परिपक्वता, अधिगम और विकास – संबंध एवं अंतर

अधिगम तथा परिपक्वता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। परिपक्वता के अभाव में सीखना सम्भव नहीं होता। अधिगम एवं परिपक्वता और विकास के मध्य संबंध व अंतर पढ़िए इस लेख में।

Adhigam Paripakvata Aur Vikas

अधिकतर यह देखा जाता है कि जब तक शरीर के विभिन्न अंग और उनकी माँस-पेशियाँ पूर्णरूप से परिपक्व नहीं होती तब तक व्यवहार का संशोधन नहीं हो सकता। किसी भी व्यक्ति के सीखने के लिये यह बहुत आवश्यक है कि वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से परिपक्व हो।

शारीरिक तथा मानसिक परिपक्वता के कारण भी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। यह परिवर्तन प्राकृतिक होते हैं तथा व्यक्ति की आयु के साथ होते जाते हैं। यह परिवर्तन सीखने के परिवर्तनों से भिन्न होते हैं। सीखने तथा परिपक्वता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। परिपक्वता के अभाव में सीखना सम्भव नहीं होता।

बोरिंग और उनके साथियों (Boring and others, 1962) ने लिखा है- “परिपक्वता एक गौण विकास है, जिसका अस्तित्व सीखी जाने वाली क्रिया या व्यवहार के पूर्व होना आवश्यक है। शारीरिक क्षमता के विकास को ही परिपक्वता कहते हैं।”

अधिगम, परिपक्वता और विकास (Learning, Maturation and Development)

अधिगम और परिपक्वता दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। परिपक्वता मुख्यतया व्यक्ति की स्वाभाविक अभिवृद्धि को कहते हैं। इसमें किसी प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती है, किसी प्रकार का शिक्षण नहीं दिया जाता है। परिपक्वता (Maturation) वंशानुक्रम (Genetics) एवं जैविक कारकों (Biotic factors) के कारण विकास (Development) की स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो आन्तरिक विकास की अवस्थाओं से होकर गुजरती है एवं शारीरिक परिवर्तन लाती है जिस पर अधिगम का प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु इस पर प्रतिकूल वातावरण के कारण नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

अधिगम और परिपक्वता एक-दूसरे से इतने अधिक सम्बन्धि त और मिले-जुले होते हैं कि उन्हें अलग-अलग करके देखना अत्यन्त कठिन है। उदाहरण के लिये मेढ़क के बच्चों को तैरना या पक्षी का उड़ना परिपक्वता के परिणाम हैं अधिगम के नहीं किन्तु कुछ क्रियाएँ या व्यवहार इतने जटिल हैं कि उन पर परिपक्वता एवं अधिगम के प्रभाव को अलग करना कठिन है जैसे-बालकों में भाषा का विकास । बालक विकास की एक उचित अवस्था पर बोलता है जो परिपक्वता का परिणाम है किन्तु उसके बोलने की उत्तेजना समुदाय या परिवार से प्राप्त होती है, जो अधिगम का परिणाम है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि परिपक्वता प्राणी के विकास की प्रक्रिया है या आन्तरिक क्षमताओं की अभिव्यक्ति (Unfolding) की प्रक्रिया है, जो व्यवहार के रूप को निर्धारित करती है। परिपक्वता एवं अधिगम दोनों एक-दूसरे से सम्बन्धित प्रक्रियाएँ हैं, जो प्राणी के विकास में सहायक हैं अथवा विकास में बाधक हैं।

बालकों के विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में परिपक्वता का अधिक महत्त्व है किन्तु व्यक्ति के विकास के आगे की अवस्थाओं में अधिगम का अधिक महत्त्व है। अत: अभिभावक एवं अध्यापक को यह जानना अति आवश्यक है कि किस अवस्था पर बालकों को किस प्रकार प्रशिक्षण एवं शिक्षा दी जाये ?

अधिगम अथवा प्रशिक्षण बालकों को परिपक्व होने पर या विकसित हो जाने पर ही देना चाहिये। समय के पूर्व अपरिपक्व अवस्था में दिया गया प्रशिक्षण या अधिगम लाभ के स्थान पर हानिकारक सिद्ध हो सकता है। बहुत से माता-पिता अल्पायु में ही बालक को प्रशिक्षण की सहायता से ऊँची कक्षाओं में पहुँचाना चाहते हैं। इस प्रकार का प्रशिक्षण स्थायी प्रभाव नहीं उत्पन्न करता और बालक आगे बड़ी कक्षाओं में जाकर कमजोर हो जाते हैं।

परिपक्वता की अवस्था आने से पहले बालक को जबरदस्ती बहुत-सी बातें सिखाने का प्रयास अच्छा नहीं है। किस बालक के लिये किस आयु पर कौन-सा काम सिखाना अच्छा रहेगा? यह बालक की बुद्धि, शारीरिक विकास, आदि अनेक बातों पर निर्भर होता है परन्तु विभिन्न विषयों का अध्ययन प्रारम्भ करने की आयु स्थूल (मोटे) रूप से निश्चित की जा सकती है।

उदाहरण के लिये साधारणतया बीजगणित ग्यारह या बारह वर्ष की आयु की अपेक्षा पन्द्रह या सोलह वर्ष की आयु में अधिक आसानी से सीखा जा सकता है। परिपक्वता और अधिगम के इसी सम्बन्ध के कारण यह सुझाव दिया जाता है कि बोर्ड की परीक्षाओं में बैठने और विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने की न्यूनतम आयु निश्चित कर दी जानी चाहिये।

मैकग्रो तथा स्ट्रेयर का अधिगम और परिपक्वता पर प्रयोग

अधिगम और परिपक्वता के मध्य सम्बन्ध को जानने के लिये मैकग्रो (M. C. Mc Graw) तथा स्ट्रेयर (L. C. Stayer) ने जुड़वा लड़कियों (Co-twin) पर प्रयोग किया। जुड़वा लड़कियों में आनुवंशिकता एक होने से अनुमान किया गया कि उनका परिपक्वन समान गति से होगा।

लड़की ‘A’ को 53 सप्ताह की आयु तक सीढ़ियों पर चढ़ना सिखाया गया। 46 सप्ताह की आयु में परीक्षण करने पर ‘B’ बिल्कुल नहीं चढ़ सकी उसे पाँचों सीढ़ियों पर सहारा देकर चढ़ाना पड़ा। चार सप्ताह के बाद “B” बिना किसी सहायता के चढ़ने लगी। 52 सप्ताह की आयु में वह पाँचों सीढ़ियों को 26 सेकण्ड में चढ़ गयी। जब “A” को 53 सप्ताह में पाँचों सीढ़ी पर खड़ा किया गया तब वह बिना किसी सहारे के पाँचों सीढ़ियाँ चढ़ गयी, परन्तु उसे 45 सेकण्ड लगे। दो सप्ताह के अभ्यास के बाद 55 सप्ताह की आयु में “A” दस सेकण्ड में पाँचों सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। इस प्रकार इस आयु पर आकर ‘A’, ‘B’ से अधिक तेज थी जिसको कम आयु में “A” से तिगुना अभ्यास कराया गया था। “A”, “B” से तीन सप्ताह बड़ी भी थी। इस प्रकार सब तरह के अभ्यास के बावजूद भी कम परिपक्वता के कारण “B”, “A” से पीछे रह गयी।

इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि विकास का लक्षण प्रतिवर्त और शारीरिक आदि क्रियाओं में परिपक्वता का बड़ा प्रभाव होता है। जो क्रियाएँ सभी मानव प्राणियों में किसी विशेष आयु पर प्रकट होती हैं वे परिपक्वता के कारण होती हैं। अन्य क्रियाएँ जो सभी मानव प्राणियों में आवश्यक रूप से प्रकट नहीं होतीं परिपक्वन की प्रक्रिया से केवल इस सीमा तक प्रभावित होती हैं कि परिपक्व आयु में वे अधिक सरलता से सीखी जा सकती हैं। इस प्रकार की क्रियाओं के उदाहरण-तैरना, दौड़ना, पेड़ पर चढ़ना आदि हैं।

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है परिपक्वता का आधार सीखने में सहायता करता है।

मानव का विकास सीखने के द्वारा होता है और सीखने का आधार मानव की परिपक्वता है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों क्षेत्रों में होता है। परिपक्वता शरीर के अंगों की स्वाभाविक क्रियाशीलता है। उदाहरणार्थ-पशु-पक्षियों के बच्चों और शिशुओं की आँखें जन्म के समय बन्द होती हैं। धीरे-धीरे शरीरिक पुष्टता आने पर आँखें काम करने लगती हैं। धीरे-धीरे शरीर में शक्ति बढ़ने पर क्रियाशील बनते हैं।

इस प्रकार परिपक्वता एक ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे शक्ति ग्रहण करता है और बढ़ता है। सीखना एक ऐसी क्रिया है, जिसमें परिपक्वता एवं सशक्तता की सहायता आवश्यक होती है। उदाहरणार्थ-बालकों का चलना परिपक्वता एवं सीखने के परिणामस्वरूप होता है। प्रारम्भ में वह माता-पिता के सहारे खड़ा होता है, बाद में स्वयं अंगों का सहारा लेकर खड़ा होता है। अंगों के संगठन में परिपक्वता है लेकिन चलने के लिये कदम उठाने में सीखना होता है। अतएव परिपक्वता और सीखने की प्रक्रियाएँ आपस में परस्पर जुड़ी हैं।

उपर्युक्त प्रयोगों तथा विवेचना के आधार पर हम कह सकते हैं कि:-

  1. परिपक्वता एक सत्य है।
  2. परिपक्वता सीखने की गति पर प्रभाव डालती है।
  3. किसी क्रिया में अभ्यास, जिसका परिपक्वता स्तर प्राप्त नहीं हुआ है, प्रभावशाली नहीं होगा।
  4. यह अत्यन्त आवश्यक है कि सब सीखने की क्रियाओं में परिपक्वता के स्तर को ध्यान में रखा जाय।

परिपक्वता और अधिगम में सम्बन्ध

Relationship between Maturity and Learning

परिपक्वता और अधिगम में सम्बन्ध निम्नलिखित तथ्यों द्वारा स्पष्ट किया गया है:-

  1. परिपक्वता एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। अतः प्रेरणा, दण्ड तथा पुरस्कार जैसे तत्त्व इसे प्रभावित नहीं कर सकते हैं परन्तु सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे प्रेरणा, जैसे तत्त्व पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।
  2. परिपक्वता निरन्तर चलती रहती है। परिपक्वता बिना .विशेष ध्यान दिये भी चलती रहती है परन्तु सीखना बिना विशेष ध्यान के सम्भव नहीं है।
  3. परिपक्वता अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही वातावरण में निरन्तर चलती रहती है। परन्तु सीखने के लिये अनुकूल वातावरण का होना अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा सीखना सम्भव नहीं हो सकेगा।
  4. परिपक्वता के लिये सीमा निश्चित है। अतः उस आयु सीमा के बाद परिपक्वता में कोई वृद्धि नहीं होती है परन्तु सीखने की प्रक्रिया के लिये कोई समय सीमा नहीं है, या आयु सीमा नहीं होती है। अतः सीखना जीवन पर्यन्त चलता रहता है।
  5. परिपक्वता पर अभ्यास का प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि सीखना अभ्यास से शक्तिशाली होता जाता है।
  6. परिपक्वता शरीर में रासायनिक परिवर्तन उत्पन्न करती है, जबकि सीखने के कारण शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तन सम्भव होते हैं।
  7. परिपक्वता के कारण जातीय (Racial) विकास होता है, जबकि सीखने के कारण वैयक्तिक विकास होता है।
  8. परिपक्वता पर सीखने की प्रक्रिया निर्भर करती है परन्तु इसके विपरीत सीखने से परिपक्वता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  9. परिपक्वता एक ऐसा विकास है, जिसकी व्यक्ति को कोई चेतना नहीं होती है परन्तु अनेक अवसरों पर सीखने की हमे चेतना हो सकती है।
  10. परिपक्वता जन्मजात है, जबकि सीखना अर्जित है।
  11. परिपक्वता का सम्बन्ध शरीर से है, जबकि सीखना वातावरण से प्रभावित है।
  12. प्रत्येक प्राणी में परिपक्वता विकास के मूल में होता है। सभी में समान रूप से पाया जाता है। सीखने में विभिन्न क्रिया-प्रतिक्रिया होने से विकास होता है।
  13. सीखने का आधार परिपक्वन को माना जा सकता है परन्तु परिपक्वन का आधार सीखना नहीं हो सकता है। परिपक्वन (Maturation) सीखने के पूर्व प्राप्त हो जाने पर अधिगम सरल होता है।

अन्त में कहा जा सकता है कि अधिगम और परिपक्वता (Maturation) एक ही प्रक्रिया है लेकिन व्यवहार संशोधन के दो अलग-अलग पहलू हैं। एक के अभाव में दूसरा पहलू अर्थहीन है। परिपक्वता अधिगम का आधार है। अधिगम किसी भी प्रकार का हो, कैसा भी हो, उसके साथ सीखने वाले की योग्यता तथा क्षमता में आपसी सम्बन्ध जुड़ा रहता है।

बोरिंग (Boring) के अनुसार-“परिपक्वता गौण विकास है, जिसका अस्तित्व सीखी जाने वाली क्रिया या व्यवहार के पूर्व होना आवश्यक है।

परिपक्वता के लिये शिक्षण / परिपक्वता में शिक्षा या शिक्षक की भूमिका

Teaching for Maturity / Role of Teacher or Education in Maturity

परिपक्वता एक ऐसा पहलू है, जो अधिगम में आगे भी है और पीछे भी। प्रतिदिन अध्यापक अपने व्यवहार तथा शिक्षण की प्रक्रिया से बालक के गुणों को विकसित भी करता है तथा विरुद्ध भी। परिपक्वता को शिक्षा निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करती है:-

1. वांछित आत्मधारणा (Adequate self concept)

बालक के शारीरिक विकास के साथ-साथ उसमें आत्मबोध (Self-understanding) या आत्म-प्रत्यय (Self-concept) का भी विकास होता है। आत्म बोध तथा आत्म प्रत्यय, दोनों ही इस बात पर निर्भर करते हैं कि उनका शिक्षण किस प्रकार हो रहा है? आत्मधारणा के कारण ही वह भौतिक, संस्कृति तथा सवेगात्मक समायोजन सीखता है।

आत्मधारणा का विकास, विकासात्मक कार्य पर निर्भर करता है। सफलता-असफलता से बालक का भावी स्वरूप विकसित होता है। जिस बालक को असफलता-सफलता का भय तथा हर्ष होने लगता है, वह कार्य को सीखने की एक शैली विकसित कर लेता है। शिक्षक का कर्त्तव्य हो जाता है कि वह बालक में विवेकशीलता उत्पन्न करके आत्मधारणा (Self-concept) विकसित करे।

2. बालक की क्षमता का विकास तथा प्रयोग (Development and use of one’s capacities)

परिपक्वता में व्यक्ति की क्षमताओं का सन्तोषजनक रूप से पूर्ण होना निहित है। प्रत्येक बालक से यह आशा की जाती है कि वह बौद्धिकता के सामान्य स्तर ‘चिन्तन’ को विकसित करे। बालक को सर्जनात्मक चिन्तन करना सिखाया जाना चाहिये। वर्तमान में बालक तोते की तरह पढ़ना, लिखना, बोलना, हिज्जे करना, जोड़-घटाना, गुणा तथा भाग आदि सीखता है।

ये सभी तथ्य (Facts) उपयोगी हैं परन्तु विद्यालयों में उन्हें जिस ढंग से सिखाया जाता है, उनसे उनमें-विश्लेषण (Analysis), व्याख्या (Interest), विचारों का मूल्यांकन (Evaluate ideas), समस्या निर्माण (Formulate problems) वांछित उत्तर की खोज तथा उत्तरदायित्व की भावना के विकसित होने में समय लगता है।

3. यथार्थ का मुकाबला (Meeting reality without under stress)

परिपक्वता की आवश्यकता है– संवेगात्मक अवरोध तथा मानसिक संघर्ष से रहित होकर यथार्थ जगत का मुकाबला करने की क्षमता होना। यद्यपि इस संसार में मानसिक संघर्ष से रहित कोई भी व्यक्ति नहीं है। आज हर व्यक्ति विद्रोही है, अकिंचन है, चिन्तिन है और विरोधी है।

इन सभी का कारण है– बालक में यथार्थ का सामना करने की क्षमता विकसित नहीं की जाती है। अतः अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह बालकों को जीवन के घोर यथार्थ से परिचय करायें, जिससे वे भावी जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना कर सकें।

4. अन्यों के लिये (For others)

परिपक्वता का सम्बन्ध अपने से अतिरिक्त व्यक्तियों के लिये भी है। परिपक्वता के इस आधार से सामाजिक सम्बन्ध विकसित होते हैं। बालक अन्य लोगों में रूचि रखता है, उसमें उत्तरदायित्व की भावना विकसित होती है। वह सामाजिक लैंगिक, सामाजिक समायोजन सीखता है। यह समस्त स्थिति सामाजिक कल्पना (Social imagination) कहलाती है। शिक्षक को शिक्षा के द्वारा सामाजिक कल्पना की भावना को विकसित करने का प्रयास करना चाहिये।

5. सृजनात्मक सहयोग (Creative co-operation)

परिपक्वता की मूल आवश्यकता सृजनात्मक रूप से सहयोग करना तथा समायोजन करना है। आज के व्यक्ति को विश्व में सृजनात्मक सहयोग करने के लिये राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक तथा कलात्मक क्षेत्रों में पूर्णत: शिक्षित होना चाहिये।

एलेक्जेण्डर (Schneiders Alexander) के अनुसार- “परिपक्वता आन्तरिक रूप से संशोधन की प्रक्रिया है, आन्तरिक परिपक्वता प्राणी का विकास है, संरचना एवं कार्यों में वृद्धि है, जो वाणी में निहित शक्तियों के कारण होती है।”

अधिगम तथा परिपक्वता में प्रमुख अन्तर

अधिगम/सीखने तथा परिपक्वता में प्रमुख रूप से निम्न अन्तर हैं:-

  1. परिपक्वता के कारण व्यवहार में परिवर्तन प्राकृतिक या स्वाभाविक होते हैं। जबकि सीखने के लिये व्यक्ति को अनेक प्रकार की क्रियाएँ करनी पड़ती हैं तब व्यवहार में संशोधन होते हैं।
  2. परिपक्वता चूँकि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। अतः प्रेरणा का इस पर प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि सीखना प्रेरणा से प्रभावित होता है।
  3. परिपक्वता के कारण व्यवहार में परिवर्तन केवल उसी व्यक्ति में होते हैं, जो सीखता है।
  4. परिपक्वता अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में निरन्तर चलती रहती है, दूसरी ओर सीखना केवल अनुकूल परिस्थितियों में ही होता है, प्रतिकूल परिस्थितियों में नहीं होता।
  5. परिपक्वता के लिये अभ्यास आवश्यक नहीं है, जबकि सीखने के लिये अभ्यास आवश्यक होता है।
  6. व्यक्ति समाज में जीवनपर्यन्त सीखता रहता है, जबकि परिपक्वता की प्रक्रिया लगभग पच्चीस वर्ष की अवस्था तक पूर्ण हो जाती है।

अधिगम तथा परिपक्वता में अन्तर होते हुए भी दोनों आपस में घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। अधिगम की प्रक्रिया परिपक्वता पर आधारित होती है, परन्तु परिपक्वता अधिगम पर आधारित नहीं होती। अनेक अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि अधिगम के लिये उसके अनुरूप परिपक्वता आवश्यक होती है।

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