निबंध लेखन (Nibandh Lekhan) गद्य की एक विधा है। एक उत्तम निबंध लिखनें के लिए जिस विषय पर निबंध लिखना हो, उस पर पर्याप्त चिन्तन-मनन कर लेना चाहिए और विचारों को व्यवस्थित क्रम देने के लिए उसकी एक संक्षिप्त रूपरेखा भी बना लेनी चाहिए। सामान्यतः निबंध को निम्न भागों में बांट लेना चाहिए- प्रस्तावना, मूल विषय का प्रतिपादन, समस्या पर तर्कपूर्ण चिन्तन एवं विचार, समस्या से सम्बन्धित आंकड़े, उद्धरण आदि का प्रस्तुतीकरण, सुझाव, निदान के उपाय और उपसंहार।
निबंध की परिभाषा
निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी एक विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सजीवता, संगति एवं सुसम्बद्धता के साथ किया जाता है। निबंध में लेखक का अपना व्यक्तित्व साफ झलकता है। उसका अपना दृष्टिकोण, शैली, भाषाधिकार, विचार शक्ति, तर्क शक्ति आदि का पूरा परिचय निबंध से प्राप्त हो जाता है।
निबंध, लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य-रचना है।
इस परिभाषा में अतिव्याप्ति दोष है। लेकिन निबंध का रूप साहित्य की अन्य विधाओं की अपेक्षा इतना स्वतंत्र है कि उसकी सटीक परिभाषा करना अत्यंत कठिन है।
निबंध शब्द का निर्माण ‘बंध‘ शब्द में ‘नि‘ उपसर्ग लगाने से हुई हैं (नि+बंध=निबंध), अतः निबंध का शाब्दिक अर्थ है- “बंधन“। यह बन्धन विविध विचारों का होता है। अतः विभिन्न विचारों को एक सूत्र में बांधना, निबंध कहा जा सकता है।
निबंध शब्द का प्रयोग किसी विषय की तार्किक और बौद्धिक विवेचना करने वाले लेखों के लिए भी किया जाता है। निबंध के पर्याय रूप में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबंध ही है। इसे अंग्रेजी के कम्पोज़ीशन और एस्से के अर्थ में ग्रहण किया जाता है।
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “संस्कृत में भी निबंध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन निबंधों में धर्मशास्त्रीय सिद्धांतों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान काल के निबंध संस्कृत के निबंधों से ठीक उलटे हैं। उनमें व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का गुण सर्वप्रधान है। इतिहास-बोध परम्परा की रूढ़ियों से मनुष्य के व्यक्तित्व को मुक्त करता है। निबंध की विधा का संबंध इसी इतिहास-बोध से है। यही कारण है कि निबंध की प्रधान विशेषता व्यक्तित्व का प्रकाशन है।”
निबंध लेखन के प्रकार/भेद
लेखन की दृष्टि से निबंध के प्रमुख रूप से 5 प्रकार के भेद होते हैं- वर्णनात्मक, भावात्मक, विचारात्मक, व्यंग्यात्मक और आत्मपरक। इन सभी के निबंध-लेखन का विवरण निम्नलिखित है-
1. वर्णनात्मक निबंध लेखन
किसी भी स्थान, घटना, वस्तु या दृश्य का आंखों देखा अथवा परोक्ष वर्णन इस प्रकार हो कि वह यथार्थ चित्रण लगे। इसमें वर्ण्य विषय की प्रमुखता रहती है। लेखक की भावनाओं का पुट भी दृष्टिगोचर होता है। ऐसे निबंध विषयगत होते हैं। परोक्ष वर्णन (जो प्रत्यक्ष यथार्थ लगे) वाले निबंध विवरणात्मक होते हैं। अतः वर्णनात्मक निबंध लेखन के समय इन तथ्यों का ध्यान रखना चाहिए।
वर्णनात्मक निबंध लेखन के अंतर्गत- होली, दीपावली, ईद या क्रिसमस, यात्रा, दृश्य, स्थान या घटना, गणतंत्र दिवस की परेड, ताजमहल, विभिन्न प्रकार के खेलों आदि पर लिखे गए निबंध प्राय: वर्णनात्मक निबंध कहलाते है।
2. भावात्मक निबंध लेखन
ऐसे निबंधों में भावों अर्थात् हृदय पक्ष की प्रधानता रहती है। लेखक निर्द्वन्द्व रूप से भावनाओं की उत्ताल तरंगों में डूबता-उतराता बहता जाता है, किन्तु बुद्धि तत्व को भी नहीं छोड़ता है। वह स्वयं रस-विभोर होकर पाठक को भी रससिक्त कर देता है। इस श्रेणी में वियोगी हरि, रायकृष्ण दास के निबंध उल्लेखनीय हैं। अतः भावात्मक निबंध लेखन के समय इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
भावात्मक निबंध लेखन के अंतर्गत- वसंतोत्सव, चांदनी रात, बुढ़ापा, बरसात का पहला दिन, मेरे सपनों का भारत आदि। इसमें कल्पनात्मक निबंध भी आते हैं।
कल्पनात्मक निबंध लेखन के उदाहरण है– ‘यदि मैं प्रधानमंत्री होता’ मेरी अभिलाषा, ‘नदी की आत्मकथा’, यदि मोबाइल ना होता, यदि ऐनक ना होता आदि जैसे निबंध कल्पनात्मक निबंध लेखन के उदाहरण है।
3. विचारात्मक निबंध लेखन
ऐसे निबंधों में लेखक के अपने विचार, मत और धारणाएं तार्किक ढंग से बुद्धि सम्मत होते हैं। ये निबंध कभी तर्क प्रधान और कभी भावना प्रधान होते हैं। अतः विचारात्मक निबंध लेखन के समय इन विचारों और तर्कों का ध्यान रखना जरूरी है। विचारात्मक निबंध लेखन में विभिन्न प्रकार के विषय, जैसे-
- सामजिक विषय– भूदान-यज्ञ, अहिंसा परमो धर्म:, अछतोद्धार विधवा-विवाह;
- राजनीतिक विषय– राष्ट्रीय एकता, विश्वबंधुत्व;
- दार्शनिक विषय– ईश्वर, आत्मा;
- वैज्ञानिक विषय– समाचार पत्र, विज्ञान, कंप्युटर आदि विषय आते हैं।
4. व्यंग्यात्मक निबंध लेखन
समाज की विद्रूपता, राजनीतिक छल-प्रपंच, आर्थिक विषमता, धार्मिक पाखण्ड, आदि पर व्यंग्य के कठोर प्रहार करके जनमानस को उद्वेलित करना तथा परोक्ष रूप से सुधार करने के साथ-साथ साहित्यिक मनोरंजन करना भी व्यंग्यात्मक निबंधों का उद्देश्य होता है। अतः व्यंग्यात्मक निबंध लेखन के समय इन तथ्यों को ध्यान में चाहिए।
5. आत्मपरक (ललित) निबंध लेखन
आत्मपरक (ललित) निबंधों में अटपटे शीर्षक, विषम-सामान्य कल्पनाओं की उड़ान आदि होती है जिनमें लेखक का व्यक्तित्व अधिक मुखर, स्पष्ट और प्रभावी होता है। इन्हें ललित निबंध भी कहते हैं। अतः आत्मपरक या ललित निबंध लेखन के समय आत्मीयता को ध्यान में चाहिए। इसके अंतर्गत मेरा बचपन, मैं और मेरा जीवन, मेरा जीवन लक्ष्य, मेरी प्रथम रेल यात्रा आदि जैसे निबंध आते हैं।
साहित्यिक या आलोचनात्मक निबंध लेखन
किसी साहित्यकार, साहित्यिक विधा या साहित्यिक प्रवृत्ति पर लिखा गया निबंध साहित्यिक या आलोचनात्मक निबंध कहलाता है, जैसे मुंशी प्रेमचंद, तुलसीदास, आधुनिक हिन्दी कविता, छायावाद हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग आदि। इसमें ललित निबंध भी आते हैं। इनकी भाषा काव्यात्मक और रसात्मक होती है। ऐसे निबंध शोध पत्र के रूप में अधिक लिखे जाते हैं।
चारित्रात्मक निबंध लेखन
चारित्रात्मक निबंध लेखन के अंतर्गत किसी व्यक्ति विशेष या वस्तु पर लिखे जाते हैं। इस प्रकार के निबंधों में भाषा की शालीनता अति आवश्यक होती है। चारित्रात्मक निबंध लेखन के अंतर्गत- मेरा प्रिय रचनाकार, मेरा प्रिय कवि, मेरा प्रिय खिलाड़ी, मेरी प्रिय पुस्तक इत्यादि जैसे विषय आते हैं।
निबंध लेखन की विशेषताएं एवं गुण
सारी दुनिया की भाषाओं में निबंध लेखन को साहित्य की सृजनात्मक विधा के रूप में मान्यता आधुनिक युग में ही मिली है। आधुनिक युग में ही मध्ययुगीन धार्मिक, सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति का द्वार दिखाई पड़ा है। इस मुक्ति से निबंध का गहरा संबंध है।
एक अच्छे निबंध लेखन में विशेषता:
- एक अच्छे निबंध में संक्षिप्तता, एकसूत्रता तथा पूर्णता जैसे गुण विद्यमान होते हैं।
- निबंध लेखक को पुनरुक्ति से बचना चाहिए तथा अपनी बात को तर्कपूर्ण ढंग से व्यक्त करना चाहिए।
- तर्कों की पुष्टि हेतु आंकड़े, उद्धरण आदि इस प्रकार से प्रस्तुत करने चाहिए जिससे वे विषय के साथ एकरस हो जाएं, पैबन्द जुड़े हुए प्रतीत न हों।
हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “नए युग में जिन नवीन ढंग के निबंधों का प्रचलन हुआ है वे व्यक्ति की स्वाधीन चिन्ता की उपज है।” इस प्रकार निबंध में निबंधकार की स्वच्छंदता का विशेष महत्त्व है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है, “निबंध लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-संबंध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन्ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है।”
इसका तात्पर्य यह है कि निबंध में किन्हीं ऐसे ठोस रचना-नियमों और तत्वों का निर्देश नहीं दिया जा सकता जिनका पालन करना निबंधकार के लिए आवश्यक है। ऐसा कहा जाता है कि निबंध एक ऐसी कलाकृति है जिसके नियम लेखक द्वारा ही आविष्कृत होते हैं। निबंध में सहज, सरल और आडम्बरहीन ढंग से व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है।
हिन्दी साहित्य कोश के अनुसार, “लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव सुनाता है और उन्हें आत्मीयता के साथ उनमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है। उसकी यह घनिष्ठता जितनी सच्ची और सघन होगी, उसका निबंध पाठकों पर उतना ही सीधा और तीव्र असर करेगा। इसी आत्मीयता के फलस्वरूप निबंध-लेखक पाठकों को अपने पांडित्य से अभिभूत नहीं करना चाहता।”
इस प्रकार निबंध के दो विशेष गुण होते हैं-
- व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति,
- सहभागिता का आत्मीय या अनौपचारिक स्तर।
निबंध लेखन के अंग
निबंध लेखन के तीन प्रमुख अंग होते हैं- (1) भूमिका, (2)विषय-वस्तु, और (3)उपसंहार। जबकि निबंध (विधा) के चार अंग होते हैं- (1)शीर्षक या विषय, (2)भूमिका (प्रस्तावना), (3)विषय-वस्तु (विषय-विस्तार) और (4)उपसंहार।
- शीर्षक या विषय– यह लेखन का अंग नहीं होता है, बल्कि यह किसी विधा (निबंध) का सबसे जरूरी अंग है। जिसका प्रत्येक विधा में एक अलग से स्थान होता है। यह लेखन के बाद में या पहले निर्धारित किया जाता है, परीक्षाओं में निबंध के विषय या शीर्षक पहले से ही दिए हुए होते हैं।
- भूमिका (प्रस्तावना)– हिंदी निबंध लेखन के इस भाग (अंग) में दिए गए शीर्षक से पाठकों का परिचय कराया जाता है। भूमिका या प्रस्तावना का आकर्षक होना ज़रूरी है, जिससे पाठकों में पूरा निबंध पढ़ने की उत्सुकता बढ़ती है।
- विषय-वस्तु (विषय-विस्तार)– यह निबंध लेखन का मुख्य भाग होता है जिसमें विषय को आरंभ, मध्य और अंत इत्यादि उपभागों में बाँट लेना चाहिए और मुख्य विषय के उपशीर्षक बना लेने चाहिए। इसमें लेखक अपने समस्त विचारों को विस्तार से रखता है।
- उपसंहार (निष्कर्ष)– यह निबंध लेखन का अंतिम भाग होता है, जिसे लेखक को इस प्रकार लिखना चाहिए कि विषय के मूलभाव को संतुलित तरीके से समेट सके।
निबंध लेखन कला के महत्वपूर्ण बिन्दु
निबंध लेखन कला के चार महत्वपूर्ण बिन्दु हैं, जो इस प्रकार हैं-
- निबंध का विषय,
- निबंध की रूपरेखा,
- निबंध का विषय-विस्तार (आरंभ, मध्य और अंत),
- निबंध की शैली।
1. विषय: निबन्ध लेखन का विषय या शीर्षक
निबन्ध का विषय साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक या ऐतिहासिक कुछ भी हो सकता है परन्तु जैसा कि डॉ. लक्ष्मी सागर वाष्र्णेय ने कहा है, “निबन्ध से तात्पर्य सच्चे साहित्यिक निबन्धों से है जिसमें लेखक अपने आपको प्रकट करता है, विषय को नहीं; विषय तो केवल बहाना मात्र होता है।”
वास्तव में, निबन्ध लेखन साहित्य और इसके आयाम इतने विशाल हैं कि उन्हें परिभाषा के घेरे में नहीं बाँधा जा सकता। निबन्ध को परिभाषा में बाँधना कदाचित काव्य की परिभाषा करने से भी कठिन है।
उसमें कुछ लक्षण निर्धारित कर ही संतोष करना पड़ता है। उसमें लेखक का निजीपन और व्यक्तित्व झलकता है। निबन्ध उन्मुक्त और स्वच्छंद होते हुए भी अपने आप में पूर्ण होता है। उसमें अपनी अन्विति होती है।
2. रूपरेखा: निबंध लेखन की रूपरेखा
निबंध लेखन में विचारों को व्यवस्थित क्रम देने के लिए उसकी एक संक्षिप्त रूपरेखा बनानी जरूरी होती है। बिना रूप-रेखा के निबंध लेखन में आपके विचार किसी और दिशा की ओर भटक सकते हैं। अतः निबंध लेखन में इससे बचने के लिए आपको रूपरेखा बना लेनी चाहिए। सामान्यतः निबंध लेखन के समय निबंध को निम्न भागों में बांट लेना चाहिए-
- प्रस्तावना
- मूल विषय का प्रतिपादन
- समस्या पर तर्कपूर्ण चिन्तन एवं विचार
- समस्या से सम्बन्धित आंकड़े, उद्धरण आदि का प्रस्तुतीकरण
- सुझाव, निदान के उपाय
- उपसंहार
3. आरंभ, मध्य और अंत: निबंध लेखन का आरंभ, मध्य और अंत
- निबंध का आरंभ: निबंध का आरंभ कैसे हो, बीच में क्या हो और अंत किस प्रकार किया जाए, ऐसे किसी निर्देश और नियम को मानने के लिए निबंधकार बाध्य नहीं है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि निबंध एक उच्छृंखल रचना है और निबंधकार एक उच्छृंखल व्यक्ति।
- निबंध का मध्य: निबंधकार अपनी प्रेरणा और विषय वस्तु की संभावनाओं के अनुसार अपने व्यक्तित्व का प्रकाशन और रचना का संगठन करता है। इसी कारण निबंध में शैली का विशेष महत्त्व है।
- निबंध का अंत: अंत भी ऐसा ही हो जो विषय के मूलभाव को संतुलित तरीके से समेट सके।
4. शैली: निबंध लेखन की शैली
निबंध लेखन में सामान्यतः विवेचनात्मक, विवरणात्मक एवं विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग करना चाहिए। कभी-कभी निबंध आत्मकथा अथवा संभाषण शैली में भी लिखे जाते हैं। इस प्रकार के निबंधों के विषय अलग तरह के होते हैं, जैसे- गंगा नदी की आत्मकथा, यदि मैं प्रधानमन्त्री होता, सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं आदि।
निबंध कैसे लिखें?
दिए हुए विषयों को अच्छी तरह पढ़ें:
यह निबंध लेखन प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। आपको दिए हुए विषयों में से किसी एक का चयन करना चाहिए। अपना विषय चुनते समय, सुनिश्चित करें कि आप दिए गए विषयों में से उस विषय के बारे में सबसे अधिक जानते हैं।
विषय चयन के समय ध्यान दें:
- आपको निबंध लेखन के लिए एक संवेदनशील या विवादास्पद विषय जैसे कहें, नारीवाद, आदि को चुनने से बचना चाहिए।
- एक ऐसा विषय जिसके बारे में आप बहुत भावुक हैं या जिसके बारे में आप दृढ़ता से महसूस करते हैं, को भी निबंध लेखन के लिए चुनने से बचना चाहिए।
विषय चयन के बाद कुछ देर विचार करें:
निबंध लेखन के लिए एक बार जब आप अपना विषय चुन लेते हैं, तो आपको तुरंत लिखना शुरू नहीं करना चाहिए। कुछ समय सोचना और अपने विचार एकत्रित करना ही समझदारी है। पेंसिल में उन बिंदुओं को लिखें जिन्हें आप लिखना चाहते हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि तभी आप अपनी बातों को सही क्रम में लिख सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप अपने पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों के बारे में लिख रहे हैं, तो आपको शुरुआत में ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं को लिखना होगा।
मान लीजिए कि आप निबंध लेखन शुरू कर दिया, और अंत में ही महसूस करते हैं कि आप ऐतिहासिक भाग में एक महत्वपूर्ण विवरण का उल्लेख करना भूल गए हैं; जगह की कमी के कारण इसे जोड़ने में बहुत देर हो जाएगी। इसलिए, यदि आप शुरुआत में अपने रफ पॉइंट लिखते हैं तो इससे निबंध लेखन में मदद मिलती है।
लिखते समय ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बातें:
- नाम-पुकार का सहारा न लें।
- अपने निबंध में कभी भी व्यक्तिगत न हों।
- अतिवादी दृष्टिकोण न रखें, बुद्ध का मध्य मार्ग यहां आपकी सहायता कर सकता है।
- निबंध में लेखन के समय सिर्फ समस्याएं पेश न करें, संभव सुधार एवं समाधान भी दें।
- सरकार एवं प्रशासन की अत्यधिक आलोचना न करें।
- भले ही विषय उत्तेजक हो, परंतु आपका निबंध उत्तेजक नहीं होना चाहिए।
- विषय का संतुलित चित्रण प्रस्तुत करें।
- आपको विषय से सहमत होने की आवश्यकता नहीं है।
- काल्पनिक समाधान लिखने से बचें।
एक उत्तम निबंध लेखन के सूत्र:
जिस विषय पर निबंध लेखन करना हो, उस पर पर्याप्त चिन्तन-मनन कर लेना चाहिए और विचारों को व्यवस्थित क्रम देने के लिए उसकी एक संक्षिप्त रूपरेखा भी बना लेनी चाहिए।
- विषय-वस्तु का प्रतिपादन रूपरेखा के अनुरूप करने से उसमें सुसम्बद्धता एवं कसावट आ जाती है।
- निबंध लेखक को सरसता का समावेश भी करना चाहिए अन्यथा वह एक तथ्य प्रधान विवरण मात्र रह जाएगा।
- निबंध की भाषा यथासम्भव सरल सहज एवं प्रवाहपूर्ण रहनी चाहिए।
- कठिन, कृत्रिम एवं आलंकारिक भाषा से यथासम्भव बचना चाहिए।
- दुरूह वाक्य रचना एवं बोझिल भाषा से निबंध का सौन्दर्य एवं सौष्ठव नष्ट हो जाता है।
- निबंध लेखक को अपने विषय पर केन्द्रित रहना चाहिए तभी उसका प्रभाव उचित रूप में पड़ता है।
- एकसूत्रता भंग होने से निबंध बोझिल हो जाता है और उसमें पूर्णता नहीं आ पाती।
निबंध लेखन की तैयारी
आपके मन में एक बड़ा सवाल यह उठता रहा होगा कि आखिर निबंध लेखन के लिए तैयारी कैसे की जाए? इसके लिये कौन सी किताब पढ़ी जाए? तो यहाँ आपको स्पष्ट कर दें कि ऐसी कोई एक किताब नहीं है जिसे पढ़कर आप रातोंरात निबंध लेखन में पारंगत हो जाएँ। कोई ऐसी विधि भी नहीं है जिसे रटकर आप निबंध के प्रश्नपत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
- वस्तुतः निबंध लेखन आपके संपूर्ण व्यक्तित्व का परीक्षण है। इससे आपकी संवेदना और आपकी सोच का पता चलता है।
- कुछ आवश्यक सामग्री जो आपके निबंध लेखन में लाभदायी होंगी उनमें नियमित रूप से अखबारों मे छपे संपादकीय लेख अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं जो किसी विषय के प्रति आपकी समझ को विकसित करने में लाभकारी सिद्ध होंगे।
- इसके अलावा, कुछ प्रसिद्ध निबंधकारों के निबंध पढ़ें और यह समझने की कोशिश करें कि दिये गए विषय को किस तरह से लेखक ने कितने आयामों में बाँटा है और उसके क्या मनोभाव रहे हैं? ज़रूरी हो तो आवश्यक बातों को नोट भी करें।
- कुछ प्रसिद्ध महापुरुषों के कथन, शायरी, कविता भी याद कर लें, इनका एक संग्रह भी बना सकते हैं खासकर, गरीबी, न्याय, महिला, विज्ञान, धर्म, भ्रष्टाचार से जुड़े विषयों पर।
हिन्दी साहित्य में निबंध लेखन
हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग में भारतेन्दु और उनके सहयोगियों से निबंध लेखन की परम्परा का आरंभ होता है। निबंध ही नहीं, गद्य की कई विधाओं का प्रचलन भारतेन्दु से होता है। यह इस बात का प्रमाण है कि गद्य और उसकी विधाएँ आधुनिक मनुष्य के स्वाधीन व्यक्तित्व के अधिक अनुकूल हैं।
मोटे रूप में स्वाधीनता आधुनिक मनुष्य का केन्द्रीय भाव है। इस भाव के कारण परम्परा की रूढ़ियाँ दिखाई पड़ती हैं। सामयिक परिस्थितियों का दबाव अनुभव होता है। भविष्य की संभावनाएँ खुलती जान पड़ती हैं। इसी को इतिहास-बोध कहा जाता है। भारतेन्दु युग का साहित्य इस इतिहास-बोध के कारण आधुनिक माना जाता है।
हिन्दी के कुछ प्रमुख निबंधकारों में- भारतेन्दु हरिश्चंद्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, बालमुकुंद गुप्त, सरदार पूर्ण सिंह, रामचन्द्र शुक्ल, महादेवी वर्मा, विद्यानिवास मिश्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, कुबेरनाथ राय, हजारी प्रसाद द्विवेदी, नंददुलारे वाजपेयी आदि आते हैं। निबंधकारों की पूर्ण लिस्ट यहाँ- “हिन्दी के निबंध और निबंधकार” देखें।
निबंध लेखन के उदाहरण
हिन्दी में निबंध लेखन के लिए पहले से लिखे हुए निबंधों को पढ़ना भी जरूरी होता हैं, जिससे हमें यह पता चल जाता हैं कि निबंध लेखन के समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि भाषा शैली कैसी हो, विस्तार कितना हो, आदि एवं अंत कैसा हो आदि।
इस लिस्ट में जो निबंध लेखन के उदाहरण दिए गए है उनका कठिनाई स्तर हाईस्कूल और इंटरमीडिएट लेवल का है यानी 10th और 12th के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं। आप ऐच्छिक निबंध को पढ़ सकते है-
- साहित्य और समाज
- राष्ट्र भाषा हिंदी
- मेरा प्रिय कवि : तुलसीदास
- मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस
- भारतीय समाज में नारी का स्थान
- दहेज़ प्रथा : एक अभिशाप
- बेरोजगारी की समस्या
- युवा शक्ति में असंतोष : कारण और निवारण
- आरक्षण नीति
- आतंकवाद
- भ्रष्टाचार : कारण एवं निवारण
- नशाखोरी : एक अभिशाप
- विज्ञान की उपलब्धियां
- कंप्यूटर : महत्त्व एवं उपयोगिता
- दूरदर्शन का प्रभाव
- प्रदूषण : कारण एवं निवारण
- भारत में अंतरिक्ष अनुसन्धान : इसरो
- राष्ट्रीय एकता
- भारत की प्रमुख समस्याएं
- शिक्षा का निजीकरण
- परिवार नियोजन – जनसंख्या वृद्धि को रोकने के उपाय
- मंहगाई की समस्या
- साम्प्रदायिक सद्भाव – साम्प्रदायिकता की समस्या
- प्रौढ़ शिक्षा
- स्वदेश प्रेम
- समाचार पत्रों की उपयोगिता
- परोपकार : परहित सरिस धरम नहिं भाई
- स्वाधीनता का महत्त्व
- मन की शक्ति
- यदि मैं प्रधानमंत्री होता
- मेरा प्रिय लेखक : मुंशी प्रेमचंद
- नारी शिक्षा या महिला सशक्तिकरण
- पर उपदेश कुशल बहुतेरे
Frequently Asked Questions (FAQ)
1. निबंध का एक अर्थ क्या है?
निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी एक विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सजीवता, संगति एवं सुसम्बद्धता के साथ किया जाता है।
2. निबंध की क्या विशेषताएं होती हैं?
- एक अच्छे निबंध में संक्षिप्तता, एकसूत्रता तथा पूर्णता जैसे गुण विद्यमान होते हैं।
- निबंध लेखक को पुनरुक्ति से बचना चाहिए तथा अपनी बात को तर्कपूर्ण ढंग से व्यक्त करना चाहिए।
- तर्कों की पुष्टि हेतु आंकड़े, उद्धरण आदि इस प्रकार से प्रस्तुत करने चाहिए जिससे वे विषय के साथ एकरस हो जाएं, पैबन्द जुड़े हुए प्रतीत न हों।
3. निबंध का जनक कौन है?
हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग में भारतेन्दु और उनके सहयोगियों से निबंध लेखन की परम्परा का आरंभ होता है।
4. निबंध लेखन के मुख्य अंग कौन से हैं?
निबंध लेखन के तीन मुख्य अंग होते हैं : भूमिका, विषय-वस्तु, और उपसंहार।
5. निबंध के मुख्य दो प्रकार कौन से हैं?
लेखन की दृष्टि से निबंध के प्रमुख रूप से 5 प्रकार के भेद होते हैं- वर्णनात्मक, भावात्मक, विचारात्मक, व्यंग्यात्मक और आत्मपरक।
6. निबंध के कितने अंग होते हैं?
निबंध के चार अंग होते हैं : विषय, भूमिका, विषय-वस्तु, और उपसंहार।
7. निबंध किसे कहते हैं कितने प्रकार के होते हैं?
निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी एक विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सजीवता, संगति एवं सुसम्बद्धता के साथ किया जाता है। निबंध के प्रमुख रूप से 5 प्रकार के होते हैं।
8. हिंदी में निबंध लेखन कैसे करें?
- विषय-वस्तु का प्रतिपादन रूपरेखा के अनुरूप करने से उसमें सुसम्बद्धता एवं कसावट आ जाती है।
- निबंध लेखक को सरसता का समावेश भी करना चाहिए अन्यथा वह एक तथ्य प्रधान विवरण मात्र रह जाएगा।
- निबंध की भाषा यथासम्भव सरल सहज एवं प्रवाहपूर्ण रहनी चाहिए।
- कठिन, कृत्रिम एवं आलंकारिक भाषा से यथासम्भव बचना चाहिए।
- दुरूह वाक्य रचना एवं बोझिल भाषा से निबंध का सौन्दर्य एवं सौष्ठव नष्ट हो जाता है।
- निबंध लेखक को अपने विषय पर केन्द्रित रहना चाहिए तभी उसका प्रभाव उचित रूप में पड़ता है।
- एकसूत्रता भंग होने से निबंध बोझिल हो जाता है और उसमें पूर्णता नहीं आ पाती।
निबंध लेखन में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख सूक्तियां
निबंध लेखन में प्रयुक्त होने वाली सूक्तियां अर्थात प्रचलित वाक्यों को हम यहाँ हिन्दी को आधार मानकर दो भाषाओं (संस्कृत और अंग्रेजी) में दे रहें हैं-
- हिन्दी और संस्कृत के निबंध लेखन में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख सूक्तियां
- हिन्दी और अंग्रेजी के निबंध लेखन में प्रयुक्त होने वाली महत्वपूर्ण उक्तियां
1. हिन्दी और संस्कृत के निबंध लेखन में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख सूक्तियां
- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी (माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं।)
- नास्ति क्रोध समो रिपुः (क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं है।)
- दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति (दैव दैव हा आलसी पुकारा भाग्य भरोसे कायर रहते हैं।)
- नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते (ज्ञान के समान कुछ भी इस संसार में पवित्र नहीं है।)
- परोपकाराय सतां विभूतयः (सज्जनों का धन परोपकार के लिए होता है।)
- बुभुक्षितः किं न करोति पापम् ? (भूखा कौन-सा पाप नहीं कर सकता?)
- भोगो भूषयते धनम् (धन तो उपभोग से ही सुशोभित होता है-संग्रह से नहीं।)
- महाजनो येन गतः स पन्थाः (महापुरुष द्वारा अपनाया गया ही श्रेष्ठ मार्ग है।)
- मानो हि महताम् धनम् (महान लोगों का धन मान ही है।)
- मा ब्रूहि दीनं वचः (दीन वचन मत बोलो स्वाभिमान की रक्षा करो।)
- मातृवत् परदारेषु, परद्रव्येषु लोष्ठवत्। (पर स्त्री माता के समान और पराया धन मिट्टी के समान है।)
- यस्तु क्रियावान् पुरुषः स एव (क्रियाशील व्यक्ति ही पुरुष है।)
- यले कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः (पूर्ण प्रयास करने पर भी असफलता मिले तो निराश न होकर दोष (कमी) को खोजो।)
- वचने का दरिद्रता? (मधुर बोलने में क्या कोताही?)
- विद्यारत्नं महाधनम् (विद्यारूपी रत्न सबसे बड़ा धन है।)
- विद्या धर्मेण शोभते (विद्या धर्म के साथ ही सुशोभित होती है।)
- वीर भोग्या वसुन्धरा (वीर ही पृथ्वी का उपभोग करते हैं।)
- विनाशकाले विपरीत बुद्धिः (विनाश के समय बुद्धि भी विपरीत (कुण्ठित) हो जाती है।)
- प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम्? (हाथ कंगन को आरसी क्या?)
- शीलं हि सर्वनरस्य भूषणम् (शील ही मनुष्य की शोभा है ?)
- शठे शाठ्यं समाचरेत् (दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करें।)
- शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम् (धर्म पालन का प्रथम साधन शरीर ही है।)
- शत्रोरपि गुणा वाच्याः (शत्रु के गुणों को भी कहना चाहिए।)
- सत्यमेव जयते नाऽनृतम् (सत्य की जीत होती है, झूठ की नहीं।)
- सर्वेभद्राणि पश्यन्तु (सभी लोग कल्याणों को देखें (पाएं)।)
- सम्पूर्ण कुम्भो न करोति शब्दम् (भरा हुआ घड़ा छलकता नहीं है।)
- सन्तोष एव पुरुषस्य परम धनम् (सन्तोष मनुष्य का सबसे बड़ा धन है।)
- सुलभा रम्यता लोके, दुर्लभो हि गुणार्जनम् (संसार में सुन्दरता तो सुलभ है किन्तु गुण ग्रहण करना कठिन है।)
- स्वाध्यायान्मा प्रमदः (स्वाध्याय में आलस्य मत करो।)
- हितं मनोहारि च वचः दुर्लभम् ! (हितकारी और मनोहर वचन (कहने वाले) दुर्लभ ही होते हैं।
- हा हन्त! हन्त! नलिनी गज उज्जहार। (मनुष्य का संकल्प, ईश्वर का विकल्प)
2. हिन्दी और अंग्रेजी के निबंध लेखन में प्रयुक्त होने वाली महत्वपूर्ण उक्तियां
- A man is known by the company he keeps. (संगति से ही मनुष्य की पहचान होती है।)
- A thing of beauty is a joy forever. (सौन्दर्य सर्वदा आनन्ददायक है।)
- A sound mind devils in a healthy body. (स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।)
- All is well that ends well. (अन्त भला तो सब भला।)
- Afriend in need is a friend indeed. (मित्र वही जो मुसीबतों में काम आए।)
- Arolling stone gathers no moss. (थाली का लुढ़कता बैंगन, डांवाडोल मनःस्थिति वाले की स्थिति खराब ही रहती है।)
- Alie has no legs to stand upon. (झूठ के पैर नहीं होते।)
- As you sow, so you reap. (जैसा बोओगे वैसा काटोगे, जैसी करनी वैसी भरनी, बोवे पेड़ बबूल का आम कहां से खाय।)
- Barking dogs seldon bite. (जो गरजते हैं वे बरसते नहीं।)
- Beware of flatterers. (खुशामदियों से सावधान रहो।)
- Cut your coat according to your cloth. (तेते पांव पसारिए जेते लाम्बी सौर।)
- Do unto others as you wish to be done by. (दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो जैसा तम अपने प्रति चाहते हो।)
- Crying over the spice milk. (अब पछताए होत कहा, जब चिड़ियां चुग गई खेत।)
- Crying in wilderness. (अरण्य रोदन, भैंस के आगे बीन बजाना।)
- Empty vessel makes much noise. (अधजल गगरी छलकत जाए।)
- Health is wealth. (स्वास्थ्य ही धन है।)
- If winter comes, can spring be far behind? (रात हुई है तो सबेरा भी आएगा, जब पतझड़ आया है तो क्या वसन्त दूर है? (नहीं)
- It is dangerous to be too good. (बहुत अच्छा होना खतरनाक है।)
- It takes two to make a quarrel. (एक हाथ से ताली नहीं बजती।)
- Love is stronger than thought. (प्रेम विचारों से अधिक शक्तिशाली है।)
- Love is God. (प्रेम ईश्वरमय है।)
- Our sweetest songs are those that tell us seddest thought. (वेदनापूर्ण गीत ही मधुरतम हैं।)
- Science is an organised knowledge. (विज्ञान एक व्यवस्थित ज्ञान है।)
- Slavery is a system of the most complete injustice. (दासता अन्याय का प्रतीक है।)
- Sweet are the uses of adversity. (विपत्ति के परिणाम मधुर होते हैं।)
- Slow and steady wins the race. (निरन्तर परिश्रमी की ही विजय होती है।)
- Studies serve for delight, for ornament and for ability. (अध्ययन से प्रसन्नता, ज्ञान और योग्यता होती है।)
- Practice makes aman perfect. (करत-करत अभ्यास के जड़मति होय सुजान।)
- Prevention is better than cure. (एक परहेज, सौ इलाज।)
- Pride goeth before fall. (घमण्डी का सिर नीचा।)
- Comingevents cast their shadows before. (होनहार बिरवान के होत चीकने पात)
- Travel teaches tradition. (देशाटन ज्ञान की वृद्धि करता है।)
- Time and tide wait for none. (समय व ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करते।)
- Truth fears no examination. (सांच को आंच नहीं।)
- Tit for tat. (जैसे को तैसा।)
- To error is human. (मनुष्य से गलती हो जाना स्वाभाविक है।)
- Simple living and high thinking. (सादा जीवन उच्च विचार)
- Union is strength. (संगठन में शक्ति है।)
- Woare the tabel of thoughts. (शब्द विचारों के परिचायक है।)
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