व्यापक क्षेत्र उपागम
Broad Field Approach
विस्तृत क्षेत्र उपागम से आशय अधिगम प्रक्रिया की व्यापकता से है। किसी भी अधिगम प्रक्रिया को क्रियान्वित करने से पूर्व समाज की स्थिति, मानवीय समाज की विशेषता एवं उपलब्ध संसाधनों पर विचार किया जाता है।
इससे यह निश्चित हो जाता है जो भी अधिगम विषय अथवा क्रिया एक निश्चित क्षेत्र के लिये प्रभावी होती है, उसकी अधिगम प्रक्रिया भी निश्चित होती है तथा जिस विषय का क्षेत्र व्यापक होता है, उसका अधिगम भी व्यापक होता है; जैसे– पर्यावरणीय अधिगम का सम्बन्ध किसी निश्चित क्षेत्र से न होकर व्यापक क्षेत्र से होता है।
इसीलिये पर्यावरणीय अधिगम का स्वरूप व्यापक रूप से दृष्टिगोचर होता है। इसके अधिगम में वैश्विक स्तर के विद्वानों के विचारों को सम्मिलित किया जाता है तथा पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी विभिन्न विधियों का भी समावेश किया जाता है।
व्यापक क्षेत्र अधिगम उपागम प्रक्रिया
व्यापक क्षेत्र उपागम द्वारा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है:-
1. उद्देश्यों की व्यापकता (Broadness of aims)
उद्देश्यों की व्यापकता के आधार पर अधिगम प्रक्रिया का विकास सम्भव होता है। जब उद्देश्यों का सम्बन्ध बालकों के किसी एक पक्ष को विकसित करने से होता है तो अधिगम की स्थिति अविकसित अथवा न्यूनतम रूप में होती है। इसके विपरीत जब उद्देश्यों का सम्बन्ध बालकों के सर्वांगीण विकास से सम्बन्धित होता है तो अधिगम का स्वरूप भी व्यापक और विस्तृत रूप में होता है।
वर्तमान समय में विज्ञान एवं गणित का अधिगम विस्तृत रूप में है क्योंकि इनका सम्बन्ध उद्देश्यों के विस्तृत क्षेत्र से है। अत: उद्देश्यों की व्यापकता अधिगम प्रक्रिया को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।
2. विधियों की व्यापकता (Broadness of methods)
प्राचीन समय में प्रत्येक विषय की अधिगम विधियों की संख्या वर्तमान की तुलना में कम होती थी। इसके परिणामस्वरूप अधिगम का स्वरूप विस्तृत नहीं होता था। वर्तमान समय में अधिगम विधियों का विकास व्यापक रूप में हो गया है। एक ही विषय में अधिगम में अनेक अधिगम विधियों का समावेश हो चुका है। इस प्रकार अधिगम विधियों की व्यापकता ने भी अधिगम प्रक्रिया में अपना सहयोग प्रस्तुत किया है।
3. अधिगम की सार्वभौमिकता (Universalization of learning)
अधिगम की सार्वभौमिकता के आधार पर ही वर्तमान समय में अधिगम प्रक्रिया विस्तृत रूप से पायी जाती है। वर्तमान समय में अनेक देशों के शिक्षाशास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक अधिगम को सार्वभौमिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु वे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रुचिपूर्ण बनाने के प्रयास कर रहे हैं। अत: अधिगम में अनेक प्रकार के दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक विचारों का समावेश हो रहा है, जिससे अधिगम में उत्तरोत्तर विकास की प्रक्रिया निरन्तर चल रही है।
4. अधिगम का महत्त्व (Importance of learning)
वर्तमान समय में अधिगम प्रक्रिया के महत्त्व में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। अधिगम को बालकों के सर्वांगीण विकास का साधन समझा जा रहा है। आज अभिभावक अपने बालक को विद्यालय में भेजता है तो वह अपेक्षा करता है कि उसका बालक विद्यालय में शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकसित होगा।
इन अपेक्षाओं एवं अधिगम के महत्त्व में वृद्धि के कारण वर्तमान समय का अधिगम भी विस्तृत हो गया है क्योंकि संकुचित अधिगम के माध्यम से न तो बालक का सर्वांगीण विकास सम्भव हो सकता है और न नही अभिभावकों की आकांक्षाओं की पूर्ति की जा सकती है।
अतः अधिगम का महत्त्व अधिगम-प्रक्रिया की सफलता एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वहन कर रहा है।
5. शिक्षा के कार्यों में वृद्धि (Inarement to work ofeducation)
प्राचीन समय में शिक्षा का कार्यक्षेत्र सीमित तथा शिक्षा भी सीमित वर्ग के लिये थी। इसीलिये अधिगम का स्वरूप भी सीमित था। आज शिक्षा के कार्य छात्र, समाज एवं राष्ट्र से सम्बन्धित होते हैं।
वर्तमान समय में शिक्षा को अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना एवं विश्व-बन्धुता का माध्यम माना जाता है। ऐसी स्थिति में अधिगम का व्यापक एवं विस्तृत होना स्वाभाविक है क्योंकि अधिगम के संकुचित होने की स्थिति में शिक्षा द्वारा अपने व्यापक कार्यक्षेत्र को कुशलतापूर्वक सम्पन्न नहीं किया जा सकता। अत: शिक्षा के कार्यों की व्यापकता के कारण भी अधिगम का स्वरूप विस्तृत हो जाता है।
6. संचार क्रान्ति (Communication revalution)
संचार साधनों की व्यापकता ने भी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। आज इण्टरनेट के माध्यम से किसी भी तथ्य पर अधिक से अधिक विचारों को प्राप्त किया जा सकता है। एक ही विषय पर अनेक विद्वानों के विचारों को एकत्रित किया जा सकता है। इन सभी कारणों से विश्व एक ही मंच पर अधिगम क्रियाओं को सम्पन्न कर सकता है। इस स्थिति में आज अधिगम का स्वरूप विस्तृत हो गया है। अतः स्पष्ट हो जाता है कि संचार साधन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करते हैं।
7. वैश्विक संस्कृति (Global culture)
वैश्विक संस्कृति के कारण शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावशाली एवं विस्तृत रूप प्राप्त करती जा रही है। विश्व के लगभग सभी देशों में अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में अनेक प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता है। इन साधनों की सफलता पर दूसरे राष्ट्रों द्वारा भी इन्हें स्वीकार किया जाता है। धीरे-धीरे इन साधनों को अधिगम प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हो जाता है।
अधिगम प्रक्रिया में करके सीखने का सिद्धान्त, शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग एवं पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की अवधारणा आदि का समावेश वैश्विक संस्कृति के आधार पर ही सम्भव हुआ है। इस प्रकार वैश्विक संस्कृति अधिगम प्रक्रिया के विकास और सफलता में महत्त्वपूर्ण प्रस्तुत करती है।
8. अनुसन्धान की व्यापकता (Broadness of research)
शैक्षिक अनुसन्धानों के व्यापक क्षेत्र के कारण भी अधिगम का विकास सम्भव हुआ है। अनेक अनुसन्धानों ने यह सिद्ध कर दिया है कि एक ही विधि द्वारा सभी छात्रों को सफलतापूर्वक अधिगम नहीं दिया जा सकता। अधिगम प्रक्रिया का आयोजन बालकों की योग्यता एवं स्तर के अनुसार किया जाना चाहिये। इस अवधारणा के आधार पर ही प्रतिभाशाली बालकों के लिये अलग अधिगम व्यवस्था की जाती है तथा मन्द बुद्धि बालकों के लिये पृथक् व्यवस्था की जाती है।
इस प्रकार शैक्षिक अनुसन्धान के व्यापक क्षेत्र एवं पृथक अधिगम कार्यक्रमों के आधार पर अधिगम प्रक्रिया का स्वरूप विस्तृत, व्यापक और प्रभावशाली हो गया है।