कबीर का दोहा: काल करे सो आज कर आज करे सो अब
“काल करे सो आज कर” प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित है। कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ था। कबीर जी भक्तिकाल की ‘निर्गुण भक्तिकाव्य शाखा‘ की संत काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। कबीर की रचनाएं साखी, सबद, और रमैनी में संकलित हैं।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब्ब॥
अर्थ: जो कल करना है उसे आज कर और जो आज करना है उसे अभी कर। समय और परिस्थितियाँ एक पल मे बदल सकती हैं, एक पल बाद प्रलय हो सकती हैं अतः किसी कार्य को कल पर मत टालिए।
व्याख्या: यह विचार हमें समय के महत्त्व और कार्यों को समय पर पूरा करने की सीख देता है। कबीर दास जी का कहना है कि जो भी काम हमें कल करना है, उसे आज ही कर लेना चाहिए, और जो आज करना है, उसे अभी तुरंत कर लेना चाहिए। समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता, और हालात पल भर में बदल सकते हैं। अगले ही पल क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। इसलिए, किसी भी काम को टालना नहीं चाहिए।
संदेश एवं सार: इसका सार यह है कि विलंब करने से अक्सर हम कई महत्वपूर्ण अवसरों को खो देते हैं और बाद में पछताना पड़ता है। जीवन में सफलता और संतोष पाने के लिए कार्यों को तुरंत और समय पर करना आवश्यक है, क्योंकि समय की बर्बादी का कोई विकल्प नहीं होता।
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- काल करे सो आज कर
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- जल में बसे कमोदनी
- जाति न पूछो साधू की
- दुःख में सुमिरन सब करे
- नहाये धोये क्या हुआ
- पाहन पूजे हरि मिलें
- बड़ा भया तो क्या भया
- बुरा जो देखन मैं चला
- मलिन आवत देख के
- माटी कहे कुम्हार से
- साधू ऐसा चाहिए
- जग में बैरी कोई नहीं
- अति का भला न बोलना