कबीरदास का दोहा: मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार
मलिन आवत देख के – प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित है। कबीरदास का जन्म 15वीं शताब्दी में काशी में हुआ था। कबीर जी भक्तिकाल की ‘निर्गुण भक्तिकाव्य शाखा‘ की संत काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। कबीर की रचनाएं साखी, सबद, और रमैनी में संकलित हैं।
मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार।
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार॥
अर्थ: मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। कबीर दास जी यह समझाना चाहते हैं कि आज आप जवान हैं तो कल आप भी बुड्ढे हो जाओगे, और मिट्टी में भी मिल जाओगे।
व्याख्या: इस दोहे में कबीरदास जी हमें जीवन की क्षणभंगुरता और अस्थिरता का संदेश देते हैं। वे एक प्रतीकात्मक रूपक का प्रयोग करते हुए समझाते हैं कि कैसे जीवन में हर एक का समय सीमित है, और किसी का भी समय कभी भी खत्म हो सकता है।
कबीर कहते हैं कि जब माली (मलिन) बगीचे में आता है, तो उसे देखकर पूरी तरह खिले हुए फूल पुकार कर कलियों से कहते हैं कि “हमें तो चुन लिया गया, अब तुम्हारी बारी है।” इसका अर्थ यह है कि जो पहले खिल चुके हैं, वे चुन लिए गए हैं, और अब वे कलियाँ जो अभी पूरी तरह नहीं खिली हैं, जल्द ही चुन ली जाएँगी।
संदेश एवं सार: यह दोहा हमें यह सिखाता है कि जीवन क्षणिक है और समय के साथ सभी का अंत निश्चित है। जिस तरह खिले हुए फूलों का समय समाप्त हो जाता है और वे चुन लिए जाते हैं, उसी तरह मनुष्य के जीवन में भी समय का अंत निश्चित है। इसलिए हमें अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए और जीवन के हर पल को सच्चे और अच्छे कार्यों में लगाना चाहिए।
- ऐसी वाणी बोलिए
- काल करे सो आज कर
- गुरु गोविंद दोऊ खड़े
- चलती चक्की देख के
- जल में बसे कमोदनी
- जाति न पूछो साधू की
- दुःख में सुमिरन सब करे
- नहाये धोये क्या हुआ
- पाहन पूजे हरि मिलें
- बड़ा भया तो क्या भया
- बुरा जो देखन मैं चला
- मलिन आवत देख के
- माटी कहे कुम्हार से
- साधू ऐसा चाहिए
- जग में बैरी कोई नहीं
- अति का भला न बोलना