संज्ञानात्मक उपागम (Cognitive Approach)
संज्ञानात्मक उपागम प्रमुख रूप से मानव व्यवहार के मनोवैज्ञानिक पक्ष से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत अनुसन्धान करते समय प्रत्यक्ष ज्ञान, संकल्पना निर्माण, भाषा प्रयोग, चिन्तन, बोध, समस्या समाधान, अवधान एवं स्मृति जैसे क्रियाकलापों को ध्यान में रखा जाता है। इस प्रकार संज्ञानात्मक उपागम व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक क्रिया-व्यापार से सम्बन्धित अधिगम की संकल्पना एक संज्ञानात्मक प्रक्रिया के रूप में की गयी है।
अधिगम की प्रक्रिया के समय व्यक्ति की संज्ञानात्मक संरचना में परिवर्तन होते हैं जो सीखी गयी अथवा पढ़ाई गयी संकल्पना के विकास एवं बोध में उसकी सहायता करते हैं।
इस प्रकार अधिगम लक्ष्य केवल क्रिया द्वारा ही प्राप्त नहीं हो जाते बल्कि इस प्रकार वस्तुओं के अर्थ ग्रहण करने से होते हैं कि नयी समस्याओं के समाधान के लिये उनका अन्तरण किया जा सके।
प्रतिपुष्टि (Feed back)
प्रतिपुष्टि की धारणा संज्ञानात्मक उपागम का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है। अधिगम परिस्थिति की कल्पना इस प्रकार की जाती है कि व्यक्ति समस्या का सामना होने पर अपने स्मृति ज्ञान के आधार पर एक प्राक्कल्पना का विकास करता है और उसकी परख करता है। उसकी क्रिया के परिणाम उसको प्रतिपुष्टि प्रदान करते हैं जिससे ठीक समाधान परिपुष्ट हो जाते हैं और गलत समाधानों को अस्वीकार कर दिया जाता है।
शैक्षिक निहितार्थ
इस विचारधारा का शैक्षिक रीतियों विशेषकर शिक्षण से क्या सम्बन्ध है? संज्ञानवादी मनोवैज्ञानिकों ने जटिल मानसिक व्यवहारों के बारे में वैज्ञानिक ढंग से शोधकार्य किया है और शिक्षा और अनुदेशन में उनके विचारों का अनुप्रयोग उत्तरोत्तर महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। इस उपागम का प्रमुख बल इस तथ्य पर है कि संज्ञानात्मक अधिगम के सम्वर्द्धन के लिये शैक्षिक क्रियाकलापों को किस प्रकार अभिकल्पित किया जाय?
कक्षा शिक्षण के लिये संज्ञानात्मक उपागम के प्रमुख शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित प्रकार हैं:-
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समझ हमें अपनी स्मृति में संचित सूचना को मानसिक रूप से प्रसारित करने एवं दीर्घावधि स्मृति के कुशल प्रयोग करने के लिये नयी संज्ञानात्मक संरचनाओं के सृजन के रूप में सहायता कर सकती है।
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शिक्षा सामग्री की आयोजना खोज के सिद्धान्त के आधार पर करनी चाहिये। इसलिये अनुदेशनात्मक विधियों को शिक्षार्थी की सहज खोज क्षमताओं को बढ़ाने पर बल देना चाहिये। इससे यह संकेत मिलता है कि ऐसी क्रियाशील अधिगम विधियाँ अपनायी जायें जो तथ्यों की पुनः खोज करने या समस्या का समाधान ढूँढने के लिये शिक्षार्थी को अभिप्रेरित करे।
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यह उपागम अनुदेशनात्मक उद्देश्यों, पूर्वापेक्षित व्यवहार के विश्लेषण और शिक्षण विधियों के सम्बन्ध में उचित निर्णयों पर बल देता है।
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इसके अतिरिक्त यह समस्योन्मुखी अधिगम पर बल देता है। इसमें यह विस्तारपूर्वक बताया गया है कि समस्याओं और उनके समाधान के प्रस्तुतीकरण द्वारा विमर्शात्मक रीति से किस प्रकार पढ़ाया जा सकता है?
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इसमें शिक्षार्थी के उन लक्षणों के अध्ययन पर बल दिया जाता है जिन्हें शिक्षक शिक्षार्थी की अन्तर्दृष्टि की गुणात्मकता और मात्रा के विस्तार के लिये प्रयुक्त कर सकता है।