शिक्षण अधिगम सामग्री – परिभाषा, अर्थ, आवश्यकता, महत्त्व, विशेषताएँ

पाठ्यांश या अन्य विषय से सम्बन्धित किसी अनसमझी तथा क्लिष्ट विषयवस्तु को समझाने हेतु जिन दृश्य (मूर्त) अथवा श्रव्य (अमूर्त) अथवा दोनों के ही सम्मिलित रूप का उपयोग किया जाता है उसे शिक्षण अधिगम सामग्री (Shikshan Samagri) कहते हैं।

Shikshan Samagri - Shikshan Adhigam Samagri

शिक्षण अधिगम सामग्री की अवधारणा (Concept of Teaching Learning Material)

हम इस सत्य से भलीभाँति परिचित हैं कि शिक्षा का क्षेत्र अति व्यापक है। उसका न कहीं ओर-छोर है और न ही सीमाएँ। सृष्टि, ज्ञान से भरी पड़ी है। लेने वाला चाहिये, परन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लेने वाला तो बहुत कुछ लेना चाहता है; किन्तु क्या लिया जाय और क्या नहीं तथा जो लिया जाय वह कैसे ग्रहण किया जाय- इसकी समझ प्राय: लेने वालों में कम ही होती है। ऐसी स्थिति में आवश्यकता होती है। एक ऐसे ज्ञाता की जो विषयवस्तु की गहराई तथा उसे दूसरों को समझाने की विभिन्न विधियों आदि सभी को भली-भाँति जानता तथा समझता हो। इसी ज्ञाता का नाम है- शिक्षक

शिक्षक, ज्ञान को जिस प्रकार दूसरों अर्थात् जिज्ञासु विद्यार्थियों तक पहुँचाता है, उसे शिक्षण की संज्ञा दी जाती है। शिक्षण का कार्य जितना सरल समझा जाता है, यथार्थतः उतना है नहीं। कुछ बातें सरलता से विद्यार्थियों की समझ में आ जाती हैं तो कुछ नहीं भी।

ऐसी स्थिति में विषयवस्तु से सम्बन्धित उन क्लिष्ट अंशों को विद्यार्थियों को समझाने हेतु तरह-तरह की अलग-अलग युक्तियों का आश्रय लेना पड़ता है। कभी किसी बात को समझाने की दृष्टि से उदाहरण देने होते हैं तो कहीं दृष्टान्तों का सहारा लेना होता है। कहीं सूक्तियों, लोकोक्तियों तथा मुहावरों से काम चल जाता है तो कहीं कोई लघुकथा भी सुनानी पड़ सकती है।

यही नहीं, कहीं विभिन्न प्रकार के पत्थरों, मिट्टियों, पौधों आदि को वास्तविक रूप में दिखाना आवश्यक हो जाता है तो शरीर के आन्तरिक भागों तथा प्रति दूरी पर अवस्थित इमारतों आदि को बताने हेतु उनके प्रतिरूप अथवा चित्रों द्वारा समझाना होता है। इन सभी अर्थात्-उदाहरण, दृष्टान्त, लघुकथा, अन्तर्कथा, लोकोक्तियाँ, मुहावरे, मिट्टी, पत्थर अथवा पौधों के वास्तविक रूप अथवा इमारतों आदि के प्रतिरूप या चित्र आदि को शिक्षण के सहायक साधन अथवा निदर्शन साधन एवं सामग्री भी कहा जाता है।

ये साधन मिट्टी, पत्थर, पौधे प्रतिरूप चित्र आदि की तरह दृश्य भी हो सकते हैं तो दृष्टान्त, लोकोक्ति सूक्ति आदि की भाँति शृव्य भी तथा उदाहरणों चलचित्र आदि की भाँति शृव्य दृश्य भी। अतः स्पष्ट है कि-

पाठ्यांश से सम्बन्धित किसी अनसमझी तथा क्लिष्ट विषयवस्तु को समझाने हेतु जिन दृश्य (मूर्त) अथवा श्रव्य (अमूर्त) अथवा दोनों के ही सम्मिलित रूप का उपयोग किया जाता है उन्हें शिक्षण की निदर्शन सामग्री तथा साधन कहते हैं।

शिक्षण अधिगम सामग्री का अर्थ एवं आवश्यकता (Need and Meaning of Teaching Learning Material)

जो सामग्री पाठ को रोचक तथा सुबोध बनाने और किसी संकल्प अथवा प्रत्यय विशेष के अर्थ को सुनिश्चित रूप से अधिक स्पष्ट करने में सहायक सिद्ध होती है, उसे शैक्षणिक सहायकं सामग्री (Teaching aid) कहा जाता है। पाठ्यवस्तु सामग्री को सजीव तथा सरल बनाने में सहायता देने के कारण ही उसे सहायक सामग्री/शैक्षणिक सहायक सामग्री कहते हैं, शैक्षणिक सहायक सामग्री में सामान्यतः कक्षाध्यापन के समय प्रयोग में लाये जाने वाले सभी दृश्य-श्रव्य उपकरण/उपादान अथवा पदार्थ आदि की गणना की जा सकती है, परन्तु झाड़न (Duster), खड़िया (Chalk), संकेतक (Pointer), खड़ियापट्ट/श्यामपट्ट (Black-board) और पाठ्य-पुस्तक (Text-book) आज के युग में अध्यापन की एक प्रकार से अनिवार्य सामग्री हैं।

लेखन कला का विकास होने के बाद ही शिक्षा में लिखित सामग्री का प्रयोग किया जाने लगा था। विगत सौ वर्षों से मुख्यत: खड़ियापट्ट, मानचित्र, चित्र, ज्यामिति-उपकरण तथा विज्ञान से सम्बन्धित उपकरणों का भी प्रयोग किया जा रहा है। भाषा तथा साहित्य शिक्षण के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के शैक्षिक उपकरणों का प्रयोग मुख्यत: पश्चिमी देशों में आरम्भ हुआ है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय से ही अन्य भाषा-अधिगम तथा शिक्षण पर बल दिया जाने लगा था। कम समय में द्वितीय भाषा-व्यवहार में अच्छी गति प्राप्त करने/कराने की दृष्टि से भाषाशास्त्रियों तथा शिक्षाशास्त्रियों का ध्यान भाषा-अध्ययन/अध्यापन के क्षेत्र में शैक्षिक उपकरणों के उपयोग पर गया और शनै:-शनै: भाषा अधिगम तथा शिक्षण में आज स्थिति कम्प्यूटर उपयोग तक पहुँच गयी है।

शिक्षण अधिगम सामग्री का महत्त्व (Importance of Teaching Learning Material)

शिक्षण अधिगम सामग्री के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-

1. पाठ्यांश से सम्बन्धित-तथ्यों को समझाना

प्रत्येक विषय में कुछ न कुछ क्लिष्ट अंश ऐसे होते ही हैं, जिन्हें विद्यार्थी सरलता से नहीं समझ पाते; यथादर्शनशास्त्र एवं हिन्दी के कुछ पाठों में आये हुए शब्दों-आत्मा, मन, संवेदनशीलता, भावुकता आदि को उदाहरण देकर समझाना तो भूगोल एवं सामाजिक अध्ययन जैसे विषयों में अलग-अलग स्थानों की अलग जलवायु के आधार पर वहाँ के लोगों के खान-पान, वेश-भूषा तथा रहन-सहन को स्पष्ट करना। इसी प्रकार शुद्ध विज्ञानों के विषयों के अन्तर्गत पौधे की विभिन्न भागों को समझाना तथा मानव के आन्तरिक अंगों एवं उपांगों का मॉडल या चित्र आदि बताकर समझाना।

2. समझी हुई विषयवस्तु को आत्मसात् करना

किसी बात को समझना एक बात है और उसे आत्मसात् करना एक अलग बात है। समझना बुद्धि का विषय है तो आत्मसात् करने का आशय उसे इस प्रकार ग्रहण करना कि वह बात आचरण का एक अंग बन जाय शिक्षा एवं शिक्षण का उद्देश्य भी यही है।

3. पाठ्यांश को रुच्यात्मक बनाना

किसी बात को समझना एक अलग बात है तो उसे समझने में रुचि लेना एक अलग बात, क्योंकि रुचि (Interest) मन का विषय है तो किसी बात को समझना बुद्धि का विषय। मन और बुद्धि दोनों का अलग-अलग अस्तित्व है। मन जैसा चाहता है, बुद्धि भी उसी दिशा में और वैसा ही सोचने लगती है। इस दृष्टि से मन से उत्पन्न रुचि पहले है तथा बुद्धि के द्वारा किसी बात को ग्रहण करना बाद में। इसीलिये पढ़ाते समय किसी पाठ्यवस्तु को बताते और समझाते समय इस ढंग से बताया जाय कि विद्यार्थी उस बात को जानने और समझने में रुचि लेने लगे।

पाठ्यांश में रुचि कैसे पैदा की जाय-यही काम है शिक्षक का। पढ़ाने से पूर्व उसे सोचना है कि पाठ्यांश से सम्बन्धित हर छोटी से छोटी बात को वह किस ढंग से बताये कि हर कठिन से कठिन बात भी विद्यार्थियों बातों द्वारा समझने की दृष्टि से, उन्हें इतनी सरल और रुचिकर लगने लगे कि उनका मन को समझने में रम जाय। इस बात पर भी उसे ही सोचना है कि पाठ्यवस्तु को रोचक बनाने की दृष्टि से कहाँ क्या उदाहरण और दृष्टान्त देना है तो कहाँ चित्र आदि का प्रयोग करना है? और, जैसा कि पीछे बताया गया इन्हीं मौखिक अर्थात् ‘ शृव्य’ तथा ‘दृश्य’ साधनों को शिक्षण के सहायक साधन कहते हैं। इस प्रकार पाठ्यांश को रुचिकर बनाने में सहायक साधनों का महत्त्व बहुत ही अधिक है।

4. पाठ्यांश को समझने में विद्यार्थियों का ध्यान केन्द्रित कराना

ऊपर, जिस रुच्यात्मकता की बात कही गयी, उसके सम्बन्ध में यह भी कहा गया कि यह मन का विषय है। जिस प्रकार रुचि मन का विषय है, ठीक उसी प्रकार अवधान (Attention) तथा एकाग्रता (Concentration) भी मन के विषय हैं। सहायक सामग्री के माध्यम से न केवल पाठ को समझने में विद्यार्थियों की रुचि ही उत्पन्न कराई जा सकती है; अपितु किसी भी बात को समझने हेतु उस बात पर उनका ध्यान भी केन्द्रित कराया जा सकता है। अतः कह सकते हैं कि शिक्षण के सहायक साधन विद्यार्थियों का ध्यान पाठ पर केन्द्रित करने में बहुत ही अधिक सहायक सिद्ध होते हैं।

इस प्रकार सहायक साधनों के शिक्षण में उपयोग करने की आवश्यकता, महत्त्व तथा उपयोगिता की दृष्टि से, सारांश रूप में यही कहा जा सकता है कि किसी भी प्रकार की विषयवस्तु को समझने से पूर्व तथा समझाते समय सहायक साधनों के द्वारा-

  1. पाठ्यांश को समझने हेतु उसमें रुचि उत्पन्न की जा सकती है।
  2. विद्यार्थियों का ध्यान सरलता से पाठ्यांश पर केन्द्रित कराया जा सकता है।
  3. विषयवस्तु का कोई भी अंश कितना ही क्लिष्ट क्यों न हो, उसे सरलता से समझाया जा सकता है।

सभी बातों को किसी एक ही सहायक साधन की सहायता से समझाया जा सके यह कभी भी सम्भव नहीं।

  1. पाठ्यांश की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, भूगोल जैसे विषय में मानचित्र अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं तो वनस्पति विज्ञान में पौधों आदि के वास्तविक रूप।
  2. इसी प्रकार भाषाओं के शिक्षण में दृष्टान्त लोकोक्तियाँ, सूक्तियाँ अथवा मुहावरे अधिक सहायक सिद्ध होते हैं तो गणित जैसे विषय में उदाहरण देकर समझाना।
  3. इसी प्रकार अन्य विषयों में अलग-अलग प्रकार के सहायक साधन अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं।

शिक्षण अधिगम सामग्री की उपयोगिता (Utility of Teaching Learning Material)

शैक्षिक सहायक सामग्री की उपयोगिता अग्रलिखित प्रकार है-

  1. अध्यापनीय सामग्री को सरस तथा सरल रूप प्राप्त हो जाता है।
  2. विषय-वस्तु की स्पष्टता बढ़ जाती है। हिन्दी भाषा शिक्षण में दृश्य-शृव्य सामग्री का प्रयोग हिन्दी कक्ष अथवा कोना बनाना है।
  3. अध्येय सामग्री रोचक शैली में प्रस्तुत होने के कारण अधिक बोधगम्य बन जाती है।
  4. सामान्यत: ज्ञानेन्द्रियाँ तथा कभी-कभी कर्मेन्द्रियाँ भी क्रियाशील रहती हैं।
  5. प्रत्यक्ष अनुभव होते रहने के कारण स्वयं सीखने की प्रवृत्ति को प्रेरणा तथा बढ़ावा मिलता है।
  6. विद्यार्थी की विचार शृंखला में क्रमिक स्थायित्व आने लगता है।
  7. विद्यार्थी को प्रत्यय निर्माण तथा शुद्ध अर्थ-ग्रहण में सहायता प्राप्त होने के कारण उसके शब्द-भण्डार में वृद्धि होती जाती है।
  8. अमूर्त, जटिल तथा सूक्ष्म बातें (विषयवस्तु) मूर्त, सरल तथा स्वरूपमय प्रतीत होने लगती हैं।
  9. पाठ व्यावहारिक तथा क्रियात्मक बन जाता है।

शिक्षण अधिगम सामग्री का वर्गीकरण (Classification of Teaching Learning Material)

विद्यार्थी के प्राप्य को और अधिक स्पष्ट तथा चिरस्थायी बनाने और उनके अवधान को बनाये रखने के साथ-साथ उसकी इन्द्रियों को क्रियाशील रखने के लिये शैक्षिक उपकरणों का उपयोग नितान्त आवश्यक है। शैक्षणिक उपकरणों की आवश्यकता, उपयोगिता तथा महत्त्व जानकारी के साथ-साथ शिक्षक को यह ज्ञान रखना भी आवश्यक है कि विविध प्रकार की शैक्षिक सहायक सामग्री में से किस सामग्री का कब, कैसे तथा कितना उपयोग किया जाना चाहिये ?

जिस सामग्री का उपयोग या प्रदर्शन किया जाना है उसकी छाँट विवेचनात्मक दृष्टि से की जाय तथा उसका उपयोग या प्रदर्शन करने से पूर्व पाठ या इकाई की सामान्य तथा अनिवार्य परिस्थिति में ही एक सामग्री का प्रयोग एक से अधिक बार किया जाय। चिन्तन प्रक्रिया को और अधिक विस्तार प्रदान करने की दृष्टि से किसी सामग्री का पुनः प्रयोग किया जा सकता है।

विद्यार्थी के समक्ष सामग्री प्रस्तुतीकरण के स्वरूप के आधार पर समस्त शैक्षणिक सहायक सामग्री को मुख्यत: दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  1. प्रक्षेपित (Projected) सामग्री,
  2. अप्रक्षेपित (Unprojected) सामग्री।

प्रक्षेपित सामग्री के अन्तर्गत ऐसी सामग्री की गणना की जाती है, जिसके प्रदर्शन के समय विभिन्न विद्युत यन्त्रों की आवश्यकता पड़ती है। सिनेमा, मूक फिल्म, दूरदर्शन, वीडियो आदि इस वर्ग की सामग्री हैं।

अप्रक्षेपित सामग्री के अन्तर्गत ऐसी सामग्री उपकरणों की गणना की जाती है, जिनके प्रदर्शन के समय विभिन्न विद्युत यन्त्रों या प्रक्षेपण यन्त्रों की आवश्यकता नहीं होती। विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ, वस्तुओं के नमूने, कार्टून, चित्र, रेखाचित्र, पोस्टर, फ्लैश कार्ड आदि की गणना अप्रक्षेपित सामग्री/उपकरणों/ उपादानों में की जाती है।

इन्द्रिय ज्ञान के माध्यम के आधार पर शैक्षणिक सहायक सामग्री को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है-

  1. श्रृव्य साधन (Audio aids),
  2. दृश्य साधन (Visual aids),
  3. शृव्य-दृश्य साधन (Audio-visual aids) |

इन तीनों प्रकार के साधनों को नीचे स्पष्ट किया जा रहा है-

1. श्रृव्य साधन (Audio aids)

शिक्षण के शृव्य-साधन वे हैं, जिनको सुनकर किसी बात को समझने में सहायता मिले; यथा रेडियो (Radio), उदाहरण (Examples) आदि। ये भी दो प्रकार के हो सकते हैं-

  1. मौखिक (Verbal)– शिक्षक द्वारा, दृष्टान्त, उदाहरण आदि के माध्यम से पठितांश को समझाना। मौखिक (Verbal) सहायक साधनों के अन्तर्गत आते हैं।
  2. यान्त्रिक (Mechanical)– जो किसी उद्देश्य विशेष को लेकर बनाये गये हों; यथा रेडियो (Radio), टेप रिकार्डर (Tape recorder), इंटरनेट सामग्री, यूट्यूब आदि।

2. दृश्य साधन (Visual aids)

शिक्षण में सहायक दृश्य साधन वे हैं, जिन्हें दिखाकर पाठ्यवस्तु को समझाने में सहायता मिलती है; यथा-पौधे, फूल, फल तथा पंत्तियाँ; विविध प्रकार की मिट्टियों एवं पत्थर आदि। ये भी तीन प्रकार के हो सकते हैं-

  1. नैसर्गिक या प्राकृतिक (Natural)– इसके अन्तर्गत वे प्राणी या पदार्थ आते हैं; जो स्वत: ही प्रकृति में उपलब्ध हैं; यथा-विविध प्रकार के प्राणी, पौधे, फूल, फल तथा पत्तियाँ आदि ।
  2. मौलिक या उद्भूत (Original)– इनके अन्तर्गत वे रूप, चित्रादि, पाण्डुलिपियाँ, कविताएँ आदि आते हैं जो मनुष्यों की भौतिक कल्पना के आधार पर बनाये जाते हैं और अपने मूल रूप में उपलब्ध हों।
  3. मानवकृत/कृत्रिम– शिक्षण के वे सहायक साधन हैं जो मनुष्य द्वारा स्वतः ही बनाये जाते हैं या बनाये जा सकते हैं; यथा-विविध प्रकार की मूर्तियाँ, चित्र आदि।

3. शृव्य-दृश्य साधन (Audio-visual aids)

शिक्षण के इन साधनों के अन्तर्गत वे सहायक साधन आते हैं, जिनमें किसी भी पाठ्यांश को समझने हेतु सुनना तथा देखना-दोनों साथ-साथ चलते रहते हैं; यथा-टेलीविजन (Television), चलचित्र (Movies) आदि।

शिक्षण के इन सभी सहायक साधनों को जिन्हें किसी पाठ्यांश को सोदाहरण समझाने की दृष्टि से जिन वर्गों में विभक्त किया गया है-उन्हें तालिका रूप में आगे दर्शाया जा रहा है। ध्यान रखने की बात यह है कि साधन बहुत हैं, परन्तु कौन-सा साधन कहाँ, कितना उपयोगी रहेगा इस बात पर अन्ततः शिक्षक को ही सोचना पड़ेगा।

शिक्षण के सहायक साधन (Illustrative Aids in Teaching)

शिक्षण के सहायक साधनों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. प्रकृतिजन्य या प्राकृतिक साधन (Natural Aids)
  2. मनुष्यकृत साधन (Man-made Aids)

शिक्षण के विविध प्रकार के सहायक साधन-

Natural aids of teaching

Man-made aids of teaching

सहायक सामग्री के जिन विविध साधनों का उपरोक्त तालिका में उल्लेख किया गया उनसे प्रकृति भी भरी पड़ी है और मानव-कृत कृत्रिम वस्तुओं एवं उपकरणों की भी कमी नहीं है। आवश्यकता है ऐसी सूझ-बूझ वाले कुशल शिक्षकों की जो पठितांश को समझाने हेतु इन सहायक साधनों का प्रसंग एवं परिस्थिति तथा विषयवस्तु का ध्यान रखते उपयुक्त साधनों का चयन करने में पूरी तरह सक्षम तथा कुशल हों। उनकी कुशलता की पहचान यही है कि उनके विद्यार्थी पढ़ाई जाने वाली विषयवस्तु को कितना समझ पाते और आत्मसात् कर पाते हैं?

उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री की विशेषताएँ (Characteristics of Best Teaching Learning Material)

शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग वर्तमान समय में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में अनिवार्य हो गया है। इसके प्रयोग के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफलता उस अवस्था में प्राप्त हो सकती है, जब यह सामग्री विभिन्न विशेषताओं से युक्त हो । शिक्षण अधिगम सामग्री को उन्नत बनाने वाली ये विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं-

1. बिना लागत के प्राप्त सामग्री (Obtained material without cost)

बिना लागत के प्राप्त सामग्रियों का प्रयोग व्यापक रूप से किया जा सकता हैं क्योंकि इन सामग्रियों के लिये हमको धन की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार की सामग्री के अन्तर्गत प्रकृति प्रदत्त वस्तुएँ एवं प्रयोग रहित सामग्री आती है। हमारे पास वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को लिखने के लिये दो विकल्प होते हैं। प्रथम विकल्प के अन्तर्गत हम बाजार से गत्ता खरीदें तथा उसके चौकोर टुकड़े बनाकर लिखें। द्वितीय विकल्प के अन्तर्गत किताब, कॉपी एवं रजिस्टारों के फटे-टूटे गत्तों में से चौकोर टुकड़े काटकर उस पर अक्षर लिखें। इसमें द्वितीय विकल्प को ही सर्वोत्तम माना जायेगा क्योंकि इसमें किसी प्रकार की लागत नहीं है तथा यह सरलता से प्राप्त एवं निर्मित की जा सकती है।

2. अल्प लागत की सामग्री (Material of low cost)

उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री की द्वितीय विशेषता यह है कि इसके निर्माण में कम से कम लागत होनी चाहिये। कम लागत वाली सामग्री भारतीय परिस्थिति में सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि सरकार आर्थिक रूप से पूर्णत: सक्षम नहीं है कि प्रत्येक विद्यालय को धन उपलब्ध करा सके। अतः भारतीय विद्यालयों में उन शिक्षण अधिगम सामग्रियों का प्रयोग करना चाहिये जिसके निर्माण में कम लागत आये। इस प्रकार की शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग व्यापक स्तर पर किया जा सकता है।

3. बहुउद्देशीय सामग्री (Multipurpose material)

इस प्रकार की सामग्री में उन शिक्षण अधिगम सामग्रियों की गणना की जाती है जो अनेक उद्देश्यों की पूर्ति करती है; जैसेमानचित्र या किसी चार्ट को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तो हमको उसके आकार, रंग एवं कलात्मकता पर पूर्ण विचार करना चाहिये क्योंकि उस शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रत्येक पक्ष छात्रों को अनिवार्य रूप से सूचना प्रदान करता है। इसके द्वारा छात्रों को रंग भरने, कला बनाने तथा आकार आदि का ज्ञान होगा जिसका प्रयोग वह आवश्यकता के अनुरूप कर सकता है।

दूसरे शब्दों में, सामग्री इस प्रकार की होनी चाहिये जो छात्रों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से क्रियाशील रखे तथा छात्रों में विभिन्न दक्षताओं का विकास करे। अतः शिक्षण अधिगम सामग्री का बहुउद्देशीय होना इसकी तीसरी विशेषता है।

4. एक से अधिक कक्षाओं में प्रयोग (Use in more classes)

शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह तथ्य ध्यान रखना चाहिये कि उसको प्रयोग एक से अधिक कक्षाओं में किया जा सके क्योंकि प्रत्येक कक्षा के लिये पृथक् रूप से शिक्षण अधिगम सामग्री निर्मित करने पर धन एवं समय का अपव्यय होगा। विभाग से उपलब्ध विज्ञान किट एवं गणित किट दोनों ही इस प्रकार की सामग्री का उदाहरण हैं। विज्ञान किट एवं गणित किट में उपलब्ध सामग्री का प्रयोग कक्षा 1 से लेकर 5 तक किया जा सकता है।

इसका प्रमुख कारण यह है किविभिन्न कक्षाओं की पाठ्यवस्तु में सहसम्बन्ध पाया जाता है। यह वस्तुएँ एक-दूसरे से सहसम्बन्ध रखती हैं। अत: यह ध्यान रखना चाहिये कि शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण इस प्रकार किया जाय जिससे कि उसका प्रयोग एक कक्षा तक सीमित न हो वरन् एक से अधिक कक्षाओं में प्रयोग सम्भव हो ।

5. एक से अधिक विषयों में प्रयोग (Use in more subjects)

शिक्षण सामग्री का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि उसका प्रयोग एक से अधिक विषयों में किया जा सके; जैसे-वनस्पति विज्ञान की शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग हमारा परिवेश एवं पर्यावरणीय अध्ययन में सरलता से किया जा सकता है; जैसे-हिन्दी से सम्बन्धित शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग संस्कृत शिक्षण में भी किया जा सकता है। इस प्रकार एक ही प्रकार की शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग एक से अधिक विषय में किया जा सकता है। यह उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रमुख विशेषता है।

6. एक से अधिक पाठों में प्रयोग (Use in more lessons)

उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री उसको माना जाता है जो कि एक से अधिक पाठों में प्रयुक्त की जा सके। भूगोल के शिक्षण में मानचित्र का प्रयोग इस प्रकार करना चाहिये जिससे कि वह प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र, गेहूँ उत्पादक क्षेत्र, चावल उत्पादक क्षेत्र एवं नदियों को प्रदर्शित कर सके। इसके लिये हमें विभिन्न रंग एवं संकेतों का प्रया एक ही मानचित्र में करके भिन्न वस्तुओं को प्रदर्शित करना चाहिये। इससे जिस पाठ को हम छात्रों को पढ़ा रहे हैं उसमें उस मानचित्र का प्रयोग किया जा सके। इसी प्रकार अन्य विषयों की शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करना चाहिये। इससे रखरखाव की समस्या उत्पन्न नहीं होती तथा धन एवं समय की बचत होती है।

7. विषय वार पाठ के अनुरूप (According to subject wise lesson)

शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह ध्यान रखा जाय कि वह पाठ के अनुरूप तथा विषय से सम्बन्धित होनी चाहिये। इसके लिये यह आवश्यक है कि शिक्षक को सम्पूर्ण पाठ का अध्ययन करने के पश्चात् यह निर्धारित करना चाहिये कि इस पाठ में प्रमुख रूप से किस प्रकार की शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग आवश्यक है? इसके पश्चात् ही शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करना चाहिये। शिक्षण सामग्री का प्रमुख उद्देश्य उस पाठ की अवधारणा से छात्रों को अवगत कराना है जिसके लिये उसका निर्माण किया गया है। इसलिये हमारा पूर्ण ध्यान उस पाठ के अनुसार ही शिक्षण सामग्री निर्मित करने पर होना चाहिये।

8. शैक्षिक उपयोगिता (Educational utility)

शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्णय .उसकी शैक्षिक उपयोगिता को ध्यान में रखकर करना चाहिये अर्थात् इन सामग्रियों का उद्देश्य विषयवस्तु को स्पष्ट रूप से छात्रों के लिये बोधगम्य रूप में प्रस्तुत करना है। हमको यह मानकर शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण एवं प्रयोग नहीं करना है कि यह अनिवार्य है वरन् उसकी आवश्यकता एवं उपयोगिता को ध्यान में रखकर उसको प्रयोग एवं निर्माण करना है। अनेक पाठ ऐसे होते हैं, जिनमें शिक्षण अधिगम सामग्री की विशेष आवश्यकता नहीं होती है। इसलिये शिक्षण अधिगम सामग्री उस अवस्था में सर्वोत्तम मानी जायेगी जिस अवस्था में उसकी शैक्षिक उपयोगिता सिद्ध हो ।

9. बालकों की रुचि, आयु एवं मानसिक स्तर के अनुरूप (According to interest, age and mental level of children)

शिक्षण अधिगम सामग्री की उत्तमता के लिये यह आवश्यक है कि यह छात्रों की रुचि, आयु एवं मानसिक स्तर के अनुकूल होनी चाहिये। रुचि के सन्दर्भ में यह ध्यान रखना चाहिये कि शिक्षण अधिगम सामग्री छात्रों का प्रिय लगनी चाहिये तथा आकर्षक होनी चाहिये। दूसरे शब्दों में छात्र शिक्षण सामग्री के प्रति रुचि प्रदर्शित करें तथा विषयवस्तु को समझने में उस सामग्री की आवश्यकता का अनुभव करें।

आयु के सन्दर्भ में भी प्रमुख रूप से शिक्षण अधिगम सामग्री के स्वरूप की चर्चा की जाती है। यदि छात्र की आयु 6 वर्ष से 8 वर्ष के मध्य है तो शिक्षण अधिगम सामग्री का स्वरूप खेल प्रधान गतिविधियों से सम्बन्धित होना चाहिये; जैसे- बालकों को गिनती एवं पहाड़े सिखाने के लिये कंकड़ों का प्रयोग एवं चार्टों का प्रयोग करना। यदि छात्र 8 से 14 वर्ष के मध्य है तो उनके लिये शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में प्रतिरूप, चार्ट, प्रोजेक्टर, टेपरिकॉर्डर एवं यूट्यूब के शैक्षिक कार्यक्रमों को प्रस्तुत किया जा सकता है।

इसी क्रम में छात्रों की मानसिक आयु अर्थात् मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर ही शिक्षण अधिगम सामग्री निर्मित होनी चाहिये। बहुत से छात्रों का मानसिक स्तर उनके आयु स्तर से अधिक होता है तथा बहुत से छात्रों का मानसिक स्तर आयु स्तर से कम होता है। इसलिये मानसिक स्तर को ज्ञात करके ही छात्रों के लिये शिक्षण अधिगम सामग्री तैयार करनी चाहिये।

यदि कक्षा में उच्च स्तर के अर्थात् प्रतिभावान छात्र हैं तो निर्मित सामग्री स्तर उच्च होगा; जैसे- प्रोजेक्टर का प्रयोग, आँकड़ों का चार्ट एवं वीडियो टेप आदि। इसके विपरीत यदि छात्र का मानसिक स्तर निम्न है तो निर्मित सामग्री का स्तर भी निम्न होना चाहिये; जैसे- फ्लैश कार्ड, जड़, पत्ती एवं पौधों की टहनी आदि। अत: यह स्पष्ट होता है कि उत्तम शिक्षण सामग्री का निर्माण करने के लिये छात्रों की रुचि, आगु मानसिक स्तर को ध्यान में रखना चाहिये।

10. कक्षा व्यवस्था के अनुसार सामग्री का आकार प्रकार (Format of material according to class system)

उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण हेतु यह आवश्यक है कि उसके तैयार करने से पूर्व जिस कक्षा में उसे प्रयुक्त किया जाना है उसके आकार एवं छात्र संख्या पर विचार कर लिया जाय। इस सन्दर्भ में कक्षा-कक्ष का आकार एवं छात्र संख्या दो प्रमुख बिन्दु होते हैं।

यदि छात्र संख्या कम तथा कक्षा-कक्ष का आकार छोटा है तो शिक्षण अधिगम सामग्री का आकार भी छोटा हो सकता है परन्तु अधिक छात्र संख्या एवं बड़े कक्षा-कक्ष के लिये शिक्षण अधिगम सामग्री का आकार भी बड़ा होना चाहिये। इस व्यवस्था का प्रमुख आशय यह है कि शिक्षण अधिगम सामग्री का आकार इस प्रकार का होना चाहिये कि सभी छात्रों को स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो। पीछे के छात्रों को उसे देखने में किसी प्रकार की असुविधा न हो।

11. सरलता से उपयोग में लाये जाने योग्य (Easy in use)

शिक्षण अधिगम सामग्री का निर्माण करते समय यह तथ्य ध्यान देने योग्य होता है कि उसका प्रयोग कक्षा-कक्ष में सरल रूप में किया जा सके। शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग में अधिक समय एवं धन का अपव्यय नहीं होना चाहिये तथा उसके निर्माण में किसी विशेष व्यवस्था का आयोजन नहीं करना चाहिये।

दूसरे शब्दों में उत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री उसे कहते हैं जो कि प्रयोग एवं निर्माण में सरल होती है; जैसे-चार्ट, पोस्टर, मॉडल एवं प्रकृति प्रदत्त वस्तुएँ आदि।

12. बालकों के लिये हानिरहित (Harmless to children)

शिक्षण अधिगम सामग्री की प्रमुख एवं अन्तिम विशेषता यह है कि इससे छात्रों को किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचनी चाहिये। प्राय: छात्र वीडियो रिकॉर्डिंग एवं चलचित्र से सम्बन्धित कार्यक्रमों को शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में अधिक पसन्द करते हैं। इनके प्रयोग करने से पूर्व ध्यान देना चाहिये कि छात्रों की आँखों को इससे कोई हानि न पहुँचे। इसके प्रदर्शन से पूर्व समुचित व्यवस्था उचित प्रकार से कर लेनी चाहिये। इसी प्रकार टेपरिकॉर्डर, रेडियो एवं यूट्यूब के माध्यम से प्रस्तुत कार्यक्रमों में ध्वनि की तीव्रता सामान्य होनी चाहिये जिससे छात्रों की श्रवणेन्द्रियों को हानि न पहुँचे। इससे यह स्पष्ट होता है कि शिक्षण अधिगम सामग्री पूर्णत: हानिरहित होनी चाहिये।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि सर्वोत्तम शिक्षण अधिगम सामग्री को निर्मित करने में उपरोक्त बिन्दुओं का अवश्य ध्यान रखना चाहिये। इस सन्दर्भ में प्रो. एस. के. दुबे लिखते हैं कि “शिक्षण अधिगम सामग्री के निर्माण एवं प्रयोग में सरलता, मितव्ययता, शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति एवं अधिगम स्तर में तीव्रता तथा स्थायित्व आदि ऐसे गुण हैं जो कि उसके सर्वोत्तम स्वरूप को विकसित करते हैं।” अर्थात् उक्त गुणों से युक्त शिक्षण अधिगम सामग्री ही सर्वोत्तम कहलाती है। शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग मात्र दिखावे के लिये नहीं करना चाहिये वरन् उसका वास्तविक रूप में प्रयोग करना चाहिये, जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी एवं बोधगम्य बनाया जा सके।

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