-नीरू नामक जुलाहे दंपति ने उठाकर उनका पालन पोषण किया। उनकी इस लीला को उनके अनुयायी ‘कबीर साहेब प्रकट दिवस‘ के रूप में मनाते हैं। कबीर जी भक्तिकाल की ‘निर्गुण भक्तिकाव्य शाखा‘ की संत काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। कबीर दास की रचनाओं को साखी, सबद, और रमैनी में लिखा गया है। कबीर बेहद ज्ञानी थे और स्कूली शिक्षा ना प्राप्त करते हुए भी उनके पास भोजपुरी, हिंदी, अवधी जैसी अलग-अलग भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। पढ़ें: कबीरदास का जीवन परिचय

कबीरदास के कुछ लोकप्रिय दोहे की लिस्ट इस प्रकार हैं:

  1. ऐसी वाणी बोलिए
  2. काल करे सो आज कर
  3. गुरु गोविंद दोऊ खड़े
  4. चलती चक्की देख के
  5. जग में बैरी कोई नहीं
  6. जल में बसे कमोदनी
  7. जाति न पूछो साधू की
  8. दुःख में सुमिरन सब करे
  9. नहाये धोये क्या हुआ
  10. पाहन पूजे हरि मिलें
  11. बड़ा भया तो क्या भया
  12. बुरा जो देखन मैं चला
  13. मलिन आवत देख के
  14. माटी कहे कुम्हार से
  15. साधू ऐसा चाहिए
  16. अति का भला न बोलना

80+ Kabir Ke Dohe in Hindi – हिन्दी में कबीरदास के दोहे

जीवन का असली ज्ञान देने वाले हिन्दी में कबीर के दोहे (Kabir Ke Dohe) हिन्दी अर्थ, भावार्थ और सार एवं व्याख्या सहित निम्नलिखित हैं:

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय॥

भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि यदि हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों, तो पहले किसके चरण स्पर्श करें? चूंकि गुरु ने ही अपने ज्ञान के माध्यम से हमें भगवान तक पहुँचने का मार्ग दिखाया है, इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी बढ़कर है। अतः हमें सबसे पहले गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए॥

भावार्थ: कबीर इस दोहे में बताते हैं कि लोग जीवन की भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए मेहनत करते रहते हैं परन्तु अपने जीवन के आध्यात्मिक उद्देश्य को ना तो पाना चाहते और ना ही उसकी तरफ ध्यान दे पाते हैं। चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि जीवन रूपी चक्की के पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता।

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥

भावार्थ: इस पंक्ति में कवि कबीर दास विचार कर रहे हैं कि कुमार जो बर्तन बनाता है तब मिट्टी को रोदता है उस समय मिट्टी कुमार से बोलती है कि अभी मुझे रौंद रहे हैं, एक दिन ऐसा आएगा जब आप इसी मिट्टी में विलीन हो जाओगे और मैं आपको रौदूंगी।

मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार।
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार॥

भावार्थ: मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। कबीर दास जी यह समझाना चाहते हैं कि आज आप जवान हैं तो कल आप भी बुड्ढे हो जाओगे, और मिट्टी में भी मिल जाओगे।

जल में बसे कमोदनी,चंदा बसे आकाश।
जो हैं जाको भावना, सो ताहि के पास॥

Kabir Ke Dohe - Jo Jaki Bhavna

भावार्थ: जिस प्रकार जल में कमलिनी दूर आकाश के चंद्रमा के प्रतिबिंब को अपने समीप पाकर खिल उठती है, ठीक उसी तरह जिसकी जैसी भावना होती है वही वस्तु और विचार उसके पास होते हैं।

हमें आशा है कि आपको Kabirdas के Dohe पसंद आ रहे होंगे! और आगे पढ़ें

सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद॥

भावार्थ: इस दोहे में कबीर दास हमें यह सिखाते हैं कि हमें भगवान की याद उसके आवश्यक नहीं केवल दुख के समय ही करनी चाहिए, बल्कि हमें सुख के समय भी उनके स्मरण में रहना चाहिए। सुख और दुख दोनों के समय में भगवान की याद करना हमारे मानसिक और आत्मिक संतुष्टि के लिए महत्वपूर्ण है।

साईं इतना दीजिये, जामें कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥

भावार्थ: परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमें बस मेरा गुजरा हो जाए, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूं। इस दोहे का संदेश है कि हमें अपने संसारिक और आध्यात्मिक दायित्वों का सामंजस्य बनाना चाहिए और सभी को समृद्धि, सुख, और आनंद में भागीदार बनाने के लिए साझा काम करना चाहिए।

जाति न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, सच्चा साधु सब प्रकार के भेदभावों से ऊपर उठा हुआ माना जाता है। साधू से यह कभी नहीं पूछा जाता की वह किस जाति का है उसका ज्ञान ही, उसका सम्मान करने के लिए पर्याप्त है। जिस प्रकार एक तलवार का मोल का आंकलन उसकी धार के आधार पर किया जाता है ना की उसके म्यान के आधार पर।

साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहीं।
धन का भूखा जो फिरै, सो तो साधु नाहीं॥

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं- साधु का मन भाव को जानता है, भाव का भूखा होता है, वह धन का लोभी नहीं होता जो धन का लोभी है वह तो साधु नहीं हो सकता।

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कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥

भावार्थ: कबीर कहते हैं कि वो नर अंधे हैं जो गुरु को भगवान से छोटा मानते हैं क्योंकि ईश्वर के रुष्ट होने पर एक गुरु का सहारा तो है लेकिन गुरु के नाराज होने के बाद कोई ठिकाना नहीं है।

अवगुण कहूं शराब का, आपा अहमक़ साथ।
मानुष से पशुआ करे, दाय गाँठ से खात॥

भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि मैं तुम्हें शराब के दोषों से आगाह करता हूँ, क्योंकि शराब पीने से इंसान अपनी समझ खो बैठता है, मूर्खता और पशुता का आचरण करता है, और इसके साथ ही अपनी जेब से धन भी गंवाता है।

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥

Kabirdas Ke Dohe - Maya Mari Na Man Mara - Kabir Amritwani

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें यह सिखाते हैं कि माया या मानव जीवन की अनगिनत इच्छाएँ और तृष्णाएँ हमारे शरीर के मर जाने के बाद भी बरकरार रहती हैं। शरीर ही मर जाता है, लेकिन हमारे मन की इच्छाएँ और तृष्णाएँ अबाद रहती हैं, और इन्हीं से हमारा दुख उत्पन्न होता है।

यहाँ तक Kabir Ke 10 Dohe हो गए हैं। और अधिक दोहे पढ़ें:

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय॥

अर्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें समय का महत्व बताते हैं और यह सिखाते हैं कि हमें समय का सदुपयोग करना चाहिए। हीरा, जो अमूल्य होता है, कोड़ी के लिए बेकार हो जाता है, इसलिए हमें समय की मूल्य को समझना चाहिए और उसका सही उपयोग करना चाहिए।

दुःख में सुमिरन सब करैं, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करैं, दुःख काहे को होय॥

अर्थ: इस दोहे में कबीर दास हमें यह सिखाते हैं कि हमें सुख और दुःख दोनों के समय में ही भगवान का स्मरण करना चाहिए। भगवान की स्मृति से हमारा मानसिक स्थिति स्थिर रहता है और हम सभी परिस्थितियों को प्राप्त करने के लिए तैयार रहते हैं।

कबीर मीठी वाणी दोहे

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए॥

अर्थ: कबीर दास जी हमें यह समझाते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

अर्थ: इसका अर्थ है कि, जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

बड़ा भया तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर॥

Kabir Ke Dohe - Bada Bhaya To Kya Bhaya - Kabir Amritwani

अर्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें यह सिखाते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूरऊँचाई पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।

साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उडाय॥

अर्थ: कबीर इस दोहे के माध्यम से हमें कहते हैं कि साधु का चयन करते समय हमें ध्यानपूर्वक और विचारशीलता से करना चाहिए। एक साधु का मार्गदर्शन हमारे जीवन को सफलता और धार्मिकता की ओर ले जा सकता है।

जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होय,
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि हम जिस प्रकार का भोजन करते हैं, उसी के अनुसार हमारा मन बनता है, और जिस प्रकार का पानी हम पीते हैं, उसी के अनुसार हमारी वाणी भी होती है।

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

अर्थ: जो व्यक्ति मधुर वाणी का प्रयोग करता है, वह समझता है कि वाणी एक अनमोल रत्न है। इसलिए, उसे चाहिए कि वह अपने शब्दों को हृदय रूपी तराजू में तौलकर ही मुख से बाहर निकाले।

तिनका कबहूं ना निंदिये, जो पांव तले होय ।
कबहूं उड़ आंखों मे पड़े, पीर घनेरी होय॥

अर्थ: कबीर दास इस दोहे में कहते हैं कि तिनका को भी छोटा नहीं समझना चाहिए चाहे वो आपके पांव तले हीं क्यूं न हो क्यूंकि यदि वह उड़कर आपकी आंखों में चला जाए तो बहुत तकलीफ देता है।

जो तोकू कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल।
तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल॥

Jo Toku Ko Kate Buve - Kabir Ke Dohe in Hindi

अर्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से कहते हैं कि जो व्यक्ति आपके लिए कांटे बोता है, आप उसके लिए फूल बोइये, आपके आस-पास फूल ही फूल खिलेंगे जबकि वह व्यक्ति काँटों में घिर जाएगा।।

ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत॥

अर्थ: इस दोहे के माध्यम से कबीर दास कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया। प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है।

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पांव पसारी॥

अर्थ: कबीर इस दोहे में बताते हैं कि तू हमेशा सोया क्यों रहता है, उठकर भगवान को याद कर,उनकी आराधना कर, एक दिन ऐसा आएगा जब तू लंबे समय तक सोया ही रह जाएगा।

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साधू गाँठ न बाँधई, उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े, जब माँगे तब देय॥

कबीर दास कहते हैं कि हमें साधुओं का सम्मान करना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए। वे हमारे जीवन में आगे बढ़कर हमसे कुछ मांगते हैं, और हमें उन्हें सहायता करनी चाहिए ताकि हम धार्मिकता और सेवा के माध्यम से आत्मा की उन्नति कर सकें।

यहाँ तक Kabir के 20 Dohe हो चुके हैं। और आगे पढिए दोहे:

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट॥

अर्थ: कबीर दास इस दोहे में हमें यह समझाते हैं कि मानव जीवन में जब भी कोई मौका मिलता है, तो उसे सही और आदर्श तरीके से प्रयोग करना चाहिए। यहाँ पर “लूट सके तो लूट ले” का तात्पर्य है कि अगर हमें भगवान की भक्ति और आत्मा के साथ जुड़ने का मौका मिलता है, तो हमें वह मौका पूरी श्रद्धा और प्रेम के साथ उपयोग करना चाहिए।

जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप॥

इस दोहे से हमें यह सिखने को मिलता है कि दया, करुणा, क्षमा, और आपसी समझ के मूल्य को समझना हमारे जीवन के मार्ग को बेहतर बना सकता है और हमें धर्मिकता की दिशा में आगे बढ़ने में मदद कर सकता है।

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कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान॥

अर्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपने जीवन में भगवान की भक्ति का समय निकालना चाहिए, क्योंकि मृत्यु के बाद हमारे कर्मों का मूल्यांकन होगा और हमें उनका जवाब देना होगा।

कथा कीर्तन कुल विशे, भव सागर की नाव।
क़हत कबीरा या जगत, नाहीं और उपाय॥

अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि संसार रूपी भवसागर से पार उतरने के लिए कथा-कीर्तन की नाव चाहिए इसके सिवाय पार उतरने के लिए और कोई उपाय नहीं।

पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय॥

ये 25 दोहे Kabirdas प्रसिद्ध dohe हैं, आपको अवश्य ही पसंद आ रहे होंगे। और आगे पढ़ें:

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे में हमें यह सिखाते हैं कि जीवन के विभिन्न पहरों में हमारे कार्य और ध्यान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच।
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच॥

भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि गाली-गलौज से झगड़ा और हिंसा तक की नौबत आ सकती है। जो व्यक्ति ऐसी स्थिति से दूर हटकर संयम बनाए रखता है, वही सच्चा संत है, जबकि गाली-गलौज और झगड़े में उलझकर मरने-मारने पर उतारू होना नीचता का लक्षण है।

कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय।
एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय॥

भावार्थ: कबीर दास कहते हैं कि वह ने अपने आत्मा के अनुभव को शब्दों में व्यक्त कर दिया है – “कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय”। यानी कबीर ने अपने आत्मा के अनुभव को जानकारों के साथ साझा कर दिया है और अब और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥

Dhire Dhire Re Mana - Kabir Ke Dohe

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें संयम, स्थिरता, और धैर्य की महत्वपूर्णता को समझाते हैं। वे यहाँ बता रहे हैं धीरे-धीरे सब कुछ हो जाएगा। माली सैंकड़ों घड़े पानी पेड़ में देता है परंतु फल तो ऋतु के आने पर ही लगता है। अर्थात धैर्य रखने से और सही समय आने पर ही काम पूरे होते हैं।

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

भावार्थ– इस पंक्ति का संदेश है कि जब हमारी इच्छाओं और चिंताओं का अंत होता है, तो हमारा मन शांत और बेपरवाह हो जाता है। व्यक्ति जो कुछ भी चाहने की आवश्यकता नहीं महसूस करता, वह वास्तव में शाहशाह (सर्वश्रेष्ठ शासक) है।

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार॥

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें मानव जीवन की मूल्यवानता और अनमोलता को समझाते हैं। हमारे पास मानव जीवन का यह अवसर है, जो अत्यधिक मूल्यवान है और हमें इसका सदुपयोग करना चाहिए।

यहाँ तक कबीर के 30 दोहे हो गए हैं। आगे और अधिक Kabir Das के दोहे Hindi अर्थ सहित पढ़ें:

आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर॥

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें यह याद दिलाते हैं कि हम सभी भौतिक संविदान से परे आत्मा हैं और फिर भी मरने के बाद सभी एक ही दिशा में जाते हैं। इसलिए, हमें अपने कर्मों को और आचरण को सदय उच्च मानकर जीना चाहिए।

शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन॥

भावार्थ: कबीर दास कहते हैं कि जो शील स्वभाव का होता है मानो वो सब रत्नों की खान है क्योंकि तीनों लोकों की माया शीलवन्त व्यक्ति में ही निवास करती है।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥

भावार्थ: इस दोहे के माध्यम से, कबीर दास हमें समय की महत्वपूर्णता को समझाते हैं। वे कहते हैं कि कामों को टालने का समय नहीं होता, और हमें अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आज ही काम करना चाहिए।

पढ़िए: चांद या चंदा मामा पर कविता

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए॥

Nahaye Dhoye Kya Hua - Kabir Ke Dohe

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो उसे नहाने का क्या फायदा, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती।

नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग।
और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग॥

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें आत्मा के महत्व को समझाते हैं और हमें यह याद दिलाते हैं कि हमें अपने आत्मा के पास वापस जाने के लिए नींद की नींद से जागना होगा और दूसरे रसायनों को छोड़कर तू भगवान के नाम रूपी रसायनों मे मन लगा।

क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह।
सांस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह॥

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे में यह सिखाते हैं कि इस शरीर का क्या विश्वास है यह तो पल-पल मिटता हीं जा रहा है इसीलिए अपने हर सांस पर हरी का सुमिरन करो और दूसरा कोई उपाय नहीं है।

मांगन मरण समान है, मति मांगो कोई भीख।
मांगन ते मरना भला, यही सतगुरु की सीख॥

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें यह सिखाते हैं कि हमें दूसरों से भिख मांगने की बजाय अपने योग्यता और मेहनत से अपने लिए काम करना चाहिए। वे यह भी बताते हैं कि सतगुरु का उपदेश हमें स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में हमारे लिए महत्वपूर्ण है।

माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय।
भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय॥

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें माया के मोह से बचने की महत्वपूर्णता को समझाते हैं। वे कहते हैं कि माया और छाया एक जैसी है इसे कोई-कोई ही जानता है यह भागने वालों के पीछे ही भागती है, और जो सम्मुख खड़ा होकर इसका सामना करता है तो वह स्वयं हीं भाग जाती है।

आया था किस काम को, तु सोया चादर तान।
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान॥

Kabirdas Ke Dohe - Aaya Tha Kis Kaam Ko - Kabir Amritwani

भावार्थ: कबीर दास इस दोहे के माध्यम से हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपने असली आत्मा को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए, और माया की भ्रांतियों का सामना करना चाहिए। वे कहते हैं कि हमें अपने असली ध्येय को समझने और पहचाने की आवश्यकता है, और हमें मोहमाया की भ्रांतियों से बाहर आने का प्रयास करना चाहिए।

यहाँ तक Kabir के 40 Dohe हो गए हैं, जिनको पढ़ने में आपको पसंद आए होंगे, और अधिक प्रसिद्ध दोहे आगे हैं:

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये ।
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास जी इस दोहे में हमें समझाते हैं जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनियां रोये और हम हँसे।

गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास इस दोहे में हमें यह सिखाते हैं कि गुरु का चयन बहुत ध्यानपूर्वक और समझदारी से करना चाहिए। वे तबादला की तरह गुरु का चयन करने की सलाह देते हैं, जिससे आपके आत्मा के लिए सही मार्ग का चयन हो सके।

सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास इस दोहे में सतगुरु की महिमा (महत्व) की महत्वपूर्णता को बताते हैं और उनके उपकार को अनंत (अविशेष) मानते हैं। सतगुरु वह गुरु होता है जिसने आपको सच्चे ज्ञान की ओर प्रेरित किया है और आपके आत्मिक विकास का मार्ग दिखाया है।

गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास इस दोहे में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका को बताते हैं। वे कहते हैं कि गुरु देह (शरीर) का होता है, लेकिन सतगुरु (आदर्श गुरु) केवल शरीर को नहीं चीनते। अर्थात्, गुरु केवल बाहरी शरीर की पहचान नहीं करते, बल्कि वे आत्मा की पहचान करते हैं।

शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास इस दोहे में वक्ता के माध्यम से गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका को बताते हैं। वे कहते हैं कि “शब्द” (शब्द गुरु) भी एक प्रकार का गुरु होता है, और इसका मतलब है कि शब्दों और मंत्रों के माध्यम से हम आत्मिक ज्ञान और आत्मा के साथ संबंध स्थापित कर सकते हैं।

जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥

अर्थ सहित व्याख्या: इस दोहे से हमें यह सिखने को मिलता है कि गुरु का महत्व तब होता है जब वह हमारे भ्रमों और भ्रांतियों को दूर करने में सक्षम होते हैं, और यदि वे इस मार्ग में सक्षम नहीं हैं, तो हमें उन्हें त्याग देना चाहिए।

यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास इस दोहे में कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।

गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास इसके बाद कहते हैं कि गुरु और शिष्य दोनों ही बूढ़े बापुरे होते हैं, अर्थात्, उनकी आत्मा बृद्धि कर जाती है, और वे एक साथ पाथर की नाव (संसारिक जीवन) पर चढ़ते हैं।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाही
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही॥

Jab Main Tha Tab Hari Nahi - Kabir Ke Dohe

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास इस दोहे में एक महत्वपूर्ण संदेश प्रस्तुत करते हैं। वे कहते हैं कि जब मैं अपने अहंकार में डूबा था, तब प्रभु को न देख पाता था। लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पा लिया।

यहाँ तक 50 Kabir das ke dohe हो चुके है और आगे पढिए:

समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय ।
मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास इस दोहे में गुरु और शिष्य के संबंध की महत्वपूर्ण बात करते हैं। वे कहते हैं कि गुरु शिष्य को बार-बार समझाते हैं, लेकिन शिष्य कई बार गुरु के उपदेश को समझने में सक्षम नहीं होता। फिर भी, गुरु और शिष्य दोनों एक साथ रहते हैं और जीवन का साझा अनुभव करते हैं।

प्रेम न बड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा-प्रजा जोहि रुचें, शीश देई ले जाय॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम न तो खेतों में उगता है और न ही बाजार में बिकता है। जिसे सच्चा प्रेम चाहिए, उसे अपने अहंकार, क्रोध, इच्छाएं, और भय को त्यागना होगा।

तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि लोग प्रतिदिन अपने शरीर को साफ करते हैं, लेकिन अपने मन को शुद्ध नहीं करते। वास्तव में सच्चा इंसान वही है जो अपने मन को भी पवित्र रखता है।

प्रेम प्याला जो पिये, शीश दक्षिणा देय।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय॥

Kabir Ke Dohe in Hindi - Prem Pyala Jo Piye

भावार्थ: जो प्रेम का प्याला पीता है वह अपने प्रेम के लिए बड़ी से बड़ी आहूति देने से भी नहीं हिचकता, वह अपने सर को भी न्योछावर कर देता है। लोभी अपना सिर तो दे नहीं सकता, अपने प्रेम के लिए कोई त्याग भी नहीं कर सकता और नाम प्रेम का लेता है।

वृक्ष बोला पात से, सुन पत्ते मेरी बात।
इस घर की ये रीति है, एक आवत एक जात॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि वृक्ष पत्ते को उत्तर देता हुआ कहता है कि हे पत्ते, इस संसार में यही प्रथा प्रचलित है कि जिसने जन्म लिया है वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है।

वैद्य मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि बीमार मर गया और जिस वैद्य का उसे सहारा था वह भी मर गया। यहाँ तक कि कुल संसार भी मर गया लेकिन वह नहीं मरा जिसे सिर्फ राम का आसरा था, अर्थात राम नाम जपने वाला हीं अमर है।

निंदक नियेरे राखिये, आंगन कुटी छावायें।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि निंदक हमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को अपने पास रखतें हैं , क्योंकि ऐसे लोग अगर पास रहेंगे तो आपकी बुराइयां आपको बताते रहेंगे।

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।।

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीशक्रोध, काम, इच्छा, भय त्यागना होगा।

बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ।
नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि जिस तरह बाजीगर अपने बन्दर से तरह-तरह के नाच दिखाकर अपने साथ रखता है उसी तरह मन भी जीव के साथ है वह भी जीव को अपने इशारे पर चलाता है।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए।।

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि आपका मन हमेशा शीतल होना चाहिए अगर आपका मन शीतल है तो इस दुनिया में आपका कोई भी दुश्मन नहीं बन सकता।

ऊंचे पानी न टिके, नीचे ही ठहराय।
नीचा हो सो भरिए पिए, ऊंचा प्यासा जाय॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि पानी ऊंचे पर नहीं ठहरता है, नीचे ठहरता है। ऊंचा खड़ा रहने वाला प्यासा ही रह जाता है अर्थात नम्रता से सबकुछ प्राप्त होता है।

बानी से पह्चानिये, साम चोर की घात।
अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह कई बात॥

Kabir Das Ke Dohe in Hindi - Vani Se Pahachaniye

भावार्थ: सज्जन और दुष्ट को उसकी बातों से पहचाना जाता है क्योंकि उसके अंदर का सारा वर्णन उसके मुँह द्वारा पता चलता है। व्यक्ति जैसे कर्म करता है उसी के अनुसार उसका व्यवहार बनता है।

ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता।

जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।

जहां आपा तहां आपदा, जहां संशय तहां रोग।
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि जहां मनुष्य में घमंड हो जाता है उस पर आपत्तियां आने लगती हैं और जहां संदेह होता है वहां-वहां निराशा और चिंता होने लगती है। कबीरदास जी कहते हैं की यह चारों रोग धीरज से हीं मिट सकते हैं।

सुमिरन से मन लाइये, जैसे कामी काम।
एक पलक बिसरे नहीं, निश दिन आठौ याम॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि जिस प्रकार कामी मनुष्य अपने काम में प्रवृत रहता है । अपनी प्रेमिका का ध्यान आठों पहर करता है उसी प्रकार हे प्राणी! तू अपने मन को भगवत स्मरण में लगा दे।

भक्ति गेंद चौगान कि, भावे कोई ले जाय।
कह कबीर कछु भेद नहिं, कहां रंक कहां राय॥

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि ईश्वर भक्ति तो गेंद के समान है, चाहे जो ले जाय इसमे क्या राजा और क्या कंगाल किसी में कुछ भेद नहीं समझा जाता।

पढ़ी-पढ़ी के पत्थर भया, लिख-लिख भया जू ईंट।
कहें कबीरा प्रेम की, लगी न एको छींट॥

Padhi Padi Ke Patthar Bhaya - Kabir Ke Dohe

भावार्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि बहुत ज्ञान हासिल करके यदि मनुष्य पत्थर सा कठोर हो जाए, ईंट जैसा निर्जीव हो जाए, तो क्या पाया? यदि ज्ञान मनुष्य को रूखा और कठोर बनाता है तो ऐसे ज्ञान का कोई लाभ नहीं। जिस मानव मन को प्रेम ने नहीं हुआ, वह प्रेम के अभाव में जड़ हो रहेगा।

कबीर के चेतावनी दोहे – Kabir ke Chetavani Dohe

चेतावनी पर Kabir Ke Dohe in Hindi इस प्रकार हैं:

जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि।
एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि॥

अर्थ: कबीर कहते हैं हे मानव! जिनके द्वार पर वैभव-सूचक नगाड़े बजते थे और मतवाले हाथी झूमते थे, उनका जीवन भी प्रभु के नाम-स्मरण के अभाव में सर्वथा व्यर्थ ही हो गया।

मैं मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भागि।
कब लग राखौं हे सखी, रुई पलेटी आगि॥

अर्थ: अहं बुद्धि, आपा बहुत बड़ा रोग है। इसलिए तू उससे मुक्त होने का प्रयत्न कर। क्योंकि ‘मैं मैं’ से लिप्त बुद्धि आग से लिपटी हुई रूई के समान है, जो तेरे सारे जीवन को नष्ट कर देगी।

उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं।
एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं॥

Kabir Das Ke Chetavani Dohe in Hindi - Ujala Kapada Pahan Ke

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं- हे मानव! लोग अक्सर सफेद वस्त्र पहनते हैं और अपने चेहरे को सुंदर बनाने के लिए पान-सुपारी का सेवन करते हैं। लेकिन बिना प्रभु के भजन के, इस बाहरी सजावट का कोई मूल्य नहीं है।

कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ।
इत के भये न उत के, चाले मूल गंवाइ॥

अर्थ: कबीर कहते हैं जीव को स्वयं पर पछतावा हो रहा है कि इस संसार में आकर हमने क्या किया, इस विषय में यहाँ से जाने के बाद प्रभु के सामने हम क्या कहेंगे ? हम न तो इस लोक के हुए, न परलोक के। हमने अपना नैसर्गिक सरलता भी गँवा दिया।

कबीर नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ।
ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ॥

अर्थ: जिस वैभव में तुम लिप्त हो, वह कुछ दिनों का परचम है अर्थात् क्षणिक है। तुम्हारी मृत्यु अवश्यंभावी है। फिर इस पुर, नगर और गली को न देख सकोगे।

मन मैला तन ऊजला बगुला कपटी अंग।
तासों तो कौआ भला तन मन एकही रंग।

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं- बगुले का शरीर भले ही उज्जवल हो, लेकिन उसका मन कपट से भरा होता है। इसके मुकाबले, कौआ बेहतर है, क्योंकि उसका तन और मन एक समान है और वह किसी को छलता नहीं है।

पाखंड पर कबीर के दोहे – Pakhand Par Kabir ke Dohe

पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार।
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार॥

Patthar Puje hari Mile To Main Puju Pahar - Kabir Ke Dohe

अर्थ: इस दोहे में कबीर दास जी कहते हैं कि यदि पत्थर की पूजा करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है, तो मैं पहाड़ की पूजा करूंगा। लेकिन इससे अच्छा है कि अपने घर में चक्की रखूँ, जिससे सारा संसार आटा पीसकर खाता है।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर॥

अर्थ: इस दोहे में, संत कबीर दास हमें यह सिखाते हैं कि माला का फेरना या जपना बिना मन के शुद्धता और निश्चलता के कुछ भी नहीं होता। वे कहते हैं कि यदि मन में विचारों की बेहद अनियमितता है और मन अपने विचारों के बाग़ में भटक रहा है, तो फिर माला फेरने का कोई फ़ायदा नहीं होता।

लाडू लावन लापसी, पूजा चढ़े अपार।
पूजी पुजारी ले गया, मूरत के मुह छार॥

अर्थ: कबीर साहेब ने सदियों पहले दुनिया के इस सबसे बड़े घोटाले के बारे में बताया था कि आपका यह सारा माल ब्राह्मण-पुजारी ले जाता है और भगवान को कुछ नहीं मिलता, इसलिए *मंदिरों में ब्राह्मणों को दान करना बंद करो ।

पाहन पूजें हरि मिलें, तो मैं पूजूँ पहार ।
याते तो चक्की भली, पीस खाय संसार॥

अर्थ: इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि यदि पत्थर पूजने से ईश्वर मिले तो मैं पहाड़ की पूजा करूँ,इससे तो अपने घर में चक्की ही अच्छी है जिससे सारा संसार आटा पीस कर खाता है।

जो तूं ब्राह्मण , ब्राह्मणी का जाया।
आन बाट काहे नहीं आया॥

अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि जो लोग खुद को ब्राह्मण होने पर गर्व करते हैं, उनसे यह पूछना चाहिए कि यदि तुम इतने महान हो, तो किसी विशेष या अलग तरीके से क्यों नहीं जन्मे? जिस सामान्य मार्ग से हम सब जन्म लेते हैं, तुम भी उसी से जन्मे हो। आज शायद ही कोई यह कहने की हिम्मत करता है, पर कबीर ने यह सच सदियों पहले ही कह दिया।

माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया।
जिंदा नाग जब घर मे निकले, ले लाठी धमकाया॥

जिंदा बाप कोई न पूजे, मरे बाद पुजवाया।
मुठ्ठीभर चावल ले के कौवे को बाप बनाया॥

भावार्थ: जो जीवित हैं उनकी सेवा करो। वही सच्चा श्राद्ध है।

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

कबीर की साखी

पीछे लागा जाई था, लोक वेद के साथि।
आगैं थैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया साथि॥

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि पहले मैं जीवन में सांसारिक माया और मोह में व्यस्त था। लेकिन जब मुझे इनसे विरक्ति मिली, तब मुझे सद्गुरु के दर्शन हुए। सद्गुरु के मार्गदर्शन से मुझे ज्ञान का दीपक मिला, जिससे मुझे परमात्मा की महत्ता का ज्ञान हुआ। यह सब गुरु की कृपा से ही संभव हुआ।

कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरष्या आइ।
अंतरि भीगी आत्मां, हरी भई बनराइ॥

भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में प्रेम के महत्व को व्यक्त करते हैं, कि उनके जीवन में प्रेम बादल के रूप में बरस गया। इस वर्षा से उन्हें अपनी आत्मा का ज्ञान हुआ। जो आत्मा उनके अंतस्थल में सोई हुई थी, वह जाग उठी।

मूवां पीछे जिनि मिलै, कहै कबीरा राम।
पाथर घाटा लौह सब, पारस कोणें काम॥

भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि मृत्यु के बाद परमात्मा की प्राप्ति कोई महत्व नहीं रखती। यदि हमें जीवित रहते ही भगवत प्राप्ति हो जाए, तो जीवन सफल हो जाएगा।

जो रोऊँ तो बल घटै, हँसौं तो राम रिसाइ।
मनहि मांहि बिसूरणां, ज्यूँ घुंण काठहि खाइ॥

भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि उनकी आत्मा की स्थिति ऐसी हो गई है कि वे न तो हँस सकते हैं, क्योंकि इससे प्रभु नाराज़ होंगे, और न ही रो सकते हैं, क्योंकि रोने से उनकी शक्ति कम हो जाएगी।

कबीर की उलटवासियाँ

कबीर की उलटबांसी रचनाओं से तात्पर्य कबीर की उन रचनाओं से है, जिनके माध्यम से कबीर ने अपनी बात को घुमा-फिरा कर और प्रचलित अर्थ से एकदम विपरीत अर्थ में अपनी बात कही है। कबीर की उलटबांसी को समझ हर किसी के लिये आसान नही होता क्योंकि इन रचनाओं के माध्यम से कबीर ने अपनी बात को काफी घुमा-फिरा कर कहा है, जिससे पाठक इसके प्रचलित अर्थ में ही उलझा रह जाता है, जबकि कबीर का कहने का तात्पर्य इसका विपरीट यानि उलटा कहने का रहा है। इसलिए इन रचनाओं को ‘उलटबांसी’ कहा जाता है। जैसे-

देखि-देखि जिय अचरज होई
यह पद बूझें बिरला कोई
धरती उलटि अकासै जाय,
चिउंटी के मुख हस्ति समाय
बिना पवन सो पर्वत उड़े,
जीव जन्तु सब वृक्षा चढ़े
सूखे-सरवर उठे हिलोरा,
बिनु-जल चकवा करत किलोरा॥

अर्थ सहित व्याख्या: कबीर का कहने का तात्पर्य ये है कि इस भौतिक जगत के जो कर्म-व्यवहार है, वो आध्यात्मिक जीवन में एकदम उलटे हो जाते हैं। यानि धरती आकाश बन जाती है, हाथी के मुँह में चींटी की जगह चींटी के मुँह में हाथी चला जाता है, जो पहाड़ हवा से उड़ता है वो बिन हवा के ही उड़ने लगता है, जीव-जन्तु जो भूमि पर विचरण करते हैं, वो वृक्षों पर चढने लगते हैं, पानी से भले सरोवर में ही हिलोरे उठती है, लेकिन यहाँ सूखे सरोवर में उठने लगती हैं और चकवा जो जल को देखकर कलोल करता है, वो बिना जल के ही कलोल करने लगता है, यानि सब काम उल्टे होने लगते हैं।

हमें आशा है कि आपको ये Hindi में “Kabir के Dohe” पसंद आए होंगे। यदि इन दोहे में कोई सुझाव हो तो हमे कमेन्ट के माध्यम से हमें अवगत अवश्य कराएं। और इन दोहों को अपने मित्रों के साथ शेयर अवश्य करें। धन्यवाद!

पढ़ें हिन्दी कविताएं:

FAQs

1.

कबीरदास कौन थे?

कबीरदास 15वीं सदी के भारतीय संत, कवि, और संतपुरुष थे। वे काशी में पैदा हुए थे और उनकी जन्म तिथि का स्थायी निर्धारण नहीं हो सकता है। कबीर दास ने भगवान के प्रति अपने अद्वितीय भक्ति और सामाजिक सुधार के संदेश के लिए प्रसिद्ध हैं।

2.

कबीर दास के दोहे क्या हैं और उनके महत्व क्या है?

कबीर दास के दोहे उनके लोकप्रिय भक्तिगीत थे, जिनमें वे आत्मा के महत्व, जीवन का उद्देश्य, और भगवान के प्रति अपने भक्ति और समर्पण के मार्ग को व्यक्त करते थे। उनके दोहे आज भी मानवता के लिए महत्वपूर्ण संदेश लेकर आए हैं।

3.

कबीर दास की भक्ति धार्मिक सम्प्रदायों से अलग थी, इसके बारे में और जानकारी दें।

कबीर दास की भक्ति अलग-अलग धर्मिक सम्प्रदायों से अलग थी और उन्होंने सामाजिक विषयों पर खुलकर विचार किए। वे वैष्णव, सूफी, और निर्गुणपंथ के तत्त्वों का संमिलन करते थे और भगवान के रूप के स्वरूप को अद्वितीयता में मानते थे।

4.

कबीर दास के द्वारा प्रस्तुत किए गए मुख्य संदेश क्या थे?

कबीर दास के मुख्य संदेश में आत्मा के महत्व, सच्चे भक्ति का मार्ग, समाजिक न्याय, और धार्मिक अंतरात्मा की महत्वपूर्णता शामिल थी।

5.

कबीरदास किस शाखा से संबंधित थे।

कबीर भक्तिकाल की निर्गुण काव्यधारा की ज्ञानमार्गी शाखा के एक प्रमुख कवि माने जाते हैं।