डाल्टन प्रविधि या प्रयोगशाला योजना – शिक्षण प्रविधि

Dalton Pravidhi

डाल्टन प्रविधि (Dalton Technique)

डाल्टन प्रविधि अथवा प्रयोगशाला योजना का प्रवर्तन अमेरिका की मिस पार्क हर्स्ट के द्वारा किया गया। इस शिक्षण प्रविधि में विद्यालय का संगठन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। छात्रों को पाठ निर्देश दिये जाते हैं। उन्हें आवश्यक सुझाव एवं निर्देश भी दिये जाते हैं एवं ज्ञानार्जन हेतु पुस्तकों की जानकारी भी दे दी जाती है तथा छात्र स्वत: कार्य पूरा करते हैं। अध्यापक मात्र पथ-प्रदर्शक होता है।

उच्च कक्षाओं के लिये इस प्रविधि को उपयुक्त माना जा सकता है परन्तु इसके लिये समृद्ध पुस्तकालय की आवश्यकता होगी। कविता संग्रह करना एवं समीक्षा कार्य आदि इस प्रविधि से सम्भव होंगे परन्तु कविता की रसानुभूति तथा गहन अध्ययन हेतु इस प्रविधि का कोई उपयोग नहीं होती।

डाल्टन प्रयोगशाला योजना या ‘डाल्टन योजना’

सन्‌ 1912 में अमरीका की हेलन पार्क हर्स्ट ने 8 से 12 वर्ष के बीच की अवस्था वाले बालकों के लिए एक नई शिक्षा योजना बनाई। यद्यपि यह योजना उनके मन में पहले से ही थी किंतु उसका वास्तविक प्रयोग सन्‌ 1913 और 1915 के बीच किया गया। इसी बीच प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) छिड़ गया।

विश्वयुद्ध समाप्त होने के पश्चात्‌ सन्‌ 1920 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अमरीका के मैसाच्यूसेट राज्य के डाल्टन स्थित विद्यालयों में अपनी योजना प्रारंभ की। इसके पश्चात्‌ उन्होंने एक बाल विश्वविद्यालय पाठशाला (चिल्ड्रेंस यूनिवर्सिटी स्कूल) स्थापित करके उसमें अपनी डाल्टन प्रयोगशाला योजना (डाल्टन लैबोरेटरी प्लान) का व्यवहार किया।

डाल्टन योजना के सिद्धान्त

इस प्रयोगशाला योजना के दो मुख्य सिद्धांत हैं:-

  1. विभिन्न विषयों के लिए निश्चित घंटों और समयसरणि के कठोर बंधनों को नष्ट करके बच्चे को स्वतंत्रतापूर्वक काम करने की सुविधा देना।
  2. बालक की रुचि जिस विषय में अधिक हो उसे उस विषय को जितनी देर तक वह चाहे, अध्ययन करने देना।

इन सिद्धांतों से स्पष्ट है कि यह डाल्टन योजना कोई नई शिक्षाप्रणाली नहीं है वरन्‌ एक नई प्रकार की विद्यालय व्यवस्था है। इसमें विषय तो वे ही पढ़ाए जाते हैं जो अन्य विद्यालयों में, किंतु इसमें पढ़ाई का ढंग, परिणाम और प्रकार भिन्न होता है।

इसमें समूचा पाठ्यक्रम सुविधाजनक मासिक छपी हुई ठेके की कार्ययोजना (कौंट्रेंक्ट एसाइनमेंट) के रूप में बॉट लिया जाता है जिसमें छुट्टियों के लिए, पढ़े हुए पाठ की आवृत्ति के लिए और विद्यार्थियों के स्वत: अभ्यास के लिए समय छोड़ दिया जाता है। प्रत्येक पाठ्य विषय को एक वर्ष की दस मासिक कार्ययोजनाओं में बाँट दिया जाता है और इस विद्यालय का महीना बीस दिन का होता है।

प्रत्येक विद्यार्थी इस कार्य को ठेके (कौंट्रेंक्ट) के रूप में ग्रहण करता और एक महीने के लिए दिया हुआ निर्दिष्ट कार्य निश्चित समय में पूरा करता है। इसमें स्वतंत्रता यही है कि विद्यार्थी एक मास में पूरे किए जानेवाले कार्य को अपनी इच्छा के अनुसार चाहे जिस क्रम से और जिस गति से पूरा कर सकते हैं। वे चाहें तो एक महीने के लिए दिए गए काम को दस दिन में पूरा कर सकते हैं।

किंतु कार्य समाप्त करते ही वे अगले महीने के कार्य को नहीं ले सकते। वे शेष बचे हुए समय में पुस्तकालय से मनचाही पुस्तक का अध्ययन कर सकते हैं। जब छात्र मासिक कार्य का ठेका लेते हैं तो वे यह भी वचन देते हैं कि इस कार्य को पूरा करने के लिए न हम किसी को सहायता देंगे न हम किसी से सहायता लेंगे। छात्रों को इतनी छूट अवश्य रहती है कि वे अपने गुरु या अपने सहपाठियों से संमति लें किंतु कार्य उन्हें स्वत: ही पूरा करना पड़ता है।

इस योजना में कक्षाएँ लुप्त हो जाती हैं और प्रत्येक कक्षा प्रयोगशाला बन जाती है। इन विभिन्न प्रयोगशालाओं में उन उन विषयों के सब सहायक पदार्थ पुस्तक, चित्र, रेखाचित्र, प्रतिमूर्ति, यंत्र आदि विद्यमान रहते हैं। विभिन्न श्रेणियों के जो विद्यार्थी किसी एक विषय का कार्य पूरा करना चाहते हैं वे सभी उस विषय की कक्षा प्रयोगशाला में बैठकर सामग्री का उपयोग करके अपना कार्य पूरा कर सकते हैं।

इस प्रकार विद्यालय में पहली, दूसरी, तीसरी कक्षा न होकर हिंदी की प्रयोगशाला, गणित की प्रयोगशाला, इतिहास की प्रयोगशाला तथा भूगोल, विज्ञान, संगीत, चित्रकला आदि विषयों की प्रयोगशालाएँ बन जाती हैं। इसीलिए वहाँ न घंटे लगते हैं न कोई बँधी हुई समयसरणि या दिनचर्या (टाइमटेबिल) ही रहती है।

अध्यापकों के कार्य

इस योजना के अंतर्गत अध्यापकों का काम यह है कि

  1. वे अपनी अपनी प्रयोगशाला में जाकर वर्ष भर के लिए मासिक कार्ययोजना तैयार कर दें।
  2. जो विद्यार्थी कुछ पूछने आवे उसे उचित परामर्श या निर्देश दें और यह देखें कि छात्र एक दूसरी की नकल तो नहीं करते या
    समय तो नष्ट नहीं करते।
  3. मासिक कार्ययोजना बनाते समय विभिन्न विषयों के अध्यापक परस्पर मिलकर इस प्रकार कार्य बाँटें कि एक प्रकार के कार्य की आवृत्ति न हो।

यदि इतिहास का अध्यापक शिवाजी पर लेख लिखना चाहता है तो वह इस काम को भाषाशिक्षक की कार्ययोजना में डाल सकता है जिसका ऐतिहासिक अंश इतिहास का अध्यापक देख ले और भाषा का अंश भाषा का अध्यापक। इससे छात्र भी दो निबंध लिखने की कठिनाई से बच जाता है। इस योजना में अध्यापक को कोई अधिकार नहीं है कि वह विद्यार्थी के काम में बाधा दे, यह छात्र का ही अधिकार है कि वह आवश्यकता पड़ने पर अध्यापक से संमति और परामर्श ले।

वार्षिक ठेके की कार्ययोजना

छात्रों के लिए जो दस मास की वार्षिक ठेके की कार्ययोजना (कौंट्रेंक्ट एसाइनमेंट) बनाई जाती है उसमें निम्नांकित बातें आती हैं :-

  1. प्रस्तावना– थोड़े शब्दों में एक महीने के लिए दिए जानेवाले कार्य का कुछ थोड़ा सा परिचय।
  2. विषयांग– जो विषय दिया जाय उसके उस विशेष अंग, भाग, पाठ या अंश (रचना, व्याकरण, कविता, गद्य, नाटक, कहानी आदि) का उल्लेख स्पष्ट किया जाय और यह भी बताया जाय किस अंग के लिए कितना काम अपेक्षित है।
  3. समस्याएँ– उन सब बातों का उल्लेख हो जिनके लिए छात्रों को मनन या विचार करना पड़े, जैसे यंत्र बनाना, मानचित्र बनाना अथवा वैज्ञानिक या दार्शनिक विवेचन करना आदि। अधिकतर भाषा के पाठ में समस्याएँ कम होती हैं। इतिहास, भूगोल, विज्ञान तथा अर्थशास्त्र जैसे विषयों में समस्याएँ अधिक होती हैं जिनके लिए छात्र को विशेष अध्ययन करके अपनी ओर से परिणाम निकालना होता है।
  4. लिखित कार्य– लिखने के कार्य की पूरी सूची दी जाए और जिस तिथि को लेख लेना हो उसका स्पष्ट उल्लेख हो।
  5. कंठस्थ करने योग्य कार्य – उन सब अंशों, कविताओं या अनुच्छेदों का उल्लेख हो जिन्हें कंठस्थ कराना अभीष्ट हो।
  6. सम्मेलन (कौनफरेंस)– कार्ययोजना में उन तिथियों का भी उल्लेख हो जब पूरी कक्षा को एक साथ बैठाकर उस विषय पर बातचीत करनी हो या कुछ विशेष समझाना हो।
  7. सहायक पुस्तकें– कार्ययोजना के साथ उन पुस्तकों तथा पत्रपत्रिकाओं के नाम, उनके अध्याय तथा पृष्ठ भी दे दिए जाएँ जिनसे सहायता लेना आवश्यक हो।
  8. प्रगतिविवरण– बालकों को यह भी बतला दिया जाए कि वे अपनी प्रगति का लेखा किस प्रकार बनाएँ जिससे उनमें यह आत्मविश्वास बना रहे और वे समझते रहें कि हमने इतना ज्ञान प्राप्त किया, इतना कार्य किया, इतनी उन्नति की। इसके लिए कक्षा में भी प्रगतिपट्ट (रूप ग्राफ) रहता है और छात्र के पास भी, जिसमें वह अपने किए हुए काम की प्रगति का अंकन करता चलता है।
  9. सूचनापट्ट का अध्ययन– यदि प्रयोगशाला के सूचनापट्ट पर कोई चित्र, मानचित्र अथवा लेख आदि पढ़ने के लिए टाँगने की योजना हो तो उसका भी उल्लेख कर दिया जाए।
  10. विभागीय छूट– मासिक कार्ययोजना बनाते समय अध्यापकों को परस्पर मिलकर इस प्रकार से कार्यविभाजन करना चाहिए कि एक ही प्रकार के कार्य की आवृत्ति न हो और छात्र पर अनावश्यक भार न पड़े।

इसी योजना का व्यापक और व्यावहारिक रूप विषययोजना (यूनिट प्लानिंग) नाम से चल पड़ा है जिसके अनुसार वर्तमान विद्यालयों की कक्षापद्धति का निर्वाह करते हुए वर्ष भर में एक विषय को पढ़ाने की मासिक क्रम से पूरी योजना बना ली जाती है।

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