प्रश्नोत्तर प्रविधि – गुण एवं दोष, सोक्रेटिक मेथड

Prashnottar Pravidhi

प्रश्नोत्तर प्रविधि (Question-Answer Technique)

प्रश्नोत्तर प्रविधि शिक्षण क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस शिक्षण प्रविधि के जन्मदाता प्रसिद्ध विद्वान् सुकरात (Socrates) थे। अत: इस प्रविधि को सोकरेटिक मेथड (Socratic method) भी कहा जाता है।

इस प्रविधि में अध्यापक विद्यार्थियों से प्रश्न पूछकर अपने पाठ का विकास करता है। वह पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित प्रश्न पूछता है तथा शिक्षण बिन्दुओं के साथ भी प्रश्न पूछता हुआ आगे बढ़ता है। इस प्रविधि में प्रश्नों एवं उत्तरों की प्रधानता होने के कारण ही इसे प्रश्नोत्तर प्रविधि कहा जाता है।

इस प्रविधि में अध्यापक प्रश्न इस प्रकार से पूछता है कि छात्रों में रुचि एवं जिज्ञासा बनी रहे। वह कक्षा के सहयोग से ही उत्तर ढूँढने का प्रयास करता है एवं शंका का समाधान करता है।

प्रश्नोत्तर प्रविधि के गुण (Merits of question answer technique)

इस प्रविधि में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं:-

  1. विद्यार्थी प्रश्न पूछता भी है और प्रश्नों के उत्तर भी देता है। अत: उसमें विश्वास की भावना जागृत होती है तथा साथ ही उसकी संकोच करने की प्रवृत्ति भी समाप्त होती है।
  2. विद्यार्थी में रुचि एवं जिज्ञासा बनी रहती है, जिससे वह ज्ञान सरलता से प्राप्त कर सकता है।
  3. इस प्रविधि में अध्यापक छात्र से पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित प्रश्न भी पूछता है। अतः वह पूर्व में पढ़ाये गये पाठों को भी याद करने का प्रयास करता है।
  4. इसमें अध्यापक छात्रों का मूल्यांकन साथ ही साथ करता जाता है। अत: उसे यह पता लगता रहता है कि छात्र शिक्षण के उद्देश्य को किप सीमा तक पूरा करने में समर्थ रहा है?
  5. प्रश्नोत्तर प्रविधि से विद्यार्थी में सोचने-समझने एवं तर्क करने की क्षमता का विकास होता है।
  6. विद्यार्थी इस प्रविधि के माध्यम से अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
  7. इसमें अधिक समय नष्ट नहीं होता।
  8. पाठ्यक्रम को नियत समय में सरलता से पूर्ण किया जा सकता है।

प्रश्नोत्तर प्रविधि के दोष (Demerits of question answer technique)

इस प्रविधि के निम्नलिखित दोष हैं:-

  1. इस प्रविधि का सबसे बड़ा दोष यही है कि विद्यार्थी को प्रश्न पूछने में शंका नहीं रहती। अत: वह कभी-कभी विषय से हटकर व्यर्थ के प्रश्न पूछने लगता है।
  2. यह प्रविधि उच्च स्तर पर ही अधिक उपयोगी है।
  3. कभी-कभी कक्षा में प्रश्नों की बौछार इतनी अधिक होने लगती है कि बाहर से देखने वाले को शिक्षण कार्य ठीक चलता हुआ प्रतीत नहीं होता है।