परियोजना प्रविधि (Project Technique)
परियोजना या प्रोजेक्ट प्रविधि के जन्मदाता विलियम किलपैट्रिक (W.H. Kilpatrick) थे। वे प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी के शिष्य रह चुके थे। अत: वे उनके प्रयोजनवाद या व्यवहारवाद से विशेष रूप से प्रभावित थे।
किलपैट्रिक के विचार में वर्तमान शिक्षा का सबसे बड़ा दोष उसका सामाजिक जीवन से पूर्णतया अलग होना है। वर्तमान शिक्षण पूर्णतया सैद्धान्तिक है और उसका व्यावहारिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। विद्यालयों में छात्रों को केवल सूचना मात्र प्रदान की जाती है। अत: यह आवश्यक है कि शिक्षण और जीवन का परस्पर सम्बन्ध स्थापित किया जाय।
किलपैट्रिक के अनुसार, “हम चाहते हैं कि शिक्षा वास्तविक जीवन की गहराई में प्रवेश करे, केवल सामाजिक जीवन में ही नहीं वरन् उस उत्तम जीवन में भी जिसकी हम आशा करते हैं।“
परियोजना प्रविधि का दार्शनिक आधार है, व्यवहारवाद। इस शिक्षण प्रविधि में छात्र उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में करते हैं। छात्र जो कुछ भी सीखता है वह क्रियाशील होकर सीखता है तथा वह जो क्रियाएँ सीखता है, वे सामाजिक जीवन से सम्बन्धित होती हैं। इसलिये इस प्रविधि का प्रयोग हिन्दी भाषा शिक्षण में प्रमुख रूप से किया जाता है।
परियोजना का अर्थ (Meaning of project)
परियोजना या प्रोजेक्ट की परिभाषाएँ विभिन्न विद्वानों ने अग्रलिखित ढंग से दी हैं:-
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पार्कर के अनुसार, “परियोजना कार्य की एक इकाई है, जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिये उत्तरदायी बनाया जाता है।“
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विलियम किलपैट्रिक के ने कहा है, “परियोजना वह उद्देश्यपूर्ण कार्य होता है जो पूर्ण संलग्नता के साथ सामाजिक वातावरण में किया जाय।“
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बेलार्ड के शब्दों में, “परियोजना यथार्थ जीवन का ही एक भाग है जो विद्यालय में प्रयोग किया जाता है।“
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स्टीवेन्सन के कथनानुसार, “परियोजना एक समस्यामूलक कार्य है, जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है।“
उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि
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प्रत्येक प्रोजेक्ट का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य होता है।
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प्रोजेक्ट रुचिपूर्ण होता है।
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प्रोजेक्ट क्रिया सामाजिक वातावरण में की जाती है।
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प्रत्येक परियोजना को आरम्भ करने के पश्चात् उसे पूर्ण करना भी आवश्यक माना जाता है।
परियोजना प्रविधि के पद (Steps of project technique)
परियोजना प्रविधि को पूर्ण करने के लिये निम्नलिखित पदों का प्रयोग किया जाता है:-
1. परिस्थिति उत्पन्न करना
इस प्रविधि में छात्र को स्वयं परियोजना चुनने के अवसर प्रदान किये जाते हैं, अत: अध्यापक इस प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है, जिससे कि छात्रों को उचित प्रोजेक्ट चुनने में रुचि उत्पन्न हो।
2. योजना चुनना
छात्र स्वयं परियोजना का चुनाव करते हैं। शिक्षक मार्गदर्शक का कार्य करता है। छात्रों का मत लेकर ही अध्यापक प्रोजेक्ट स्वीकार करता है।
3. कार्यक्रम बनाना
इस सोपान में छात्र कार्यक्रम का निर्माण करते हैं। अध्यापक छात्रों को कार्यक्रम निर्माण के लिये वाद-विवाद के अवसर प्रदान करता है। आवश्यकतानुसार वह छात्रों का पथ-प्रदर्शन भी करता है।
4. कार्यक्रम क्रियान्वित करना
इस पद में छात्र स्वयं कार्य करते हैं। छात्र क्रिया द्वारा सीखता है तथा अनेक विषयों के सम्बन्ध में ज्ञान ग्रहण करता जाता है। अध्यापक छात्रों का केवल मार्गदर्शन करता है और स्वयं परियोजना में कोई कार्य नहीं करता।
5. कार्य का निर्णय या मूल्यांकन
इस पद में अध्यापक और छात्र परस्पर मिलकर निर्णय करते हैं कि उन्हें प्रोजेक्ट पूर्ण करने में कहाँ तक सफलता मिली है? इस मूल्यांकन में छात्रों को आत्म-आलोचना का शिक्षण प्राप्त होता है। वे स्वयं निरीक्षण–परीक्षण द्वारा देखते और समझते हैं कि उनसे कहाँ भूल हुई?
6. कार्य का लेखा
प्रत्येक छात्र के पास विवरण पुस्तिका रहती है, जिसमें वे कार्य का लेखा (Record) दर्ज करते हैं। इसमें अध्यापक देखता है कि छात्र ने निर्धारित कार्य को पूरा किया है या नहीं। अन्त में कार्य का मूल्यांकन दर्ज किया जाता है।
परियोजना प्रविधि के गुण (Merits of project technique)
परियोजना प्रविधि में ध्यान से देखने पर निम्नलिखित गुण हैं:-
1. जीवन से सम्बन्धित
प्रोजेक्ट (परियोजना) प्रविधि में पुस्तकीय शिक्षा की अवहेलना करके छात्रों के जीवन की वास्तविकता की शिक्षा दी जाती है। छात्र जीवन की यथार्थ समस्याओं को हल करना सीखते हैं।
2. चरित्र-निर्माण में सहायक
प्रोजेक्ट (परियोजना) प्रविधि छात्रों का सर्वांगीण विकास करती है। छात्र विभिन्न समस्याओं (प्रकरणों) को अपने प्रयास द्वारा हल करते हैं। अतः उनमें आत्म-विश्वास की भावनाओं का विकास होता है तथा वे कार्य का स्वयं मूल्यांकन भी करना सीखते हैं।
3. मनोवैज्ञानिक प्रविधि
प्रोजेक्ट प्रविधि प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थॉर्नडाइक (Thorndike) के सीखने के नियम पर आधारित है। ये नियम निम्नलिखित हैं:- (1) तत्परता का नियम, (2) अभ्यास का नियम तथा (3) प्रभाव का नियम। प्रोजेक्ट प्रविधि में इन तीनों नियमों का प्रयोग सफलता के साथ किया जाता है।
4. प्रजातान्त्रिक भावनाओं पर आधारित
शिक्षण की यह प्रविधि पूर्णतया प्रजातन्त्रतीय भावनाओं पर आधारित है। इस प्रविधि में छात्रों को विचार-विमर्श कर परियोजना चुनने तथा कार्य करने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है। छात्र परस्पर सहयोग द्वारा सामूहिक परियोजनाओं को पूरा करते हैं। इस प्रकार छात्रों में प्रजातन्त्रात्मक भावनाओं का विकास होता है।
5. मानसिक विकास में सहायक
प्रोजेक्ट प्रविधि में छात्र स्वयं सोचने, निरीक्षण करने तथा परस्पर वाद-विवाद द्वारा किसी समस्या को हल करने का प्रयास करते हैं। अतः उनका मानसिक विकास उचित दशा में होता है।
6. रुचिपूर्ण प्रविधि
यह प्रविधि रुचिपूर्ण है, क्योंकि छात्र प्रकरण सम्बन्धी समस्या को हल करने में आनन्द का अनुभव करते हैं तथा प्रयोजन की स्पष्टता उन्हें कार्य करने के लिये उत्साहित करती है।
7. हस्तकार्य के प्रति श्रद्धा
प्रोजेक्ट प्रविधि में छात्र प्रायः अधिकांश कार्य हाथ से करते हैं। अत: उन्हें हाथ से कार्य करने में आनन्द आता है। वे हाथ से कार्य करने में लज्जा अनुभव नहीं करते।
8. उत्तरदायित्व की भावना का विकास
इस प्रविधि में बालक अपने उत्तरदायित्व को समझने का पाठ सीखता है। जो प्रोजेक्ट (परियोजना) वह हाथ में लेता है उसे पूर्ण करना अपना उत्तरदायित्व समझता है।
9. सहसम्बन्ध पर आधारित
यह शिक्षण प्रविधि सहसम्बन्ध पर आधारित है। इसमें विषयों के समन्वय पर बल दिया जाता है अर्थात् विषयों को पृथक् करके पढ़ाना अमनोवैज्ञानिक है।
10. विद्यालय और समाज से सम्बन्ध
यह प्रविधि विद्यालय और समाज के मध्य सम्बन्ध स्थापित करती है। परियोजना का चुनाव सामाजिक वातावरण से किया जाता है तथा उसे पूरा भी सामाजिक वातावरण में ही किया जाता है।
परियोजना प्रविधि के सिद्धांत
प्रोजेक्ट प्रणाली के निम्न सिद्धान्त हैं-
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प्रयोजनता– प्रोजेक्ट का सप्रयोजन होना परम आवश्यक है। अध्यापक छात्र के सम्मुख प्रयोजन-युक्त कार्य प्रस्तुत करता है।
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क्रियाशीलता– ‘प्रोजेक्ट’ में क्रिया को भी प्रधानता दी जाती है। इसमें ‘करके सीखने’ का सिद्धान्त प्रयोग में लाया जाता है। छात्र जो कुछ भी सीखता है, वह करके सीखता है।
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यथार्थता– छात्र को प्रदान किये जाने वाले समस्यात्मक कार्य यथार्थ या वास्तविक होने चाहिये। वास्तविक जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का हल छात्र शीघ्र निकाल लेते हैं।
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उपयोगिता– उपयोगी कार्यों में छात्र अधिक रुचि रखते हैं तथा उन्हें शीघ्र कर लेते हैं। अतः प्रोजेक्ट का उपयोगी होना भी आवश्यक है अर्थात् ज्ञान का उपयोगी और वास्तविक होना आवश्यक है।
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रोचकता– इस प्रणाली में प्रोजेक्ट का चुनाव छात्र स्वयं करते हैं। अतः अपना कार्य करने में विशेष रुचि लेते हैं। छात्रों के सामने समस्याएँ भी रुचिपूर्ण ही प्रस्तुत की जाती हैं।
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स्वतन्त्रता– प्रोजेक्ट प्रणाली में छात्रों को स्वयं अपना कार्य चुनने की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है।
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सामाजिकता– इस प्रणाली में छात्रों को उन क्रियाओं को करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं, जिनके करने से उनमें सामाजिकता का विकास होता है।
परियोजना प्रविधि के प्रकार
किलपैट्रिक ने प्रोजेक्ट का वर्गीकरण चार प्रकार से किया है-
1. रचनात्मक प्रोजेक्ट
इसका उद्देश्य छात्रों में रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास करना है। इसमें छात्र नाव बनाने, मकान बनाने तथा पत्र लिखने आदि का कार्य करते हैं।
2. समस्यात्मक प्रोजेक्ट
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य छात्रों को बौद्धिक समस्याएँ हल करने के लिए प्रेरित करना है। अध्यापक छात्रों के आगे समस्या रखता है और छात्र उसे हल करने का प्रयास करते हैं।
3. रसास्वादन के प्रोजेक्ट
रसास्वादन के प्रोजेक्टों का उद्देश्य छात्रों में रसानुभूति का विकास करना होता है।
4. अभ्यास के प्रोजेक्ट
इन प्रोजेक्टों का उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि छात्र ने किस सीमा तक कौशल या ज्ञान को ग्रहण किया है?
परियोजना प्रविधि के उदाहरण
सामाजिक योजनाओं में निम्न प्रोजेक्टों या योजनाओं को प्रयोग में लाया जा सकता है-
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ग्राम,नगर या विद्यालय की स्वच्छता ।
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सामुदायिक सर्वेक्षण।
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सिंचाई के विभिन्न साधन।
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यातायात के साधन ।
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पोस्ट ऑफिस, सहकारी बैंक,सरकारी दुकान आदि का अध्ययन।
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ग्राम पंचायत का चुनाव, संगठन एवं कार्य प्रणाली।
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मानचित्र, मॉडल, समय रेखा तथा चित्र आदि का निर्माण।