Diwali पर Hindi में Poem: दीपावली पर Inspirational कविताएं हिन्दी में

इस लेख में दीपावली पर 10 से अधिक कविताएँ शामिल की गई हैं। स्कूल के छात्र इन कविताओं को पढ़ सकते हैं और उन्हें स्कूल के कार्यक्रम में प्रस्तुत भी कर सकते हैं।

Inspirational poem on Deepavali or Diwali in Hindi
दि‍वाली पर हिंदी में कविताएँ- Diwali Poems in Hindi

दीवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, भारत का एक प्रमुख और महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की विजय, अज्ञान पर ज्ञान की जीत, और बुराई पर अच्छाई की प्रतिष्ठा का प्रतीक है। दीवाली का त्योहार रोशनी, उल्लास, और एकता का भी प्रतीक है। यह त्योहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक समरसता और पर्यावरण के प्रति जागरूकता को भी बढ़ावा देता है। अपने मूल स्वरूप में, दीवाली हमें अच्छाई, ज्ञान, और प्रकाश की ओर प्रेरित करता है।

दीपावली के त्योहार पर दस कविताएँ

आगे कुछ प्रसिद्ध कवियों की दीपावली पर लिखी गईं कविताएं दीं जा रहीं हैं-

Poem on Diwali in Hindi

1. जगमग-जगमग (सोहनलाल द्विवेदी)

हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!

छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!

पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग!
जगमग जगमग जगमग जगमग!

राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!

2. आओ फिर से दिया जलाएँ (अटल बिहारी वाजपेयी)

भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ

आहुति बाक़ी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ

3. अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए (गोपालदास नीरज)

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए।

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यों ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए।

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ़ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा,
कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए

4. साथी, घर-घर आज दिवाली! (हरिवंशराय बच्चन)

फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!

हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!

आँख हमारी नभ-मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!

5. दीप से दीप जले (माखनलाल चतुर्वेदी)

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।

लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।

गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।

उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।

वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।

युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।

6. दीपावली (त्रिलोक सिंह ठकुरेला)

आती है दीपावली, लेकर यह सन्देश।
दीप जलें जब प्यार के, सुख देता परिवेश।।
सुख देता परिवेश,प्रगति के पथ खुल जाते।
करते सभी विकास, सहज ही सब सुख आते।
‘ठकुरेला’ कविराय, सुमति ही सम्पति पाती।
जीवन हो आसान, एकता जब भी आती।।

दीप जलाकर आज तक, मिटा न तम का राज।
मानव ही दीपक बने, यही माँग है आज।।
यही माँग है आज,जगत में हो उजियारा।
मिटे आपसी भेद, बढ़ाएं भाईचारा।
‘ठकुरेला’ कविराय ,भले हो नृप या चाकर।
चलें सभी मिल साथ,प्रेम के दीप जलाकर।।

जब आशा की लौ जले, हो प्रयास की धूम।
आती ही है लक्ष्मी, द्वार तुम्हारा चूम।।
द्वार तुम्हारा चूम, वास घर में कर लेती।
करे विविध कल्याण, अपरमित धन दे देती।
‘ठकुरेला’ कविराय, पलट जाता है पासा।
कुछ भी नहीं अगम्य, बलबती हो जब आशा।।

दीवाली के पर्व की, बड़ी अनोखी बात।
जगमग जगमग हो रही, मित्र, अमा की रात।।
मित्र, अमा की रात, अनगिनत दीपक जलते।
हुआ प्रकाशित विश्व, स्वप्न आँखों में पलते।
‘ठकुरेला’ कविराय,बजी खुशियों की ताली।
ले सुख के भण्डार, आ गई फिर दीवाली।।

7. दिए बेचती औरत (प्रेमशंकर शुक्ल)

बड़े शहर के चौराहे पर
दिए बेचती औरत
धूप में अपने आदमी को
छाँह में बैठने के लिए कहती है
और धूप में बैठी रहती है ख़ुद
दिए बिकते हैं तो औरत के चेहरे पर
फैलती है उजास
छाँह में बैठा आदमी औरत को निहारता है मुग्ध मन
और आदमी के चेहरे पर फैलती है
बीड़ी के कश भर रोशनी
दिए बेचती औरत दिए की पकी मिट्टी की तरह
खनकती आवाज़ में
हर घर में उजाला के लिए असीसती है दियों को
और अपनी बिटिया के हाथ घर के लिए
चार दिए पकड़ा ऐसे भेजती है
जैसे कह रही हो जा बिटिया
चारों दिशाओं की देहरी पर रख
इन दियों को जला आना
दिए जलने से माटी के मन को
अँधेरा नहीं दबाता है

8. दीपावली का त्योहार आया (नरेंद्र वर्मा)

दीपावली का त्योहार आया,
साथ में खुशियों की बहार लाया।

दीपको की सजी है कतार,
जगमगा रहा है पूरा संसार।

अंधकार पर प्रकाश की विजय लाया,
दीपावली का त्योहार आया।

सुख-समृद्धि की बहार लाया,
भाईचारे का संदेश लाया।

बाजारों में रौनक छाई,
दीपावली का त्योहार आया।

किसानों के मुंह पर खुशी की लाली आयी,
सबके घर फिर से लौट आई खुशियों की रौनक।

दीपावली का त्यौहार आया,
साथ में खुशियों की बहार लाया।

दीवाली पर छोटी हास्य कविताएं

कम उम्र के बच्चे बड़ी कविताएं पसंद नहीं करते हैं, इसीलिए छोटे बच्चों के लिए दीपावली पर छोटी हास्य हिन्दी कविताएं आगे दीं जा रहीं हैं-

9. दिवाली आई रे (सोनम बन्देवार)

दिवाली आई रे
खुशी खूब लाई रे
बंट रही मिठाई रे
गाओ बहन-भाई रे

10. दिवाली (अंकिता माहोरे)

आई दिवाली, आई दिवाली
खुशियों को संग लाई दिवाली

बच्चे आए बड़े भी आए
सबने सुंदर दीप जलाए

दीपों से जगमग संसार
एक-दूजे से बढ़ता प्यार

11. दीप-पंक्तियां (निधि यादव)

दीपों की सुंदर पंक्ति में,
लगी एक पंक्ति बच्चों की।

सुंदर-सुंदर दीप जले थे,
बच्चे भी लग रहे खिले थे।

पूरे घर पर सजी थी माला,
खुशियों का भर गया उजाला

जगमग-जगमग जग था सारा,
दिवाली त्योहार है प्यारा।

12. दीपों का त्योहार (मयंक सराठे)

खुशियों की बौछार दिवाली,
जीवन में उपहार दिवाली।
तन-मन घर सब स्वच्छ उजेरे,
दीपों का त्योहार दिवाली।।

13. रंगोली (पूजा मोहने)

रंग-बिरंगे रंगों से सजी हैं रंगोली,
हर रंग एक मुस्कान है लगती बड़ी सजीली।

आंगन भर जाएं रंगों से, ज्यों लगता प्यारा है,
बचपन में खुशियों का वैसे रंगोंभरा उजारा है।

14. त्योहार मिलन का (पूनम मोहने)

दिवाली त्योहार दीप का,
मिलकर दीप जलाएंगे।
सजा रंगोली से आंगन को,
सबका मन हर्षाएंगे।

बम-पटाखे भी फोड़ेंगे,
खूब मिठाई खाएंगे।
दिवाली त्योहार मिलन का,
घर-घर मिलने जाएंगे।

छात्र इन कविताओं का उपयोग कर सकते हैं और प्रेरणा लेते हुए अपनी खुद की कविताएँ बनाने की कोशिश कर सकते हैं। कविता रचते समय, वे अपनी रचनाओं में फोटो को शामिल करके और एक उत्सवपूर्ण भावनात्मक माहौल बनाने पर ध्यान केंद्रित करें। अपनी आत्मरचित कविताओं को सहपाठियों के साथ साझा करें और एक-दूसरे की कविताएँ पढ़ें। इससे छात्रों को एक ही विषय पर विभिन्न दृष्टिकोणों और लेखन शैलियों को समझने में मदद मिलेगी। यह गतिविधि न केवल उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएगी बल्कि उन्हें कविता के साथ प्रयोग करने और अपने शब्दों के माध्यम से उत्साह और आनंद व्यक्त करने का अवसर भी देगी।

Diwali

दीपावली: प्रकाश और उल्लास का पर्व

दीपावली, प्रकाश का त्योहार, हमें एक समुदाय के रूप में एक साथ आने और अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का जश्न मनाने का अवसर प्रदान करता है। हम अपने घरों को दीयों और सुंदर सजावट से सजाते हैं, उसी प्रकार हमें अपने दिलों और मन को दया और एकता के भाव से भी आलोकित करना चाहिए। इस दीपावली, हमें यह याद रखना चाहिए कि खुशी, प्रेम और साझेदारी को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है, न केवल हमारे परिवारों के बीच बल्कि हमारे चारों ओर के सभी लोगों के लिए।

दीवाली का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

  1. रामायण और राम की वापसी: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने 14 वर्षों के वनवास और रावण के वध के बाद अयोध्या लौटे थे। उनके स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने पूरे शहर को दीपों से सजाया, जिसे दीपावली के रूप में मनाया जाता है।
  2. लक्ष्मी पूजा: यह त्योहार धन की देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है। दीपावली की रात को लोग अपने घरों को साफ-सुथरा कर दीप जलाते हैं और लक्ष्मी जी की आराधना करते हैं, ताकि समृद्धि और खुशहाली उनके घर में बनी रहे।
  3. नरक चतुर्दशी: दीवाली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी मनाई जाती है, जिसे ‘छोटी दीवाली’ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था।

दीवाली का सांस्कृतिक महत्व

दीवाली केवल धार्मिक त्योहार ही नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लोग नए कपड़े पहनते हैं, घरों की सफाई करते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं, और आतिशबाजी करते हैं।

  1. सामाजिक समरसता: दीवाली का त्योहार सामाजिक समरसता और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं, मिठाइयाँ और उपहार बाँटते हैं और मिल-जुलकर त्योहार मनाते हैं।
  2. रंगोली: घरों के सामने रंगोली बनाना दीवाली की एक महत्वपूर्ण परंपरा है। रंग-बिरंगी रंगोलियाँ घरों की शोभा बढ़ाती हैं और शुभ माना जाता है।

पर्यावरण के प्रति जागरूकता

हाल के वर्षों में, दीवाली पर पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है। पटाखों के धुएँ और शोर से होने वाले प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए, लोग अब ग्रीन दीवाली मनाने पर जोर दे रहे हैं। इसमें कम पटाखे जलाना, और पारंपरिक तरीकों से त्योहार मनाने पर बल दिया जा रहा है।

शुभकामनाएँ

दिवाली का यह प्रकाशमय पर्व आपके मार्ग को उज्ज्वल करे, अंधकार को दूर भगाकर खुशी, समृद्धि और प्रेम को बढ़ावा दे। शुभ दीपावली! सुरक्षित रहें और पर्यावरण-अनुकूल दीवाली मनाएँ!

दीपावली पर हम मिठाइयाँ और उपहार बाँटते हैं, और उसी प्रकार हम मुस्कानें और अच्छाई भी बांटें।

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