सामाजिक समस्या केंद्रित उपागम
Social Problems Centered Approach
सामाजिक समस्या केन्द्रित उपागम का आशय सामाजिक आकांक्षाओं एवं अपेक्षाओं से है जो कि बालकों की अधिगम प्रक्रिया को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।
दूसरे शब्दों में समाज में उत्पन्न होने वाली अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याओं का समाधान शिक्षा और ज्ञान के ही माध्यम से सम्पन्न होता है।
इन समस्याओं के समाधान हेतु जो उपाय किये जाते हैं उन्हें बालकों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का भाग बना दिया जाता है, जिससे इन समस्याओं का समाधान भविष्य में सरल और स्वाभाविक रूप में हो जाय। इस प्रकार सामाजिक समस्याओं का समाधान भी सम्भव होता है और अधिगम प्रक्रिया का विकास भी।
उदाहरणार्थ, समाज में दहेज प्रथा एवं जाति-पाति की व्यवस्था को समाप्त करने के लिये बालकों की अधिगम प्रक्रिया में उन कहानियों, प्रसंगों, कविताओं, निबन्धों एवं गीतों का समावेश किया जाता है, जो इन व्यवस्थाओं का विरोध करते हैं।
इस प्रकार प्रत्येक बालक बाल्यकाल से ही इन प्रथाओं को अनुचित मानता है तथा युवा होकर इनका विरोध करता है। इससे धीरे-धीरे इस प्रकार की सामाजिक समस्याओं का पूर्णतः समाधान हो सकता है।
अत: इससे यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक समस्याओं का समाधान अधिगम प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण उपागम है।
सामाजिक समस्या केन्द्रित उपागम की भूमिका एवं प्रक्रिया
सफल एवं प्रभावशाली अधिगम में सामाजिक समस्या केन्द्रित उपागम की भूमिका एवं प्रक्रिया को निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है:-
1. अन्धविश्वासों का उन्मूलन (Abolition of blind faith)
समाज में अनेक अन्धविश्वास प्रचलित हैं, जिनके कारण सामाजिक जीवन पूर्णतः संघर्षयुक्त हो जाता है। समाज में इससे धन हानि एवं जन हानि हो जाती है; जैसे– जादू-टोने के कारण व्यक्ति की वास्तविक बीमारी का उपचार सम्भव नहीं होता है और तान्त्रिकों द्वारा व्यक्ति का धनहरण किया जाता है तथा अन्त में उपचार के अभाव में व्यक्ति की मृत्यु जो जाती है।
जबकि शिक्षा के माध्यम से विज्ञान विषय द्वारा अनेक औषधियों के द्वारा बीमारी को ठीक कर दिया जाता है तथा यह भी सिद्ध कर दिया जाता है कि बीमारी का उपचार चिकित्सा विज्ञान द्वारा ही सम्भव है न कि किसी जादू-टोने से।
इस प्रकार की घटनाओं को कहानियों एवं निबन्धों के माध्यम से बालकों की अधिगम प्रक्रिया में स्थान दिया जाता है। इस प्रकार अधिगम भी सशक्त बनता है तथा सामाजिक समस्याओं का समाधान भी सम्भव होता है।
2. सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन (Abolition of social evils)
समाज में अनेक प्रकार की कुरीतियों का समावेश पाया जाता है। इन कुरीतियों का उन्मूलन भी शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है। सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन सम्बन्धी उपायों का बालकों का अधिगम प्रक्रिया में समावेश कर दिया जाता है। इससे पूर्व-प्राथमिक स्तर से ही बालकों में सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाती है। बालक वयस्क होकर इन सामाजिक कुरीतियों का विरोध करते हैं तथा सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं।
3. सांस्कृतिक समस्याओं का समाधान (Solution of cultural problems)
सामान्य रूप से समाज में अनेक सांस्कृतिक तत्वों एवं परम्पराओं के विकास की समस्या बनी रहती है। व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ हित तथा अन्य भौतिक विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं के वशीभूत होकर अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं को भूल जाते हैं।
इससे समाज में सामाजिक विसंगति उत्पन्न होती है तथा सांस्कृतिक पतन की सम्भावना रहती है। बालकों की अधिगम प्रक्रिया में संस्कृति के संरक्षण से सम्बन्धित विषय सामग्री का समावेश करके समाज के सांस्कृतिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया जाता है।
इस प्रकार एक ओर तो छात्रों का सामाजिक अधिगम पूर्ण होता है वहीं दूसरी ओर सांस्कृतिक विकास की बाधाओं को भी दूर किया जाता है।
4. सामाजिक गुणों का विकास (Development of social values)
वर्तमान समय में समाज से सामाजिक गुणों का पतन होता जा रहा है। व्यक्ति अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु समाज का अहित करने से भी नहीं चूकता। इस प्रकार की समस्या के समाधान हेतु भी शिक्षा प्रमुख उपाय के रूप में कार्य करती है क्योंकि बालक की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रेम, सहयोग एवं त्याग जैसे सामाजिक गुणों के विकास से सम्बन्धित सामग्री का समावेश कर दिया जाता है। इससे बालक प्रारम्भ से ही इन गुणों को आत्मसात करने लगता है।
इस प्रकार एक ओर तो सामाजिक गुणों का विकास सम्भव होता है, वहीं दूसरी ओर अधिगम प्रक्रिया भी सामाजिक हित की दिशा में कार्य करने लगते हैं।
5. सामाजिक परिवर्तन की समस्या का समाधान (Solution of the problems of social change)
सामाजिक परिवर्तन की अनेक प्रकार की समस्याएँ होती हैं जो कि समाज में आधुनिकता के समावेश को रोकती हैं जबकि सामाजिक विकास में स्वस्थ एवं आधुनिक तत्वों का समावेश आवश्यक होता है। इसके लिये बालकों के अधिगम में सामाजिक परिवर्तन एवं स्वस्थ आधुनिक विकास सम्बन्धी विभिन्न उपायों का समावेश कर दिया जाता है।
इस प्रकार बालक प्रारम्भिक स्तर से ही आधुनिकता एवं सामाजिक परिवर्तन के महत्त्व को समझते हुए उनको स्वीकार करने में दक्ष हो जाता है।
6. सामाजिक अन्याय और संकीर्णता का उन्मूलन (Abolition of social injustice and narrowness)
वर्तमान समय में समाज में अनेक प्रकार की विषमताओं को आधार मानकर व्यक्तियों के साथ जाति, धर्म एवं लिंग के आधार पर अन्याय किया जाता है। इससे अनेक प्रकार के विकास सम्बन्धी कार्यों में उचित अवसर नहीं प्राप्त होते तथा व्यक्ति के उत्थान में अनेक प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। अनेक प्रकार के अवसरों पर यह भी देखा जाता है कि समाज में मानसिक संकीर्णता के कारण व्यक्ति सार्वजनिक हित को त्यागकर अपने हित के बारे में विचार करके लगता है। इससे सामाजिक विकास का लाभ कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित हो जाता है तथा समाज में कटुता फैल जाती है।
बालकों की अधिगम प्रक्रिया में व्यापकता से सम्बन्धित सामग्री का समावेश कर बालकों की सोच को व्यापक बनाया जाता है, जिससे वे सामाजिक संकीर्णता उन्मूलन के महत्त्व को समझने लगते हैं। इसी प्रकार अधिगम में समानता एवं स्वतन्त्रता के दृष्टिकोण का समावेश करके बालकों को प्रारम्भ से ही सामाजिक समरसता का पाठ पढ़ाया जाता है, जिससे वे वयस्क होकर सामाजिक अन्याय का विरोध करने लगते हैं।
सामाजिक एकता सम्बन्धी समस्याओं के समाधान में भी बालकों की अधिगम प्रक्रिया का प्रभाव पड़ता है। समय में अनेक प्रकार की विचारधाराओं के जन्म लेने से तथा गलत परम्पराओं से सामाजिक एकता के कार्य में अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस प्रकार की समस्याओं को अधिगम में सामाजिक एकता सम्बन्धी सामग्री के आधार पर रोका जा सकता है।