अनुसन्धान या ह्यूरिस्टिक प्रविधि (Heuristic Technique)
आर्मस्ट्रांग इस शिक्षण प्रविधि के जन्मदाता थे। यह प्रविधि स्वयं खोज करने या स्वयं सीखने की प्रविधि है। इसमें बालक को स्वयं तथ्यों का अध्ययन, अवलोकन और निरीक्षण करने का अवसर दिया जाता है और बालक से यह आशा की जाती है कि वह अपने प्रयास से सत्य को ज्ञात करे और नियम का निर्धारण करे।
इस प्रकार यह प्रविधि छात्र को निष्क्रिय श्रोता न रखकर अनुसन्धानकर्ता बना देती है। यह प्रविधि तर्क, निर्णय तथा चिन्तन आदि का विकास कर छात्रों के मानसिक विकास में विशेष सहयोगी है। इसमें बालक ‘करके सीखने‘ के सिद्धान्त का प्रयोग करता है।
डॉ. जीवनायकम् के शब्दों में, “ह्यूरिस्टिक प्रविधि में बालक को मौलिक अन्वेषणकर्ता के स्थान पर छोड़ दिया जाता है। उसे स्वयं वस्तुओं या तथ्यों का अन्वेषण करना होता है और वह इस कार्य में बहुत कम निर्देशन प्राप्त करता है।“
इस अन्य विद्वान् के शब्दों में, “ह्यूरिस्टिक प्रविधि का तात्पर्य शिक्षण की उस प्रविधि से है, जिसमें बालकों को खोज करने वाले की स्थिति में रखकर बिना किसी विशेष निर्देशन के उन्हें स्वयं खोज या नवीन ज्ञान अर्जित करने का अवसर दिया जाता है।“
दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि “ह्यूरिस्टिक प्रविधि में बालक को अपनी ओर से कम से कम बताया जाता है तथा उसे स्वयं अधिक से अधिक खोजकर सत्य के रूप को पहचानने का अवसर दिया जाता है।“
प्रत्येक बालक को इस प्रकार की स्थिति में रखा जाता है कि वह प्रत्येक तथ्य या सिद्धान्त को स्वाध्याय या परीक्षण के माध्यम से समझ ले। यथार्थ में ह्यूरिस्टिक प्रविधि छात्र के दृष्टिकोण को वैज्ञानिक बनाती है।
इस प्रविधि की कार्य-प्रविधि भी वैज्ञानिक है। सर्वप्रथम अध्यापक छात्रों के सामने कोई समस्या प्रस्तुत करता है, तत्पश्चात् उन्हें समस्या पर विचार करने के लिये उत्साहित करता है। बालक अपना कार्य करने में स्वतन्त्र होते हैं। वे आवश्यकता तथा परिस्थिति के अनुसार वाद-विवाद तथा विचार-विनिमय कर सकते हैं।
ह्यूरिस्टिक प्रविधि में अध्यापक का स्थान पथ-प्रदर्शक का होता है। वह छात्रों के सामने समस्या प्रस्तुत करता है, उनके प्रश्नों का उत्तर देता है तथा उन्हें आवश्यक स्रोतों से परिचित कराता है। ह्यूरिस्टिक प्रविधि के प्रयोग के लिये अध्यापक को अत्यन्त निपुण, जागरूक एवं निरीक्षण करने वाला होना चाहिये तथा उसे अपने अन्दर वैज्ञानिक प्रवृत्तियों का विकास करना चाहिये।
ह्यूरिस्टिक प्रविधि का प्रयोग मुख्यत: विज्ञान के शिक्षण में किया जाता है परन्तु सावधानी और चतुरता से इस प्रविधि का उपयोग अन्य विषयों में भी किया जा सकता है।
अनुसन्धान प्रविधि के गुण (Merits of heuristic technique)
ह्यूरिस्टिक या अनुसन्धान प्रविधि में निम्नलिखित गुण हैं:-
-
इस प्रविधि में बालक क्रियाशील होकर ज्ञान प्राप्त करता है।
-
इस प्रविधि में ज्ञान बालक पर ऊपर से लादा नहीं जाता वरन् बालक स्वयं के प्रयास द्वारा प्राप्त करता है।
-
इस प्रविधि से बालक स्वयं परिश्रम करना सीखते हैं।
-
यह प्रविधि पूर्णतया मनोवैज्ञानिक है। अध्यापक सदैव इस बात का प्रयास करता है कि बालकों को जो कुछ भी शिक्षा प्रदान की जाय, वह उनकी रुचि और जिज्ञासा के अनुकूल हो।
-
यह प्रविधि बालकों के दृष्टिकोण को तार्किक बनाती है। बालक विभिन्न तथ्यों को परखते हैं तथा उस पर वाद-विवाद करते हैं।
-
यह प्रविधि बालकों को आत्म-निर्भर बनाती है, क्योंकि वे भी ज्ञान प्राप्त करते हैं, वह अपने प्रयास द्वारा प्राप्त करते हैं।
-
ह्यूरिस्टिक प्रविधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसके अपनाने से बालकों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक बन जाता है, वे नवीन रहस्यों को स्वयं खोजते हैं। इस प्रकार उनमें निरीक्षण-प्रवृत्ति का विकास होता है।
-
इस प्रविधि में अनेक महत्त्वपूर्ण शिक्षण सूत्रों का प्रयोग होता है, जैसे-‘आगमन प्रविधि’, ‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर’, ‘मनोवैज्ञानिक क्रम’ इत्यादि।
-
यह प्रविधि बालकों को परिश्रम करना सिखाती है।
अनुसन्धान प्रविधि के दोष (Demerits of heuristic technique)
इस प्रविधि में निम्नलिखित दोष हैं:-
-
यह प्रविधि केवल उच्च कक्षाओं के लिये ही उपयुक्त है। प्राथमिक कक्षाओं में अध्यापक को बहुत कुछ अपनी ओर से बताना पड़ता है।
-
प्राथमिक कक्षा के बालकों से इस बात की आशा करना कि वे तथ्यों को परख कर निष्कर्ष निकाल लें, एक असम्भव-सी बात है।
-
तथ्यों की खोजबीन तथा निष्कर्ष के लिये पर्याप्त समय की आवश्यकता रहती है। 35 या 40 मिनट के अल्प समय में छात्र किस प्रकार की खोजबीन कर निष्कर्ष निकाल सकेंगे?
-
यह प्रविधि अत्यधिक व्ययपूर्ण है। इसके लिये प्रयोग में आने वाली सहायक सामग्री तथा पाठ्य-पुस्तकें अत्यन्त व्ययपूर्ण हैं। भारत जैसे देश में उनको जुटाना एक असम्भव कार्य है।
-
इसमें छात्र को स्वयं सीखने की प्रेरणा दी जाती है, परन्तु कभी-कभी छात्र गलत निष्कर्ष निकाल लेते हैं।
-
अनुसन्धान प्रविधि केवल उन कक्षाओं के लिये ही उपयोगी है, जिनमें छात्रों की संख्या अत्यन्त कम होती है।
-
यह प्रविधि गणित तथा विज्ञान के लिये अधिक उपयोगी है। इसके द्वारा साहित्यिक विषयों को पढ़ाने से नीरसता आ जाती है।
-
यह आशा करना कि इस प्रविधि को अपनाने से प्रत्येक छात्र आविष्कारक हो जायेगा, एक भ्रमपूर्ण धारणा है। आविष्कारक बनने की शक्ति कुछ ही व्यक्तियों में जन्मजात होती है, सभी में नहीं।
-
जीवन के क्षण थोड़े-से हैं, अत: पूर्वजों द्वारा निकाले गये सिद्धान्तों का उपयोग करना भी आवश्यक हो जाता है। यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक बात या फल की पुनः खोज की जाय।