वार्तालाप/विचार-विनिमय/वाद-विवाद प्रविधि
Conversation or Discussion Technique
विचार-विनिमय प्रविधि को वाद-विवाद प्रविधि भी कहा जाता है। आजकल छात्र को एकमात्र निष्क्रिय श्रोता नहीं माना जाता, वरन् उससे यह आशा की जाती है कि वह स्वयं भी ज्ञान आदान-प्रदान की प्रक्रिया में सहयोग दे।
यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि छात्र जिस ज्ञान को स्वयं सक्रिय होकर प्राप्त करता वह उसके मस्तिष्क में स्थायी हो जाता है। छात्र को ज्ञान प्राप्त करने में सक्रिय करने के लिये ही विचार-विनिमय प्रविधि का प्रयोग किया जाता है।
वार्तालाप या विचार-विनिमय प्रविधि का अर्थ
Meaning of discussion or conversation technique
विचार-विनिमय प्रविधि शिक्षण की वह प्रविधि है, जिसमें अध्यापक और छात्र परस्पर मिल-जुलकर किसी प्रकरण अथवा समस्या के सम्बन्ध में स्वतन्त्र वातावरण में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।
वाद-विवाद के रूप-विद्यालयों में भाषा से सम्बन्धित इसके निम्नलिखित रूप प्रयोग में लाये जाते हैं:-
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अनौपचारिक भाषा वाद-विवाद।
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औपचारिक भाषा वाद-विवाद।
1. अनौपचारिक भाषा वाद-विवाद
अनौपचारिक भाषा वाद-विवाद के संचालन के लिये किन्हीं निर्धारित नियमों या किसी पूर्व निर्धारित शिक्षण प्रविधि की आवश्यकता नहीं है। इसमें भाग लेने वाले छात्र किसी प्रकरण या समस्या पर स्वतन्त्रतापूर्वक विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। हिन्दी भाषा शिक्षण में इस प्रक्रिया का अधिक प्रयोग किया जाता है। सामान्यत: इसमें शिक्षक ही नेतृत्व करता है।
नेता के रूप में शिक्षक के निम्नलिखित दायित्व होते हैं:-
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विचार-विमर्श के लिये प्रस्तुत की गयी समस्या या प्रकरण को सदैव सम्मुख रखना।
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छात्रों का अधिकाधिक सहयोग प्राप्त करना। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि समस्या पर विचार विमर्श करने के लिये अधिकाधिक छात्रों का सक्रिय सहयोग प्राप्त करना।
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भाषा वाद-विवाद को संचालित करके उसे गतिशील बनाये रखना।
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भाषा वादविवाद से छात्रों को सीखने के लिये तत्पर बनाना।
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छात्रों को अर्जित ज्ञान के मूल्यांकन में सहायता करना।
2. औपचारिक भाषा वाद-विवाद
औपचारिक भाषा वाद-विवाद में प्रत्येक कार्य प्रविधिवत् ढंग से किया जाता है। इसका संचालन पूर्व निर्धारित नियमों या विशिष्ट प्रविधि के अनुसार किया जाता है। इस प्रकार के वाद-विवाद के लिये छात्र स्वयं में से सभापति, मन्त्री तथा अन्य पदाधिकारी चुनते हैं।
विचार-विमर्श में भाग लेने वाले सभी छात्र इन पदाधिकारियों के निर्देशन में समस्त कार्यों को करते हैं। इसमें शिक्षक एक साधारण सदस्य के रूप में कार्य करता है।
औपचारिक भाषा वाद-विवाद के अग्रलिखित रूप प्रचलित हैं:-
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पेनल,
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सिम्पोजियम,
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फोरम,
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वाद-विवाद प्रतियोगिता एवं
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साक्षात्कार।
वार्तालाप प्रविधि की प्रक्रिया
Procedure of discussion technique
वार्तालाप वाद-विवाद की प्रक्रिया को पूर्व तैयारी, वाद-विवाद तथा मूल्यांकन तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। इन पदों को प्रभावशाली तथा वाद-विवाद को सार्थक बनाने के लिये निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिये:-
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जानकारी प्राप्त करने के सर्वोत्तम साधनों का उपयोग करके अपेक्षित सामग्री एकत्रित करनी चाहिये।
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वर्तमान समस्याओं के अध्ययन के लिये पुस्तिकाओं तथा पत्रपत्रिकाओं का उपयोग करना आवश्यक अति है। यह सदैव ध्यान रखना चाहिये कि वर्तमान समस्याओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करने की एकमात्र साधन पुस्तक-पुस्तिकाएँ तथा पत्र-पत्रिकाएँ होती हैं।
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समाचार-पत्रों को पढ़ना आवश्यक है। इनमें वर्तमान घटनाओं एवं समस्याओं का विवरण रहता है।
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प्रकरण से सम्बन्धित अंशों पर ही विशेष ध्यान दिया जाय। अन्य बातों पर विशेष ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं है। जो कुछ भी पढ़ा जाय वह सार्थक होना चाहिये।
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पठन वस्तुपरक हो ताकि पूर्वाग्रहों से परे लेखक को निष्पक्ष रूप से समझने का प्रयास किया जा सके।
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पठन आलोचनात्मक होना चाहिये। स्वस्थ निष्कर्ष निकालने के लिये यह आवश्यक है।
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पठन गुणग्राही होना चाहिये। लेखक के विचारों को धैर्यपूर्वक समझने का प्रयास करना चाहिये, चाहे हम उनके विचारों से सहमत हों अथवा नहीं।
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विषयवस्तु की जानकारी प्राप्त करने के लिये पठन लाभदायक है। जानकारी में निरन्तर वृद्धि होती रहनी चाहिये। यदि नये विचारों से आप आश्वस्त हो जायें तो उन्हें स्वीकार कर लेना श्रेयस्कर होता है। इसके लिये यदि आपको अपना दृष्टिकोण बदलना पड़े तो बदल लेना चाहिये।
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पठन रचनात्मक भी होना चाहिये। जैसे-जैसे पठन अग्रसर होता जाय संग्रहीत जानकारी का पुनर्संगठित कर एकीकृत करते जाना चाहिये तथा तदनुसार ही सामान्यीकरण अथवा निष्कर्ष निकालना चाहिये।
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पढ़ी हुई वस्तु का एक संक्षिप्त वितरण, सारांश अथवा इसे भाषण के रूप में तैयार कर लेना लाभदायक होता है।
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विचार प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से सामग्री की रचना करनी चाहिये। ऐसा करते समय सम्भावित श्रोताओं की कही गयी बात प्रभावशाली लगे इसका ध्यान रखना चाहिये।
वार्तालाप अथवा वाद-विवाद प्रविधि की विशेषताएँ
Characteristics of discussion technique
वार्तालाप या वाद-विवाद प्रविधि में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं:-
1. छात्र का समाजीकरण
शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन हो रहा है। आज हम ज्ञान की अपेक्षा अभिवृत्तियों तथा आदर्शों पर अधिक बल देते हैं। उचित अभिवृत्तियों का निर्माण शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है। वार्तालाप प्रविधि छात्र के समाजीकरण में सहायक सिद्ध होती है।
2. सामाजिक प्रयोजन
छात्र स्वयं को समुदाय का एक सदस्य समझता है तथा उसके कार्यों में सामाजिक प्रयोजन होता है।
3. सहयोग की भावना का विकास
सामुदायिक चेतना के कारण छात्र में सहयोग की भावना का विकास होता है। उसके व्यवहार में सदिच्छा एवं सौजन्य परिलक्षित होता है। पारस्परिक निर्भरता तथा समुदाय की भलाई के लिये व्यक्तिगत स्वार्थ एवं त्याग की तत्परता आज के समाज की आवश्यकता है।
4. नेतृत्व का प्रशिक्षण
इस प्रविधि द्वारा नेतृत्व का प्रशिक्षण प्राप्त होता है। इस प्रविधि में प्रत्येक छात्र को अपनी भावनाओं तथा विचारों की अभिव्यक्ति का अवसर मिलता है।
5. मानसिक विकास
भाषायी वाद-विवाद में विवेचना, आलोचना तथा वर्तमान भाषायी प्रश्नों के मूल्यांकन आदि द्वारा छात्रों में स्पष्ट विचार व्यक्त करने की शक्ति का विकास होता है।
6. आत्माभिव्यक्ति का विकास
वार्तालाप या वाद-विवाद प्रविधि की यह विशेषता है कि इसमें प्रत्येक छात्र को अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। विचारों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ सीखने की प्रक्रिया में भी इसका योगदान है।
7. प्रेरणा की समस्या का हल
छात्र सम्पूर्ण कक्षा के साथ सामुदायिक कार्य करने में व्यस्त रहता है। प्रत्येक कार्य को अपना उत्तरदायित्व समझता है। कार्य करने में रुचि एवं उत्साह रहता है। कक्षा समूह में रहकर ही प्रत्येक छात्र व्यक्तिगत रूप से अच्छे से अच्छा कार्य करना चाहता है। यह प्रेरणा उसे कक्षा समूह की सदस्यता से ही स्वाभाविक रूप में व्याप्त होती रहती है।
8. सम्बन्धों का स्वाभाविक विकास
इस प्रविधि से कक्षा में कृत्रिमता का कोई स्थान नहीं रह जाता है तथा शिक्षक एवं विद्यार्थी के पारस्परिक सम्बन्ध स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं।
वार्तालाप या वाद-विवाद प्रविधि के गुण
Merits of discussion technique
इस प्रविधि में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं:-
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इस प्रविधि के द्वारा छात्र सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने वाला बन जाता है।
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यह प्रविधि स्व-निर्देशन (Self-direction) पर बल देती है।
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यह छात्रों को मिल-जुलकर कार्य करने का प्रशिक्षण प्रदान करती है।
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यह छात्रों में सहिष्णुता एवं सहयोग की भावना विकसित करती है।
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यह छात्रों को विषयवस्तु का चयन एवं संगठन करना सिखाती है।
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यह छात्रों को अपने-अपने भावों एवं विचारों को सुव्यवस्थित रूप में अभिव्यक्त करना सिखाती है।
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यह छात्रों में स्वतन्त्र अध्ययन करने की आदत का विकास करती है।
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इसके द्वारा छात्रों की तर्क एवं निर्णय शक्तियों का विकास किया जाता है।
वार्तालाप या वाद-विवाद प्रविधि के दोष
Demerits of discussion technique
इस प्रविधि में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं:-
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इस प्रविधि के द्वारा अध्यापन कराने के लिये समय की अधिक आवश्यकता है।
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इसके द्वारा छात्र निरर्थक वाद-विवाद में पड़कर समय नष्ट कर सकते हैं।
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इससे लज्जाशील एवं मन्द बुद्धि छात्र समुचित लाभ नहीं उठा पाते।
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सभी शिक्षक कुशलतापूर्वक इस प्रविधि का संचालन नहीं कर सकते।
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यह प्रविधि छोटी कक्षाओं में प्रयोग में नहीं लायी जा सकती।