शिक्षण प्रक्रिया (Teaching Process)
हम यह भलीभाँति जानते हैं कि कार्य कोई भी क्यों न हो उसे पूर्ण करने की एक अपनी ही विधि या विधियाँ होती हैं। चूँकि शिक्षण भी एक कार्य है। अत: उसे सम्पन्न करने की भी विद्यार्थियों की आयु तथा वातावरणीय परिस्थितियों आदि को ध्यान में रखते हुए एक नहीं कई अलग-अलग विधियाँ भी हो सकती हैं।
कार्य करने की विधि के अन्तर्गत भी इन बातों पर पहले ही विचार कर लिया जाता है कि पहले क्या किया जायेगा और उसके पश्चात् क्या? इन सभी क्रियाओं का भी एक क्रम होता है और इसी क्रम को प्रक्रिया (Process) कहते हैं।
इस दृष्टि से प्रत्येक कार्य को करने की तथा विशेषकर शिक्षा की अपनी अलग-अलग प्रक्रियायें होती हैं। शिक्षण की समूची प्रक्रिया में शिक्षण उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयास किया जाता है, शिक्षण प्रक्रिया को मोटे रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है, शिक्षण-प्रक्रिया के इन तीन सोपानों पर विचार करने से पूर्व यदि इस बात पर थोड़ा विचार और कर लिया जाये कि शिक्षण का सम्बन्ध किन-किन से है अर्थात् शिक्षण के ध्रुव या आधार स्तम्भ कौन-कौन से तथा कितने हैं तो अच्छा रहेगा।
द्विध्रुवीय अथवा त्रिध्रुवीय शिक्षण (Bi-polar or Tripolar Teaching)
जॉन एडम्स (John Adams) के अनुसार, “Education is a bi-polar system.” अर्थात् शिक्षा एक द्विध्रुवीय प्रक्रिया है। एडम्स के अनुसार शिक्षा के ये दो ध्रुव हैं- शिक्षक (The teacher) तथा शिक्ष्य अथवा शिक्षार्थी (The educand)।
माना कि शिक्षा के सजीव ध्रुव ये दो ही हैं, परन्तु साथ ही इस बात पर विचार करना भी आवश्यक है कि इन दोनों के मध्य अन्त:क्रिया का कोई आधार नहीं है तो इसे शिक्षण के साथ जोड़ना न्यायोचित नहीं, क्योंकि यह अन्त:क्रिया तो किन्हीं भी दो व्यक्तियों के मध्य किसी भी समय तथा किसी भी विषय पर सम्भव है लेकिन सभी को शिक्षण नहीं कहा जा सकता।
अत: शिक्षा के इन दोनों ध्रुवों का महत्त्व तथा अस्तित्व तभी है जब इन दोनों के बीच होने वाली अन्त:क्रिया का एक निश्चित आधार हो और यह आधार हो सकता है – विषयवस्तु, जिसे एक को समझना है और दूसरे को उसे पहले को समझाना है।
इसी का नाम है पाठ्यवस्तु या विषयवस्तु (Subject matter or the contents)। इस आधार पर कह सकते हैं कि शिक्षा यदि द्विध्रुवीय है तो शिक्षण त्रिध्रुवीय (Tri-polar) हुआ। (शिक्षा और शिक्षण में अंतर)
ब्लूम (Bloom) के अनुसार भी शिक्षण त्रिध्रुवीय (Tri-polar) है। उनके अनुसार शिक्षण के ये तीन ध्रुव हैं-
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शिक्षण के उद्देश्य (Objectives of teaching),
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सीखने के अनुभव (Learning experiences) तथा
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व्यवहार परिवर्तन (Change of behaviour) |
यदि शिक्षण के इन तीनों ध्रुवों पर गहराई से विचार किया जाये तो ये सीखने के अनुभवों के अन्तर्गत वे सभी बातें आती हैं जिनके माध्यम से शिक्षक अपने शिक्षण को विद्यार्थियों की दृष्टि से बोधगम्य तथा अपनी स्वयं की दृष्टि से प्रभावी बनाने का प्रयास करता है।
इसी प्रकार व्यवहार परिवर्तन का पता तभी लगता है जब शिक्षण की समाप्ति से पूर्व उसका मूल्यांकन किया जाये।
- इस प्रकार समूची शिक्षण-प्रक्रिया को तीन सोपानों के अन्तर्गत समेटा जा सकता है।
शिक्षण प्रक्रिया के सोपान (Steps of Teaching Process)
समूची शिक्षण प्रक्रिया के अग्रलिखित तीन सोपान हो सकते हैं-
1. शिक्षण पूर्व चिन्तन एवं तैयारी (Pre-thinking and preparation)
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बातें आती हैं:-
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उद्देश्य-निर्धारण (Deciding the objectives),
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विषयवस्तु का चयन (यदि पूर्व निर्धारित नहीं है तो) (Deciding the contents, if not pre-decided),
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शिक्षण-विधि, युक्तियों तथा तकनीकों का निश्चयन (Deciding the method, devices and techniques of teaching)।
2. वास्तविक शिक्षण (Actual teaching)
इसके अन्तर्गत जो क्रियायें आयेंगी, वे इस प्रकार होंगी:-
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कक्षा-व्यवस्था (Classroom management),
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पढ़ाने के साथ-साथ कक्षा-प्रेक्षण (Class observation),
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उपयुक्त युक्तियों तथा तकनीकों का प्रयोग (Using the appropriate devices and techniques),
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आवश्यकतानुसार उपयुक्त पुनर्बलनों (Reinforcements) का प्रयोग।
3. शिक्षणोपरान्त मूल्यांकन (Evaluation after teaching)
इसी को पाठोपरान्त मूल्यांकन अथवा पाठ की पुनरावृत्ति (Recapitulation) भी कह सकते हैं। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित क्रियायें आयेंगी:-
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उद्देश्य आधारित मूल्यांकन (Objective based teaching),
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विषयवस्तु आधारित अवबोध का मूल्यांकन (Evaluating the content based understanding),
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व्यवहारत परिवर्तन का परीक्षण (Testing the behavioural change)
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भविष्यगत सम्भावित परिवर्तनों पर विचार (Probable changes to be made in future)।
सफल शिक्षण (Successful Teaching)
निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किसी प्रक्रिया को अपनाना एक बात है तो उसकी प्रभावी क्रियान्विति एक बिल्कुल अलग बात। शिक्षक का शिक्षण तभी प्रभावी एवं सफल हो सकता है जब उसमें वांछित शैक्षणिक गुण एवं कुशलताएँ हों। ये गुण तथा कुशलताएँ हैं:-
1. विस्तृत ज्ञान (Comprehensive knowledge)– (a) विषयवस्तु (Contents) का, (b) विद्यार्थी (Students) का, (c) शिक्षण-विधियाँ (Methods), शिक्षण युक्तियाँ (Devices) तथा शिक्षण तकनीकों (Techniques) का, (d) वातावरण (Environment) का।
2. व्यवहारगत निष्पक्षता (Behavioural impartiality) ।
3. योजना-कौशल (Planning skill) तथा
4. प्रभावी सम्प्रेषण कौशल (Effective communication skill)।
शिक्षण का अर्थ, प्रकृति, विशेषताएँ, सोपान तथा उद्देश्य (Meaning, Nature, Characteristics, Steps and Aims of Teaching):-
- शिक्षण (Teaching) – शिक्षण की परिभाषा एवं अर्थ
- छात्र, शिक्षक तथा शिक्षण में सम्बन्ध
- शिक्षण की प्रकृति
- शिक्षण की विशेषताएँ
- शिक्षा और शिक्षण में अन्तर
- शिक्षण प्रक्रिया – सोपान, द्विध्रुवीय, त्रिध्रुवीय, सफल शिक्षण
- शिक्षण प्रक्रिया के सोपान
- द्विध्रुवीय अथवा त्रिध्रुवीय शिक्षण
- शिक्षण के उद्देश्य – शिक्षण के सामान्य, विशिष्ट उद्देश्यों का वर्गीकरण, निर्धारण और अंतर