चेतक की वीरता – Chetak ki Veerta Poem in Hindi और प्रश्न उत्तर

Chetak Ki Veerta Poem by Shyam Narayan Pandey
Maharana Pratap Ke Chetak Ki Veerta Kavita by Shyam Narayan Pandey

चेतक की वीरता (वीर रस की कविता) – श्याम नारायण पाण्डेय की कविता

चेतक की वीरता नामक कविता श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा लिखी गई है। श्याम नारायण पाण्डेय वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे। वह केवल कवि ही नहीं अपितु अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे।

श्याम नारायण पाण्डेय जी ने चार उत्कृष्ट महाकाव्य रचे, जिनमें हल्दीघाटी (काव्य) सर्वाधिक लोकप्रिय और जौहर (काव्य) विशेष चर्चित हुए। हल्दीघाटी में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन और जौहर में चित्तौड की रानी पद्मिनी के आख्यान हैं।

श्याम नारायण पाण्डेय की वीर रस शैली का एक उदाहरण (Poem in Hindi) उनके प्रसिद्ध काव्य हल्दीघाटी से:-

बकरों से बाघ लड़े,
भिड़ गये सिंह मृग–छौनों से।
घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी,
पैदल बिछ गये बिछौनों से।।1।।

हाथी से हाथी जूझ पड़े,
भिड़ गये सवार सवारों से।
घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े,
तलवार लड़ी तलवारों से।।2।।

हय-रूण्ड गिरे, गज-मुण्ड गिरे,
कट-कट अवनी पर शुण्ड गिरे।
लड़ते-लड़ते अरि झुण्ड गिरे,
भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे।।3।।

क्षण महाप्रलय की बिजली सी,
तलवार हाथ की तड़प-तड़प।
हय-गज-रथ पैदल भगा-भगा,
लेती थी बैरी वीर हड़प।।4।।

क्षण पेट फट गया घोड़े का,
हो गया पतन कर कोड़े का।
भू पर सातंक सवार गिरा,
क्षण पता न था हय–जोड़े का।।5।।

चिंग्घाड़ भगा भय से हाथी,
लेकर अंकुश पिलवान गिरा।
झटका लग गया, फटी झालर,
हौदा गिर गया, निशान गिरा।।6।।

कोई नत-मुख बेजान गिरा,
करवट कोई उत्तान गिरा।
रण-बीच अमित भीषणता से,
लड़ते-लड़ते बलवान गिरा।।7।।

होती थी भीषण मार–काट,
अतिशय रण से छाया था भय।
था हार–जीत का पता नहीं,
क्षण इधर विजय क्षण उधर विजय।।8।।

कोई व्याकुल भर आह रहा,
कोई था विकल कराह रहा।
लोहू से लथपथ लोथों पर,
कोई चिल्ला अल्लाह रहा।।9।।

धड़ कहीं पड़ा, सिर कहीं पड़ा,
कुछ भी उनकी पहचान नहीं।
शोणित का ऐसा वेग बढ़ा,
मुरदे बह गये निशान नहीं।।10।।

मेवाड़-केसरी देख रहा,
केवल रण का न तमाशा था।
वह दौड़-दौड़ करता था रण,
वह मान-रक्त का प्यासा था।।11।।

चढ़कर चेतक पर घूम–घूम
करता मेना-रखवाली था।
ले महा मृत्यु को साथ–साथ,
मानो प्रत्यक्ष कपाली था।।12।।

रण-बीच चौकड़ी भर-भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से,
पड़ गया हवा को पाला था।।13।।

गिरता न कभी चेतक–तन पर,
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दोड़ रहा अरि–मस्तक पर,
या आसमान पर घोड़ा था।।14।।

जो तनिक हवा से बाग हिली,
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं,
तब तक चेतक मुड़ जाता था।।15।।

कौशल दिखलाया चालों में,
उड़ गया भयानक भालों में।
निभीर्क गया वह ढालों में,
सरपट दौड़ा करवालों में।।16।।

है यहीं रहा, अब यहां नहीं,
वह वहीं रहा है वहां नहीं।
थी जगह न कोई जहां नहीं,
किस अरि–मस्तक पर कहां नहीं।।17।

बढ़ते नद–सा वह लहर गया,
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल ब्रज–मय बादल–सा
अरि की सेना पर घहर गया।।18।।

भाला गिर गया, गिरा निषंग,
हय–टापों से खन गया अंग।
वैरी–समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग।।19।।

चढ़ चेतक पर तलवार उठा
रखता था भूतल–पानी को।
राणा प्रताप सिर काट–काट
करता था सफल जवानी को।।20।।

कलकल बहती थी रण–गंगा
अरि–दल को डूब नहाने को।
तलवार वीर की नाव बनी
चटपट उस पार लगाने को।।21।।

वैरी–दल को ललकार गिरी,
वह नागिन–सी फुफकार गिरी।
था शोर मौत से बचो,बचो,
तलवार गिरी, तलवार गिरी।।22।।

पैदल से हय–दल गज–दल में
छिप–छप करती वह विकल गई!
क्षण कहां गई कुछ, पता न फिर,
देखो चमचम वह निकल गई।।23।।

क्षण इधर गई, क्षण उधर गई,
क्षण चढ़ी बाढ़–सी उतर गई।
था प्रलय, चमकती जिधर गई,
क्षण शोर हो गया किधर गई।।24।।

क्या अजब विषैली नागिन थी,
जिसके डसने में लहर नहीं।
उतरी तन से मिट गये वीर,
फैला शरीर में जहर नहीं।।25।।

थी छुरी कहीं, तलवार कहीं,
वह बरछी–असि खरधार कहीं।
वह आग कहीं अंगार कहीं,
बिजली थी कहीं कटार कहीं।।26।।

लहराती थी सिर काट–काट,
बल खाती थी भू पाट–पाट।
बिखराती अवयव बाट–बाट
तनती थी लोहू चाट–चाट।।27।।

सेना–नायक राणा के भी
रण देख–देखकर चाह भरे।
मेवाड़–सिपाही लड़ते थे
दूने–तिगुने उत्साह भरे।।28।।

क्षण मार दिया कर कोड़े से
रण किया उतर कर घोड़े से।
राणा रण–कौशल दिखा दिया
चढ़ गया उतर कर घोड़े से।।29।।

क्षण भीषण हलचल मचा–मचा
राणा–कर की तलवार बढ़ी।
था शोर रक्त पीने को यह
रण–चण्डी जीभ पसार बढ़ी।।30।।

वह हाथी–दल पर टूट पड़ा,
मानो उस पर पवि छूट पड़ा।
कट गई वेग से भू, ऐसा
शोणित का नाला फूट पड़ा।।31।।

जो साहस कर बढ़ता उसको
केवल कटाक्ष से टोक दिया।
जो वीर बना नभ–बीच फेंक,
बरछे पर उसको रोक दिया।।32।।

क्षण उछल गया अरि घोड़े पर,
क्षण लड़ा सो गया घोड़े पर।
वैरी–दल से लड़ते–लड़ते
क्षण खड़ा हो गया घोड़े पर।।33।।

क्षण भर में गिरते रूण्डों से
मदमस्त गजों के झुण्डों से,
घोड़ों से विकल वितुण्डों से,
पट गई भूमि नर–मुण्डों से।।34।।

ऐसा रण राणा करता था
पर उसको था संतोष नहीं
क्षण–क्षण आगे बढ़ता था वह
पर कम होता था रोष नहीं।।35।।

कहता था लड़ता मान कहां
मैं कर लूं रक्त–स्नान कहां।
जिस पर तय विजय हमारी है
वह मुगलों का अभिमान कहां।।36।।

भाला कहता था मान कहां,
घोड़ा कहता था मान कहां?
राणा की लोहित आंखों से
रव निकल रहा था मान कहां।।37।।

लड़ता अकबर सुल्तान कहां,
वह कुल–कलंक है मान कहां?
राणा कहता था बार–बार
मैं करूं शत्रु–बलिदान कहां?।।38।।

तब तक प्रताप ने देख लिया
लड़ रहा मान था हाथी पर।
अकबर का चंचल साभिमान
उड़ता निशान था हाथी पर।।39।।

वह विजय–मन्त्र था पढ़ा रहा,
अपने दल को था बढ़ा रहा।
वह भीषण समर–भवानी को
पग–पग पर बलि था चढ़ा रहा।।40।

फिर रक्त देह का उबल उठा
जल उठा क्रोध की ज्वाला से।
घोड़ा से कहा बढ़ो आगे,
बढ़ चलो कहा निज भाला से।।41।।

हय–नस नस में बिजली दौड़ी,
राणा का घोड़ा लहर उठा।
शत–शत बिजली की आग लिये
वह प्रलय–मेघ–सा घहर उठा।।42।।

क्षय अमिट रोग, वह राजरोग,
ज्वर सiन्नपात लकवा था वह।
था शोर बचो घोड़ा–रण से
कहता हय कौन, हवा था वह।।43।।

तनकर भाला भी बोल उठा
राणा मुझको विश्राम न दे।
बैरी का मुझसे हृदय गोभ
तू मुझे तनिक आराम न दे।।44।।

खाकर अरि–मस्तक जीने दे,
बैरी–उर–माला सीने दे।
मुझको शोणित की प्यास लगी
बढ़ने दे, शोणित पीने दे।।45।।

मुरदों का ढेर लगा दूं मैं,
अरि–सिंहासन थहरा दूं मैं।
राणा मुझको आज्ञा दे दे
शोणित सागर लहरा दूं मैं।।46।।

रंचक राणा ने देर न की,
घोड़ा बढ़ आया हाथी पर।
वैरी–दल का सिर काट–काट
राणा चढ़ आया हाथी पर।।47।।

गिरि की चोटी पर चढ़कर
किरणों निहारती लाशें,
जिनमें कुछ तो मुरदे थे,
कुछ की चलती थी सांसें।।48।।

वे देख–देख कर उनको
मुरझाती जाती पल–पल।
होता था स्वर्णिम नभ पर
पक्षी–क्रन्दन का कल–कल।।49।।

मुख छिपा लिया सूरज ने
जब रोक न सका रूलाई।
सावन की अन्धी रजनी
वारिद–मिस रोती आई।।50।।

– श्याम नारायण पाण्डेय

पढ़ें: वीर रस की कविताएं

Ran Beech Chaukari Bhar Bhar, Chetak Poem in Hindi

Chetak Poem in Hindi for Class 5, 6, 7, 8

कक्षा 4, 5, 6, 7, 8, आदि इन कक्षाओं में उपरोक्त कविता का कुछ अंश अक्सर सम्मिलित किया जाता है, जो निम्नलिखित है-

रण बीच चौकड़ी भर-भर कर,
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से,
पड़ गया हवा का पाला था।

गिरता न कभी चेतक तन पर,
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि-मस्तक पर,
या आसमान पर घोड़ा था।

जो तनिक हवा से बाग हिली,
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं,
तब तक चेतक मुड़ जाता था।

है यहीं रहा, अब यहां नहीं,
वह वहीं रहा था यहां नहीं।
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि-मस्तक पर कहाँ नहीं।

कौशल दिखलाया चालों में,
उड़ गया भयानक भालों में।
निर्भीक गया वह ढालों में,
सरपट दौड़ा करबालों में।

बढ़ते नद सा वह लहर गया,
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल वज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया।

भाला गिर गया, गिरा निशंग,
हय टापों से खन गया अंग।
बैरी समाज रह गया दंग,
घोड़े का ऐसा देख रंग।

– श्याम नारायण पाण्डेय

पढ़ें:-

Chetak ki Veerta Path ke Prashn Uttar

Solution for SCERT up board textbook कक्षा 5 कलरव ( वाटिका ) पाठ 10 चेतक की वीरता हिन्दी Class 5 solution hindi pdf. चेतक की वीरता के अभ्यास प्रश्न उत्तर आगे दिए गए हैं-

बोध प्रश्न उत्तर सहित निम्नलिखित हैं-

प्रश्न (क) चेतक किसके इशारे पर मुड़ जाता था?
उत्तर– चेतक महाराणा प्रताप के इशारे पर मुड़ जाता था।

प्रश्न (ख) चेतक की टापों का दुश्मन पर क्‍या असर होता था?
उत्तर– चेतक की टापों को सुनकर दुश्मनों का दिल दहल जाता था।

प्रश्न (ग) चेतक शत्रु की सेना पर किस प्रकार टूट पड़ता था?
उत्तर– चेतक शत्रुओं की सेना पर भयानक बादलों की तरह टूट पड़ता था।

प्रश्न (घ) चेतक किस तरह की चाल से निराला दिखाई पड़ता था?
उत्तर– अपनी चौकड़ी सी चाल से चेतक निराला दिखाई पड़ता था।

प्रश्न (ड.) चेतक को कोड़े नहीं लगाने पड़ते थे, क्यों?
उत्तर– चेतक को कोड़े नहीं लगाने पड़ते थे बल्कि वह महाराणा प्रताप के मात्र इशारे से ही समझ जाता था।

प्रश्न (च) क्‍या देखकर बैरी समाज दंग रह गया ?
उत्तर– चेतक अपने पैरों से दुश्मनों को कुचल रहा था जिसे देखकर बैरी समाज दंग रह गया।

प्रश्न (छ) हम राणा प्रताप को क्‍यों याद करते हैं ?
उत्तर– हम राणा प्रताप को उनकी बहादुरी और पराक्रम के लिए याद करते हैं।

इन पंक्तियों के अर्थ लिखिए, के उत्तर निम्नलिखित हैं-

(क) राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था।

भावार्थ- राणा प्रताप का घोड़ा हवा को भी पछाड़कर तेज भागता था।

(ख) विकराल वज्रमय बादल-सा, अरि की सेना पर घहर गया।

भावार्थ– भयानक कठोर बादल के रूप में चेतक दुश्मनों की सेना पर टूट पड़ा।

कविता के आधार पर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए, (निम्नलिखित वाक्यों में सही उत्तर हैं)

  • (क) महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था।
  • (ख) घोड़े की बहादुरी से दुश्मन भी दंग रह गया।
  • (ग) चेतक राणा प्रताप का इशारा पाते ही मुड़ जाता था।
  • (घ) युद्ध क्षेत्र में चौकड़ी भर-भर कर चेतक निराला बन गया था।

सोच-विचार : बताइए, सभी प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न- चेतक को निराला क्‍यों कहा गया ?

उत्तर– चेतक अपने आप में अनोखा था, इसलिए उसे निराला कहा गया।

भाषा के रंग

(क) नीचे दिए गए शब्दों के तुकांत शब्द कविता से खोजकर लिखिए

    1. निराला – पाला
    2. कोड़ा – घोड़ा
    3. चाल – भाल
    4. लहर – ठहर
    5. ढंग – रंग

(ख) नीचे लिखे शब्दों को सही क्रम में रखकर वाक्य बनाइए –

    • घोड़ा सरपट दौड़ता है
    • चेतक से पड़ा हवा का पाला था
    • घोड़ा चेतक बहुत बहादुर था
    • चेतक महाराणा प्रताप को लेकर उड़ जाता था

(ग) स्त्रीलिंग शब्द लिखिए

    1. घोड़ा – घोड़ी
    2. ठहरा – ठहरी
    3. दौड़ा – दौड़ी
    4. गिरा – गिरी

(घ) कविता में आए युद्ध से संबंधित शब्दों को लिखिए।

उत्तर– रण, भालों, ढालों, करवालों, निषंग।

तुम्हारी कलम से

प्रश्न- कविता में चेतक की वीरता के बारे में बहुत-सी बातें बताई गई हैं। इनमें से कोई-सी चार बातें लिखिए जो आपको बहुत पसंद आई हों।

उत्तर– कविता में चेतक की वीरता के बारे में कई बातें बताई गई हैं, जिनमें से कुछ चार बातें निम्नलिखित हैं, जो मुझे बहुत पसंद आई हैं:

    1. स्वतंत्रता की आग्रह: चेतक की कविता में उसकी स्वतंत्रता के प्रति उनका अथक आग्रह और संघर्ष का जिक्र होता है। वह अपनी आज़ादी के लिए किसी भी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने को तैयार है, जो मुझे बहुत प्रेरित करता है।
    2. साहसी भावना: चेतक की भावना की अवव्यक्ति में साहस और निर्भीकता की भावना होती है। वह अपने मालिक के खिलाफ उठ खड़ा होता है, बिना किसी डर या हिचकिचाहट के।
    3. प्रकृति से मिलने वाला साथ: चेतक की कविता में प्रकृति के साथ उसका गहरा संबंध और संवाद होता है। वह अपनी माँ के साथ प्रकृति के आलोचनात्मक बातचीत करता है और उसके द्वारा सीखता है।
    4. विश्वास और समर्पण: चेतक की कविता में विश्वास और समर्पण की भावना होती है। वह अपने मालिक के प्रति अपना जीवन समर्पित कर देता है और उसके साथ निःस्वार्थी रूप से बदल जाता है।

ये बातें चेतक की कविता में मुझे बहुत प्रेरित करती हैं, और वे हमें साहस, स्वतंत्रता, और प्रकृति के साथ संबंध का महत्व याद दिलाती हैं।

अब करने की बारी

  • (क) चेतक पर सवार राणा प्रताप का चित्र बनाइए।
  • (ख) कविता का हाव-भाव के साथ सस्वर वाचन का अभ्यास कर कक्षा में सुनाइए।
  • (ग) राणा प्रताप से संबंधित और जानकारी पुस्तकालय से पता कीजिए

maharana pratap on chetak

मेरे दो प्रश्न : कविता के आधार पर दो सवाल बनाइए

  1. महाराणा प्रताप के घोड़े का क्या नाम था?
  2. चेतक की मुख्य विशेषताएं क्या थी?

इस कविता से

  • (क) मैंने सीखा- स्वयं लिखें।
  • (ख) मैं करूँगी/ करूँगा- स्वयं लिखें।

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