आगमन प्रविधि (Inductive Technique)
आगमन प्रविधि में छात्र विशिष्ट से सामान्य (Specific to general) की ओर अग्रसर होते हैं। छात्र के सामने सर्वप्रथम अनेक उदाहरण रखे जाते हैं और फिर वह इन उदाहरणों के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालता है। इस शिक्षण प्रविधि का अधिकांश प्रयोग व्याकरण शिक्षण के अन्तर्गत किया जाता है।
आगमन प्रविधि के गुण (Merits of inductive technique)
इस प्रविधि में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं:-
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यह प्रविधि मनोवैज्ञानिक है क्योंकि इसमें मूर्त से अमूर्त की ओर (Concerete to obstruct) चलते हैं।
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इस प्रविधि में कक्षा का वातावरण उदाहरणों द्वारा सजीव एवं रुचिकर बनाना सम्भव होता है।
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इस प्रविधि में छात्र अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया में रुचि लेते हैं तथा ध्यान से सुनते हैं।
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इस प्रविधि से छात्रों की विचार शक्ति को प्रोत्साहन मिलता है।
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इस प्रविधि में छात्र तर्क के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।
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इस प्रविधि में रटने की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाना सम्भव है तथा ज्ञान को स्थायी रूप से हृदयंगम कराना सरल है।
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इस प्रविधि में छात्र एवं अध्यापक दोनों ही क्रियाशील रहते हैं।
आगमन प्रविधि के दोष (Demerits of inductive technique)
आगमन प्रविधि के दोष निम्नलिखित हैं:-
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अध्यापक को उदाहरण देने की कला में प्रवीण होना अत्यावश्यक है।
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किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये पर्याप्त उदाहरण देने पड़ते हैं। अत: बहुत समय नष्ट होता है।
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उच्च स्तर पर इस प्रविधि का प्रयोग करना अच्छा नहीं है।
निगमन प्रविधि (Deductive Technique)
निगमन प्रविधि आगमन प्रविधि की विपरीत प्रविधि है, क्योंकि इसमें पहले कोई सिद्धान्त या नियम रखा जाता है, फिर विभिन्न उदाहरणों से उसकी पुष्टि की जाती है। इस शिक्षण प्रविधि में सामान्य से विशिष्ट की ओर (General to specific) चलते हैं।
निगमन प्रविधि के गुण (Merits of deductive technique)
इस प्रविधि में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं:-
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इस प्रविधि से पाठ्यक्रम निश्चित समय में सरलता से पूरा किया जा सकता है क्योंकि दो या तीन उदाहरण देकर ही किसी सिद्धान्त या नियम की पुष्टि की जा सकती है।
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यह प्रविधि उच्च स्तर पर बहुत उपयोगी है।
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छात्र को अपेक्षाकृत कम परिश्रम करना पड़ता है।
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अध्यापक सरलता से इसका अनुसरण कर सकता है।
निगमन प्रविधि के दोष (Demerits of deductive technique)
इस प्रविधि में निम्नलिखित दोष हैं:-
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इस प्रविधि में छात्र सक्रिय नहीं रहता है। अत: इसको बाल-केन्द्रित (Childcentre) नहीं कहा जा सकता।
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छात्र में रटने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है।
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छात्र को सोचने एवं तर्क करने का अवसर नहीं मिलता।
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इस प्रविधि का प्रयोग छोटी कक्षाओं में किया जाना कठिन है।
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यह प्रविधि छात्रों को आत्मनिर्भर नहीं बनाती क्योंकि वे अध्यापक पर अधिक निर्भर करते हैं।
दोनों प्रविधियों के गुण-दोषों को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि दोनों ही प्रविधियों का हिन्दी व्याकरण शिक्षण में प्रयोग करना चाहिये ताकि एक प्रविधि के दोषों को दूसरी प्रविधि के प्रयोग से दूर किया जा सके। अत: अध्यापक को आगमन एवं निगमन प्रविधियों का सावधानीपूर्वक समन्वय करके अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया को अधिक प्रभावकारी बनाना चाहिये।