सहभागी शिक्षण (Participation Teaching)
शिक्षण प्रक्रिया का सम्बन्ध प्राचीनकाल से ही दो पक्षों से रहा है। इसमें प्रथम पक्ष शिक्षा प्रदान करने वाला होता है जिसे गुरु के नाम से जानते थे। वर्तमान में उसको शिक्षक के नाम से जानते हैं। दूसरा पक्ष शिक्षा ग्रहण करने वाला होता था जिसे प्राचीनकाल में शिष्य तथा वर्तमान समय में छात्र के नाम से जानते हैं। इन दोनों पक्षों के मध्य ही शिक्षण व्यवस्था के तानेबाने को बुना जाता था। इन दोनों पक्षों को शिक्षण प्रक्रिया के लिये अनिवार्य माना जाता था। किसी भी एक के अभाव में शिक्षण की प्रक्रिया पूर्ण नहीं मानी जाती थी।
शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिये प्राचीनकाल में शिक्षकों तथा शिक्षार्थियों के लिये विभिन्न प्रकार की आचार संहिताएँ बनायी जाती थीं जिससे कि शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली बन सके।
इसी प्रकार शिक्षक के लिये भी सदाचार, समानता, निष्पक्षता, सत्य भाषण, मृदुभाषी एवं संयमी आदि गुणों से युक्त होना बताया गया। इससे यह स्पष्ट हुआ है कि शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों के द्वारा ही शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जाता है।
वर्तमान समय में इस प्रक्रिया को सहभागी शिक्षण के रूप में जाना गया अर्थात् सहभागी शिक्षण की अवधारणा का उदय हुआ जिसमें यह निश्चित किया गया कि शिक्षण प्रक्रिया को उपयोगी एवं प्रभावशाली बनाने के लिये शिक्षक एवं छात्र दोनों की ही सहभागिता आवश्यक है। इसके विपरीत स्थिति में शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली सिद्ध नहीं होगी।
सहभागी शिक्षण का अर्थ (Meaning of participation teaching)
सहभागी शिक्षण का सामान्य अर्थ शिक्षक एवं शिक्षार्थी की सहभागिता से लिया जाता है। शिक्षाशास्त्रियों का तर्क है कि शिक्षक एवं छात्र दोनों ही शिक्षण प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं। इसलिये वह शिक्षण प्रक्रिया सफल होगी जिसमें दोनों समान रूप से भाग लें। शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षार्थी भी उतना ही महत्त्वपूर्ण बिन्दु है जितना कि शिक्षक।
इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जाता सकता है। एक शिक्षक कक्षा में शिक्षण कार्य कर रहा है अर्थात् वह कक्षा में पूर्ण तल्लीनता से शिक्षण कार्य कर रहा है। वह छात्रों से प्रश्न पूछकर, श्यामपट्ट पर लेखन करवाकर एवं पृष्ठपोषण प्रदान करके उनका सहयोग प्राप्त कर रहा है। इस प्रकार दोनों पक्ष शिक्षण प्रक्रिया में एक-दूसरे को सहयोग दे रहे हैं। शिक्षक प्रश्न पूछता है, छात्र उत्तर देता है। शिक्षक निर्देश देता है, छात्र पालन करता है।
सहभागी शिक्षण की परिभाषाएं (Definitions of participation teaching)
सहभागी शिक्षण को विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है:-
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प्रो. श्रीकृष्ण दुबे के शब्दों में, “सहगामी शिक्षण का आशय उस शिक्षण प्रक्रिया से है जिसमें शिक्षक एवं शिक्षार्थी की पूर्ण सहभागिता निश्चित होती है तथा सहभागिता द्वारा ही शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली एवं उद्देश्यपूर्ण बनती है।“
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श्रीमती आर.के.शर्मा के अनुसार, “जिस शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक द्वारा शिक्षार्थी का सहयोग प्राप्त करके उसे यह अनुभव कराया जाता है कि वह (छात्र) इस शिक्षण प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण पक्ष है सहभागी शिक्षण कहलाता है।“
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सहभागी शिक्षण में शिक्षक एवं छात्र दोनों को ही महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है तथा शिक्षण प्रक्रिया को उद्देश्यपूर्ण, सरल एवं प्रभावी बनाने के लिये सहभागी शिक्षण में दोनों पक्षों की सहभागिता को आवश्यक माना जाता है।
सहभागी शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of participation teaching)
सहभागी शिक्षण की परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर इसकी प्रमुख विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं जो निम्नलिखित हैं:-
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सहभागी शिक्षण में शिक्षक एवं शिक्षार्थी दो पक्षों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है।
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इसमें शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों की ही सहभागिता को अनिवार्य माना जाता है।
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इस शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षार्थी की सहभागिता लेने के कारण वह क्रियाशील बना रहता है तथा उसे यह अनुभव होता है कि वह शिक्षण प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
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यह प्रक्रिया सहयोग एवं सहभागिता पर आधारित है।
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सहभागी शिक्षण प्रक्रिया से शिक्षक अधिगम प्रक्रिया प्रभावशाली एवं बोधगम्य रूप में प्रस्तुत की जाती है।
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यह प्रक्रिया वर्तमान समय की श्रेष्ठ शिक्षण प्रक्रियाओं में से एक है क्योंकि इसमें छात्र पूर्णतः क्रियाशील होते हैं।
सहभागी शिक्षण के उद्देश्य (Aims of participation teaching)
सहभागी शिक्षण वर्तमान समय की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि इस प्रक्रिया से शिक्षण के समस्त पक्ष लाभान्वित होते हैं। सहभागी शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
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शिक्षक एवं छात्र दोनों को क्रियाशील स्थिति में रखना सहभागी शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है।
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छात्रों को स्थायी ज्ञान प्रदान करना सहभागी शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है क्योंकि इसमें छात्र क्रियाशील रहता है।
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छात्रों को उनकी महत्त्वपूर्ण स्थिति का ज्ञान कराने के लिये आवश्यक है।
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सहभागी शिक्षण के माध्यम से कक्षा के नीरस वातावरण को दूर किया जा सकता है।
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सहभागी शिक्षण के द्वारा विषवस्तु का सरल एवं बोधगम्य प्रस्तुतीकरण किया जा सकता है।
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छात्रों को शारीरिक एवं मानसिक रूप से क्रियाशील रखना सहभागी शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है।
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सहभागी शिक्षण के आधार पर छात्रों का चहुंमुखी विकास किया जा सकता है।
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कक्षा-कक्ष में सौहार्द्रपूर्ण वातावरण स्थापित करने के लिये सहभागी शिक्षण प्रक्रिया को अपनाया जाता है।
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छात्रों में सहयोग एवं सहकारिता की भावना का विकास करने के लिये सहभागी शिक्षण का प्रयोग किया जाता है।
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छात्रों में विषयवस्तु के प्रति लगाव एवं शिक्षण में रुचि उत्पन्न करने के लिये सहभागी शिक्षण को श्रेष्ठ माना जाता है।