अपेक्षित अधिगम स्तर की संकल्पना
Concept of Expected Learning Outcome
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की संस्तुति के अनुसार विद्यालयीन शिक्षा के प्रत्येक स्तर हेतु अधिगम के न्यूनतम स्तर निर्धारित किये जायें जिससे सभी छात्र दक्षताओं को प्राप्त कर सकें। सन् 1990 में इस संस्तुति को प्राथमिक स्तर पर क्रियान्वित करने हेतु एक समिति गठित की गयी। इस समिति ने भाषा, गणित और पर्यावरणीय अध्ययन आदि विषयों में अपेक्षित अधिगम स्तर निर्धारित किये गये।
अपेक्षित अधिगम स्तर की रचना तीन शब्दों से हुई है – अपेक्षित, अधिगम और स्तर। अपेक्षित शब्द का अर्थ होता है ज्ञात करना। अधिगम शब्द का अर्थ होता है, सीखना अर्थात् सीखने को जीवनोपयोगी दक्षताओं में परिवर्तन करना ही अधिगम कहलाता है। स्तर शब्द का आशय उपलब्धि के स्तरों से लगाया जाता है।
दक्षता का अर्थ होता है किसी कार्य को कुशलतापूर्वक कर लेने की क्षमता अर्थात् किसी कक्षा में किसी पूर्ण इकाई के निश्चित अंश को निश्चित शिक्षार्थियों द्वारा निर्धारित सभसय में अर्जित करना ही दक्षता है।
अधिगम स्तर की सम्प्राप्ति में अधिगम अनुभवों का संयोजन
Connection of Learning Experiences in Achieving of Learning outcome
आजकल अधिकांश विद्यालयों में विद्यार्थियों का अपेक्षित अधिगम काफी निम्न स्तर का होता है। इस समस्या को गुणवत्ता की कमी के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त एक ही क्षेत्र के भिन्न-भिन्न विद्यालयों में विद्यार्थियों की उपलब्धि का स्तर कहीं उच्च तथा कहीं निम्न पाया जाता है।
शिक्षा में गुणवत्ता की समानता को प्राप्त करने हेतु अपेक्षित अधिगम स्तरों का निर्धारण किया जाता है। इस प्रकार अपेक्षित अधिगम स्तर गुणवत्ता की क्षमता से जोड़ने का महत्त्वपूर्ण प्रयास माना जाता है। वांछित दक्षताओं को निपुणता के स्तर तक प्राप्त करना ही गुणवत्ता है।
शिक्षक का कार्य एक नाविक की तरह है जो छात्रों को विद्यालय में नामांकित कर पाठ्यक्रम रूपी नाव में बैठाकर सहायक सामग्री एवं शिक्षण विधियों की सहायता से नदी के दूसरे किनारे तक पहुँचाता है। प्रदेश में आज भी प्राथमिक स्तर पर नामांकन एव ठहराव की समस्या बनी हुई है क्योंकि कुछ ही छात्र प्राथमिक स्तर की शिक्षा पूर्ण कर पाते हैं। जब विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र दक्षताओं की प्राप्ति में पारंगत हो जाते हैं तभी उन्हें शिक्षा की गुणवत्ता की संज्ञा प्रदान की जाती है। सभी छात्रों को पारंगतता के स्तर तक ले जाना ही अपेक्षित अधिगम स्तर का लक्ष्य है।
अपेक्षित अधिगम प्रतिफल का अधिगम के पुनर्बलन में महत्त्व
Importance in Reinforcement of Learning of Expected Learning Result
इस गुणवत्ता को समान रूप से सभी को उपलब्ध कराने के लिये यह प्रयास करना होगा कि अधिक से अधिक छात्र अधूरी प्राथमिक शिक्षा से बढ़कर गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्राप्त कर सकें। शिक्षा में समानता से तात्पर्य है कि पहले शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि की जाय बाद में उसे सार्वजनिक बनाने का प्रयास किया जाय। वास्तविकता यह है कि प्राथमिक स्तर पर प्रदेश के सभी छात्र पारंगतता के उच्चतम स्तर तक पहुँच जायें, यही सामाजिक समता कहलाती है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये छात्रों में पुनर्बलन को स्थापित करने की आवश्यकता होती है।
अध्ययन अध्यापन की प्रक्रिया में शिक्षक छात्रों को अधिगम के अवसर सुलभ कराकर विद्यार्थी को अधिगम अनुभव प्राप्त कराता है। शिक्षक द्वारा अधिगम प्रक्रिया को पूर्ण करने हेतु विद्यार्थियों को पढ़ने-लिखने, विचार-विमर्श करने, प्रेक्षण वर्गीकरण करने, सामान्यीकरण करने, तुलना करने तथा निष्कर्ष निकालने के अवसर प्रदान किये जाते हैं।
अपेक्षित अधिगम स्तर के अन्तर्गत दक्षताओं का निर्धारण विषय तथा कक्षावार किया जाता है। दक्षताओं के विकास में विद्यालय, घर, परिवार तथा छात्र का परिवेश समान रूप से महत्त्वपूर्ण होता है। जिन छात्रों की सामाजिक, आर्थिक अथवा पारिवारिक पृष्ठभूमि शिक्षा की दृष्टि से ठीक है ऐसे छात्रों की भाषा आदि विषयों की दक्षता के विकास में अधिक सरलता रहती है। इसी प्रकार पर्यावरणीय अध्ययन में जिन छात्रों को अपने परिवेश को देखने और परखने के अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं ऐसे छात्रों में पर्यावरणीय अध्ययन की दक्षताएँ अपेक्षाकृत अधिक विकसित हो जाती हैं।
दक्षता और विकास में असमानता
Dissimilarity in Efficiency and Development
समान प्रकार और समान स्तर के विद्यालयों एवं शिक्षकों की उपलब्धता के बावजूद भी यह आवश्यक नहीं होता है कि इन विद्यालयों के सभी विद्यार्थियों की दक्षता का विकास समान रूप से ही हो। इसके अनेक कारण हैं जो निम्नलिखित हैं:-
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शिक्षक का शिक्षण के प्रति दृष्टिकोण।
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विद्यार्थी का स्वास्थ्य, मानसिक और शारीरिक स्थिति।
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छात्र के घर का वातावरण।
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छात्र की मित्र मण्डली।
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शिक्षक द्वारा शिक्षण में प्रयुक्त शिक्षण विधियाँ एवं सहायक सामग्री।
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शिक्षक-शिक्षार्थी सम्बन्ध ।
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शिक्षक की मानसिक तथा शारीरिक स्थिति।
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विद्यार्थी की परिपक्वता।
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छात्र की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति।
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छात्र का बुद्धि-लब्धि स्तर।
प्राय: यह समझा जाता है कि किसी विषय की मात्र न्यूनतम दक्षताओं को ही पढ़ाना उचित नहीं होता क्योंकि इससे मेधावी छात्रों के अहित की सम्भावना बनी रहती है। मेधावी छात्र अर्जित दक्षता को अपनी क्षमता के अनुसार बढ़ाते हैं तथा वृद्धि करने की यह प्रक्रिया अनुप्रयोग के समय संगठित होती है।
अपेक्षित अधिगम स्तर के क्षेत्र
Scope of Expected Learning Outcome
अपेक्षित अधिगम स्तर के क्षेत्र को प्राय: दो भागों में बाँटा जा सकता है:-
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संज्ञानात्मक क्षेत्र– इस क्षेत्र के अन्तर्गत उन तथ्यों को सीखा जाता है जिनका सम्बन्ध मानसिक क्रियाओं से अधिक होता है; जैसे– जानना, समझना, चिन्तन करना, तर्क करना, कल्पना करना तथा पूर्वानुमान लगाना इत्यादि ।
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संज्ञानेत्तर क्षेत्र– इस क्षेत्र का सम्बन्ध अधिगम के उस भाग से होता है जो भावात्मक तथा मनोशारीरिक क्रियाओं से जुड़ा होता है; जैसे-समयबद्धता, नियमितता, स्वच्छता, श्रमशीलता, सहभागिता, उत्तरदायित्व की भावना, सच्चाई तथा देश-प्रेम इत्यादि।
दक्षताओं के विकास में संज्ञानात्मक तथा संज्ञानेत्तर दोनों क्षेत्रों की समान सहभागिता होती है। दक्षता आधारित शिक्षण में कक्षा विशेष के लिये निर्धारित दक्षता को विद्यार्थियों में प्रवीणता के स्तर तक विकसित किया जाता है। इसके लिये बाल केन्द्रित तथा क्रिया आधारित शिक्षण प्रक्रिया को सर्वोत्तम माना जाता है।
मूल्यांकन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अंग होता है अतः इसे शिक्षण अधिगम क्रिया कलापों के साथ जोड़ना आवश्यक है। इसलिये मूल्यांकन एवं तीसरी प्रक्रिया को सतत् तथा व्यापक बनाना चाहिये। ऐसा करने से शिक्षकों को यह ज्ञात होता है कि छात्रों की दक्षताओं के विकास की प्रगति क्या है तथ छात्र दक्षताओं की सम्प्राप्ति के लिये तैयार हैं या नहीं? कक्षा में शिक्षार्थियों की तुलनात्मक स्थिति तथा उपलब्धियों के बारे में सामान्य स्तर क्या है ? इत्यादि तथ्यों को शिक्षक द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है।
अपेक्षित अधिगम स्तर की प्राप्ति हेतु प्रयास
Efforts Conducted for Achieving Expected Learning Outcome
अपेक्षित अधिगम स्तर की धारणा से लोग सन् 1986 में परिचित हुए जबकि प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसके महत्त्व को स्वीकार किया गया था किन्तु राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद् नयी दिल्ली ने यूनीसेफ के सहयोग से सन् 1978 में इस योजना पर कार्य करना प्रारम्भ किया था। इस योजना के क्रियान्वयन हेतु शिक्षाविदों ने कक्षा 1 से 5 तक के लिये भारतीय मानकों को तैयार किया और इस योजना में तैयार किये गये इन मानकों को सन् 1984 के पायलेट योजना में पुन: समीक्षित किया गया। इस योजना रिपोर्ट के आधार पर अपेक्षित अधिगम स्तर नामक राष्ट्रीय पत्र को तैयार किया गया।
सन् 1986 की नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा इस परियोजना को व्यापक स्तर पर क्रियान्वित किया गया। भविष्य में इन मानकों को औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों द्वारा समान रूप से अपना लिया गया।
अपेक्षित अधिगम स्तर की धारणा को विश्व कान्फ्रेंस 1990 में ‘सभी के लिये शिक्षा’ पर हुई थी बल मिला। उसी समय डॉ. आर.एच. की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया, जिसने अपेक्षित अधिगम स्तर आव्यूह को ठोस तरीके से क्रियान्वित करने पर बल दिया।
इसी के आधार पर सन् 1991-92 में अनेक अभिनव परियोजनाएँ तैयार की गर्यो, जिनमें 3000 प्राथमिक विद्यालयों तथा 250000 छात्रों को सम्मिलित किया गया।
अपेक्षित अधिगम स्तर की विशेषताएँ
Characteristics of Expected Learning Outcome
भारत में प्राथमिक शिक्षा की अनिर्वायता निःशुल्क तथा सार्वजनीकरण के सम्प्रत्यों की निर्बाध रूप से प्राप्ति हेतु अपेक्षित अधिगम स्तर की संकल्पना की गयी, जिसके माध्यम से लिंग, जाति, धर्म के भेदभाव सहित सभी बालकों की पहुँच शिक्षा तक सम्भव हो सके। अपेक्षित अधिगम की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:-
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अपेक्षित अधिगम स्तर के माध्यम से सभी वंचित वर्गों को गुणात्मक शिक्षा प्राप्त होती है।
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यह बालकों के प्रत्याशित व्यवहार का प्रत्यक्ष रूप में मापने का प्रयास है।
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अपेक्षित अधिगम स्तर समानता एवं शिक्षा के क्षेत्र में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष विभेदों के निराकरण हेतु प्रयास करता है।
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यह प्राथमिक शिक्षा में लागू किये गये कार्यक्रम का तार्किक रूप से विवेचन करता है।
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अपेक्षित अधिगम स्तर विद्यालयी शिक्षा में गुणात्मक परिवर्तन लाने हेतु संकलित प्रयास है।
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इसे उद्देश्यों के वर्गीकरण अथवा प्रत्याशित व्यवहार दोनों के आधार पर समझा जा सकता है।
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अपेक्षित अधिगम स्तर छात्रों, शिक्षकों एवं शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाता है एवं एक सुनिश्चित दिशा निर्देश प्रदान करता है।
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प्राथमिक शिक्षा में अध्ययनरत छात्रों को दक्षताधारित कक्षा 5 तक का पाठ्यक्रम तैयार करने में मदद प्रदान करता है।
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इसके माध्यम से प्रत्येक छात्र में न्यूनतम दक्षताओं एवं अपेक्षाओं की आशा की जाती है।
अपेक्षित अधिगम स्तर निम्नलिखित समस्याओं के समाधानार्थ उचित होता है:-
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छात्रों को रहने की क्षमता तथा पाठ्य-पुस्तकों के अनाधिकृत बोझ को न्यून (कम) करने में।
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प्राथमिक दक्षताओं को प्राप्त करने में।
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अध्यापक को बोधजन्य एवं व्यावहारिक शिक्षण प्रदान करने में।
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उपलब्धि परक मूल्यांकन एवं सम्प्रेषीय परीक्षण में।
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अधिक से अधिक सीखने में।
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यह इस स्तर की ओर इंगित करता है जिस पर सभी छात्र समान रूप से कक्षा के निश्चित स्तर तक पहुँचते हैं तथा उसमें दक्षता प्राप्त कर लेते हैं।