बुनियादी शिक्षण प्रविधि – बेसिक शिक्षा योजना / गांधीजी की वर्धा योजना

Buniyadi Shikshan Pravidhi

बुनियादी शिक्षण प्रविधि

Basic Teaching Technique

1937 ई० में महात्मा गांधी ने वर्धा योजना शुरू की। इसको बुनियादी शिक्षा या नई तालीम के नाम से भी जाना जाता है, परन्तु इसका प्रचलित नाम बेसिक शिक्षा है। इस शिक्षा का केन्द्र बिन्दु कोई आधारभूत शिल्प होगा जिसका शिक्षण प्राप्त कर व्यक्ति अपने जीविकोपार्जन की समस्या सुलझा सकेगा।

महात्मा गाँधी ने भारतीय शिक्षा जगत् को बुनियादी शिक्षा के माध्यम से एक नवीन मोड़ दिया। भारत की दरिद्रता, निरक्षरता, परतन्त्रता एवं विद्यालय की नीरसता को दूर करने के लिये बुनियादी शिक्षा में निदान रखे गये।

शिक्षा को उद्योग केन्द्रित बनाया जाय, इस आवाज को उठाया गया तथा शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को बनाया जाय, इस बात पर बल दिया गया। महात्मा गाँधी ने छात्र के मस्तिष्क में प्रारम्भ से श्रम एवं स्वावलम्बन के सुसंस्कारों को जन्म देने का समर्थन किया था।

अध्यापन की इसी प्रविधि को समवायी प्रविधि का नाम भी दिया गया।

इस शिक्षण प्रविधि द्वारा शिक्षा प्राथमिक स्तर पर सफलतापूर्वक दी जा सकती है। गद्य एवं पद्य की व्यवस्थित शिक्षा को अवश्य ही इस प्रणाली द्वारा दे पाना कठिन नहीं, असम्भव है। इसका समन्वय स्वाभाविकता को बनाये रखता है।

बेसिक शिक्षा का पाठ्यक्रम

बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में निम्न विषय हैं:-

  1. बुनियादी शिल्प– निम्नलिखित बुनियादी शिल्पों में से कोई भी एक चुना जा सकता है- (क) कृषि, (ख) कताई-बुनाई, (ग) लकड़ी का कार्य, (घ) मछली पालना, (ङ) चर्म कार्य, (च) मिट्टी का काम, (छ) फल और शाक, उद्यान कार्य, (ज) स्थानीय और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप कोई भी अन्य शिल्प।
  2. मातृभाषा
  3. गणित
  4. सामाजिक अध्ययन– इतिहास, भूगोल और नागरिकशास्त्र,
  5. सामान्य विज्ञान– इसमें निम्नांकित विषय सम्मिलित होंगे- (क) प्रकृति अध्ययन, (ख) वनस्पति शास्त्र, (ग) जीव-विज्ञान, (घ) रसायन शास्त्र, (ङ) शरीर विज्ञान, (च) स्वास्थ्य विज्ञान, (छ) नक्षत्र विज्ञान, (ज) महान वैज्ञानिकों एवं अन्वेषकों की कथाएँ।
  6. कला– संगीत व चित्रकला,
  7. हिन्दी
  8. गृह विज्ञान-(बालिकाओं के लिए)
  9. शारीरिक शिक्षा– व्यायाम और खेलकूद।

बुनियादी शिक्षा की प्रशिक्षण विधि

बुनियादी विद्यालय के शिक्षक

बुनियादी शिक्षा संस्थानों में शिक्षा का तथा शिक्षक का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। जिन क्षेत्रों में विद्यालय स्थित होते हैं उसी क्षेत्र के व्यक्तियों को शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाता है। शिक्षक के द्वारा किसी बुनियादी शिल्प के माध्यम से ही शिक्षा दी जाती है तथा शिल्प के चुनाव में स्थानीय व भौगोलिक आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता है।

शिक्षक प्रशिक्षण

बुनियादी विद्यालयों में प्रशिक्षित शिक्षकों की ही नियुक्ति की जाती है। इस प्रकार के विद्यालयों की सफलता शिक्षकों के ऊपर ही निर्भर करती है। अत: शिक्षकों को दो प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है-

  1. दीर्घकालीन प्रशिक्षण– दीर्घकालीन प्रशिक्षण तीन वर्ष की अवधि का होता है।
  2. अल्पकालीन प्रशिक्षण– अल्पकालीन प्रशिक्षण एक वर्ष की अवधि का होता है। शिक्षकों को हस्तशिल्प की विधि से अवगत कराया जाता है।

बुनियादी शिक्षण विधि

बुनियादी शिक्षा मूलरूप से व्यावहारिक होती है तथा बालक एक साथ कई विषयों का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। बुनियादी शिक्षा क्रियाओं तथा अनुभवों पर आधारित है इसीलिए इसका ज्ञान थोड़े से समय में ही हो जाता है।

बालकों की शिक्षण व्यवस्था निम्न प्रकार होती है-

  1. सबसे पहले बच्चों को कहानी तथा बातचीत के माध्यम से मातृभाषा का ज्ञान कराया जाता है।
  2. मातृभाषा का ज्ञान होने पर बच्चे पहले उसे पढ़ना तथा फिर लिखना सीखते हैं।
  3. पढ़ाई के साथ-साथ बालक किसी आधारभूत शिल्प का ज्ञान भी प्राप्त करते हैं।
  4. जैसे-जैसे बच्चा आगे की कक्षाओं में पहुँचता है वैसे ही उसे विभिन्न विषयों का ज्ञान भी प्राप्त होता रहता है।
  5. प्राकृतिक वातावरण, सामाजिक वातावरण तथा हस्तकला के माध्यम से अनेक विषयों का ज्ञान बालकों को कराया जाता है।
  6. बालक अपनी रुचि के अनुसार हस्तशिल्प का चयन करता है।

बेसिक शिक्षा की शिक्षण पद्धति

बेसिक शिक्षा में सामान्य शिक्षण विधि से सर्वथा भिन्न अध्यापन पद्धति प्रयुक्त होती है और शिक्षण कार्य क्रियाओं व अनुभवों के माध्यम से किया जाता है तथा छात्रों को थोड़े समय में ही विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान किया जाता है।

प्रारम्भिक कक्षा में बालक को मातृभाषा का मौखिक ज्ञान करा कर क्रमशः पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है और जब वे लिखना सीखते हैं, तभी उन्हें किसी बुनियादी शिल्प की शिक्षा भी दी जाती है।

बालक ज्यों-ज्यों आगे की कक्षाओं में पहुँचते हैं, त्यों-त्यों उन्हें विभिन्न विषयों का ज्ञान कराया जाता है, पर उन्हें इन विषयों की शिक्षा स्वतंत्र रूप से न देकर किसी बुनियादी शिल्प के माध्यम से दी जाती है।

यदि कभी किसी विषय का कोई अंश बुनियादी शिल्प के माध्यम से बढ़ाना असम्भव होता है, तब उसे अन्य किसी विधि से पढ़ा दिया जाता है कि सभी पाठ्य-विषय परस्पर सम्बद्ध ज्ञान क्षेत्रों के रूप में छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किये जायें।

इस प्रकार सात वर्ष की अवधि के उपरान्त बालक न केवल सभी विषयों का सम्यक् ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, अपितु उन्हें बुनियादी शिल्प का भी इतना अधिक ज्ञान हो जाता है कि वे अपने भावी जीवन में जीविकोपार्जन की समस्या सहज ही सुलझा लेते हैं।

बुनियादी शिक्षा की विशेषतायें

बेसिक शिक्षा में निम्नलिखित विशेषतायें पायी जातीं हैं:-

  1. कक्षा पाँच तक शिक्षा का पाठ्यक्रम सह-शिक्षा के रूप में है।
  2. कक्षा पाँच के बाद बालक व बालिकाओं की शिक्षा का प्रबन्ध अलग-अलग है।
  3. छठी तथा सातवीं की कक्षाओं में बालिकाओं की गृहविज्ञान की शिक्षा आधारभूत शिल्प के स्थान पर मान्य हो सकती है।
  4. सातवीं तथा आठवीं की कक्षाओं के लिए संस्कृत, वाणिज्य, आधुनिक भारतीय साहित्य आदि विषय हैं।
  5. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा है लेकिन राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी अनिवार्य है।
  6. पाठ्यक्रम का स्तर वर्तमान मौद्रिक के स्तर का है।
  7. पाठ्यक्रम में अंग्रेजी व धर्म का कोई स्थान नहीं है।

बेसिक शिक्षा के गुण

बेसिक शिक्षा में निम्नलिखित गुण होते हैं:-

  1. इसमें सात वर्ष से लेकर चौदह वर्ष तक के बालक-बालिकाओं के लिए निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की गयी। शिक्षा केवल माता-पिता की दृष्टि से ही निःशुल्क होगी अर्थात् संरक्षकों को अपनी बालकों की शिक्षा व्यवस्था का खर्च न देना होगा, लेकिन स्वयं विद्यार्थी को अपनी शिक्षा का व्यय उत्पादक कार्य के रूप में देना होगा।
  2. बेसिक शिक्षा में अपव्यय नहीं होता और विद्यार्थी उत्तम नागरिकता के गुणों से युक्त “हो जीविका की समस्या सुलझाने में समर्थ हो सकता है।
  3. बेसिक शिक्षा का जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है और इसमें वास्तविक उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न होती है।
  4. वह शिक्षा किसी हस्तोद्योग या उत्पादक कार्य द्वारा दी जाती है तथा यह हस्तोद्योग ऐसा होता है जो साधन व साध्य दोनों का ही काम करता है तथा जिसके साथ अन्य विषय भी सम्बद्ध होते हैं।
  5. इस शिक्षा में अंग्रेजी भाषा के स्थान पर मातृ-भाषा को माध्यम माना गया और हिन्दी के साथ-साथ प्रादेशिक भाषाओं के विकास को भी समुचित अवसर दिया गया।
  6. बेसिक शिक्षा का केन्द्र बालक है और उसमें क्रिया व आत्मचेष्टा द्वारा किसी विषय को सीखने पर जोर दिया जाता है तथा उसकी वैयक्तिक रुचि पर ध्यान रखा जाता है।
  7. इसमें राष्ट्रीयता, स्वदेश-प्रेम व असाम्प्रदायिकता की भावनाएँ भी हैं।
  8. यह शिक्षा देश की भौगोलिक, आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों के सर्वथा अनुकूल है।
  9. बेसिक शिक्षा गांधी जी द्वारा अनुमोदित सत्य व अहिंसा के आदर्श से प्रभावित है।
  10. यह शिक्षा बालक के वातावरण घर, ग्राम व हस्तोद्योग से सम्बन्धित रहती है और इसका आधारबिन्दु भी यही वातावरण है।
  11. इसमें प्रशिक्षित अध्यापकों की ही नियुक्ति होती है और अध्यापकों को अधिक स्वतंत्रता भी दी जाती है।

बेसिक शिक्षा के दोष

इतनी विशेषतायें तथा गुण होने के बाद भी बेसिक शिक्षा में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं:-

  1. यह शिक्षा नगरों के लिए उपयोगी न होकर केवल ग्रामों के लिए उपयोगी हो सकती है।
  2. उत्पादित सिद्धान्त (Principle of Productivity) की अधिकता के कारण न केवल बेसिक विद्यालय कुटीर उद्योग में परिणित हो जायेंगे, अपितु अध्यापकों के नैतिक पतन की भी सम्भावना है, क्योंकि वे विद्यालयों को कारखाना व छात्रों को धनोपार्जन का साधन समझेंगे।
  3. बुनियादी शिल्प द्वारा समस्त विषयों का शिक्षण कार्य असम्भव है और न तो इसके द्वारा विद्यार्थियों का सर्वाङ्गीण विकास ही होगा तथा न वह सामान्य शिक्षा ही प्राप्त कर सकेंगे।
  4. यद्यपि इसमें भारतीय सांस्कृतिक परम्परा को सुरक्षित रखने की बात कही गयी है, परन्तु धर्म को शिक्षा में कुछ भी स्थान नहीं दिया गया, अतः धर्म-विहीन बेसिक शिक्षा उचित नहीं है।
  5. बेसिक शिक्षा की समय-सारिणी (Time Table) भी त्रुटिपूर्ण है और इसमें बुनियादी शिल्प के लिए तो 3 घंटे 22 मिनट का समय निर्धारित है, पर अन्य विषयों को बहुत ही कम समय दिया गया है।
  6. बेसिक विद्यालयों में प्रतिवर्ष 288 दिन शिक्षण की व्यवस्था रखी गयी है, लेकिन इतने अधिक कार्यदिवस रखने से बालकों को अत्यधिक श्रम करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
  7. इस शिक्षा में समय भी अधिक नष्ट होता है और शिक्षा सस्ती व सुलभ होने की अपेक्षा महँगी ही है।
  8. इसमें माध्यमिक व उच्च शिक्षा की उपेक्षा कर प्राथमिक शिक्षा पर आवश्यकता से अधिक जोर दिया गया।
  9. आधुनिक वैज्ञानिक युग में कताई-बुनाई से समान मध्यकालीन उद्योगों का प्रयोग करने से भारत की औद्योगिक प्रगति रुक जायेगी।

इतना ही नहीं, विचारकों का तो यह भी कहना है कि यह योजना काल्पनिक, अनावश्यक विश्वास, मनः सृष्टि और वास्तविक व्यवहार से सर्वथा परे है। इसमें एक व्यवस्थित शिक्षा दर्शन की अपेक्षा भावुकता की मात्रा अधिक है तथा इसे गांधी जी की महानता से प्रभावित व्यक्तियों ने ही भावुकता के अतिरेक में स्वीकार किया है।