कबीरदास का दोहा: बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
बुरा जो देखन मैं चला – प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित है। कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ था। कबीर जी भक्तिकाल की ‘निर्गुण भक्तिकाव्य शाखा‘ की संत काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। कबीर की रचनाएं साखी, सबद, और रमैनी में संकलित हैं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
अर्थ: इसका अर्थ है कि, जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी आत्मविश्लेषण और आत्म-आलोचना का संदेश देते हैं। वे कहते हैं कि जब मैं संसार में दूसरों की बुराइयाँ ढूँढ़ने निकला, तो मुझे कहीं कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला। पर जब मैंने अपने दिल में झाँक कर देखा, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई और नहीं है।
इसका अर्थ यह है कि हम अक्सर दूसरों में दोष और बुराइयाँ ढूँढ़ते हैं, जबकि सच्चा सुधार अपने भीतर झाँकने से शुरू होता है। जब हम आत्म-विश्लेषण करते हैं, तो अपनी कमजोरियाँ, गलतियाँ और बुराइयाँ हमारे सामने आती हैं। कबीरदास का यह दोहा हमें यह सीख देता है कि हमें अपने अंदर झाँकना चाहिए और अपनी कमियों को सुधारने का प्रयास करना चाहिए, बजाय इसके कि हम दूसरों की कमियाँ खोजते फिरें।
संदेश एवं सार: कबीरदास हमें सिखाते हैं कि सच्ची समझ और आत्म-निर्माण तब ही संभव है, जब हम अपनी गलतियों को पहचानकर उसे सुधारने की कोशिश करें।
- ऐसी वाणी बोलिए
- काल करे सो आज कर
- गुरु गोविंद दोऊ खड़े
- चलती चक्की देख के
- जल में बसे कमोदनी
- जाति न पूछो साधू की
- दुःख में सुमिरन सब करे
- नहाये धोये क्या हुआ
- पाहन पूजे हरि मिलें
- बड़ा भया तो क्या भया
- बुरा जो देखन मैं चला
- मलिन आवत देख के
- माटी कहे कुम्हार से
- साधू ऐसा चाहिए
- जग में बैरी कोई नहीं
- अति का भला न बोलना