नई शिक्षा नीति या राष्ट्रीय शिक्षा नीति
भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति 2020 को आज (20/03/2022) केंद्रिय कैबिनेट ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। केन्द्रीय सरकार की स्वीकृति के बाद 36 बर्ष के बाद देश में नई शिक्षा नीति लागू हो गई है।
नई शिक्षा नीति 2020 भारत की शिक्षा नीति है जिसे भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को घोषित किया गया। सन 1986 में जारी हुई नई शिक्षा नीति के बाद भारत की शिक्षा नीति में यह पहला नया परिवर्तन है। यह नीति अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
कैबिनेट ने नई शिक्षा नीति (New Education Policy) को हरी झंडी दे दी है। 34 साल बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है। नई शिक्षा नीति की उल्लेखनीय बातें सरल तरीके से इस प्रकार हैं:-
- 5 Years Fundamental
- Nursery @ 4 Years
- Jr. KG @ 5 Years
- Sr. KG @ 6 Years
- Std 1st @ 7 Years
- Std 2nd @ 8 Years
- 3 Years Preparatory
- Std 3rd @ 9 Years
- Std 4th @ 10 Years
- Std 5th @ 11 Years
- 3 Years Middle
- Std 6th @ 12 Years
- Std 7th @ 13 Years
- Std 8th @ 14 Years
- 4 Years Secondary
- Std 9th @ 15 Years
- Std SSc. @ 16 Years
- Std FY JC @ 17 Years
- Std SY JC @ 18 Years
मुख्य बातें:-
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केवल 12वीं क्लास में होगा बोर्ड।
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MPhil होगा बंद, कॉलेज की डिग्री 4 साल की।
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10वीं बोर्ड खत्म, MPhil भी होगा बंद।
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अब 5वीं तक के छात्रों को मातृ भाषा, स्थानीय भाषा और राष्ट्रभाषा में ही पढ़ाया जाएगा. बाकी विषय चाहे वो अंग्रेजी ही क्यों न हो, एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ाया जाएगा।
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पहले 10वी बोर्ड की परीक्षा देना अनिवार्य होता था, जो अब नहीं होगा।
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09वीं से 12वीं क्लास तक सेमेस्टर में परीक्षा होगी, स्कूली शिक्षा को 5+3+3+4 फॉर्मूले के तहत पढ़ाया जाएगा।
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वहीं कॉलेज की डिग्री 3 और 4 साल की होगी. यानि कि ग्रेजुएशन के पहले साल पर सर्टिफिकेर, दूसरे साल पर डिप्लोमा, तीसरे साल में डिग्री मिलेगी।
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03 साल की डिग्री उन छात्रों के लिए है जिन्हें हायर एजुकेशन नहीं लेना है. वहीं हायर एजुकेशन करने वाले छात्रों को 4 साल की डिग्री करनी होगी 4 साल की डिग्री करने वाले स्टूडेंट्स एक साल में MA कर सकेंगे।
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MA के छात्र अब सीधे PHD कर सकेंगे।
स्टूडेंट्स बीच में कर सकेंगे दूसरे कोर्स। नई शिक्षा नीति के तहत कोई छात्र एक कोर्स के बीच में अगर कोई दूसरा कोर्स करना चाहे तो पहले कोर्स से सीमित समय के लिए ब्रेक लेकर वो दूसरा कोर्स कर सकता है।
हायर एजुकेशन में 2035 तक ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियों 50 फीसदी हो जाएगा। हायर एजुकेशन में भी कई सुधार किए गए हैं, सुधारों में पेडेड अकेडमिक, ऐडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल ऑटोनॉमी आदि शामिल है। इसके अलावा –
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क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स शुरू किए जाएंगे।
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वर्चुअल लेब्स विकसित किए जाएगे।
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एक नेशनल एजुकेशनल साईटफिक फोरम (NETF) शुरू किया जाएगा।
बता दें कि देश में 45 हजार कॉलेज है, सरकारी, निजी, डीम्ड सभी संस्थानों के लिए होंगे समान नियम।
प्रमुख परिवर्तन
इस नई नीति में मानव संसाधन मंत्रालय का नाम पुनः “शिक्षा मंत्रालय” करने का फैसला लिया गया है। इसमें समस्त उच्च शिक्षा (कानूनी एवं चिकित्सीय शिक्षा को छोड़कर) के लिए एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग का गठन करने का प्रावधान है। संगीत, खेल, योग आदि को सहायक पाठ्यक्रम या अतिरिक्त पाठ्यक्रम की बजाय मुख्य पाठ्यक्रम में ही जोड़ा जाएगा। शिक्षा तंत्र पर सकल घरेलू उत्पाद का कुल 6 प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य है जो इस समय 4.43% है। ऍम॰ फिल॰ को समाप्त किया जायेगा। अब अनुसंधान में जाने के लिये तीन साल के स्नातक डिग्री के बाद दो साल स्नातकोत्तर करके पीएचडी में प्रवेश लिया जा सकता है।
नीति में शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया गया है। व्यापक सुधार के लिए शिक्षक प्रशिक्षण और सभी शिक्षा कार्यक्रमों को विश्वविद्यालयों या कॉलेजों के स्तर पर शामिल करने की सिफारिश की गई है। प्राइवेट स्कूलों में मनमाने ढंग से फीस रखने और बढ़ाने को भी रोकने का प्रयास किया जाएगा। पहले ‘समूह’ के अनुसार विषय चुने जाते थे, किन्तु अब उसमें भी बदलाव किया गया है। जो छात्र इंजीनियरिंग कर रहे हैं वह संगीत को भी अपने विषय के साथ पढ़ सकते हैं। नेशनल साइंस फाउंडेशन के तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन लाई जाएगी जिससे पाठ्यक्रम में विज्ञान के साथ सामाजिक विज्ञान को भी शामिल किया जाएगा। नीति में पहले और दूसरे कक्षा में गणित और भाषा एवं चौथे और पांचवें कक्षा के बालकों के लेखन पर जोर देने की बात कही गई है।
स्कूलों में 10+2 फार्मेट के स्थान पर 5+3+3+4 फार्मेट को शामिल किया जाएगा। इसके तहत पहले पांच साल में प्री-प्राइमरी स्कूल के तीन साल और कक्षा एक और कक्षा दो सहित फाउंडेशन स्टेज शामिल होंगे। पहले जहां सरकारी स्कूल कक्षा एक से शुरू होती थी वहीं अब तीन साल के प्री-प्राइमरी के बाद कक्षा एक शुरू होगी। इसके बाद कक्षा 3-5 के तीन साल शामिल हैं। इसके बाद 3 साल का मिडिल स्टेज आएगा यानी कक्षा 6 से 8 तक की कक्षा। चौथा स्टेज (कक्षा 9 से 12वीं तक का) 4 साल का होगा। पहले जहां ११वीं कक्षा से विषय चुनने की आज़ादी थी, वही अब ९वीं कक्षा से रहेगी।
शिक्षण के माध्यम के रूप में पहली से पांचवीं तक मातृभाषा का इस्तेमाल किया जायेगा। इसमें रट्टा विद्या को ख़त्म करने की भी कोशिश की गई है जिसको मौजूदा व्यवस्था की बड़ी खामी माना जाता है। किसी कारणवश विद्यार्थी उच्च शिक्षा के बीच में ही कोर्स छोड़ के चले जाते हैं। ऐसा करने पर उन्हें कुछ नहीं मिलता एवं उन्हें डिग्री के लिये दोबारा से नई शुरुआत करनी पड़ती है। नई नीति में पहले वर्ष में कोर्स को छोड़ने पर प्रमाण पत्र, दूसरे वर्ष पे छोड़ने पे डिप्लोमा एवं अंतिम वर्ष पे छोड़ने पे डिग्री देने का प्रावधान है।
प्रतिक्रिया
नई शिक्षा नीति की घोषणा के उपरान्त बुद्धिजीवियों, आम जनता एवं शिक्षा जगत में मिली-जुली प्रतिक्रिया रही। वहीं मुख्यता इसमें घोषित बदलावों का स्वागत किया गया है। लेकिन इसके कई लक्ष्य के पूरा होने पर संदेह व्यक्त किया गया। शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसदी खर्च करने का लक्ष्य बहुत ही पुराना है जिसे फिर से दोहराया गया है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति एम॰ जगदीश कुमार ने इस शिक्षा नीति को समावेशी कहा है।
कांग्रेस नेता एवं सांसद शशि थरूर का कहना है कि इस नीति में रखे कई लक्ष्य ऐसे हैं जिनकी पूर्ण होने की संभावना कम है। बीबीसी के अनुसार इस नीति में आरएसएस की पद्धति और योजना को शामिल किया गया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के संगठन दूटा (DUTA) ने इसकी कड़ी आलोचना करते हुए इसे आपत्तिजनक माना है जिसका कहना है कि इसके द्वारा विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को बोर्ड ऑफ़ गवर्नर के ज़िम्मे झोंक देना अनुचित है।