Poem on Clouds in Hindi: बरसते बादल कविता, अर्थ सहित हिन्दी में

बरसते बादल कविता का अर्थ हिन्दी में 'Poem on Clouds in Hindi' शीर्षक के अंतर्गत, आपको बादलों पर आधारित सुंदर हिंदी कविताओं का संग्रह मिलेगा। जानिए, कैसे बादल न सिर्फ बारिश का संदेश लाते हैं, बल्कि काव्य और कल्पनाओं की दुनिया में भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

Poem on Clouds in Hindi

बादलों पर हिंदी कविताएँ (Poem on Clouds in Hindi) में कुछ बेहतरीन रचनाएँ शामिल हैं, जो प्रसिद्ध कवियों द्वारा लिखी गई हैं। इनमें मेघा, काले बादल और बारिश का जिक्र प्रमुखता से होता है। भारतीय काव्य में बादलों को अक्सर बारिश का संकेतक माना जाता है, जब वे आसमान में छा जाते हैं, तो मौसम का सौंदर्य और अधिक निखर जाता है। इस पल का वर्णन हिंदी काव्य में विशेष स्थान रखता है।

बादल सिर्फ साहित्य में ही नहीं, बल्कि जीवन में भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व बादलों के बिना संभव नहीं है, क्योंकि ये बारिश लाते हैं, जिससे धरती पर वनस्पतियाँ फलती-फूलती हैं, और सभी जीवों के जीवन का संचालन होता है। प्रकृति के विभिन्न घटक आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं, और बादल इस श्रृंखला में एक अहम कड़ी हैं।

आइए, कुछ चुनिंदा कविताओं का आनंद लें और इन खूबसूरत रचनाओं को अपने मित्रों के साथ साझा करें। हमें यकीन है कि ये Poem in Hindi on Clouds आपको भी उतनी ही प्रिय होंगी जितनी हमें।

Baraste Badal Kavita Poem in Hindi

वर्षा ऋतु हमेशा से सबकी प्रिय ऋतु रही है। वर्षा के समय प्रकृति की सुंदरता देखने लायक़ होती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मनुष्य और यहाँ तक की धरती भी खुशी से झूम उठती है। इसी सौंदर्य का वर्णन यहाँ प्रस्तुत किया गया है।

1. ‘बरसते बादल’ कविता (Baraste Badal Kavita)

झम-झम-झम-झम मेघ बरसते हैं सावन के,
छम-छम-छम गिरती बूँदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन के॥

दादुर टर-टर करते झिल्ली बजती झन-झन,
‘म्यव-म्यव’ रे मोर ‘पीउ’ ‘पीउ’ चातक के गण।
उड़ते सोनबालक, आर्द-सुख से कर क्रंदन,
घुमड़-घुमड़ गिर मेघ गगन में भरते गर्जन॥

रिमझिम-रिमझिम क्या कुछ कहते बूँदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर।
धाराओं पर धाराएँ झरती धरती पर,
रज के कण-कण में तृण-तृण को पुलकावलि थर॥

पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन।
इंद्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर-फिर आये जीवन में सावन मनभावन॥

सुमित्रानंदन पंत

बरसते बादल कविता का अर्थ/भावार्थ

श्रावण मास के मेघ झम-झम बरसते हैं। वर्षा की बूँदें पेड़ों से छनकर छम-छम गिरते हैं। बादलों के हृदय में बिजली चम चम चमकती है। दिन के अंधकार में मन के सपने थम-थम जगते हैं। वर्षा होने पर मेंढ़क टर्राते हैं। झींगुर झन-झन बजती है। मोर खुशी से कूकते हैं । चातक पक्षी पीउ-पीउ आवाज़ करते हैं। जलपक्षी गीली-खुशी से रोदन करते हैं । आकाश में मेघ घुमड-घुमड गिरकर गर्जन करते हैं। वर्षा की बूँदों के स्वर हमसे कुछ कहते हैं। उनके छूते ही रोम सिहर उठकर मन को लेते हैं। धरती पर पानी की धाराएँ बहती हैं। मिट्टी के कण-कण में कोमल अंकुर फूट पडते हैं। कवि कहता है कि- मेरा मन पानी की धाराएँ पकडकर झूलने लगता है। आओ! मुझे घेरकर सावन के गीत गाओ। हम सब मिलकर इंद्रधनुष के झूले में झूलेंगे। हमारे जीवन में मनभावन सावन बार-बार आये।

‘बरसते बादल’ कविता के अभ्यास प्रश्न उत्तर

(A) प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1: धरती की शोभा का प्रमुख कारण वर्षा है। इस पर अपने विचार बताइए। (या) सावन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य देखने लायक होता है। क्यों? इस पर अपने विचार बताइए।
उत्तर: सावन के महीने के समय आकाश में काले बादल छा जाते हैं। बादलों के कारण वर्षा होती है । वर्षा के कारण ही नदियाँ बहती हैं। वर्षा से खेतों की सिंचाई होती है और पेड-पौधे हरे-भरे रहते हैं। इससे धरती पर हरियाली छा जाती है। नये-नये पत्तों का विकास होता है। तब प्रकृति की सुंदरता देखने लायक होती है। वर्षा सभी प्राणियों के लिए भी जरूरी है। इसलिए हम कहते हैं कि धरती की शोभा का प्रमुख कारण वर्षा है।

प्रश्न 2: घने बादलों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: वर्षा ऋतु के समय आकाश में घने बादल छा जाते हैं । वे आकाश भर में इधर-उधर फिरते हैं और वे एक दूसरे से टकराकर गरजते हैं और वर्षा देते हैं । कभी-कभी उनके उर में बिजली चमकती है । आकाश में बादल कई आकारों में दिखाई देते हैं । घने बादलों से ही मूसलदार वर्षा बरसती है और धरती शीतल बन जाती है ।
अभिव्यक्ति सृजनात्मकता

(B) प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में लिखिए।

प्रश्न 3: वर्षा सभी प्राणियों के लिए जीवन का आधार है। कैसे ? (या) वर्षा के बिना प्राणियों का जीवन दुर्भर है । क्यों ? (या) वर्षा प्रणियों को किस प्रकार उपयोगी है ? (या) वर्षा के उपयोग बताओ।
उत्तर: प्रकृति में रहनेवाली हर प्राणी वर्षा पर निर्भर रहत है। पानी के बिना मानव, पशु-पक्षी और पेड-पौधे जीवित नहीं रह सकते । मेघों से वर्षा होती है । वर्षा हमारे लिए प्रकृति का वरदान है । वर्षा के कारण नदी-नाले, तालाब, आदि पानी से भर जाते हैं । इनसे मानव अपनी जीविका चला रहा है। नदियों के पानी से खेतों की सिंचाई होती है । वर्षा के बिना खेती-बाडी नहीं हो सकती । वर्षा के पानी से सब प्राणियों की प्यास बुझती है। पानी से ही बिजली पैदा होती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि वर्षा सभी प्राणियों का जीवन का आधार है।

प्रश्न 4: वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौंदर्य पर अपने विचार लिखिए । (या) वर्षा के समय प्रकृति में रहनेवाले जीवों की स्थिति कैसी होती है ?
उत्तर: वर्षा ऋतु एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऋतु है और हर प्राणी के लिए सुखदायक है । वर्षा होते समय काले बादल, घने बादलों से चमकनेवाली बिजलियाँ, बूँदों का टपकना, ठंडी हवाएँ ये सब प्रत्येक व्यक्ति को आकर्षित करते हैं । वर्षा के कारण चारों ओर हरियाली छा जाती है। जब बारिश होती है तब मिट्टी से एक तरह की सुगंध आती है । आकाश में सूर्य के सामने की दिशा में इंद्रधनुष दिखाई देता है । वर्षा के समय दादुर टर-टर करते रहते हैं । झिंगुर झन-झन बजती है। मोर भी खुशी से म्यव-म्यव करते हुए नाच दिखाते हैं । चातक के गण पीउ-पीउ कहते हुए मेघों की ओर देख रहे हैं। आर्द-सुख से क्रंदन करते सोनबालक उडते हैं।

प्रश्न 5: ‘बरसते बादल’ कविता में प्रकृति का सुंदर चित्रण है । उसे अपने शब्दों में लिखिए | (या) ‘बरसते बादल’ कविता का सारांश लिखिए । (या) ‘बरसते बादल’ कविता में कवि ने क्या बताया ? (या) वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कवि ने कैसे किया ?

कवि परिचय : ‘बरसते बादल’ एक कविता पाठ है । इस कविता के कवि श्री सुमित्रानंदन पंत हैं । वे छायावादी के प्रमुख कवि माने जाते हैं । प्रकृति के बेजोड कवि माने जाने वाले सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन् 1900 में अल्मोडा के पास कौसानी गाँव में हुआ । साहित्य लेखन के लिए इन्हें ‘साहित्य अकादमी, सोवियत रूस, ज्ञानपीठ‘ आदि पुरस्कार मिले।  इनकी प्रमुख रचनाएँ – वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा आदि हैं। इनका निधन सन् 1977 में हुआ।

बरसते बादल कविता का सारांश : प्रस्तुत कविता में कवि ने सावन मास के बादल बरसते समय प्रकृति चित्रण का वर्णन बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया । कवि कहते हैं कि मेघों से वर्षा ‘झम-झम’ स्वर से बरसती है । बादलों की छम-छम गिरती बूँदें पेडों पर पडकर छनती हैं। अंध- कार रूपी काले बादलों में कभी-कभी बिजली चमक कर उजाला फैलाती है। वर्षा ऋतु में हम दिन में ही सपने देखने लगते हैं।
मेघों वर्षा को देखकर दादुर टर-टर करते रहते हैं । झिंगुर झन-झन बजती है । मोर भी खुशी से म्यव-म्यव करते हुए नाच दिखाते हैं । चातक के गण पीउ-पीउ करते हुए की ओर देख रहे हैं। आर्द-सुख से क्रंदन करते सोनबालक उडते हैं। आकाश भर में बादल घुमडते हुए गरज रहे हैं।
वर्षा की बूँदें रिमझिम-रिमझिम पडती हुई कुछ कह रही हैं । वे बूँदें शरीर पर गिरने से रोम सिहर उठते हैं। अधिक वर्षा होने के कारण धाराओं पर धाराएँ धरती पर बहती हैं । वर्षा के कारण मिट्टी के कण-कण से कोमल अंकुर फूट रहे हैं ।
अंत में कवि इस प्रकार कह रहे हैं कि वर्षा की धारा को पकडने मेरा मन झूल रहा है। आओ, आज सब मिलकर सावन के गीत गायेंगे और वर्षा के कारण बने इंद्र- धनुष रूपी झूले में झूलेंगे । मन को लुभानेवाला सावन हमारे जीवन में बार-बार आयें ।

प्रश्न 6:फिर-फिर आये जीवन में सावन मनभावन‘ ऐसा क्यों कहा गया होगा ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर: कवि कहते हैं कि जीवन में सावन बार-बार आयें और सब मिल कर झूले में झूलें । क्यों कि वर्षाऋतु हमेशा सब की प्रिय ऋतु रही है। हर साल सावन आने पर प्रकृति की सुंदरता बढ़ जाती है। पेड-पौधे, पशु- पक्षी, मनुष्य और यहाँ तक कि धरती भी खुशी से झूम उठती है । वर्षा के कारण मिट्टी के कण-कण से कोमल अंकुर फूट कर तृण बन जाते हैं। सावन सब के मन छू लेता है । इसलिए इस कविता में कवि ने ‘ फिर-फिर आये जीवन में सावन मनभावन ‘ कहा होगा।

(C) पाठ संबंधी प्रश्न

प्रश्न 7: मेघ, बिजली और बूँदों का वर्णन यहाँ कैसे किया गया है ?
उत्तर: ‘बरसते बादल’ कविता में कवि ने प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है। बरसात के समय मेघ झम-झम स्वर से बरसते हैं। बिजली बादलों के बीच चम चम चमक रही है । बूँदें पेडों पर से छम-छम गिर रही हैं।

प्रश्न 8: प्रकृति की कौन-कौन सी चीजें मन को छू लेती हैं ?
उत्तर: बरसते बादल, बहती जल धाराएँ, गिरती बूँदें, बढ़ते हुए पौधे, खिलते हुए फूल और फैलता हुआ सुगंध, नाचते हुए मोर, मेंढक की टर-टर की आवाज़, धरती की हरियाली, आकाश में इंद्रधनुष आदि चीजें मन को छू लेती हैं ।

प्रश्न 9: तृण-तृण की प्रसन्नता का क्या भाव है ?
उत्तर: तृण-तृण की प्रसन्नता का भाव यह है कि धाराओं पर धाराएँ बरसती वर्षा के कारण मिट्टी के कण-कण से कोमल अंकुर फूट रहे हैं । अर्थात् वर्षा की धाराओं को देखकर तृण-तृण में प्रसन्नता भर जाती है।

प्रश्न 10: सुमित्रानंदन पंत के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर: सुमित्रानंदन पंत छायावादी कवि हैं । प्रकृति सौंदर्य के चित्रण में बेजोड कवि हैं । आपका जन्म सन् 1900 में अल्मोडा में हुआ। इनकी प्रमुख रचनाएँ वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद, चिदंबरा आदि हैं। साहित्य लेखन के लिए इन्हें ‘साहित्य अकादमी, सोवियत रूस, ज्ञानपीठ’ आदि पुरस्कार मिले | चिदंबरा काव्य संकलन पर आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। आपका निधन सन् 1977 में हुआ ।

Aaj Mujhase Bol Badal - Poem on Clouds in Hindi

2. आज मुझसे बोल, बादल!

आज मुझसे बोल, बादल!

तम भरा तू, तम भरा मैं,
ग़म भरा तू, ग़म भरा मैं,
आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!

आग तुझमें, आग मुझमें,
राग तुझमें, राग मुझमें,
आ मिलें हम आज अपने द्वार उर के खोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!

भेद यह मत देख दो पल-
क्षार जल मैं, तू मधुर जल,
व्यर्थ मेरे अश्रु, तेरी बूंद है अनमोल, बादल
आज मुझसे बोल, बादल!

हरिवंशराय बच्चन

Badal Ko Ghirate Dekha - Poem on Clouds in Hindi

3. बादल को घिरते देखा

अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिषतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बग़ल स्वर्णाभ शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा-काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

दुर्गम बर्फ़ानी घाटी में
शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठने वाले
निज के ही उन्मादक परिमल-
के पीछे धावित हो-होकर
तरल-तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

कहाँ गए धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढ़ा बहुत किंतु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो, वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल
मुखरित देवदारु-कानन में,
शोणित धवल भोज पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों से कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि-खचित कलामय
पान पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपटी पर,
नरम निदाग बाल-कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आँखों वाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।

नागार्जुन

Jhoom Jhoom Mridu Garaj Garaj Ghan Ghor - Poem on Clouds in Hindi

4. झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर

झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर
राग अमर ! अम्बर में भर निज रोर!

झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,
घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में,
मन में, विजन-गहन-कानन में,
आनन-आनन में, रव घोर-कठोर-
राग अमर ! अम्बर में भर निज रोर !

अरे वर्ष के हर्ष !
बरस तू बरस-बरस रसधार !
पार ले चल तू मुझको,
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार !

उथल-पुथल कर हृदय-
मचा हलचल-
चल रे चल-
मेरे पागल बादल !

धँसता दलदल
हँसता है नद खल्-खल्
बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल।

देख-देख नाचता हृदय
बहने को महा विकल-बेकल,
इस मरोर से- इसी शोर से-
सघन घोर गुरु गहन रोर से
मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर!
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

Megh Aaye - Poem on Clouds in Hindi

5. मेघ आए

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’—
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी,
‘क्षमा करा गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

– सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

Main Badal Hu - Poem on Clouds in Hindi

6. मैं बादल हूँ

मैं बादल हूँ, मैं बादल हूँ, मुझे बड़ा अभिमान है.
मैं बादल हूँ, मैं बादल हूँ मेरे बड़े अहसान है।

मैं न बरसूं मैं न ग़रजू, तो
पानी को तरस जाओ,
मैं न बरसूं मैं न ग़रजू, तो तुम अन कहा से लाओ।

नीले नीले आसमान को काले काले घेरों से ढक लेता हूँ,
सड़के, गलियें, चौपालों पर खूब धूम मचा देता हूँ।

यही मेरी शान है, यही मेरी आन है, मुझे बड़ा अभिमान है,
मैं बादल हूँ, मैं बादल हूँ, मुझे बड़ा अभिमान है।

मैं जब बरसूं मैं जब ग्रजूँ, तभी तो हरयाली छाये,
मैं जब बरसूं मैं जब ग्रजूँ, तभी तो खेत लहरायें।

ऊंचे ऊंचे पर्वतो से जब भी मैं टकराता हूँ,
सबके मन को भाता हूँ।

झीलें नदियां तालाबो को सूखे से बचाता हूँ,
सब के मन को भाता हूँ।

मैं बादल हूँ, मैं बादल हूँ, मुझे बड़ा अभिमान हैं।
मैं बादल हूँ, मैं बादल हूँ, मेरे बड़े अहसान हैं।

Ye Ashan Ke Pahale Badal - Poem on Clouds in Hindi

7. ये अषाढ़ के पहले बादल

ये अषाढ़ के पहले बादल
मेरा मन है भोर
बाहर का सन्नाटा तोड़े
भीतर उठता शोर

बेबस मन को नींद कहाँ है
चली गई परदेश
घटा रात में घुमड़ी जैसे
उनके कुंचित काश

दूर-पास के संबंधों का
कोई ओर न छोर

तना हुआ मन कई दिनों का,
पीड़ा से विश्राम
लेता है रच-रचकर कविता,
रखकर पूर्ण विराम

फिर-फिर काग़ज़ को छूती है
हँसकर निब की कोर

– कृष्ण मुरारी पहारिया

Suraj Bhi Jab Chhup Jata Hai - Poem on Clouds in Hindi

8. सूरज भी जब छुप जाता है

सूरज भी जब छुप जाता है आसमान में,
घने बादलों का डेरा सा लग जाता है।

बादलों की धमाचौकड़ी जब मचती है ,
तो आकाश खेल का मैदान बन जाता है।

काले, भूरे, सफेद, चमकीले बादल,
अठखेलियां सी करते दिखते हैं।

लगता है जैसे कोई छीटे शरारती बच्चे,
मिलकर वहां उपर लूकन छुपी खेलते हैं।

मानसून में यहीं बदल गंभीर हो जाते हैं,
वर्ष करने के अपने काम में जुट जाते हैं
गर्मी की जलती -तपती धूप, लू से
यहीं बदल हमें राहत पहुंचाते हैं।

– ओम प्रकाश बजाज

Badalon Ki Kunwari Kanyayen - Poem on Clouds in Hindi

9. बादलों की कुँवारी कन्याएँ

लरजते बादलों की कुँवारी कन्याओ,
गाओ
हरषो, (ख़ूब इठलाओ)
तुम्हारी
वरण रात्रि आ गई है!

सुंदर वनों में निवास करती
नीली लहरों की चिरसंगिनी हवा
तुम्हारे आँचल में
संगीत पिरो रही है!

ओ महापितामह की मत्स्यगंधा
पुत्रियो!
तुम्हारी सोंधी सुगंध ने
हरियाली की वेणी में
सितारे टाँक दिए हैं!

नाचो,
ख़ूब भैरवी गाओ
जिससे,
तुम्हारे यौवन की आराधना का
दीप पुंज
स्वतः जल उठे
धूम्र राशि से
अग्नि पुत्र जन्मे
और,
तुम्हें वरण कर लें।

– जगदीश चतुर्वेदी

10. खुशियाँ लाए बादल

आसमान पर छाए बादल
बारिश लेकर आए बादल
गड़-गड़, गड़-गड़ की धुन में
ढोल-नगाड़े बजाए बादल
बिजली चमके चम-चम, चम-चम
छम-छम नाच दिखाए बादल
चले हवाएँ सन-सन, सन-सन
मधुर गीत सुनाए बादल
बूँदें टपके टप-टप, टप-टप
झमाझम

जल बरसाए बाद ल
झरने बोले कल-कल, कल-कल
इनमें बहते जाए बादल
चेहरे लगे हँसने-मुसकाने इतनी खुशियाँ लाए बादल

– ओमप्रकाश चोरमा ‘किलोलीवाला’

11. बदलीवाला एक दिन

नहीं
मुझे कुछ भी—याद नहीं
कुछ भी तो याद नहीं आ ता

ओंठों को छू-छू कर
पलकें छा लेते हैं
वही
वही अपने कंधों पर बिसरे
बहके-बहके
रेशमी मुलायम अलकों के बादल
और
उनमें
भटकती निगाहों-सी
मेरी दिग्भ्रांत उँगलियाँ

सच न
मुझे कुछ याद नहीं आता।

– राजेंद्र यादव

12. बादल की तरह

बरसात के दिनों
सिल गई
ऊनी स्वेटर में
कपूर की महक-सी मिलना मुझे

मैं तुम्हें
धूप में पहनूँगा
बादल की तरह

– अनिल कार्की

13. हिम-शिखरों पर बादल

शिखरों पर टिके
स्याह बादल की परछाईं—
चाँदी के मँजे हुए थाल में
पूजा का दीपक रख
आँखों में काजल-सा पार गई।

– जगदीश गुप्त

14. पानी भरे हुए बादल

पानी भरे हुए भारी बादल से डूबा आसमान है
ऊँचे गुंबद, मीनारों, शिखरों के ऊपर।
निर्जन धूल-भरी राहों में
विवश उदासी फैल रही है।
कुचले हुए मरे मन-सा है मौन नगर भी,
मज़दूरों का दूरी से रुकता स्वर आता
दोपहरी-सा सूनापन गहरा होता है
याद धरे बिछुड़न में खोए मेघ-मास में।
भीगे उत्तर से बादल हैं उठते आते
जिधर छोड़ आए हम अपने मन का मोती
कोसों की इस-मेघ-भरी-दूरी के आगे
एक बिदाई की सन्ध्या में
छोड़ चाँदनी-सी वे बाँहें
आँसू रुकी मचलती आँखें।

भारी-भारी बादल ऊपर नभ में छाए
निर्जन राहों पर जिनकी उदास छाया है
दोपहरी का सूनापन भी गहरा होता
याद भरे बिछुड़न में डूबे इन कमरों में
खोई-खोई आँखों-सी खिड़की के बाहर
रुँधी हवा के एक अचानक झोंके के संग
दूर देश को जाती रेल सुनाई पड़ती!

– गिरिजाकुमार माथुर

15. बादरा साँवरे!

बादरा साँवरे!

काहे तरसाए रे,
पीर बरसाए रे!

रात काली घिरी
बाजती बीजुरी

तुम बहुत दूर हो
आँख के नूर हो

स्नेह की धार हो
प्रीत पतवार हो

परिमली गंध हो
रूप के छंद हो

तुम मेरे कान्ह हो
प्रीत हो, गान हो

मैं घटा बावरी
व्योम की लाड़ली

तुम मेरे श्याम हो,
है कहाँ ठाँव रे!

ढूँढ़ ले गाँव रे
बादरा साँवरे!

तुम भरे स्नेह में
घूमते व्योम में

चढ़ हवा पंख पर
खोल घूँघट सुधर

चाँद को चूमते
गिरि गुहा घूमते

कोंपली छाँह में
फूल की बाँह में

पाटली गोद में
मंजरी सेज में

शबनमी पाँख में
सारसी आँख में

लाल डोरे भरे,
बाँसुरी बज उठी

रास की तान रे!
बाँदरा साँवरे।

– जगदीश चतुर्वेदी

16. देखो काले बादल आये

देखो काले बादल आये।
आसमां पर ये हैं जमकर छाये॥

गरजकर, ये बिजली कड़काते।
संग अपने ये अपने वर्षा भी लाते॥

देखो काले बादल आये।
धरती की गर्मी को ये दूर भगाए॥

सारे मौसम को भी खुशहाल ।
खेतों में हरियाली फैलायें॥

देखो काले बादल आये।
बंजर धरती को भी उपजाऊ बनाते॥

कहीं – कहीं पर ये बाढ़ भी लाते।
परन्तु अकाल को दूर भगाते॥

देखो काले बादल आये।
प्रकृति को भी ये भाये॥

इस धरती को भी नहलाये।
देखो काले बादल आये॥

17. बादलों-जैसा इंसान

मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इंसान चला जा रहा है
उसकी देह को थपकने से
लगता है पानी झरने लगेगा

मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इंसान जा रहा है
उसके पास जाकर बैठने पर
लगता है छाया उतर आएगी

वह देगा, या कि लेगा? वह आश्रय है, या कि आश्रय चाहता है?
मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इंसान चला जा रहा है

उसके सामने जाकर खड़े होने से
हो सकता है मैं भी कभी बादल बन जाऊँ!

– शंख घोष (अनुवाद : उत्पल बैनर्जी)

Kitani Khushiyan Late Badal - Poem on Clouds in Hindi

18. कितनी खुशियां लाते हैं बादल

जब गरज गरज के आते बादल,
तब कितनी खुशियां लाते बादल,
जब उमड़ घुमड़ के आते बादल,
तब कितनी खुशियां लाते बादल,
जब काले भूरे आते है बादल,
तब हमको कितना डराते बादल,
जब रिम झिम रिम झिम

पानी बरसाते बादल,
तब हम सबके दिल को कितना हैं भाते बादल,
फसलो की जैसे जान हैं बादल,
अन्न के लिए जैसे वरदान है बादल,
लेकिन हद से आगे बढ़ जाये बादल,
तब न जाने कितनी प्रलय है लाये बादल,
जब गरज गरज के आते हैं बादल,
तब कितनी खुशियां लाते हैं बादल।

19. बादल राग

बादल इतने ठोस हों
कि सिर पटकने को जी चाहे

पर्वत कपास की तरह कोमल हों
ताकि उन पर सिर टिका कर सो सकें

झरने आँसुओं की तरह धाराप्रवाह हों
कि उनके माध्यम से रो सकें

धड़कनें इतनी लयबद्ध
कि संगीत उनके पीछे-पीछे दौड़ा चला आए

रास्ते इतने लंबे कि चलते ही चला जाए
पृथ्वी इतनी छोटी कि गेंद बनाकर खेल सकें

आकाश इतना विस्तीर्ण
कि उड़ते ही चले जाएँ

दुख इतने साहसी हों कि सुख में बदल सकें
सुख इतने पारदर्शी हों
कि दुनिया बदली हुई दिखाई दे

इच्छाएँ मृत्यु के समान
चेहरे हों ध्यानमग्न
बादल इस तरह के परदे हों
कि उनमें हम छुपे भी रहें
और दिखाई भी दें

मेरा हास्य ही मेरा रुदन हो
उनके सपने और उनका व्यंग्य हो
घोरतम तमस के सच में
विजन में जन हों अपनेपन में
सूप में धूप हो
धूप में सब अपरूप हो

बादल इतने डरे हों
कि अपनी छाती पर
मेरा सिर न टिकने दें
झरने इतने धारा प्रवाह न हों
कि मेरे आँसुओं को पछाड़ सकें।

– अवधेश कुमार

20. आज का दिन बादलों में खो गया था

आज का दिन बादलों में खो गया था
दृष्टि में आकर शशक जैसे
चपल से चपल होकर
सघन पत्रश्याम वन में खो गया था

वायु भू पर और ऊपर
नवल लहराते हुए घन श्याम सुंदर
कहीं धौरे कहीं कारे
लहर तिल तिल पर सँवारे
मधुर मधुर सजीव गर्जन से
ध्वनित जग हो गया था

पंक हो पथ-अंक में रज-कण मिले कल
आज सूखे मार्ग निर्मल
सतत आग्रहशील आकर
पवन शीतल स्पर्श कर कर
अ ब अ व ज्ञा पात्र
अति परिचय-जनित वह हो गया था

दूर से, मेरे क्षितिज के पार, पश्चिम में कहीं से
सतत वर्षण-शील जलदों को चला कर
मधुर गर्जन-शील कर बिजली जगा कर
पथ-जनित निज शुष्कता
धन-सीकरों के स्पर्श हर
उच्छ्वसित पछुआ हवा तरु, शस्य और सरोवरों को
अनवरत गति की कहानी साँस सी ले कर सुना कर
मधुर संचित स्नेह-सी करती समर्पण मौन अपना
आज मेरे पास आई
आ गया मन
जो स्मरण में प्रिय प्रवासी हो गया था

– त्रिलोचन

21. बादल राग (NCERT)

तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दु:ख की छाया—
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया—
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक़ रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार,
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शायित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा-धीर।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार—
शस्य अपार,
हिल-हिल,
खिल-खिल
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है रे
आतंक-भवन,
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से
सदा छलकता नीर,
रोग-शोक में भी हँसता है
शैशव का सुकुमार शरीर।
रुद्ध कोष, है क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक-अंक पर काँप रहे हैं
धनी, वज्र-गर्जन से बादल!
त्रस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ऐ विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!

– सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

बादलों का काव्यात्मक और प्राकृतिक महत्व

बादल केवल आकाश में तैरते हुए जलवाष्प के गुच्छे नहीं हैं, बल्कि यह मानव जीवन और काव्य दोनों में गहरे अर्थों को संप्रेषित करते हैं। “Poem on Clouds in Hindi: बरसते बादल कविता का अर्थ हिन्दी में” शीर्षक के अंतर्गत बादलों पर आधारित कविता न केवल उनके भौतिक अस्तित्व का, बल्कि उनके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतीकों का भी वर्णन करती हैं। भारतीय कवियों ने सदियों से बादलों को अपने काव्य में विशेष स्थान दिया है, जहाँ ये अक्सर प्रेम, सौंदर्य, आशा और प्रकृति की महानता का प्रतीक होते हैं।

कविताओं में बादल कई रूपों में उभरते हैं—कभी मेघ के रूप में जो प्रिय को संदेश पहुंचाते हैं, कभी काले बादल के रूप में जो बारिश का संकेत देते हैं, और कभी सफेद बादलों के रूप में जो आकाश को सौंदर्य प्रदान करते हैं। इन कविताओं के माध्यम से, कवि बादलों की अलौकिक सुंदरता को हमारे सामने लाते हैं, जो हमें प्रकृति से गहरे जुड़ने का अनुभव देते हैं।

बादलों का प्राकृतिक चक्र और जीवन में भूमिका

प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में बादलों की भूमिका अमूल्य है। यह पृथ्वी पर जल चक्र को बनाए रखते हैं, जिससे सभी जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का जीवन चलता है। बारिश के रूप में जल को धरती पर पहुंचाने वाले बादल केवल एक प्राकृतिक तत्व नहीं हैं, बल्कि जीवन की निरंतरता के आधार हैं। बिना बादलों के, बारिश नहीं होती और बिना बारिश के धरती सूखी और निर्जीव हो जाती है। कविताएँ भी इस बात को बड़े ही संवेदनशील और गहरे अर्थों में प्रस्तुत करती हैं।

बादल प्रेम, प्रेरणा, संघर्ष और आशा का प्रतीक भी माने जाते हैं। जब आकाश में घने काले बादल छा जाते हैं, तो एक नई शुरुआत की उम्मीद जन्म लेती है—बारिश जो न केवल धरती को नया जीवन देती है, बल्कि मानव मन को भी शांति और स्फूर्ति प्रदान करती है। यह भी कहा जाता है कि जीवन के संघर्षों और कठिनाइयों के बीच जब उम्मीद के बादल घिरते हैं, तो जीवन फिर से जीवंत हो उठता है।

बादल और हिंदी काव्य की परंपरा

हिंदी काव्य परंपरा में बादलों का उल्लेख कई प्रमुख रचनाकारों द्वारा हुआ है। कवियों ने बादलों का प्रयोग सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य के रूप में नहीं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करने के लिए किया है। मेघदूत, काले बादल, वर्षा ऋतु की कविता—इन सबमें बादल मुख्य रूप से उपस्थित रहते हैं। यहाँ तक कि बच्चों के स्कूल की पुस्तकों में भी बादल पर आधारित कविताएँ पढ़ने को मिलती हैं, जो नई पीढ़ी को प्रकृति से जोड़ने का एक अद्भुत माध्यम हैं।

इस प्रकार, “Poem on Clouds in Hindi” सिर्फ कविताओं का संग्रह नहीं है, बल्कि यह जीवन के विभिन्न रंगों, भावनाओं और संदेशों का प्रतीक है। बादलों पर आधारित हिंदी कविताएँ हमें प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन की जटिलताओं के बीच एक गहरा संबंध स्थापित करने का मौका देती हैं।

आखिर में, बादल हमें यह सिखाते हैं कि प्रकृति और मानवता का संबंध कितनी गहराई से आपस में जुड़ा हुआ है।


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