गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाँय – कबीरदास का दोहा

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय। बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय॥ - जानिए अर्थ एवं भावार्थ, व्याख्या और सार, संदेश एवं शिक्षा।

Guru Govind Dou Khade

कबीरदास का दोहा: गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाँय

गुरु गोविंद दोऊ खड़े – प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित है। कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ था। कबीर जी भक्तिकाल की ‘निर्गुण भक्तिकाव्य शाखा‘ की संत काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। कबीर की रचनाएं साखी, सबद, और रमैनी में संकलित हैं।

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय॥

अर्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि यदि हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों, तो पहले किसके चरण स्पर्श करें? चूंकि गुरु ने ही अपने ज्ञान के माध्यम से हमें भगवान तक पहुँचने का मार्ग दिखाया है, इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी बढ़कर है। अतः हमें सबसे पहले गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

व्याख्या: कबीर दास जी इस दोहे में गुरु के महत्व को सर्वोपरि बताते हैं। वे कहते हैं कि यदि एक ही समय में गुरु और भगवान दोनों हमारे सामने खड़े हों, तो हमें पहले किसके चरण स्पर्श करने चाहिए? कबीर जी के अनुसार, गुरु का स्थान भगवान से भी ऊँचा है, क्योंकि गुरु ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने हमें भगवान का ज्ञान कराया और हमें उनके मार्ग तक पहुँचाया।

संदेश एवं सार: गुरु ने हमें सत्य, धर्म और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया है, और उनके मार्गदर्शन के बिना हम भगवान तक पहुँचने का रास्ता नहीं जान पाते। इस तरह, गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उन्होंने हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैलाया है और हमें ईश्वर का साक्षात्कार करने का मार्ग बताया है। इसलिए, कबीर जी कहते हैं कि हमें पहले गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

कबीर के दोहे:

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