पर्यवेक्षित अध्ययन प्रविधि का जन्म अमेरिका महान शिक्षाविद मॉरिसन द्वारा किया गया। इसको निरीक्षित, निरीक्षण, परिवीक्षित, समाजीकृत, अभिव्यक्ति विधि, पारिपाक विधि, उपचारी विधि, पर्यवेक्षण आदि नामों से भी जाना जाता है।
निर्देशित स्वाध्याय विधि को मोरीसन ने प्रस्तुत किया। यह विधि एक ऐसी शिक्षण प्रविधि है जिसके अन्तर्गत छात्र स्वयं अध्ययन करते हैं किसी समस्या का समाधान करते हैं और शिक्षक इसमें एक पथ-प्रदर्शक होता है। वह केवल छात्रों का मार्गदर्शन करता है।
इस विधि का प्रयोग उन विषयों के लिए अधिक उपयोगी है जिन विषय को छात्र स्वयं करने में सक्षम होते हैं। पर्यवेक्षित अध्ययन की एक विधि है जो कुशल शिक्षक के निरीक्षण और निर्देशन में सम्पन्न होती है।
इस विधि में बालक स्वाध्यायरत रहते हैं और यदि उन्हें किसी प्रकार की कठिनाई प्रतीत होती है, जिसका समाधान वे स्वयं नहीं कर सकते तो कुशल शिक्षक सहायता और उचित निर्देशन द्वारा बालकों की समस्याओं को सुलझाने का पूर्णतया प्रयत्न करता है।
पर्यवेक्षित अध्ययन प्रविधि की परिभाषाएँ
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पी.एन. अवस्थी, “निरीक्षित अध्ययन पद का अर्थ स्वतः स्पष्ट है। इसका तात्पर्य यह है कि जब विद्यार्थी कार्यरत हो तो शिक्षक द्वारा उसका निरीक्षण कर इस प्रक्रिया में कार्य प्रदत्त कर दिया जाता है तथा वे कार्य में मस्त रहते है और कठिनाई अनुभव होती है शिक्षक की सहायता से मार्गदर्शत लेते है व कार्य करते हैं।”
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क्लार्स एवं स्टार, “निरीक्षित अध्ययन विधि छात्रों को निर्देशन में अध्ययन करने तथा अध्यापक को निरीक्षण एवं निर्देशित करने के अवसर प्रदान करती है।”
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बाॅसिंग, “कुशल शिक्षक के निर्देशन से उच्चस्तरीय प्रदत्त कार्य को पूर्ण करने के लिए कुशल अध्ययन की तकनीकियों को समझने और उन पर अधिकार प्राप्त करने का नाम ही पर्यवेक्षित अध्ययन है।”
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क्लाॅसमियर– “निरीक्षण अध्ययन कालांश से अध्यापक द्वारा दिये गये कार्य छात्रों द्वारा प्रारंभ की गई क्रियाओं तथा विभिन्न प्रकार की व्यक्तिगत योजनाओं पर आधारित होते हैं। अध्यापक प्रत्येक छात्र की सहायता करता है।’
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रस्क के अनुसार- “निर्देशित अध्ययन का अर्थ है- अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों की उन क्रियाओं को निर्देशित करना जो मुख्य रूप से किसी समस्या समाधान प्राप्ति या योग्यताओं की प्राप्ति से संबंधित है। और जिनके लिए शिक्षार्थी आयोजन के लिए प्रयास करता है।”
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बाईनिंग व बाईनिंग, “मेज या दराजो के चारों ओर बैठे हुए कार्यरत समूह या कक्षा के शिष्यों का शिक्षक द्वारा पर्यवेक्षिण करना ही पर्यवेक्षित अध्ययन है।”
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मैक्सवेल तथा किल्जर, “बालकों को ऐसी प्रयोगशालाओं संबंधी क्रियाओं का शांत रूप में किया गया अध्ययन ही परिवीक्षित अध्ययन है जिसमें अध्यापक का काम केवल मार्ग दर्शन होता है।”
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“छात्रों के शान्तिपूर्वक अध्ययन एवं प्रयोगशालीय क्रियाओं के बहिर्पक्षीय दर्शन तथा प्रभावपूर्ण दिशा-निर्देशन का नाम ही पर्यवेक्षित अध्ययन है।”
निरीक्षण विधि को भी एक प्रभावशाली अधिगम विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है। बालक में जितनी अधिक गहन एवं व्यापक निरीक्षण की क्षमता होगी बालक उतनी ही तीव्र गति से सीखने का प्रयास करेगा।
जैसे– जेम्सवाट ने चाय की केतली के ढक्कन के ऊपर-नीचे गिरने की प्रक्रिया का गहन निरीक्षण किया तथा उस पर तार्किक रूप से विचार किया तो यह जान लिया कि भाप में शक्ति होती है। इसी आधार पर उसने भाप के इन्जन का निर्माण करके अपने आपको इतिहास में अमर कर लिया।
ठीक इसी प्रकार बालक विद्यालय, घर एवं समाज में अनेक तथ्यों को निरीक्षण के माध्यम से सीखते हैं। बालक वर्षा काल में पौधों के उगने, फसलों के उत्पादन एवं कुहरे के पड़ने के बारे में सीखता है। वह इस सन्दर्भ में अनेक प्रश्न अपने आप से करता है, अपने सहयोगियों से करता है तथा एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचकर ज्ञान प्राप्त करता है।
बालक के निरीक्षण की प्रक्रिया विद्यालय एवं विद्यालय के बाहर चलती रहती है। इसलिये इसे एक व्यापक विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है। निरीक्षण विधि को बालकों के सीखने की प्रभावशाली विधि माना जाता है। विस्तार से पढ़ें – निरीक्षण द्वारा सीखना।
पर्यवेक्षित अध्ययन विधि के प्रयोग के विविध रूप
सम्मेलन योजना
इस विधि में कुछ सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं और बालकों की व्यक्तिगत कठिनाइयों का निवारण पूरे सम्मेलन में किये जाते है। यह सम्मेलन एक विचार गोष्ठी के रूप में सम्पन्न होती है।
विशिष्ट अध्यापक योजना
इसके विधि में एक विशिष्ट अध्यापक बालकों के दोषों, उनकी भ्रान्त धारणाओं एवं कठिनाइयों को दूर करता है।
विभाजित कालांश योजना
इस विधि के अनुसार एक ही कालांश के अन्तर्गत दो अध्यापक बालकों के कार्यों का निरीक्षण करते हैं
द्वि-कालांश योजना
इस विधि के अनुसार एक ही विषय सामग्री के अध्ययन के लिये दो कालांश दिये जाते हैं।
प्रथम कालांश में निश्चित विषय को पढ़ाने का आदेश देकर उससे सम्बन्धित भूमिका प्रस्तुत की जाती है और दूसरे कालंाश में उनकी अध्ययन विधियों का निरीक्षण किया जाता है
मेबेल ई. सिम्पसन ने इस विधि का प्रयोग बङे ही सराहनीय ढंग से किया है। उन्होंने 80 मिनट के दो संयुक्त कालांशों को अधोलिखित रूप में विभक्त किया था:-
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समीक्षा 25 मिनट
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गृह कार्य 25 मिनट
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शारीरिक व्यायाम 5 मिनट
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समर्पित कार्यों का अध्ययन 35 मिनट
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योग: 90 मिनट
सामयिक योजना
इस विधि में शिक्षक किसी कार्य को करने का आदेश देकर कुछ निश्चित अवधि के बाद बालकों की प्रगति का परीक्षण करता है।
इस प्रकार साप्ताहिक, पाक्षिक अथवा मासिक रूप में वह परीक्षण एवं निर्देशन का कार्य करता है। तीसरी योजना में प्रत्येक विषय के लिए प्रति सप्ताह एक घंटे निरीक्षित अध्ययन के लिए निर्धारित कर दिया जाता है।
पर्यवेक्षित अध्ययन की विशेषताएँ
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इस पद्धति में व्यक्तिगत संलग्नता के सिद्धान्त का अनुकरण किया जाता है।
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पर्यवेक्षित अध्ययन स्वाध्याय की एक विधि है।
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पर्यवेक्षित अध्ययन छात्रों को आत्मनिर्भर और कुशल बनाने का एक प्रयत्न है।
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मंद बुद्धि के छात्र इस पद्धति से काफी लाभ उठा सकते हैं।
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व्यक्तिगत संलग्नता अनुशासनहीनता की समस्या को स्वतः ही दूर कर देती है।
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इस पद्धति के व्यक्तिगत विभिन्नता पर आधारित होने के कारण प्रत्येक छात्र को अपनी क्षमता तथा योग्यता के अनुसार अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है।
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इस पद्धति के अन्तर्गत शिक्षक एवं छात्रों के मध्य मधुर सम्बन्ध स्थापित होते हैं।
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इस पद्धति में सीखने का महान गुण है। पर्यवेक्षित अध्ययन में कुशल निर्देशन की आवश्यकता पङती है।
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पर्यवेक्षित अध्ययन वह शिक्षण विधि है, जिसके द्वारा छात्र अध्यापक के कुशल निरीक्षण तथा निर्देशन में स्वाध्याय द्वारा विषय को समझने और उसमें कुशलता प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
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पर्यवेक्षित अध्ययन विधि के उपागम के चार सोपान होते हैं।
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इस विधि में अध्यापक व विद्यार्थी दोनों सक्रिय रहते हैं।
पर्यवेक्षित अध्ययन के उद्देश्य
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वैयक्तिकता पर आधारित शिक्षा
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आवश्यकतानुसार निर्देशन
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गृहकार्य की समस्या समाधान (गृहकार्य कालांश में ही करा दिया जाता है)
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छात्रों को स्वाध्यायशील बनाना
मुनरो ने छात्रों के स्वतन्त्र एवं व्यक्तिगत अध्ययन के लिए 9 नियम निर्धारित किये हैं
पर्यवेक्षित अध्ययन विधि के दोष
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इसमें व्यय अत्यधिक होता है तथा कष्ट साध्य भी है।
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इस विधि से तीव्र बुद्धिवाले बालक लाभान्वित नहीं हो पाते यहाँ तक कि कभी-कभी तो यह उनके लिये बाधा बन जाती है।
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यह विधि केवल कुशल शिक्षक द्वारा ही सफलतापूर्वक अपनायी जा सकती है।
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छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं।