श्यामपट्ट कौशल – अर्थ, आवश्यकता, उपयोग, विशेषताएँ, सावधानियाँ

Shyampatt Kaushal

श्यामपट्ट कौशल (Black Board Skill)

श्यामपट्ट शिक्षण एवं शिक्षक का घनिष्ठ मित्र होता है। यह अध्यापक के शिक्षण का अभिन्न अंग होता है। हम किसी ऐसे कक्षा-कक्ष की कल्पना भी नहीं कर सकते जहाँ पर श्यामपट्ट न हो। प्रो. स्टक के अनुसार, “इसे शिक्षक और छात्रों द्वारा प्रयुक्त विद्या समझना चाहिये क्योंकि शिक्षक इसकी सहायता से निर्देशन देता है और छात्र आत्माभिव्यक्ति या व्याख्या करता है।

शिक्षण के उस सहायक/आवश्यक साधन को जिसका उपयोग शिक्षक द्वारा किसी बात को लिखकर समझाने अथवा पठितांश का सार लिखने तथा लिखाने हेतु किया जाता है। उसे श्यामपट्ट/हरापट्ट/व्हाइटबोर्ड आदि नामों से उसके रंग के आधार पर पुकारा जाता है। यह सर्वाधिक प्राचीन, शिक्षण का सहायक ही नहीं; अपितु आवश्यक साधन है। इसके अभाव में शिक्षक का काम चल ही नहीं सकता।

इन्हें लगभग सभी पाठशालाओं में कमरे की दीवारों पर काले रंग से पुते हुए रूप में सरलता से देखा जा सकता है। ये सामान्यत: आयताकार रूप में तथा कमरे की दीवार की लम्बाई-चौड़ाई, जिस पर श्यामपट्ट बनाना है, का ध्यान रखते हुए बनाया जाता है। इनकीलम्बाई-चौड़ाई प्राय: 4’x6′ के आयताकार रूप में होती है। इनके अतिरिक्त चल श्यामपट्ट भी होते हैं, जिन्हें किसी भी स्थिति में समायोजित किया जा सकता है।

कमरे की दीवारों पर श्यामपट्ट बनवाना स्थान तथा व्यय की बचत दोनों ही दृष्टियों से सुविधाजनक होने के कारण बहु प्रचलित हैं। जैसे आजकल शीशे के भी पट्ट आने लगे हैं जो महँगे भले ही हों एक लम्बी अवधि तक स्थायी रूप में काम में आने वाले होते हैं। इनका रंग सामान्यतः हरा, काला या हल्का आसमानी भी हो सकता है। काठ या शीशे के बने हुए श्याम या हरित या आसमानी पट्ट चल (सुबाह्य-Portable) अथवा नियत (Fixed) दोनों ही प्रकार के हो सकते हैं।

श्यामपट्ट की आवश्यकता एवं उपयोग (Need and Utility of Black Board)

लिखने का यह हरित या श्याम या किसी भी गहरे रंग का जिस पर सफेद तथा रंगीन चॉक या खड़िया सरलता से दिखाई दे सके, शिक्षक का सबसे बड़ा साथी तथा सहारा है। इसकी गिनती भले ही सहायक साधनों के अन्तर्गत की जाती हो, परन्तु गहराई से सोचा जाय तो यह एक ऐसा साधन है, जिसके अभाव में शिक्षक का काम चल ही नहीं सकता। अतः इसे शिक्षण का आवश्यक साधन कहा जाय तो अनुचित नहीं होगा।

श्यामपट्ट की उपयोगिता के प्राय: दो रूप हैं-

  1. पाठ्यांश को समझाने की दृष्टि से।
  2. पठित अंश का सारांश लिखने हेतु।

इन दोनों ही दृष्टियों से श्यामपट्ट की उपयोगिता को आगे स्पष्ट किया जा रहा है:-

1. पाठ्यांश को समझाने की दृष्टि से श्यामपट्ट की उपयोगिता

शिक्षण-विषय कोई भी क्यों न हो, उसमें कुछ ऐसे क्लिष्ट अंश होते ही हैं, जिन्हें मौखिक रूप से समझाना बहुत ही कठिन अथवा यों कहिए कि कभी-कभी तो असम्भव हो जाता है। उदाहरण के रूप में

भाषायी ध्वनियों, रूपों तथा अर्थों को समझाने में– शिक्षक ध्वनियों के रूप को श्यामपट्ट पर लिखकर उनका शुद्ध उच्चारण अपने विद्यार्थियों को बता सकता है और उनका अभ्यास भी करा सकता है। इसी प्रकार यदि पाठ्यांश को पढ़ते समय कोई विद्यार्थी किसी शब्द का अशुद्ध उच्चारण करता है; यथा– ‘सर‘ का ‘शर‘ अथवा ‘शंकर‘ का ‘ संकर‘ पढ़ता है तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है, क्योंकि वर्ण का रूप बदल जाने से शब्दों का अर्थ बदल जाता है। ऊपर के शब्दों में ही ‘सर’ का अर्थ ‘तालाब‘ है तो ‘शर’ का अर्थ ‘बाण‘।

इसी प्रकार ‘शंकर’ का अर्थ ‘शिवजी‘ है तो ‘संकर’ का अर्थ दो विजातीय तत्त्वों से मिलकर बना तीसरा उत्पाद है, अन्तर ‘गृह’ तथा ‘ग्रह’ में भी है। ऐसे बहुत से शब्द हैं, जहाँ यह अर्थ का अनर्थ सम्भव है। ऐसी स्थिति में शिक्षक दोनों-शुद्ध शब्द तथा उसके उच्चारण की दृष्टि से अशुद्ध उच्चारित शब्द को श्यामपट्ट पर लिखकर उनके अन्तर को स्पष्ट करने के पश्चात् उस शब्द के उच्चारण को भी सही करा सकता है तथा उस जैसे ही अन्य शब्दों को श्यामपट्ट पर लिखकर उनका उच्चारण अभ्यास भी करा सकता है।

इसी प्रकार शिक्षक विद्यार्थियों की लिखित अभिव्यक्ति में वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों का कारण तथा नियम बताकर उनका निवारण भी करा सकता है। वाक्यों के गठन में भी शब्दों का स्थान बदल जाने से भी अर्थ बदल जाया करते हैं। इसका उदाहरण भी श्यामपट्ट पर लिखकर समझाया जा सकता है। इसी प्रकार कठिन शब्दों के अर्थ, कठिन स्थलों आदि को समझाने तथा उनका अर्थ लिखाने में भी श्यामपट्ट बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।

शुद्ध विज्ञानों विभिन्न विषयों– गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान, सामान्य विज्ञान आदि तथा सामाजिक विज्ञानों के विभिन्न विषयों– इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, सामाजिक विज्ञान आदि जितने भी विषय हैं-उनको समझाएँ, किसी दृष्टि से किसी न किसी रूप में श्यामपट्ट की उपयोगिता होती ही है; यथा-

गणित में– कठिन प्रश्नों को हल करने अथवा नियम एवं सूत्र आदि समझाने में श्यामपट्ट के बिना गणित पढ़ाना सम्भव ही नहीं।

भौतिक विज्ञान में– विभिन्न उपकरणों के चित्र बनाने तथा छात्रों द्वारा उनका अभ्यास कराने में।

रसायन विज्ञान में– समीकरणों को सन्तुलित करने तथा कराने में।

जीव विज्ञान में– आँख, कान, नाक आदि अधिक समय न लेने वाले छोटे-छोटे चित्रों के माध्यम से पाठ को समझाने में।

सामान्य विज्ञान में– पढ़ाये जाने वाले पाठ्यांश से सम्बन्धित कठिन अंशों को समझाने में।

इतिहास में– किसी वंश विशेष की वंशावली लिखकर समझाने में सामान्य विशेष का रेखाचित्र खींचकर बताने, जन्म परिचय देने आदि में।

भूगोल में– किसी स्थान विशेष का रेखाचित्र खींचकर उसका-विस्तार, धरातल, वर्षा, उपज, खनिज पदार्थ, नदियों आदि के नाम, जिलेवार स्थिति आदि को समझाने तथा ज्वालामुखी आदि चित्र खींचकर बताने में।

नागरिक शास्त्र में– नियम बगैरह लिखने, जनसंख्या बगैरह लिखने, राज्यों की राजधानियों, प्रसिद्ध स्थानों आदि का नाम लिखकर समझने आदि में।

सामाजिक विज्ञान में– ऊपर के विषयों से सम्बन्धित उन सभी बातों को जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है-उन्हें समझाने; स्थान विशेष के रहन सहन, खान-पान आदि को स्पष्ट करने में।

अर्थशास्त्र में– तुलनात्मक दृष्टि से दण्ड-चित्र बनाकर दो स्थानों, व्यवसायों आदि की प्रगति या अवनति को स्पष्ट करने आदि में।

श्यामपट्ट जैसा भी हो कक्षा में उपलब्ध हो उस पर पहले सुन्दर तथा सुपाठ्य अक्षरों में उस सामान्य जानकारी- विद्यालय कक्षा कालांश विषय, प्रकरण आदि को लिख दीजिये, जिसका उल्लेख हमने पाठ योजना के अन्तर्गत किया है। पुनः एक क्षैतिजीय सीधी रेखा खींचकर, श्यामपर की क्षैतिजीय (Horizontal) लम्बाई परियथेष्ट है तो उसे तीन भागों में यदि कुछ और अधिक है तो दो भागों में बाँट दीजिये। यदि श्यामपट्ट की लम्बाई कम है तो उसको यथावत् रहने दिया जाय।

इस प्रकार श्यामपट्ट के ये दोनों भाग बराबर के भी हो सकते हैं अथवा दाईं ओर का भाग तथा बाईं ओर का भाग अर्थात् 2: 1 में भी बाँटा जा सकता है। दाईं ओर के आधे या एक तिहाई भाग के ऊपर श्यामपट्ट कार्य (Black- board work) लिख दिया जाय तथा शिक्षक के बाईं ओर के दो तिहाई भाग पर श्यामपट्ट सार (Blackboard summary) यदि उचित समझें तो लिख दिया जाय; अन्यथा कोई आवश्यकता नहीं है।

इतना करने के पश्चात् जिस बात को समझाने के लिये छोटे-छोटे चित्रों की बनाने की आवश्यकता पड़े, उन्हें उसी भाग में बनाया जाय; ताकि जो कुछ समझाना है उसे समझाने के पश्चात् उसे श्यामपट्ट सार लिखने से पूर्व मिटाया जा सके।

पाठ के किसी अंश को समझाने की दृष्टि से श्यामपट्ट के उपयोग से उन्हें यह स्पष्ट अवश्य कर दिया जाय कि शिक्षक पाठ्यांश को समझाने हेतु जो शब्द लिख रहा है अथवा चित्र बना रहा है, उन्हें उत्तर-पुस्तिका में उतारने की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है तो पाठ्यांश को भलीभाँति समझने की। इतना कुछ देने मात्र से विद्यार्थियों का ध्यान पाठ को समझने में अधिक होगा।

चाहिये भी यही, फिर भी कुछ विद्यार्थी ऐसे हो सकते हैं जो शिक्षक के कहने के उपरान्त भी अपनी उत्तर-पुस्तिकाओं में लिखना अधिक पसन्द करते हैं; न कि पाठ्यांश को समझना। ऐसे विद्यार्थियों पर शिक्षक नजर रखे और किसी अंश को समझते समय ही बीच-बीच में उनसे पूछता जाय कि उसने उन्हें क्या समझाया? ऐसा पूछने मात्र से वे सतर्क हो जायेंगे। वे ही नहीं, दूसरे विद्यार्थी भी स्वत: ही समझकर वैसा ही करने लगेंगे और समस्या सुलझ जायेगी।

यहाँ ध्यान में रखने की बात यह है कि-गणित आदि जैसे विषयों में प्रश्न को हल करके बताया जाय और वह उस भाग में सम्भव न हो तो उसे बाईं ओर के दो तिहाई भाग में भी हल करके समझाया जा सकता है, क्योंकि वहाँ पाठ का सारांश लिखाने की आवश्यकता उस रूप में नहीं होती जिस प्रकार अन्य वर्णन प्रधान विषयों में। कहने का आशय यह है कि नियमों की अपेक्षा विवेक तथा व्यावहारिक्ता से काम अधिक लिया जाय।

2. पठितांश का सार (Summary) लिखने में श्यामपट्ट की उपयोगिता

ऊपर, किसी भी विषय के पाठ्यांश को समझाने की दृष्टि से जो कुछ भी लिखा गया, उसके अतिरिक्त पठितांश का सार लिखाने की दृष्टि से ताकि विद्यार्थी पठितांश को घर पर या कभी भी दुहरा सकें तथा उसका अभ्यास कर सकें-भी श्यामपट्ट का उपयोग कम महत्त्वपूर्ण नहीं।

यहाँ, समझने की बात यह है कि श्यामपट्ट कार्य तथा श्यामपट्ट सार-लेखन में थोड़ा अन्तर है। जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया पाठ्यांश को सम्बन्धित कठिन शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों अथवा किसी कठिन अंश को समझाने की दृष्टि से श्यामपट्ट का जो उपयोग शब्दों आदि को लिखने, चित्र बनाकर पाठ्यांश को समझाने आदि की दृष्टि से किया जाता है। उसे श्यामपट्ट कार्य (Blackboard work) तथा पाठ्यांश को समझाने के पश्चात् कि पढ़ाया हुआ अंश विद्यार्थियों की समझ में किस सीमा तक आया-यह जानने की दृष्टि से जो बोधप्रश्न पूछे जाते हैं, उनके उत्तरों की संशोधित तथा सार रूप में यदि श्यामपट्ट पर लिख दिया जाय तो विद्यार्थी उसे अपनी उत्तर-पुस्तिकाओं में उतारकर, कभी भी घर पर या पाठशाला में दुहरा सकते हैं। इसी को श्यामपट्ट सार (Blackboard summary) कहते है।

श्यामपट्ट कार्य एवं श्यामपट्ट सार-लेखन में-इस अन्तर के अतिरिक्त कि श्यामपट्ट कार्य, पाठ्यांश को समझाने की दृष्टि से उपयोग में लाया जाता है तथा श्यामपट्ट-सार, पाठ को समझाने के पश्चात् उसका सार लिखने की दृष्टि से-एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह भी है कि श्यामपट्ट कार्य का सम्बन्ध केवल पाठ्यांश से सम्बन्धित शब्दों आदि को समझाने तक ही सीमित है।

इस दृष्टि से यह आवश्यक नहीं कि किसी एक ही उदाहरण या चित्र बगैरह के द्वारा कोई अंश विद्यार्थियों की समझ में आ जाय। किसी अंश को समझाने हेतु एक से अधिक शिक्षण युक्तियों का उपयोग करने की आवश्यकता भी हो सकती है तो किसी अंश को केवल एक ही युक्ति के उपयोग द्वारा समझाया जा सकता है।

यह भी हो सकता है कि किसी बात को समझाने में श्यामपट्ट कार्य की आवश्यकता ही न पड़े और उसे केवल मौखिक युक्तियों के उपयोग से ही विद्यार्थियों को आत्मसात करा दिया जाय भली प्रकार समझा दिया जाय।

पाठ्यांश को समझाने के पश्चात् अपवादस्वरूप गणित जैसे विषयों को छोड़कर प्राय: सभी विषयों में पाठ्यांश के सार की आवश्यकता होती ही है; ताकि विद्यार्थी उसे यथावश्यकता कभी भी दुहरा सकें। विवरण प्रधान विषयों में तो श्यामपट्ट सार लिखना एक अनिवार्य आवश्यकता है।

इस दृष्टि से सभी सामाजिक विज्ञानों तथा शुद्ध विज्ञानों में जहाँ सैद्धान्तिक पक्ष को समझाया जा रहा है। पठितांश का सार लिखाया ही जाना चाहिये।

पठितांश का सार लिखने में आने वाली सामान्य समस्याएं एवं उनका समाधान

पठितांश का सार लिखने के सम्बन्ध में कई स्वाभाविक समस्याएँ उठ सकती हैं। ऐसी ही कुछ समस्याओं का समाधान नीचे किया जा रहा है-

1. श्यामपट्ट सार कब और कैसे लिखा जाय?

प्रथम प्रश्न ‘कब’ से यहाँ आशय उस समस्या के समाधान से है जिसमें कुछ शिक्षक प्रशिक्षकों के अनुसार श्यामपट्ट सार सदैव पाठ को पढ़ाने के पश्चात् ही लिखाया चाहिये तो अन्य कुछ के अनुसार किसी भी पाठ के जितने भी शिक्षण बिन्दु हों उन्हें एक-एक करके समझाने के साथ-साथ ही लिखा जाना चाहिये।

दोनों ही स्थितियों पर यदि विचार किया जाय तो पाठ को समझाने के पश्चात् श्यामपट्ट सार लिखाया जाय तो कभी-कभी क्या, प्रायः ऐसा होता है कि शिक्षक या तो पूरा कालांश पाठ को समझाने में ही निकाल देता है अथवा कुछ अन्य कारणों से पूरा कालांश समाप्त हो जाता है और शिक्षक श्याम या प्रशिक्षणार्थी-श्यामपट्ट का सार लिखा ही नहीं पाते।

अब यदि दूसरी स्थिति पर विचार किया जाय कि और आप प्रश्न-कौशल को यदि पुन: पढ़े तो उसमें कई प्रकार से प्रश्नों का विश्लेषण किया गया है। वहाँ पर उपयोगिता के आधार पर शिक्षण की दृष्टि से दो प्रकार के प्रश्न बताये गये हैं- ये दो प्रकार हैं- विकासात्मक (Developmental) प्रश्न तथा मूल्यांकन (Evaluation) प्रश्न

मूल्यांकन प्रश्न पाठ को पढ़ाने के पश्चात् भी पूछे जाते हैं और पाठ्यांश के किसी अध्ययन बिन्दु को स्पष्ट करने के पश्चात् भी यह जानने के लिये कि अगले बिन्दु को पढ़ाने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि पहला बिन्दु किस सीमा तक विद्यार्थियों की समझ में आया? यदि नहीं आया तो उसे पुनः समझाने के पश्चात् ही अगले अध्ययन बिन्दु को समझाना ठीक रहता है।

इस प्रकार पाठ को समझाने के पश्चात् पूछे गये प्रश्नों को पाठोपरान्त मूल्यांकन अथवा पुनरावृत्ति या पाठ का पुनरावलोकन (Recapitulation) कहते हैं। इसी प्रकार किसी अध्ययन बिन्दु को समझाने के पश्चात् पाठ के बीच-बीच में पूछे गये प्रश्नों को पाठान्तर्गत मूल्यांकन या बोध (Knowledge) प्रश्न कहते हैं।

श्यामपट्ट सार (Blackboard summary) इन्हीं पाठान्तर्गत मूल्यांकन हेतु शिक्षक द्वारा पूछे गये प्रश्नों के विद्यार्थियों द्वारा दिये गये उत्तरों के संशोधित रूप के आधार पर ही लिखा जाना चाहिये। इसके प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में दो लाभ तो हैं हीं।

पहला यह कि ऐसा करने से किसी भी पाठ का सारांश अन्त में लिखाये जाने हेतु समय सीमा की समस्या भी नहीं उठती। दूसरे, व्यावहारिक दृष्टि से भी यही सही है, क्योंकि कोई भी बात विद्यार्थियों को समझाने के पश्चात् उसका मूल्यांकन इसलिये ठीक रहता है ताकि यदि कोई बात विद्यार्थियों की समझ में नहीं आयी हो तो उसे पुनः समझा दिया जाय तथा मूल्यांकन प्रश्नों के आधार पर उस अध्ययन बिन्दु का सार भी लिखा दिया जाय।

यदि दूसरे प्रश्न- कैसे?– पर विचार करें तो ‘कैसे‘ का उत्तर वही है, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया; अर्थात् पहले श्यामपट्ट पर पढ़ाये जाने वाले अध्ययन बिन्दु उसके क्रम (1, 2, 3 जो भी हो) को सुन्दर और सुपाठ्य अक्षरों तथा स्पष्ट भाषा के रूप में लिख दिया जाय। तत्पश्चात् उस अध्ययन बिन्दु को पाठ-योजनानुसार उपयुक्त युक्तियों का उपयोग करते हुए भलीभाँति विद्यार्थियों को समझाया जाय।

उसके पश्चात्, किसी पाठ्यांश के किसी अध्ययन बिन्दु को समझाने के बाद उस अध्ययन बिन्दु की मूल विषयवस्तु पर आधारित एक-दो अथवा आवश्यकतानुसार दो से अधिक ऐसे प्रश्न पूछे जायें जिनके आधार पर यह जाना जा सके कि विद्यार्थी उस अध्ययन बिन्दु को किस सीमा तक समझ पाये हैं?

विद्यार्थियों द्वारा दिये गये ये उत्तर अशुद्ध या अर्द्धशुद्ध भी हो सकते हैं और पूरी तरह शुद्ध होते हुए भी विस्तृत भी। ऐसी स्थिति में शिक्षक की कुशलता इसी बात में है कि वह विद्यार्थियों द्वारा दिये गये इस प्रकार के सभी उत्तरों को संशोधित कर सार रूप में बिन्दुवार श्यामपट्ट पर सुन्दर तथा सुपाठ्य अक्षरों एवं शुद्ध भाषा में लिख दे। साथ ही विद्यार्थियों को भी कह दे कि वे साथ-साथ ही लिखते जायें।

जब उस पूरे अध्ययन बिन्दु का सार श्यामपट्ट पर लिख दिया जाय तो स्वाभाविक है कि स्वयं लिखने तथा नकल करके लिखने में लिखने की गति में थोड़ा अन्तर होता ही है। परिणामतः जब प्रशिक्षणार्थी या शिक्षक श्यामपट्ट पर पूरे अध्ययन बिन्दु का सार लिखा चुका होगा तब भी विद्यार्थी उसे श्यामपट्ट पर देख-देख कर अपनी-अपनी पुस्तिकाओं में लिख रहे होंगे।

ऐसी स्थिति में शिक्षक/प्रशिक्षणार्थी, समय का सदुपयोग करते हुए जो विद्यार्थी लिख चुके हों उनकी पुस्तिकाओं को सहज रूप से उनके पास जाकर देख ले तथा श्यामपट्ट सार की नकल करने में विद्यार्थियों की वर्तनी, वाक्य गठन अथवा सुलेख आदि से सम्बन्धित जो कमियाँ रह गयी हों तो उनके सुधार हेतु सम्बन्धित विद्यार्थी को उचित मार्गदर्शन दे दे।

जब, सब विद्यार्थी अध्ययन बिन्दु के सार को लिख चुके हों जब कक्षा निरीक्षण को बन्द कर श्यामपट्ट सार को मिटा दें तथा श्यामपट्ट पर अगले अध्ययन बिन्दु को उसके क्रम के लिख दें। तत्पश्चात् ऊपर की क्रिया; अर्थात् अध्ययन बिन्दु की विभिन्न युक्तियों द्वारा समझानामूल्यांकन प्रश्न पूछनाअध्ययन बिन्दु का सार, सारगर्भित शब्दों में श्यामपट्ट पर लिखनाकक्षा के विद्यार्थियों का सहज निरीक्षण चलता रहे।

इस प्रकार जब सभी अध्ययन बिन्दुओं को भलीभाँति समझाकर उनका सार लिखा दिया जाय और यदि शिक्षक/प्रशिक्षणार्थी के पास कुछ समय शेष रहें तो वह उन विद्यार्थियों को लें कि जो बात उनकी समझ में न आयी हो उसे पुनः पूछ लें और यदि उसके पास अधिक समय शेष नहीं बचा हो तो पुनरावृत्ति के प्रश्नों के माध्यम से पाठ्यांश का पुनरावलोकन (Recapitulation) कर लिया जाय।

यहाँ पर समझने की बात यह है कि- पाठ्यांश तथा उसके अध्ययन बिन्दुओं के मूल्यांकन में जो मूल अन्तर है; वह यह है कि पाठान्तर्गत अर्थात् अध्ययन बिन्दु को मूल्यांकन से सम्बन्धित प्रश्न तथ्यों पर आधारित तथा श्यामपट्ट सार लिखाने की दृष्टि से पूछे जाते हैं तो पुनरावलोकन या पाठ की पुनरावृत्ति हेतु पूछे गये मूल्यांकन प्रश्न ठीक उसी प्रकार उद्देश्य आधारित (Objective based) होते हैं, जिस प्रकार शिक्षण के; अर्थात् शिक्षण तथा पाठोपरान्त मूल्यांकन-दोनों ही उद्देश्य आधारित (Objective based) होने चाहिये।

अन्त में यदि कोई पाठ पूरी तरह विवरण प्रधान है तथा उसमें बहुत अध्ययन बिन्दु नहीं है और यदि हैं भी तो परस्पर जुड़े हुए हैं ऐसी स्थिति में श्यामपट्ट सार पाठ के अन्त में भी अपवादस्वरूप विकसित किया जा सकता है।

2. श्यामपट्ट पर लिखते समय शिक्षक

विषय- सामान्य विज्ञान (General science)

अध्ययन बिन्दु– धातुओं तथा अधातुओं के लक्षण

मूल्यांकन प्रश्न– धातुओं तथा अधातुओं के अलग-अलग लक्षण क्या हैं?

श्यामपट्ट सार

  1. अधातुएँ भंगुर होती हैं, धातुएँ नहीं।
  2. धातुएँ गर्म करने पर शीघ्र गर्म तथा ठण्डी करने पर शीघ्र ठण्डी हो जाती हैं; अधातुएँ नहीं।
  3. धातुओं के गिरने पर एक अलग ही प्रकार की आवाज होती है, अधातुओं के गिरने पर नहीं।

विषय- नागरिक शास्त्र (Civics)

अध्ययन बिन्दु– राष्ट्रपति पद हेतु भारतीय सविंधान द्वारा निर्धारित योग्यताएँ

मूल्यांकन प्रश्न– राष्ट्रपति पद के लिये भारतीय संविधान के अनुसार क्या-क्या योग्यताएँ होनी चाहिये ?

श्यामपट्ट सार

  1. वह भारत का नागरिक हो!
  2. आयु-35 वर्ष पूरी कर चुका हो।
  3. लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो; तथा
  4. वह-संघ, राज्य या स्थानीय सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर कार्य न करता हो।

3. विवरण प्रधान पाठों का सार लेखन

विषय कोई भी क्यों न हो उसमें कुछ पाठ विवरण प्रधान भी हो सकते हैं। विवरण प्रधान पाठों का सम्बन्ध तथ्यों (Facts) के प्रस्तुतीकरण से अधिक होता है। यथाजीवन परिचय, आँकड़ों आदि को प्रस्तुत करना। ऐसे पाठों का सार लिखाने में शिक्षक-प्रशिक्षकों तथा प्रशिक्षणार्थियों का आग्रह यही रहता है कि पाठों का सार भी पूरे वाक्यों में ही लिखाया जाय।

यहाँ समझने की बात यह है कि-किसी भी पाठ का सारांश लिखाने का प्रयोजन-समय पड़ने पर पाठ के तथ्यों का पुनस्मरण करना है। इस दृष्टि से पूरे वाक्यों के न लिखने पर भी यदि सार वही अर्थ देता है जो पूरे वाक्यों में लिखने पर निकलता है तो अपने प्रयोजन (Purpose) की पूर्ति हो जाती है। चाहिये भी यही।

अतः जहाँ पूरे वाक्यों के बिना भी सार-लेखन सार्थक हो, वहाँ उसे उस रूप में भी लिखा जा सकता है। इसी को एक उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है- राजस्थान राज्य पाठ्य-पुस्तक मण्डल द्वारा प्रकाशित कक्षा-6 की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक के अध्याय 12- ‘हमारा राजस्थान‘ “राजस्थान के प्रशासनिक स्वरूप” के अन्तर्गत लिखा गया है- राज्य में संभागों व जिलों का विवरण इस प्रकार है-

जयपुर संभाग– इस संभाग में जयपुर, दौसा . . . . . . . . जिले हैं।

संभाग– इस संभाग में- जोधपुर जालौर . . . . . . . . जिले हैं।

अजमेर संभाग– इस संभाग में-भीलवाड़ा, टोंक . . . . . . . . जिले हैं।

. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

इसी प्रकार सातों संभागों तथा उनमें आने वाले जिलों का विवरण दिया गया है। यहाँ ‘संभाग’, ‘इस संभाग में’, ‘जिले हैं’-की बार-बार आवृत्ति सुनने में कानों को तथा देखने और लिखने में आँखों को कुछ खलती है। इस दृष्टि से इन्हीं तथ्यों को सार रूप में इस प्रकार भी लिखा जा सकता था-

प्रकरण– हमारा राजस्थान

अध्ययन बिन्दु– राजस्थान का प्रशासनिक स्वरूप

प्रशासनिक दृष्टि से राजस्थान में 33 जिले और उनके सात संभाग हैं। विवरण इस प्रकार है-

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संभाग

 जिले

1.      

जयपुर संभाग

 जयपुर, दौसा, सीकर, अलवर, झुंझुनू

2.      

जोधपुर संभाग

 जोधपुर, जालौर, पाली, बाड़मेर, सिरोही, जैसलमेर

3.      

भरतपुर संभाग

 भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर

4.      

अजमेर संभाग

 अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक, नागौर

5.      

कोटा संभाग

 कोटा, बुंदी, बांरा, झालावाड़

6.      

बीकानेर संभाग

 बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू

7.      

उदयपुर संभाग

 उदयपुर, राजसंमद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा,चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़

जहाँ तक संभागों तथा जिलों के क्रम का प्रश्न है। वह भी यदि भौगोलिक स्थिति के अनुसार होता तो और अच्छा रहता; यथाउदयपुर संभाग– डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, उदयपुर, राजसमन्द तथा चित्तौड़गढ़। संभागों का क्रम भी अकारादि क्रम में भी हो सकता था और भौगोलिक स्थिति के अनुसार भी।

ऐसा करने में न केवल सार लेखन सुन्दर लगता; अपितु शिक्षक/प्रशिक्षणार्थी का लकीर-लकीर न चलकर लकीर से हटकर चलकर सार-लेखन को आकर्षक तथा सुग्राह्य बनाने का चातुर्य भी झलकता। कहने का आशय यह है कि सार, सार रूप में भी हो तथा सार्थक भी। यही सार लेखन का कौशल है।

4. श्यामपट्ट पर सार

लेखन के समय बोला जाय या नहीं?– इस “शिक्षा विज्ञान” में प्रसंगवश और वर्तमान या भावी शिक्षकों में शैक्षणिक कुशलताओं के विकास हेतु जान-बूझकर हम इस बात का स्मरण कराते ही रहे हैं कि- शिक्षण, एक परिवर्तनशील प्रक्रिया है; न कि यान्त्रिक (Mechanical) प्रक्रिया, क्योंकि शिक्षण का सम्बन्ध क्षण-क्षण बदलने वाले सजीव विद्यार्थियों से है; न कि निर्जीव मशीनों से।

इस दृष्टि से शिक्षण सम्बन्धी प्रत्येक क्रिया में नियमों की अपेक्षा, परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन एक आवश्यक आवश्यकता है। यह परिवर्तनशीलता-श्यामपट्ट पर पाठ्यांश का सार लिखते समय भी उसी रूप में काम करती है जिस प्रकार शिक्षण की अन्य क्रियाओं में। अतः शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर पाठ का सार लिखते समय कभी-कभी बोलना आवश्यक हो जाता है तो कभी बोलने की आवश्यकता होती ही नहीं।

यदि शिक्षक की लिखावट ठीक नहीं है; अक्षरों की बनावट इतनी छोटी है कि पीछे बैठे विद्यार्थियों को कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं देता और वे अपने पड़ौसी साथी या शिक्षक से बार-बार पूछते हैं कि-अमुक शब्द के पश्चात् क्या लिखा है तो निश्चित रूप से कक्षा का अनुशासन भी भंग होता है तथा वे ठीक से लिख नहीं पाते। यह स्थिति केवल शिक्षक की अपनी कमियों के कारण ही आये- ऐसी बात नहीं है। कभी-कभी कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या अधिक होने पर भी ऐसा हो सकता है तो कभी श्यामपट्ट पर पड़ने वाली रोशनी के अभाव में भी।

चाहे वह कक्षा-कक्ष की स्थिति के कारण हो या आकस्मिक रूप से मौसम की खराबी अथवा बिजली वगैरह का समुचित प्रबन्ध न होने के कारण प्रकाश के अभाव में भी। ऐसी, तथा इसी प्रकार की अन्य स्थितियों में जब विद्यार्थी शिक्षक के द्वारा श्यामपट्ट पर सार लिखते समय, विद्यार्थी उसे ठीक से लिख नहीं पा रहे हों-लिखते समय बोलते जाना ठीक रहता है; ताकि विद्यार्थी आँखों तथा कानों-दोनों ही ज्ञानेन्द्रियों का समुचित उपयोग करते हुए पाठ्यांश के सार को भलीभाँति लिख सकें। ऐसी स्थिति में यदि विद्यार्थियों द्वारा वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ होती हैं तो शिक्षक उन्हें कक्षा-निरीक्षण के समय संशोधित कर सकता है।

यह भी सम्भव है कि ऐसी कोई स्थिति पनपे ही नहीं शिक्षक/प्रशिक्षणार्थी की लिखावट और सुपाठ्य हो और कक्षा में रोशनी की भी कोई कमी न हो। शिक्षक पाठ्यांश के सार को लिख रहा है तथा विद्यार्थी शान्तिपूर्वक उसकी नकल करके लिख रहे हैं तो ऐसी स्थिति में पाठ्यांश का सार शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर लिखते समय बोलने की कोई आवश्यकता नहीं है। आदर्श स्थिति तो वही है जिसमें सब कुछ भलीभाँति शान्तिपूर्वक शिक्षण कार्य चलता रहे। शिक्षक की शैक्षणिक कुशलता भी यही है।

5. श्यामपट्ट पर जो कुछ लिखा या चित्रित है, उसे कब मिटाया जाय?

कुछ शिक्षक अथवा शिक्षक प्रशिक्षणार्थी ऐसा भी करते हैं कि श्यामपट्ट पर किसी भी अध्ययन बिन्दु का सार लिखते समय जो कुछ लिखते या चित्र बगैरह पाठ्यांश को समझाने हेतु बनाते हैं, उसे तुरन्त मिटा देते हैं। यह भी ठीक नहीं।

हम बार-बार यही लिखते आये हैं कि किसी भी कार्य या शिक्षण-प्रक्रिया के अन्तर्गत की जाने वाली जितनी भी क्रियाएँ हैं उनका एक निश्चित प्रयोजन होता है- चाहे वह शब्दों का लिखना हो अथवा चित्र बनाना अथवा फिर पाठ्यांश का सार लेखन जब तक उस प्रयोजन की पूर्ति-चाहे वह श्यामपट्ट कार्य के रूप में हो अथवा पाठ्यांश का सार लेखन के रूप में तब तक उसे न मिटाना ही श्रेयस्कर है।

इस दृष्टि से यदि शब्दों की वर्तनी को श्यामपट्ट पर लिखकर शुद्ध कराना है तो उसे समझाने के पश्चात् मिटाकर ही अभ्यास कराना उचित रहेगा। इसी प्रकार यदि कोई चित्र बनाकर किसी बात को समझाया गया है तो विद्यार्थियों से पूछकर कि वह बात भलीभाँति उनकी समझ में आयी या नहीं-यदि समझ में आ गयी है तो उसे मिटा दिया जाय; अन्यथा उसे पुनः समझाया जाय। यह क्रम उस समय तक चलता रहे जब तक कि वह बात उनकी समझ में न आ जाय।

इसी प्रकार श्यामपट्ट पर पाठ्यांश का सार लिखते समय पूरे अध्ययन बिन्दु का सार विद्यार्थियों द्वारा लिख लिये जाने के पश्चात् ही उसे मिटाना ठीक रहेगा न कि एक-एक वाक्य को लिखाना और मिटा देना।

सार लिखते समय ध्यान में यह रखना भी आवश्यक है कि श्यामपट्ट पर जिस रूप में किसी बात को समझाने का प्रयास किया गया है उसे श्यामपट्ट सार लिखाने से पूर्व अथवा गणित जैसे विषयों में किसी नियम को समझाने के पश्चात् उसका अभ्यास कराते समय भी श्यामपट्ट कार्य के रूप में जो कुछ लिखा गया है, उसे मिटा देना ही इसलिये ठीक रहता है कि पाठ्यांश का सार लिखते समय शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों से पूछे गये प्रश्नों का उत्तर वे श्यामपट्ट पर देखकर नहीं; अपितु उन्होंने पाठ के अंश को जितना समझा है उस आधार पर अपनी समझ से ही हैं। यहाँ भी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए विवेक से काम लेने की आवश्यकता अधिक है।

6. श्यामपट्ट सार विद्यार्थियों से लिखाया जाय या नहीं?

यहाँ भी परिस्थिति विशेष को ध्यान में रखना आवश्यक है। यदि श्यामपट्ट पर वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को शुद्ध कराया जाना है अथवा गणित के किसी नियम को समझाकर उसका अभ्यास कराना है अथवा रसायन विज्ञान (Chemistry) में सूत्रों का लिखना अथवा समीकरणों का सन्तुलन कराना है तो विद्यार्थियों से अवश्य श्यामपट्ट कार्य कराया जाना चाहिये।

ऐसा करने से विद्यार्थियों की हिचक (Shyness) भी दूर होती है तथा उन्हें प्रोत्साहन भी मिलता है, परन्तु श्यामपट्ट सार लेखन में इसकी आवश्यकता नहीं है। श्यामपट्ट सार को तो शिक्षक या प्रशिक्षणार्थी स्वयं ही लिखे तो अच्छा है, परन्तु कुछ अपरिहार्य परिस्थितियाँ ऐसी भी हो सकती हैं जब शिक्षक श्यामपट्ट कार्य को करने अथवा पाठ्यांश का सार श्यामपट्ट पर लिखने में असमर्थ हो।

सम्भव है यह अपवादस्वरूप ही हो जब शिक्षक आँखों से नहीं देख पा रहा हो अथवा हाथ में चोट बगैरह अथवा किसी अन्य कारण से श्यामपट्ट कार्य करने तथा सार लिखने दोनों में ही असमर्थ हो। ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों से सहायता लेना सर्वथा उचित है, परन्तु इस कार्य में भी किसी एक ही विद्यार्थी से सहायता न लेकर उन सभी विद्यार्थियों को कार्य में बारी-बारी से समाकिया जाय जो इसे भलीभाँति कर सकते हो; अर्थात् जिनका श्यामपट्ट पर लेखन भी सुन्दर एवं आकर्षक हो तथा वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ भी न हों और यदि हों तो नहीं के बराबर। यहाँ भी विवेक से काम लेने की आवश्यकता है।

7. पाठ के सार को विद्यार्थी उसी समय लिखें या शिक्षणोपरान्त

पीछे भी एक ऐसी ही समस्या के समाधान के रूप में यह स्पष्ट किया गया है कि पठितांश का सार अध्ययन बिन्दु के समझने के पश्चात् प्रत्येक बिन्दु के साथ-साथ ही लिखा जाना चाहिये, न कि समूचे पाठ को समझने के उपरान्त, ऐसा क्यों? इसका भी तर्कसंगत उत्तर वहीं दिया गया है।

यहाँ समस्या दूसरी है। कुछ शिक्षक पाठ के किसी अध्ययन बिन्दु का सार लिखाते समय विद्यार्थियों को साथ-साथ न लिखने देकर उस बिन्दु का सार स्वयं के श्यामपट्ट पर लिख देने के पश्चात् ही लिखने को कहते हैं। यह ठीक नहीं, क्योंकि उस समय विद्यार्थी यदि निष्क्रिय बैठते हैं तो निश्चित रूप से कक्षा में अनुशासनहीनता आयेगी।

अतः श्रेयस्कर यही है कि-विद्यार्थी पहले शिक्षक द्वारा पूछे गये बोध प्रश्नों का उत्तर देने में सक्रिय रहते हैं और बाद में जब शिक्षक श्यामपट्ट पर विद्यार्थियों द्वारा बोध प्रश्नों के संशोधित उत्तर के रूप में सार को लिखें तो विद्यार्थियों को लिखने से रोकने की अपेक्षा उन्हें उस सार को लिखने देना चाहिये।

ऐसा करने से समय की भी बचत होती है तथा अनुशासनहीनता की भी समस्या नहीं आती, परन्तु पाठ को यदि श्यामपट्ट की सहायता से चित्र बनाकर अथवा कुछ लिखकर समझाया जा रहा है तो निश्चित और निर्विवाद रूप से शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर जो कुछ लिखा है या चित्रित है, उसे विद्यार्थियों द्वारा लिखने अथवा चित्र बनाने से उन्हें उस समय तक अवश्य रोका जाना चाहिये, जब तक कि वे पाठ के उस अंश को पूरी तरह समझ न लें।

ऐसा इसलिये किया जाना चाहिये कि यदि शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट पर कुछ लिखकर समझाया जा रहा है तो विद्यार्थियों का ध्यान पाठ्यांश को समझने पर केन्द्रित रहना चाहिये ताकि कुछ लिखने पर। दोनों क्रियाएँ एक साथ नहीं चल सकतीं।

ऐसी स्थिति में शिक्षक द्वारा श्यामपट्ट के उपयोग से पूर्व ही विद्यार्थियों को स्पष्ट कर देना चाहिये कि वे पहले पाठ को समझें तत्पश्चात् उनकी दृष्टि से जो कुछ उपयोगी होगा उसे लिखा दिया जायेगा। ऐसा कहने मात्र से विद्यार्थियों का ध्यान अध्ययन बिन्दु को समझने पर ही होगा; लिखने पर नहीं।

हाँ! शिक्षक ने यदि ऐसा कोई चित्र श्यामपट्ट पर बनाया है जो बाद में भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है तो उसे भी पाठ्यांश को समझाने के पश्चात् यदि शिक्षण में व्यवधान न पड़े तथा समय भी कम लगे तो बना रहने देना चाहिये। यदि समय अधिक लगे तो उसे श्यामपट्ट के उस भाग में जहाँ ‘श्यामपट्ट-कार्य’ लिखा है बने रहने देना चाहिये तथा पाठ को पढ़ाने के पश्चात् बनवा देना चाहिये अथवा गृहकार्य के रूप में पुस्तक में देखकर बनाने को कह देना चाहिये।

परिस्थिति के अनुसार जो भी ठीक हो-वही किया जाना चाहिये। यही शिक्षक की कुशलता है। इसी प्रकार की कुछ अन्य समस्याएँ भी हो सकती हैं। उन सभी का समाधान शिक्षक को स्वयं ही खोजना है। इसी में उसकी कुशलता है। बस दो तीन बातों का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिये-

  1. श्यामपट्ट पर जो भी क्रिया की जाय वह विद्यार्थियों की दृष्टि से उपयोगी हो।
  2. समय का पूरी तरह सदुपयोग हो।

ऊपर, श्यामपट्ट पर सार लेखन के सम्बन्ध में जो कुछ भी लिखा गया, उसकी सार्थकता तथा शिक्षक की कुशलता तभी सम्भव है जब श्यामपट्ट भी अच्छा हो, शिक्षक भी कुशल तथा श्यामपट्ट के उपयोग के समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाये। इन तीनों ही से सम्बन्धित मुख्य-मुख्य बातों को आगे सार रूप में लिखा जा रहा है-

अच्छे श्यामपट्ट की विशेषताएँ (Qualities of a Good Block Board)

किसी अच्छे श्यामपट्ट में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिये-

  1. यदि श्यामपट्ट लकड़ी का बना हुआ है तो वह इतना खुरदरा हो कि उस पर आसानी से लिखा जा सके; न कि इतना चिकना कि प्रयास करने पर भी उस पर कुछ न लिखा जा सका।
  2. श्यामपट्ट का रंग चाहे काला हो या हरा-इतना गहरा हो कि उस पर रंगीन या सफेद चॉकों से जो कुछ भी लिखा जाये अथवा चित्र बनाये जायें वे सभी विद्यार्थियों को स्पष्ट दिखाई दें।
  3. श्यामपट्ट ऐसे स्थान पर हो जहाँ पर प्रकाश के परावर्तन (Reflection) के कारण चमके नहीं।
  4. यदि श्यामपट्ट किसी स्थान विशेष पर नियत (Fixed) न होकर खिसकने वाले अथवा चल हो तो ऐसे स्थान पर रखना चाहिये जहाँ से सभी विद्यार्थी सरलता से देख सकें।
  5. प्रकाश (Light) के नियमों के अनुसार लिखने वाले की आँखों पर 90° या इससे कुछ अधिक का कोण बनाता हो तो अच्छा रहता है। इस दृष्टि से श्यामपट्ट विद्यार्थियों की बैठक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए न तो बहुत ऊँचा हो न बहुत नीचा।
  6. इन सभी दृष्टियों से न तो नियत पट्ट ही अधिक अच्छे रहते हैं और न ही छोटे आकार के। फिर भी यदि श्यामपट्ट बड़े आकार के हों तो उन्हें पीछे बताये गये ढंग से-‘श्यामपट्ट कार्य’ तथा ‘सार लेखन’ हेतु अलग-अलग भागों में बाँट दिया जाय।
  7. इसी प्रकार यदि खिसकाने वाले तो काम में लेने से पूर्व उन्हें विद्यार्थियों की दृष्टि से सुविधाजनक स्थान पर नियत कर दिया जाय।
  8. इसी प्रकार यदि आकार में छोटे हों तो विवेकानुसार उनको उपयोग किया जाय।

श्यामपट्ट के उपयोग में सावधानियाँ (Precautions is Use of Block Board)

श्यामपट्ट का उपयोग करते समय शिक्षक को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये-

  1. श्यामपट्ट पर जो कुछ भी लिखा जाये, वह सुन्दर एवं सुडौल अक्षरों में तथा भाषायी दृष्टि से स्पष्ट होना चाहिये।
  2. पाठ के किसी अंश को समझाने की दृष्टि से यदि श्यामपट्ट पर चित्र बनाये जायें तो वे देखने में सुन्दर तथा आकर्षक होने चाहिये।
  3. श्यामपट्ट पर लिखते समय उसके रंग के विपरीत रंग वाली चॉकों का प्रयोग किया जाये; ताकि विद्यार्थियों को सब कुछ स्पष्ट दिखाई दे सके।
  4. श्यामपट्ट पर लिखी गयी बातों की उपयोगिता न रहने पर उन्हें झाड़न से ही मिटाना चाहिये न कि हाथ से।
  5. श्यामपट्ट पर यदि विद्यार्थियों द्वारा कुछ लिखवाना है तो वह शब्दों तक ही सीमित रहे तो अच्छा है ताकि समय का सदुपयोग हो सके; दुरुपयोग न हो।
  6. श्यामपट्ट पर सार लिखाते समय छोटे-छोटे; किन्तु सार्थक एवं सारगर्भित वाक्यों का ही उपयोग किया जाय।
  7. निर्धारित समय का अधिकांश भाग पाठ को समझाने में व्यतीत किया जाय न कि केवल पाठ का सार लिखवाने में।
  8. लिखने की गति न तो इतनी अधिक धीमी ही हो कि समय बहुत लगे और न ही इतनी तेज कि जो कुछ लिखा जाये, वह स्पष्ट दिखाई ही न दे।
  9. पाठ का सारांश लिखाते समय शिक्षक का ध्यान पूरी तरह केवल श्यामपट्ट पर ही न रहे, अपितु उसे बीच-बीच में बिना किसी व्यवधान के विद्यार्थियों पर भी नजर रखनी चाहिये; ताकि यह देखा जा सके कि वे लिख भी रहे हैं या नहीं?
  10. पाठ का सार लिखने से पूर्व, पाठ को समझाने हेतु जो कुछ भी लिखा गया है, उसे मिटा देना चाहिये।
  11. श्यामपट्ट पर शिक्षक द्वारा पाठ का सार लिखने तथा विद्यार्थियों द्वारा उसकी नकल करने में समय का जो अन्तराल हो उसे कक्षा-निरीक्षण में लगाना चाहिये। कक्षा- निरीक्षण सहज हो न कि मात्र औपचारिकताओं का निर्वाह।
  12. श्यामपट्ट पर लिखते समय यदि कुछ बोलने की आवश्यकता पड़े तो ही बोलना चाहिये अन्यथा नहीं।

इसी प्रकार परिस्थितियों के अनुरूप यदि कहीं कोई परिवर्तन करना पड़े तो अवश्य किया जाना चाहिये; परन्तु विवेकपूर्वक।

अन्त में, यह जानना भी आवश्यक है कि उपर्युक्त सभी बातों को ध्यान में रखते हुए शिक्षक अथवा प्रशिक्षणार्थी ने जिस प्रकार श्यामपट्ट का उपयोग किया है- वह विद्यार्थियों की दृष्टि से कितना प्रभावी अथवा अप्रभावी रहा? क्योंकि, श्यामपट्ट का उपयोग भी एक कौशल है तथा शिक्षक की उस कुशलता तथा उसमें कुशलता का विकास उस समय तक सम्भव नहीं, जब तक कि श्यामपट्ट कार्य करने तथा सार लिखने की दृष्टि से उसकी अच्छाइयों या कमियों का पता न लगाया जाय तथा सुधार न किया जाय।

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