“रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।” अथवा– “रामवृक्ष बेनीपुरी जी की कृतियों का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएं लिखिए।”
Rambriksh Benipuri
स्वतन्त्रता संग्राम के अमर सेनानी श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हिन्दी के महान लेखकों में गिने जाते हैं। हृदय में देशभक्ति की आग और वाणी में शोले लेकर यह महान शब्द-शिल्पी जब साहित्य-सृजन के क्षेत्र में आया तो उसने एक क्रान्ति उपस्थित कर दी।
नाटक कहानी, निबन्ध, आलोचना, उपन्यास, रेखाचित्र, संस्मरण आदि सभी क्षेत्रों को इन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रसाद दिया। रेखाचित्र को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करने का सारा श्रेय आपको ही है।
पूरा नाम | रामवृक्ष बेनीपुरी |
जन्म | 23 दिसम्बर, 1899 |
जन्म स्थान | बेनीपुर, मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार |
मृत्यु | 9 सितम्बर, 1968 |
मृत्यु स्थान | बिहार |
पिता | श्री फूलचन्द्र |
व्यवसाय | स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, कवि |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
भाषा | खड़ी बोली, हिंदी भाषा |
प्रमुख रचनाएं | रज़िया, माटी की मूरतें, जंजीरें और दीवारें, मील के पत्थर, चिता के फूल, गेहूँ और गुलाब, महाराणा प्रताप, विद्यापति पदावली, तरुण भारती, कर्मवीर आदि। |
विधाएं | रेखाचित्र, संस्मरण, कहानी, उपन्यास, यात्रावृत्त, नाटक, निबन्ध, जीवनी, आलोचना, सम्पादन |
रामवृक्ष बेनीपुरी का ‘जीवन-परिचय’
बेनीपुरी जी का जन्म सन् 1899 में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में बेनीपुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता श्री फूलचन्द्र एक साधारण किसान थे। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया और इनका लालन-पालन इनकी मौसी ने किया।
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बेनीपुर में हुई और बाद में ये अपनी ननिहाल में पढ़े। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने से पूर्व ही सन् 1920 ई. में इन्होंने अध्ययन छोड़ दिया और गांधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े।
आगे स्वाध्याय के बल पर ही इन्होंने हिन्दी साहित्य की ‘विशारद’ परीक्षा उत्तीर्ण की। ये राष्ट्र सेवा के साथ-साथ साहित्य की भी साधना करते रहे। साहित्य की ओर इनकी रुचि ‘रामचरितमानस’ के अध्ययन से जाग्रत हुई।
पन्द्रह वर्ष की आयु से ही ये पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे। देश सेवा के परिणामस्वरूप इनको कई बार जेल भी जाना पड़ा। सन् 1968 में इनका देहान्त हो गया।
रामवृक्ष बेनीपुरी की कृतियां या रचनाएं
- रेखाचित्र – (१) माटी की मूरतें, (२) लाल तारा, (३) रज़िया।
- संस्मरण – (१) जंजीरें और दीवारें, (२) मील के पत्थर।
- कहानी – (१) चिता के फूल।
- उपन्यास – (१) पतितों के देश में।
- यात्रावृत्त – (१) पैरों में पंख बांधकर, (२) उड़ते चलें।
- नाटक – (१) अम्बपाली, (२) सीता की मां, (३) रामराज्य।
- निबन्ध – १) गेहूँ और गुलाब, (२) बन्दे वाणी विनायकौ, (३) मशाल।
- जीवनी – (१) महाराणा प्रताप, (२) जयप्रकाश नारायण, (३) कार्ल मार्क्स।
- आलोचना – (१) विद्यापति पदावली, (२) बिहारी सतसई की सुबोध टीका।
- सम्पादन – (१) तरुण भारती, (२) कर्मवीर, (३) बालक, (४) किसान मित्र, (५) कैदी, (६) योगी, (७) नई धारा, (८) चुन्नू-मुन्नू, (९) जनता, (१०) हिमालय।
भाषागत विशेषताएं
बेनीपुरी जी की भाषा सरल एवं व्यावहारिक है। उनके द्वारा प्रयुक्त खड़ी बोली में सरलता, सुबोधता, सजीवता विद्यमान है। उनकी भाषा में भावानुकूल शब्द चयन किया गया है।
बेनीपुरी जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव, देशज तथा अंग्रेजी एवं उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। उनकी भाषा में लोकोक्तियों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया गया है जिससे भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता में वृद्धि हुई है।
बेनीपुरी जी की रचनाओं में लाक्षणिक एवं आलंकारिक भाषा भी उपलब्ध होती है। बेनीपुरी जी ने छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करते हुए भाषा की व्यंजकता को बढ़ाने में सफलता पाई है।
शैली के विविध रूप
आलोचनात्मक शैली
इस शैली का प्रयोग बेनीपुरी जी ने बिहारी सतसई की टीका लिखने में तथा विद्यापति पदावली की समीक्षा लिखने में किया है। यहां उन्होंने विवेचनात्मक पद्धति को ग्रहण करते हुए शुद्ध साहित्यिक परिनिष्ठित हिन्दी का प्रयोग किया है। वाक्य कुछ लम्बे लम्बे हो गए हैं, जिनमें तत्सम शब्दों की बहुलता है। इस शैली में सर्वत्र प्रसाद गुण व्याप्त है।
वर्णनात्मक शैली
बेनीपरी जी ने इस शैली का उपयोग कथा साहित्य एवं रेखाचित्रों में किया। जीवनियों संस्मरणों एवं यात्रा वर्णनों में भी वर्णनात्मक शैली की प्रमुखता रही है। इसकी भाषा सरल एवं सुबोध है तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं। यथा :
भावात्मक शैली
ललित निबन्धों में भावात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। इस शैली में भावों की अधिकता है। भाषा आलंकारिक है तथा उसमें हृदयस्पर्शी मार्मिक अभिव्यक्ति करने की क्षमता विद्यमान है, यथा :
प्रतीकात्मक शैली
बेनीपुरी जी ने प्रतीकों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में अपने ललित निबन्धों में किया है। ‘गेहूं और गुलाव’ नामक निबन्ध में इस शैली को देखा जा सकता है। ‘नींव की ईंट’ नामक निबन्ध भी उन्होंने प्रतीकात्मक शैली में लिखा है। गेहूं को वे शारीरिक आवश्यकता का प्रतीक मानते हैं जबकि गुलाब मानसिक वृत्तियों, कला एवं संस्कृति का प्रतीक है, यथा :
हिन्दी साहित्य में स्थान
एक उत्कृष्ट निबन्धकार, समर्थ रेखाचित्रकार, कुशल राजनीतिज्ञ एवं यशस्वी पत्रकार के रूप में बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य जगत में चिरस्मरणीय रहेंगे। राष्ट्र सेवा के साथ-साथ साहित्य सेवा करने वाले महापुरुषों में वे अग्रणी हैं। रेखाचित्र विधा को समृद्ध करने में तथा साहित्य की विविध विधाओं में अनेक कृतियां लिखकर उन्होंने हिन्दी की महान सेवा की है।
अन्य जीवन परिचय
हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं।
FAQs
रामवृक्ष बेनीपुरी की प्रमुख रचनाएं कौन सी हैं?
रजिया, माटी की मूरतें, जंजीरें और दीवारें, मील के पत्थर, चिता के फूल, गेहूँ और गुलाब, महाराणा प्रताप, विद्यापति पदावली, तरुण भारती, कर्मवीर आदि रामवृक्ष बेनीपुरी की प्रमुख रचनाएं हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी की भाषा शैली कैसी थी?
बेनीपुरी जी की भाषा सरल एवं व्यावहारिक हिन्दी है। उनके द्वारा प्रयुक्त खड़ी बोली में सरलता, सुबोधता, सजीवता विद्यमान है। उनकी भाषा में भावानुकूल शब्द चयन किया गया है। बेनीपुरी जी की भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव, देशज तथा अंग्रेजी एवं उर्दू के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। उनकी भाषा में लोकोक्तियों एवं मुहावरों का भी प्रयोग किया गया है जिससे भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता में वृद्धि हुई है। बेनीपुरी जी की रचनाओं में लाक्षणिक एवं आलंकारिक भाषा भी उपलब्ध होती है। बेनीपुरी जी ने छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करते हुए भाषा की व्यंजकता को बढ़ाने में सफलता पाई है।
रामवृक्ष बेनीपुरी की दो रचनाएँ लिखो?
रामवृक्ष बेनीपुरी के रेखाचित्र – (१) माटी की मूरतें, (२) लाल तारा, (३) रज़िया। रामवृक्ष बेनीपुरी के संस्मरण – (१) जंजीरें और दीवारें, (२) मील के पत्थर।
रजिया रामवृक्ष बेनीपुरी summary हिन्दी में लिखो।
रजिया रेखाचित्र में रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने एक मनिहारिन रजिया का उल्लेख किया है। जिसमें वह अपनी मां के साथ चूड़ियां बेचती है, और वह इतनी सुंदर है की लेखक की नजर उससे हट ही नहीं रही है, धीरे धीरे लेखक और उसकी आंखे मिलने लगती है। और फिर कुछ समय के बाद लेखक आगे पढ़ाई के लिए शहर चला जाता है और उनका कभी कभी यहां आना होता है। अब रजिया से मिलना और दुर्लभ हो गया है लेकिन इस बार जब वे गांव आए तो रजिया की पोती उन्हे बुलाने आती है रजिया बीमार है वो शायद उनकी आखिरी मुलाकात है।
रजिया रेखाचित्र की विशेषता क्या है?
रजिया रेखाचित्र में रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने एक मनिहारिन रजिया का उल्लेख किया है। जिसमें वह अपनी मां के साथ चूड़ियां बेचती है, और इसी पात्र का रेखांकन इस रेखाचित्र में लेखक ने किया है।