रुचिपूर्ण अथवा आनन्दायी अधिगम उपागम
Interest Based Learning Approach
प्राथमिक शिक्षा में परम्परागत शिक्षण विधियों, विद्यालय का अनाकर्षक तथा अरुचिपूर्ण वातावरण, क्रियाकलाप विहीन पाठ्यक्रम आदि ने छात्र को विद्यालय से दूर कर ह्रास एवं अवरोध जैसी समस्याओं को जन्म दिया है और शिक्षण के सार्वजनीकरण का जो लक्ष्य हमें स्वतन्त्रता प्राप्ति के 10 वर्ष बाद ही प्राप्त कर लेना चाहिये था, वो हम 50 वर्षों में भी प्राप्त नहीं कर पाये।
अत: शिक्षा के सार्वजनीकरण एवं उपलब्धि की सम्प्राप्ति सुनिश्चित कराने हेतु शिक्षा विभाग ने वर्ष 1994 में प्राथमिक शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश के सहयोग से यूनीसेफ वित्त पोषित रुचिपूर्ण शिक्षा कार्यक्रम प्रारम्भ किया है।
रुचिपूर्ण अधिगम एक समयबद्ध कार्यक्रम तथा सुविचारित रणनीति है। यह बालकों के अधिगम हेतु आकर्षक एवं बाल केन्द्रित प्रणाली है, जिसमें बालकों को आनन्दित करने वाले क्रियाकलाप एवं शाला में बालकों के प्रति शिक्षक का हेय रहित, मित्र रहित तथा आत्मीय व्यवहार है।
यह गीतों, कहानियों तथा खेलों द्वारा सरल गतिविधि प्रधान बाल केन्द्रित अधिगम है। इस प्रकार रुचिपूर्ण अधिगम एक रणनीति है। यह एक विद्या है जो अधिगम को रोचक एवं प्रभावी बनाकर शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य प्राप्ति में सहायक है।
रुचिपूर्ण अधिगम के उद्देश्य
रुचिपूर्ण अथवा आनन्ददायी अधिगम का लक्ष्य ज्ञान एवं व्यवहार की दूरी को समाप्त कर अधिगम को जीवन से जोड़ना है, जिसके अन्तर्गत रुचिपूर्ण अधिगम के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:-
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बालकों का नामांकन, ठहराव तथा गुणात्मक शिक्षा की सम्प्राप्ति।
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विद्यालय का बाह्य एवं आन्तरिक सौन्दर्याकरण करके, उसे एक आनन्ददायी क्रिया केन्द्र के रूप में विकसित करना।
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शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को क्रियाकलाप आधारित बनाकर इसमें प्रत्येक बालक की सहभागिता सुनिश्चित करना।
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शिक्षक को एक मित्र एवं सहयोगी के रूप में कल्पित करना।
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स्वनिर्मित एवं स्थानीय परिवेश में उपलब्ध सामग्री को अधिगम सहायक सामग्री के रूप में प्रयुक्त करना।
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बालकों की आपसी समझ और सहयोग की भावना को प्रोत्साहित कर उनकी बौद्धिक, सृजनात्मक एवं कलात्मक दक्षताओं का समुचित उपयोग करना।
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बालकों को स्वप्रतिभा विकास का अवसर प्रदान करना।
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समुदाय का सहयोग प्राप्त करना।
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निर्धारित दक्षताओं सम्बन्धी कौशलों का विकास करके न्यूनतम अधिगम स्तर को प्राप्त करना।
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पूर्व प्राथमिक शिक्षा में ह्रास एवं अवरोध को रोकना।
रुचिपूर्ण शिक्षा की प्रशिक्षण प्रक्रिया
रुचिपूर्ण शिक्षा-प्रशिक्षण प्रक्रिया एक सुनियोजित प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत विभागीय अधिकारियों, यूनीसेफ, जनपदीय टास्क फोर्स, डाइट तथा प्राथमिक शिक्षक संघ के साथ समन्वय स्थापित करते हुए कार्यक्रमों का निर्माण, नियोजन, प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है।
कार्यक्रमों का संचालन यूनीसेफ द्वारा प्रदत्त वित्तीय व्यवस्था प्रकोष्ठ के माध्यम से भी किया जाता है। जनपद स्तर पर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी तथा जिला प्राथमिक शिक्षक संघ इस कार्यक्रम का संचालन करते हैं।
विद्यालय स्तर पर ग्राम प्रधान, ग्राम शिक्षा समिति, अभिभावक एवं जनप्रतिनिधि की सहभागिता एवं सहयोग लिया जाता है।
रुचिपूर्ण शिक्षा विधा के सफल क्रियान्वयन हेतु जनपद स्तर पर जिला अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, जिला विकास अधिकारी एवं पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत अध्यक्ष, जिलापंचायत, नगर पंचायत, विकास खण्ड प्रमुख तथा ग्राम प्रधान की सहभागिता एवं सहयोग प्राप्त होता है।
रुचिपूर्ण शिक्षा प्रशिक्षण
जनपदों के चयनित विकास खण्डों में रुचिपूर्ण शिक्षा प्रशिक्षण पूर्ण करके उसी विधा से शिक्षा कार्य विद्यालयों में किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत चयनित विकास खण्ड के अध्यापक तथा उस विद्यालय के प्रधान अध्यापक को प्रशिक्षण दिया गया। विद्यालय को आकर्षक एवं कक्षा को रुचिपूर्ण बनाने हेतु तथा सहायक सामग्री निर्माण हेतु प्रति विद्यालय धनराशि दी गयी। जिसका प्रयोग करके सभी विद्यालयों में रुचिपूर्ण एवं आकर्षक कक्ष तैयार कर लिये गये हैं।
कार्यक्रम के सुचारु संचालन के लिये संकुल संसाधन केन्द्र की स्थापना की गयी है। जो सम्बद्ध विद्यालयों के शिक्षकों को निरन्तर प्रोत्साहित करते हुए उनमें अन्तर्निहित प्रतिभाओं को विकसित करने का सुअवसर प्रदान करेगा। संकुल केन्द्र की गतिविधियों के सफल संचालन हेतु एक ऐसे शिक्षक को जो कार्यक्रम में निष्ठा रखता हो, विशेष शैक्षिक प्रतिभा सम्पन्न एवं कर्मठ हो, को संकुल सन्दर्भ केन्द्र का समन्वयक बनाया गया है।
संकुल समन्वयक के प्रमुख दायित्त्व
संकुल समन्वयक के प्रमुख दायित्व निम्नलिखित प्रकार हैं:-
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संकुल के सदस्य विद्यालयों को नेतृत्त्व प्रदान करना।
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प्रत्येक माह के अन्त में सभी विद्यालयों की बैठक आयोजित कर रुचिपूर्ण शिक्षा कार्यक्रम में आने वाली समस्याओं का सहभागिता से समाधान करना। यदि समाधान नहीं हो सकता हो, तो आगामी बैठक से पूर्व समस्या समाधान हेतु वरिष्ठ अधिकारियों, डाइट, शै. प्रकोष्ठ एवं C.E.R.T. से सम्पर्क कर समाधान कराना।
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किसी विद्यालय/शिक्षक द्वारा विकसित नयी विधा, नयी रुचिपूर्ण शिक्षण सामग्री अथवा अन्य विशेष उपलब्धियों से अन्य सम्बद्ध विद्यालयों को अवगत कराना।
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मासिक बैठक में भावी कार्य योजना का निर्माण करना, नयी शिक्षा सामग्री का निर्माण, नयी कहानी एवं गीतों की रचना तथा अगले माह पढ़ाये जाने वाले मानदण्डों पर विचार विमर्श करना।
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डाइट संकाय के सदस्यों से सम्बन्ध स्थापित कर आवश्यक शैक्षिक सहायता प्रदान करना।