कबीरदास का दोहा: जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए
जग में बैरी कोई नहीं – प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित है। कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ था। कबीर जी भक्तिकाल की ‘निर्गुण भक्तिकाव्य शाखा‘ की संत काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। कबीर की रचनाएं साखी, सबद, और रमैनी में संकलित हैं।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए॥
अर्थ: कबीर ने इस दोहे में बताया है कि आपका मन हमेशा शीतल होना चाहिए अगर आपका मन शीतल है तो इस दुनिया में आपका कोई भी दुश्मन नहीं बन सकता।
व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी हमें मन की शांति और दया के महत्व को समझा रहे हैं। कबीर कहते हैं कि इस संसार में हमारा कोई दुश्मन नहीं है-दुश्मनी केवल हमारे मन में उत्पन्न होती है। यदि मन शांत और निर्मल हो जाए, तो हमें किसी के प्रति शत्रुता या द्वेष का भाव नहीं रहेगा।
कबीर बताते हैं कि दुश्मनी का कारण हमारे भीतर की “आपा,” यानी हमारा अहंकार और स्वार्थ है। यदि हम अपने इस अहंकार को छोड़ दें, तो हमारे अंदर दया, प्रेम, और करुणा का भाव उत्पन्न होगा, और हम सबको अपनाने लगेंगे। जब मन से अहंकार मिट जाता है, तो हर व्यक्ति अपनेपन से भरा प्रतीत होता है, और हमें किसी से शिकायत या शत्रुता का अनुभव नहीं होता।
संदेश एवं सार: इस दोहे का मुख्य संदेश यह है कि शत्रुता या बैर बाहर की चीज़ नहीं है, बल्कि यह हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करती है। यदि हम अपने अहंकार को त्यागकर मन को शांत रखें, तो हमारे अंदर दया और प्रेम का भाव जागृत होगा, जिससे हम दूसरों को अपनाने लगेंगे और इस संसार में हमें कोई दुश्मन नहीं लगेगा।
- ऐसी वाणी बोलिए
- काल करे सो आज कर
- गुरु गोविंद दोऊ खड़े
- चलती चक्की देख के
- जल में बसे कमोदनी
- जाति न पूछो साधू की
- दुःख में सुमिरन सब करे
- नहाये धोये क्या हुआ
- पाहन पूजे हरि मिलें
- बड़ा भया तो क्या भया
- बुरा जो देखन मैं चला
- मलिन आवत देख के
- माटी कहे कुम्हार से
- साधू ऐसा चाहिए
- जग में बैरी कोई नहीं
- अति का भला न बोलना