बहुकक्षा एवं बहुस्तरीय शिक्षण – शिक्षण उपागम

Bahukaksha or Bahustariy Shikshan

बहुकक्षा एवं बहुस्तरीय शिक्षण

Multi Grade and Multi Class Teaching

बहुस्तरीय स्थितियों में शिक्षण की तकनीकी बहुश्रेणी शिक्षण से ही सम्बन्धित होती है क्योंकि विभिन्न प्रकार की स्थितियों में छात्रों को उनकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षा प्रदान करना भी बहुश्रेणी शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है। बहुस्तरीय स्थितियों में शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है:-

  1. इस प्रकार शिक्षण व्यवस्था में छात्रों की प्रक्रिया का स्वरूप बहुश्रेणी शिक्षण से सम्बन्धित होता है।
  2. बहुस्तरीय स्थितियों में शिक्षण की प्रक्रिया का स्वरूप बहुश्रेणी से सम्बन्धित होती है क्योंकि दोनों के मुख्य उद्देश्य एक-दूसरे से मिलते हैं।
  3. जहाँ शिक्षकों का अभाव होता है तथा छात्रों की संख्या अधिक होती है उस स्थिति में बहुश्रेणी शिक्षण की आवश्यकता अनुभव की जाती है।
  4. एक ही कक्षा में जब विभिन्न मानसिक योग्यताओं वाले छात्र एवं छात्राएँ अध्ययन करते हैं तो बहुश्रेणी शिक्षण की आवश्यकता अनुभव की जाती है।
  5. छात्रों को सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक ज्ञान प्रदान करने के लिये बहुश्रेणी शिक्षण की आवश्यकता अनुभव की जाती है।
  6. बहुस्तरीय स्थितियों में शिक्षण के अन्तर्गत उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम रूप से प्रयोग किया जाता है। इस स्थिति में शिक्षा के उद्देश्यों को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुस्तरीय स्थितियों में शिक्षण की आवश्यकता भारतीय विद्यालयों के लिये अधिक है क्योंकि भारतीय विद्यालयों में शिक्षकों का अभाव भी पाया जाता है तथा संसाधनों की उपलब्धता भी कम होती है।

बहुकक्षा शिक्षण

Multi Classes Teaching

बहुकक्षा शिक्षण से आशय है- एक अध्यापक द्वारा बहुत सी कक्षाओं को एक साथ पढ़ाना। बहुस्तरीय शिक्षण का अर्थ है- अलग-अलग स्तर के (तेज, कमजोर) छात्रों को साथ-साथ सीखना-सिखाना।

बहुकक्षा शिक्षण को उचित रूप में चलाने के लिए हमें नीचे लिखे तथ्यों; जैसेपाठ्य पुस्तकों, समय विभाजन चक्र, मॉनीटर, बैठक व्यवस्था, विषयवार समूह तथा बहुस्तरीय शिक्षण व्यवस्था आदि पर विचार करना होगा तथा उनका सही संयोजन करना होगा-

1. पाठ्य पुस्तक-समान दक्षताओं वाले पाठों का संयोजन

किसी कक्षा में पाठ्य सामग्री का निर्धारण कक्षा में पढ़ रहे छात्रों की दक्षताओं के अनुसार होता है। एक ही विषय एक से अधिक कक्षाओं में फैला रहता है। विषय छोटी कक्षाओं में सरल तथा बड़ी कक्षाओं में जटिल होता जाता है। इन पाठों का स्तर कक्षा के छात्रों के स्तर के अनुसार होता है।

यदि प्रत्येक कक्षा के लिये अलग शिक्षक हों तो पुस्तकें सहज रूप से पढ़ायी जा सकती हैं परन्तु शिक्षकों की संख्या कम होने पर अनेक कक्षाओं को एक साथ पढ़ाना पड़ता है। इसके लिये शिक्षक को सभी पुस्तकों के प्रत्येक पाठ को गहनता से पढ़ना और समझना आवश्यक है।

सभी पाठ सम्मिलित कक्षा में नहीं पढ़ाये जा सकते, उनको कक्षावार अलग से पढ़ाना होगा। एक ही विषय तथा समान दक्षताओं पर आधारित पाठों को एक साथ पढ़ाया जा सकता है। समान दक्षताएँ वाले पाठ हर विषय में पाये जाते हैं। ऐसे पाठों को नियोजित करने के लिये विद्यालय की समय-सारणी इस प्रकार बनानी होगी कि समान पाठ पढ़ने वाली कक्षाएँ एक साथ बैठे।

2. मॉनीटर

बहुकक्षा शिक्षण पद्धति में शैक्षिक कार्य व्यवस्था तथा अनुशासन बनाये रखने के लिये मॉनीटर की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। अतः शिक्षण एवं शिक्षणोत्तर क्रियाकलापों की व्यवस्था मॉनीटर किस प्रकार करेगा? इसके लिये शिक्षक द्वारा पूर्व में प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

ध्यान रहे मॉनीटर शिक्षक का विकल्प नहीं हो सकता। एक कक्षा में एक या एक से अधिक विषयवार मॉनीटर बना सकते हैं। मॉनीटर का चयन योग्यता तथा सर्व सहमति से कर सकते हैं, बालिकाओं को भी अवसर दें। बड़ी कक्षा के मॉनीटर का सहयोग कक्षा-1 एवं 2 की शैक्षिक एवं शिक्षणोत्तर क्रियाकलापों की व्यवस्था हेतु ले सकते हैं। ऐसी स्थिति में शिक्षक को मॉनीटर के लिये अतिरिक्त समय देना होगा।

संकेत:- T= शिक्षक, M= मॉनीटर

नोट:-

  1. मॉनीटर केवल एक कक्षा ही नियन्त्रित करेगा।
  2. आवश्यकतानुसार शिक्षक एक बार में एक कक्षा भी ले सकता है। ऐसी स्थित में अन्य कक्षाएँ मॉनीटर के नियत्रण में रहेंगी।

3. बैठक व्यवस्था

आपके विद्यालय में बैठक की निम्नलिखित आवश्यकताएँ हो सकती है:-

  1. चार शिक्षक पाँच कक्षाएँ।
  2. तीन शिक्षक पाँच कक्षाएँ।
  3. दो शिक्षक पाँच कक्षाएँ।
  4. एक शिक्षक पाँच कक्षाएँ।
  5. कक्षा-कक्ष का अभाव।
  6. छात्र संख्या की अधिकता।

उक्त परिस्थितियों में आपको बैठक व्यवस्था के लिए कुछ न कुछ उपाय करने होंगे। कक्षा शिक्षण की उपयुक्त व्यवस्था को इन उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है:-

(1) एक शिक्षक पाँच कक्षाएँ

आप कक्षा (4+5) को एक कक्ष में, कक्षा (2+3) को दूसरे कक्ष में तथा कक्षा-1 को बरामदे में बैठा सकते हैं। आपको प्रत्येक दशा में एक से अधिक मॉनीटरों का सहयोग लेना होगा।

उदाहरण. एक शिक्षक वाले-विद्यालय के लिए समय विभाजन

कक्षा प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचम् षष्ठम् सप्तम् अष्टम्
1 प्रार्थना,
सफाई,
नैतिक
शिक्षा,
विद्यालय
सौंदर्यीकरण,

अन्य शिक्षा
सहगामी
कार्य, कृषि
कार्य और
कला

हिन्दी T हिन्दी
अभ्यास
कार्य
M
गणित
अभ्यास
कार्य
M
मध्य-
अवकाश
गणित
T
व्य. कार्य
गणित
M
व्य. कार्य
हिन्दी
M
गणित
M.

व्यायाम,
खेल,
बलसभा
M.

विद्यालय के
अभिलेख
T.

2 हिन्दी
T
हिन्दी
अभ्यास
कार्य
M
गणित
अभ्यास
कार्य
M
गणित
T
व्य. कार्य
हिन्दी
M
व्य. कार्य
गणित
M
3 हिन्दी
सुलेख,
श्रुति लेख
M
विज्ञान T सामाजिक
अध्ययन T
गणित
अभ्यास
कार्य
M
हिन्दी
T
गणित
T
4 हिन्दी
सुलेख,
श्रुति लेख
M
विज्ञान
T
सामाजिक
अध्ययन
T
गणित
अभ्यास
कार्य
M
हिन्दी
T
गणित
T
5 हिन्दी
सुलेख,
श्रुति लेख
M
विज्ञान
T
सामाजिक
अध्ययन
T
गणित
अभ्यास
कार्य
M
हिन्दी
T
गणित
T

(2) दो शिक्षक पाँच कक्षाएँ

आप कक्षा (1+2) को एक साथ तथा कक्षा (3+4+5) को साथ-साथ बैठा सकते हैं। दो कक्ष व एक बरामदा होने पर कक्षा (1 या 5) को अलग-अलग बैठा सकते हैं। कक्षा 1 की बैठक व्यवस्था अलग होने पर कक्षा (2+3) तथा (4+5) को एक साथ बैठा सकते हैं तथा कक्षा 5 के अलग बैठने पर कक्षा (1+2) तथा (3+4) को साथ-साथ बैठा सकते हैं।

दोनों शिक्षकों को समय विभाजन के अनुसार क्रम से प्रत्येक कक्षा में समय देना होगा तथा शेष समय के लिये मॉनीटर की व्यवस्था करनी होगी।

उदाहरण. दो शिक्षक वाले-विद्यालय के लिए समय विभाजन

कक्षा प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचम् षष्ठम् सप्तम् अष्टम्
1 प्रार्थना,
सफाई,
नैतिक
शिक्षा,
विद्यालय
सौंदर्यीकरण,

अन्य शिक्षा
सहगामी
कार्य, कृषि
कार्य और
कला

हिन्दी
T1
गणित
T2
हिन्दी
अभ्यास कार्य
मौखिक
T1
मध्य-
अवकाश
व्य. कार्य
गणित
T2
व्य. कार्य
हिन्दी
T2
हिन्दी
अभ्यास कार्य
मौखिक
T1
व्यायाम,
खेल,
बलसभा
M.

विद्यालय के
अभिलेख
T.

2 हिन्दी
अभ्यास
कार्य
मौखिक
T1
गणित
T2
हिन्दी
T1
व्य. कार्य
गणित
T2
व्य. कार्य
हिन्दी
T2
हिन्दी
अभ्यास
कार्य
मौखिक
T1, M
3 सामाजिक
अध्ययन
T2
हिन्दी,
अंग्रेजी,
संस्कृत
सुलेख,
श्रुति लेख
T1
कला, कृषि
कार्य
T2
गणित
T2
हिन्दी T1,
अंग्रेजी,
संस्कृत
विज्ञान
T2
4 सामाजिक
अध्ययन
T2
हिन्दी,
अंग्रेजी,
संस्कृत
सुलेख,
श्रुति लेख
T1
विज्ञान
T2
हिन्दी T1,
अंग्रेजी,
संस्कृत
गणित
T2
गणित
T2
5 सामाजिक
अध्ययन
T2
हिन्दी
T1
विज्ञान
T2
हिन्दी,
अंग्रेजी,
संस्कृत
सुलेख,
श्रुति लेख
T1, M
गणित
T2
गणित
T2

(3) छात्र संख्या अधिक होने पर बैठक व्यवस्था

इस प्रकार की बैठक व्यवस्था का स्वरूप निम्नलिखित हो सकता है:-

  1. कम छात्र संख्या वाली कक्षाएँ कक्ष में तथा अधिक छात्र संख्या वाली कक्षाएँ खुले स्थान पर बैठा सकते हैं।
  2. कक्षा-3, 4, 5, में छात्र संख्या कम होती है। अतः उन्हें कक्ष में बैठा सकते हैं तथा कक्षा-1 एवं 2 को खुले स्थान पर बैठा सकते हैं।
  3. सोचें, क्या आपके विद्यालय के लिये कोई दूसरी अधिक अच्छी व्यवस्था हो सकती है ? यदि हम योजनाबद्ध अर्थात् नियोजित पाठ योजना बनाकर कार्य करें तो सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस प्रकार हमें पढ़ाने हेतु कार्य दिवसों का अभाव नहीं रहता।

(4) विषयवार छात्रों का समूह

छात्रों को स्वाधिगम हेतु प्रेरित करने के लिये निम्नलिखित समूह बना सकते हैं:-

  1. भाषा समूह।
  2. गणित समूह।
  3. पर्यावरण समूह (ई .वी. एस.)।
  4. प्रत्येक समूह में प्रत्येक कक्षा के एक-तिहाई छात्र सम्मिलित कर सकते हैं।
  5. समूहों में कक्षा-1 से 5 तक की विषयवस्तु से सम्बन्धित सीखने-सिखाने की सामग्री रख सकते हैं।
  6. सीखने-सिखाने की सामग्री का रखरखाव सम्बन्धित कक्षा का मॉनीटर कर सकता है।

बहुस्तरीय शिक्षण

Multi Level Teaching

विभिन्न स्तर के छात्रों को एक साथ पढ़ाना बहुस्तरीय कक्षा शिक्षण कहलाता है। हम सभी जानते हैं कि दो जुड़वाँ बालक भी ठीक एक ही मानसिक स्तर के नहीं होते, इसीलिये किसी कक्षा के छात्रों को मुख्य रूप से सामान्य से कम, सामान्य तथा सामान्य से अधिक के स्तरों में बाँट सकते हैं, पर शिक्षकों के अभाव के कारण इन छात्रों को अलग-अलग समूहों में पढ़ा सकते हैं।

क्या आप भी ऐसा अनुभव करते हैं ? सामान्य से कम स्तर के छात्रों से सरल, सामान्य छात्रों से सामान्य से अधिक तथा सामान्य से अधिक स्तर के छात्रों से कठिन तथा विशेष प्रकार के कार्यों को करवा सकते हैं। इससे सभी छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि होगी। क्या आप भी ऐसा अनुभव करते हैं?

इससे जहाँ सामान्य से कम स्तर के छात्रों को पुनरावृत्ति के अधिक अवसर मिलेंगे, सामान्य स्तर के छात्रों को पुनरावृत्ति तथा निरीक्षण के द्वारा ज्ञान विस्तार का अवसर मिलेगा। सामान्य से अधिक स्तर के छात्र इसे खेल के रूप में लेकर मनोरंजन प्राप्त करेंगे तथा आगे सिखायी जाने वाली क्रियाओं के लिये मानसिक रूप से तत्पर होंगे।

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