अधिगम का अर्थ है- सीखना अथवा व्यवहार में परिवर्तन। यह परिवर्तन अनुभव के द्वारा होता है। जीवन की विभिन्न क्रियाओं को किस प्रकार किया जाये यह सीखना है। संकुचित अर्थ में अधिगम केवल ज्ञान प्राप्ति की क्रिया है और व्यापक अर्थ में सीखना घर पर भी होता है और बाहर भी। यह एक मानसिक क्रिया है, जिसे व्यक्ति जान-बूझकर अपनाता है, जिससे वह अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त सके।
अधिगम या सीखने के विधियाँ
अधिगम या सीखने के प्रमुख प्रकार अथवा विधियाँ (Methods or Kinds of Learning) निम्नलिखित हैं-
1. बौद्धिक अधिगम (Intellectual learning)
सीखने का यह तरीका बौद्धिक विकास तथा ज्ञान अर्जित करने की समस्त क्रियाओं पर प्रयुक्त होता है। बालक के मानसिक विकास के साथ-साथ उसमें तर्कशक्ति बढ़ती है। संवेदन गति (Sensations and perceptions) से प्राप्त होने वाले ज्ञान को विकास का अर्जन बौद्धिक अधिगम में सहायक है। बौद्धिक क्रियाओं द्वारा भी अधिगम होता है, जैसे-तर्क करना, सारांश लिखना, निबन्ध लिखना, भाषा सीखना तथा गणित सीखना आदि बौद्धिक अधिगम हैं।
2. संवेदात्मक-गति अधिगम (Sensory motor learning)
गति-सीखना या गत्यात्मक अधिगम (Motor-learning) का तात्पर्य ऐसे सीखने से है, जिसमें कर्मेन्द्रिय (Motor organ) का हाथ अधिक होता है। इसे पेशीय सीखना भी कहते हैं। गति-सीखना में ज्ञानेन्द्रिय (Sense organ) का भी हाथ होता है। यद्यपि कर्मेन्द्रिय (Motor-organ) का हाथ अधिक होता है। इसी कारण इसे संवेदी-गति सीखना (Sensory-motor learning) भी कहा जाता है। कौशलों (Skills) का अधिगम इसी से होता है; जैसे– टाइप करना सीखना, साइकिल चलाना सीखना तथा तैरना सीखना आदि।
इस तरह के सीखने में पेशियों का हाथ (Muscles) अधिक होता है। इसमें शब्दों का महत्त्व उतना नहीं होता है, जितना कि मौखिक सीखना (Verbal learning) में होता है। चैपलिन (Chaplin) के अनुसार-“गति-सीखना का अर्थ कौशलों या आदतों का सीखना है, जिसमें निहित प्रक्रियाएँ मुख्यतः पेशीय होती हैं अथवा जिनका वर्णन पेशीय या ग्रन्थीय शब्दों में किया जाता है।”
संवेदात्मक-गति अधिगम (Sensory motor learning) में ज्ञानेन्द्रियाँ (Sense organ) तथा कर्मेन्द्रियाँ (Motor-organ) दोनों सहायक होती हैं; जैसे– टाइप सीखते समय पेशियों के साथ-साथ आँखें भी इसमें सहायक होती हैं। इसी तरह गाड़ी चलाना, हस्तलिपि सीखना (Handwriting learning) आदि संवेदी गति सीखने के उदाहरण हैं।
इस प्रकार कौशलों (Skills) का अर्जन (Acquisition) दैनिक जीवन में कुछ इस ढंग से होता रहता है कि उसका मात्रात्मक अध्ययन नियन्त्रित परिस्थितियों में करना कठिन है। इसलिये अन्य प्रकारों की अपेक्षा संवेदात्मक गति अधिगम (Sensory motor learning) का मापन अधिक जटिल है।
सामान्य रूप से किसी कौशल के अर्जन का मापन प्रतिक्रिया की शुद्धता (Accuracy) के प्राप्तांक के आधार पर किया जाता है। भूल-भुलैया सीखने में भूलों का विश्लेषण ही प्राप्तांक का काम करता है; जैसे-जैसे भूल-भुलैया सीखने का कौशल बढ़ता जाता है, भूलों की संख्या घटती जाती है।
भ्रामी अनुसरण सीखना (Pursuit rotary learning) संवेदात्मक गति अधिगम (Sensory motor learning) है। यहाँ प्रयोज्य को लक्ष्य पर पहुँचने में जो समय लगता है उसे ही सीखने का मापदण्ड माना जाता है। सीखने के दूसरे प्रकारों की तरह संवेदात्मक-गति अधिगम (Sensory motor learning) पर भी अनेक कारकों का प्रभाव पड़ता है जिनमें प्रमुख हैं- प्रेरणा, परिणाम का ज्ञान (Knowledge of results), अभ्यास, सीखने की विधि आदि !
3. मौखिक सीखना (Verbal learning)
मौखिक सीखना, सीखने का एक प्रकार है, जिसमें व्यक्ति शब्दों (Words), प्रतीकों (Symbols) तथा अंकों (Digits) आदि को सीखता है। इस तरह का सीखना मुख्य रूप से मनुष्य में देखा जाता है। इसलिये इसे सीखना (Hyman learming) भी कहते हैं। इसमें कभी तो उत्तेजना और कभी प्रतिक्रिया के रूप में शब्द सीखे जाते हैं।
मॉर्गन तथा किंग (Morgan and King) के अनुसार, “भौखिक सीखना वह सीखना है, जिसमें शब्द उत्तेजनाओं या प्रतिक्रियाओं के रूप में निहित होते हैं।”
इसी प्रकार, चैपलिन (Chaplin) के अनुसार- “मौखिक-सीखने का तात्पर्य सूचियों या शब्दों, निरर्थक पदों आदि के सीखने से हैं।”
- मौखिक सीखना प्रायः गति सीखना (Motor learning) का विपरीत रूप है। मौखिक-सीखने में ज्ञानेन्द्रिय (Sense organs) का हाथ अधिक रहता है। गति-सीखना की सामग्री (Materials) है-भूल-भुलैया (Maze) तथा भ्रामी अनुसरण पदांक (Rotary pursuif tracking) आदि।
- मौखिक सीखना के अन्तर्गत निरर्थक शब्दों का व्यवहार सामग्री के रूप में अधिक प्रयोग किया जाता है। निरर्थक पद ऐसे शब्द को कहते हैं, जिसके अक्षर असम्बद्ध होते हैं।
- मौखिक सीखना अनेक कारकों (Factors) पर आधारित होता है जैसे-व्यक्ति की बुद्धि, रुचि, अभ्यास आदि वैयक्तिक कारकों के साथ-साथ सीखने की विधियों का प्रभाव इस पर गहरे रूप से पड़ता है।
मौखिक सीखने की विधियाँ (Methods of verbal learning)
मौखिक सीखने की निम्नलिखित चार प्रमुख विधियाँ हैं-
(i) मुक्त पुनः स्मरण विधि (Free recall method)
मौखिक सामग्री को सीखने की यह एक सरल विधि है। इसी कारण इस विधि को सरल पुनरुत्पादन विधि (Simple reproduction method) भी कहा जाता है। इस विधि में निरर्थक पदों की एक सूची तैयार की जाती है। फिर, सूची के प्रत्येक पद को एक यन्त्र जैसे-एपरचर (Apperture) या मेमोरीड्रम (Memorydrum) द्वारा एक-एक करके प्रयोज्य को दिखलाया जाता है।
अन्त में प्रयोज्य से दिखलाये गये पदों का प्रत्यावाह लिया जाता है। इसी तरह, प्रयत्न तब तक जारी रखे जाते हैं, जब तक कि प्रयोज्य पूरी सूची के निरर्थक पदों को सीख नहीं लेता है। यहाँ प्रयोज्य को इतनी स्वतन्त्रता रहती है कि वह सूची के पदों को किसी भी क्रम में स्मरण कर सकता है। इसलिये, इस विधि को मुक्त पुनः स्मरण विधि (Free recall method) कहते हैं।
इस विधि का सबसे बड़ा गुण या विशेषता इसकी सरलता है। यहाँ मौखिक उत्तेजना तथा मौखिक प्रतिक्रिया के बीच साहचर्य (Association) या सम्बन्ध अधिक आसानी से स्थापित हो जाता है। इस विधि का दूसरा गुण यह है कि इसमें प्रयोगकर्ता को यह जानने में सुविधा होती है कि सीखी गयी प्रतिक्रिया किस रूप में संगठित हो पायी है?
(ii) क्रमिक पुनरुत्पादन विधि (Serial reproduction method)
इस विधि में भी मुक्त पुनः स्मरण विधि (Free recall method) की तरह सूची के सभी निरर्थक पदों को एक-एक करके मन्त्र द्वारा प्रयोज्य को दिखलाया जाता है। प्रयास किया जाता है कि प्रत्येक पद को दिखलाने की समय-अवधि समान हो। सभी पदों को दिखलाने के बाद प्रयोज्य से कहा जाता है कि वह प्रत्येक पद को उसी क्रम में बतलाये, जिस क्रम में उसे सूची में दिखलाया गया हो।
अत: यहाँ प्रयोज्य को दो तरह के काम करने पड़ते हैं। एक तो यह कि उसे प्रत्येक पद को ठीक-ठीक सीखना पड़ता है और दूसरा यह कि उसे प्रत्येक पद के क्रमिक स्थान (Serial position) को भी सीखना पड़ता है।
स्पष्ट है कि यह विधि मुक्त पुनः स्मरण विधि (Free recall method) की अपेक्षा अधिक कठिन है। निरर्थक पदों की एक सूची को मुक्त पुनः स्मरण विधि तथा उसी के समान दूसरी सूची को क्रमिक पुनरुत्पादन विधि (Serial reproduction method) द्वारा सिखलाये जाये तो दूसरी विधि में अधिक प्रयत्नों की आवश्यकता होगी।
(iii) युगल सहचारी विधि (Paired associate method)
मौखिक सामग्री को सीखने की यह विधि पहली दो विधियों से भिन्न है। यहाँ शब्दों या पदों के अनेक युग्म (Pairs) बनाये जाते हैं। युग्म के पहले शब्द को उत्तेजना शब्द (Stimulus word) तथा दूसरे शब्द को प्रतिक्रिया शब्द (Response word) कहते हैं। सभी युग्म (Pairs) मेमोरीड्रम (Memorydrum) अथवा एपरचर (Apperture) द्वारा बारी-बारी से एक निश्चित समय अवधि तक प्रयोज्य को दिखलाये जाते हैं।
फिर, प्रयोज्य को उत्तेजना पद दिखलाकर उससे सम्बद्ध प्रतिक्रिया पद का प्रत्यावाह करने के लिये कहा जाता है। इसी तरह प्रत्येक उत्तेजना पद को दिखलाकर या कहकर प्रतिक्रिया पद का प्रत्यावाह लिया जाता है। इस तरह एक प्रयत्न पूरा हो जाता है। आवश्यकतानुसार प्रयत्न को तब तक जारी रखा जाता है जब तक कि प्रयोज्य सूची के सभी प्रतिक्रिया पदों का प्रत्यावाह ठीक-ठीक नहीं कर लेता है।
(iv) अनुबोधन एवं पूर्वाभास-विधि (Method of prompting and anticipation)
मौखिक सामग्री को सीखने की इस विधि में निरर्थक पदों या सार्थक शब्दों की सूची पहले तैयार की जाती है। सूची में एक पद या शब्द अतिरिक्त रखा जाता है, जिसे तटस्थ पद (Neutal items) कहते हैं। मेमोरीड्रम या कागज के एपरचर द्वारा प्रत्येक शब्द या पद को दो-दो सेकण्ड तक प्रयोज्य को दिखलाया जाता है। फिर तटस्थ पद दिखला दिया जाता है या कह दिया जाता है और उसके बाद वाले पद या शब्द को बतलाने के लिये प्रयोज्य से कहा जाता है।
यदि उसका प्रत्यावाह सही होता है तो सही का चिह्न (√) और गलत होने पर गलत का चिह्न (x) लिखा जाता है। प्रयोज्य का प्रत्यावाह सही हो या गलत हर हाल में उसे वह शब्द या पद दिखला दिया जाता है और उसके बाद वाले शब्द या पद को बतलाने के लिये कहा जाता है। इस तरह, प्रयत्न तब तक जारी रखे जाते हैं जब तक कि प्रयोज्य सभी शब्दों या पदों को सही-सही नहीं सीख लेता है।
इस विधि का एक गुण या विशेषता यह है कि इसमें प्रयोज्य को सीखते समय प्रबलन (Reinforcement) मिलता रहता है। प्रयोगकर्त्ता द्वारा अनुबोधन (Prompting) वास्तव में प्रेरणा या प्रबलन का काम करता है। इस कारण यह विधि युगल सहचारी विधि तथा क्रमिक पुनरुत्पादन विधि की तुलना में अधिक सरल है।
4. निरीक्षण से सीखना (Learning by observation)
निरीक्षण द्वारा सीखने में ध्यान को केन्द्रित करना पड़ता है। निरीक्षण पद्धति के अन्तर्गत छात्रों को मूर्त वस्तुओं, स्थानों तथा प्रयोगों का निरीक्षण करवाना चाहिये। शिक्षा के क्षेत्र में निरीक्षण पद्धति का लाभ उठाने के लिये सीखने की क्रिया सर्वप्रथम मूर्त वस्तुओं से प्रारम्भ करनी चाहिये। बालकों को सिखाने के लिये शिक्षकों को प्रतीकों का प्रयोग नहीं करना चाहिये क्योंकि बालकों का ध्यान मूर्त वस्तु पर शीघ्र केन्द्रित होता है। अमूर्त, अशरीरी एवं सूक्ष्म वस्तुओं पर वे अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते।
5. अन्तर्दृष्टि अथवा सूझ से सीखना (Learning through insight)
निरीक्षण की अन्तिम क्रिया “सूझ” समझी जाती है। निरीक्षण का अर्थ किसी वस्तु-विशेष पर ध्यान को पूर्णरूपेण केन्द्रित करके उसके सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना है, जबकि सूझ का अभिप्राय है कि निरीक्षण क्रिया का अन्त सफलतापूर्वक हो गया है और वस्तु-सम्बन्धी उपयुक्त जानकारी प्राप्त हो गयी है। वह मानसिक संगठन जिसके द्वारा एक समस्या सहसा अपने सभी सम्बन्धों के साथ स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ने लगती है, सूझ कहलाती है।
लगभग सभी सीखने की क्रियाओं में सूझ की आवश्यकता पड़ती है, विशेष रूप से उस समय जबकि समस्या के सर्वांगीण स्वरूप को समझने में बाधा उपस्थित हो। सूझ व्यक्ति को उस समय सहायता देती है जब गन्तव्य तक पहुँचने में विविध बाधाएँ आती हैं। उस समय किसी वस्तु-विशेष सम्बन्धी ज्ञानोपार्जन करने में बाधाओं को हटाकर सूझ सीखने में सहायता पहुँचाती है।
6. अनुकरण द्वारा सीखना (Learning by imitation)
सीखना अनुकरण द्वारा भी होता है। मनुष्य तथा पशु अनुकरण द्वारा ही सीखते हैं। यह पशु तथा शिशुओं में अधिक मात्रा में पाया जाता है। अनुकरण में दूसरे व्यक्तियों के द्वारा किये गये कार्यों की पुनरावृत्ति की जाती है। सदैव उस व्यक्ति के कार्यों का अनुकरण किया जाता है, जो अनुकरणकर्त्ता से अधिक श्रेष्ठ होता है। अनुकरण प्राय: जान-बूझकर और कभी-कभी अनजान में भी होता है। हम बिना जाने ही अज्ञात रूप से दूसरों का अनुकरण करते हैं; जैसे– किसी कौशल को प्राप्त करने में लिखने में तथा चित्र बनाना सीखने आदि सभी में चेतन अनुकरण किया जाता है।
7. प्रयत्न एवं त्रुटि से सीखना (Learning by trial and error)
इसे “सफल प्रतिक्रियाओं के चुनाव द्वारा सीखना” (Learning by selection of the successful variation) भी कहते हैं। इस विधि में सफल प्रतिक्रियाओं को दोहराया जाता है तथा असफल प्रतिक्रियाओं को समाप्त कर दिया जाता है। प्रयत्न एवं त्रुटि द्वारा सीखने में वे प्रक्रियाएँ जो सीखने वाले को सफल प्रतीत होती है। उसे कार्य के लिये उत्तेजना देने वाली होती हैं, दुहराई जाती हैं तथा जो प्रतिक्रियाएँ असफल होती हैं अथवा बाधा उपस्थित करने वाली होती हैं, वे समाप्त कर दी जाती हैं।
उदाहरण के लिये; जैसे- यदि कोई बालक कागज का हवाई जहाज बनाता है, उसके इस कार्य के लिये यदि उसकी सराहना की जाती है तो वह उस कार्य की पुनरावृत्ति करेगा, उसमें सुधार करेगा। इसके विपरीत, यदि उसे दूसरों से प्रोत्साहन नहीं मिलेगा और न उसकी आलोचना ही कोई करता है तो वह उस कार्य को छोड़ देगा तथा दूसरे कार्यों के करने में रुचि लेगा।
प्रयत्न और त्रुटि द्वारा सीखने में विद्यार्थी जब जानता है कि समस्या की क्या आवश्यकता है? तो वह अपने गन्तव्य के बारे में भली-भाँति समझ जाता है किन्तु उसे कैसे प्राप्त किया जाय, इसे वह नहीं जानता ? इसलिये समस्या को सुलझाने के लिये, उस परिस्थिति सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये वह प्रयास करता है। जब वह उन प्रयासों में सफल अथवा असफल होता है तो कार्य-प्रणाली की यह दिशा निश्चित हो जाती है कि असफल प्रयासों को छोड़ दिया जाय और सफल की पुनरावृत्ति करके समस्या के हल को प्राप्त किया जाय।
प्रयत्न और त्रुटि से सीखने की विधि व्यर्थ की विधि नहीं है वरन् सुधार की विधि है। जब कभी भी सीखने वाले के समक्ष अपने लक्ष्य प्राप्ति में कोई समस्या उठ खड़ी होती है और उसका निदान वह नहीं जानता तो उसे यही विधि अपनानी होगी। उसे समस्या को हल करने की दिशा में प्रयोग के तौर पर कुछ प्रयास करने होंगे। जो प्रयास सफल होंगे, उनकी आवृत्ति करनी होगी और जो असफल होंगे उन्हें या तो छोड़ देना होगा अथवा उनमें सुधार करना होगा। इस प्रकार सफल एवं सुधरे हुए प्रयासों द्वारा वह अपनी समस्या को हल कर लेगा।
प्रयत्न एवं त्रुटि से सीखने की शिक्षा में उपयोगिता (Use in education of learning by trial and error)
समस्त अध्यापकों के लिये यह आवश्यक है कि वे केवल प्रयत्न एवं त्रुटि विधि की जानकारी मात्र न रखें वरन् अपने विद्यार्थियों को इस विधि को अपनाने और प्रयोग में लाने पर बल दें। उन्हें विद्यार्थियों को ऐसी समस्याएँ एवं प्रश्न हल करने के लिये देने चाहिये, जिनको हल करने की प्रणाली उन्हें ज्ञात न हो। इस प्रकार विद्यार्थियों को अपना लक्ष्य तो ज्ञात होगा किन्तु उसे प्राप्त करने की विधि नहीं। इस प्रकार अध्यापक प्रयास और त्रुटि की विधि द्वारा विद्यालयों में मौलिकता एवं आत्मनिर्भरता का विश्वास जागृत कर देंगे और ये जीवन में आने वाली उन परिस्थितियों एवं समस्याओं का सफलतापूर्वक हल करसकेंगे, जिनका लक्ष्य तो उन्हें ज्ञात होगा किन्तु प्राप्त करने का मार्ग नहीं। इस प्रकार प्रयत्न एवं त्रुटि द्वारा सीखने की विधि विद्यार्थी को बहुत सहायता पहुँचाती है।
अध्यापक को विद्यार्थी के लिये ऐसी सीखने की परिस्थितियाँ भी पैदा करनी चाहिये जिनमें वह समस्या को हल करने के लिये प्रारम्भिक प्रयासों के सुअवसर प्राप्त कर सके और पुराने अनुभवों के आधार पर परिणामों की परीक्षा कर सके तथा अपनी सफल प्रतिक्रियाओं की पुनरावृत्ति कर सके।
8. अभिवृत्यात्मक अधिगम (Attitudinal learning)
अभिवृत्ति (Attitude) व्यक्ति का एक मानसिक विन्यास (Mental set) है। यह उसके व्यवहार के ढंग में पायी जाती है। अभिवृत्ति किसी व्यक्ति, वस्तु, क्रिया के प्रति एक निश्चित धारणा होती है। मनुष्य प्रायः वातावरण के प्रभाव से सीखता है। अभिवृत्ति या धारणा विभिन्न विषयों, ज्ञान कौशल क्रियाओं आदि के सीखने में सहायता करती है; जैसे– अपना कर्त्तव्य बोध पढ़ना समझकर विद्यार्थी में पढ़ने की अभिवृत्ति होती है। वह कठिन से कठिन विषयों को सीख लेता है। जिनमें पढ़ने की अभिवृत्ति नहीं होती है। वे बालक हस्तकौशल आदि सीखते हैं। इसे अभिवृत्यात्मक अधिगम कहते हैं।
9. गुणांकन अधिगम (Conditioned learning)
जब हम किसी वस्तु के मूल्यों और गुणों को स्पष्ट करते हैं तो उस समय भी अधिगम होता है। किसी दृश्य के सुन्दर, सुखद और मनोहारी अभिव्यक्ति से भी हम बहुत कुछ सीखते हैं। इसे गुणांकन अधिगम कहते हैं।
10. प्रत्यावंतन या निबन्धन अधिगम (Reflective learning)
मनुष्य तथा पशु कुछ निबन्धन के साथ सीखते हैं। इसे मनोवैज्ञानिक शब्दावली में प्रत्यावर्तन या निबन्धन द्वारा सीखना कहते हैं। इसमें अधिगम प्रेरणा प्राप्त होने पर होता है।
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