अधिगम वक्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Learning Curves)
अधिगम वक्र का अर्थ
हम अपने जीवन में अनेक नयी बातें, नये कार्य एवं नये विषय सीखते हैं; जैसे – कार चलाना, अंग्रेजी पढ़ना तथा चित्र बनाना आदि। किन्तु हमारी इन सबको सीखने की गति आरम्भ से अन्त तक एक-सी नहीं होती। वह कभी तेज ओर कभी धीमी होती है। यदि हम अपनी सीखने की गति को ग्राफ पेपर पर अंकित करें तो एक वक्र रेखा बन जायेगी। इसी को सीखने का वक्र या अधिगम वक्र (Learning curve) कहते हैं।
अधिगम वक्र एक पद्धति है, जिसके द्वारा अधिगम के रूप, आकार मात्रा को प्रकट किया जाता है। दूसरे शब्दों में अधिगम वक्र सीखने में होने वाली उन्नति या अवनति को व्यक्त करता है।
अधिगम वक्र की परिभाषाएँ
-
चार्ल्स स्किनर (C.E. Skinner) के अनुसार, “अधिगम का वक्र किसी दी हुई क्रिया में उन्नति या अवनति का वर्गांकित कागज पर ब्यौरा है।“
-
एलेक्जेंडर (Alexander) के अनुसार, “जब आँकड़ों को वर्गांकित कागज पर अंकित किया जाता है तो वह वक्र बन जाता है।“
-
गेट्स (Gates) के अनुसार, “अधिगम वक्र सीखने की क्रिया से होने वाली गति और प्रगति को व्यक्त करता है।“
-
रैमर्स और सहयोगियों के अनुसार, “सीखने का वक्र किसी दी हुई क्रिया की आंशिक रूप से सीखने की पद्धति है।“
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि व्यक्ति अधिगम की क्रिया में से जो कुछ करता है और जो तीव्र या धीमी गति होती है, उसे हम अधिगम के वक्र से प्रकट करते हैं। इसे ग्राफ पेपर पर प्रस्तुत किया जाता है।
अधिगम वक्र की विशेषताएँ (Characteristics of Learning Curves)
अधिगम वक्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
1. अधिगम वक्र की अनियमितता (Irregular learning curve)
अधिगम वक्र के द्वारा अधिगम की अनियमित उन्नति प्रकट होती है। प्रकट होने वाली अस्थिरता का कारण (Fluctuation) पाठ्यक्रम की कठिनाई, दूषित वातावरण, अनुपयुक्त शिक्षण विधि का दोष वक्र में प्रकट हो जाता है।
उदाहरणार्थ – कोई छात्र किसी विषय में लगातार उन्नति करता जा रहा है। यकायक उसे कहीं बाहर जाना पड़ता है। इस समय उसका अभ्यास छूट जाता है। इससे उसके अधिगम में स्वाभाविक रूप से शिथिलता आयेगी।
2. कार्य-कारण का सम्बन्ध ज्ञात होना
अधिगम वक्र से यह पता चलता है कि सीखने की क्रिया और उससे प्रेरित करने वाले साधन और कारकों में क्या सम्बन्ध है? यह सम्बन्ध अच्छा भी हो सकता है और खराब भी। यदि अधिक उन्नति होगी तो अवश्य ही सम्बन्ध अच्छा होगा। इसके विपरीत होने पर सम्बन्ध खराब होता है।
3. शारीरिक एवं मानसिक क्षमता की जानकारी होना (To know physical and mental ability)
अधिगम वक्र के द्वारा सीखने वाले की शारीरिक एवं मानसिक क्षमता की सीमा की जानकारी मिलती है। उन्नति अधिक होने से क्षमता की अधिक जानकारी मिलती है, जबकि इसमें कमी होने से क्षमता कम मालूम पड़ती है क्योंकि शारीरिक एवं मानसिक क्षमता आयु के अनुसार बदलती रहती है।
4. सीखने में उन्नति (Improvement in learning)
अधिगम वक्र के द्वारा सीखने में उन्नति का ज्ञान होता है। अधिगम वक्र को तीन भागों या अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है – (i) प्रारम्भिक, (ii) मध्य और (iii) अन्तिम। इन तीनों अवस्थाओं में सीखने की उन्नति एक समान नहीं होती है।
स्टर्ट एवं ओकडन (Sturt and Oakden) के अनुसार, “उन्नति की गति समान नहीं होती है। अन्तिम अवस्था की तुलना में प्रारम्भिक अवस्था में उन्नति की गति बहुत अधिक होती है।”
(i) प्रारम्भिक स्तर या अवस्था (Initial-stage/spurt/level)
सकारात्मक अधिगम वक्रों में प्रारम्भिक स्तर शून्य अथवा कम होता है। वक्र रेखा में कोई विशेष उन्नति नहीं दिखायी देती है। बहुधा प्रयोज्य का अधिगम स्थिति में समायोजन न हो पाना इसका मुख्य कारण है। जब अधिगमकर्ता पहले से अधिगम के लिये तैयार होता है तब प्रारम्भिक स्तर में शीघ्रता दिखायी देती है।
गेट्स व अन्य (Gates and Others) के अनुसार, “सीखने की प्रारम्भिक गति बहुधा तीव्र होती है पर इसको किसी भी दशा में सीखने की सार्वभौमिक विशेषता नहीं कहा जा सकता है।”
(ii) मध्य अवस्था या स्तर (Middle stage)
जैसे-जैसे व्यक्ति, कार्य का अभ्यास करता जाता है, वैसे-वैसे वह सीखने में उन्नति करता जाता है पर उसकी उन्नति का रूप स्थायी नहीं होता है। कभी वह उन्नति करता हुआ जान पड़ता है और कभी अवनति। अधिकांश वक्र रेखाओं में मध्य स्तर पर अधिगम के तीव्र गति से होने का बोध होता है।
अनेक बार मध्य स्तर पर अधिगम वक्र रेखा कभी ऊपर उठती है तो कभी नीचे गिरती है परन्तु अधिगम वक्र की सामान्य प्रकृति ऊपर उठी हुई होती है।
इस अवस्था में सीखने की क्रिया में अवनति होने के कारण है- सिर दर्द, लापरवाही, रात्रि जागरण, शक्ति का अभाव, ध्यान का विचलन और आवश्यकता से अधिक विश्वास।
स्किनर (Skinner) के अनुसार, “सीखने में प्रतिदिन चढ़ाव-उतार आता है पर सीखने वाले की सामान्य प्रगति एक निश्चित दिशा में होती रहती है।”
(iii) अन्तिम अवस्था या स्तर (Final-stage/level/spurt)
जैसे-जैसे सीखने की अन्तिम अवस्था आती जाती है, वैसे-वैसे सीखने की गति धीमी होती जाती है। अन्त में एक अवस्था ऐसी आती है, जब व्यक्ति सीखने की सीमा पर पहुँच जाता है।
गेट्स तथा अन्य (Gates and others) के अनुसार, “सिद्धान्त रूप में तो सीखने में उन्नति की पूर्ण सीमा सम्भव है पर व्यवहार में वह शायद कभी भी प्राप्त नहीं होती है।”
अधिगम वक्र का अन्तिम एक-तिहाई भाग से अन्तिम दशा का वर्णन किया जा सकता है। अन्तिम स्तर में वक्र रेखा उठती हुई भी प्रतीत हो सकती है और स्थिर हुई भी प्रतीत हो सकती है और स्थिर हुई भी प्रतीत हो सकती है।
अधिगम वक्र के चढ़ाव और उतार के कारण
अधिगम वक्र के चढ़ाव और उतार के कारण (Causes of rise and fall of learning curves) अनेक हैं। बहुधा सीखने को प्रभावित करने वाले कारकों के कारण ही अधिगम वक्र में कभी चढ़ाव प्रतीत होता है तो कभी गिरावट प्रतीत होता है। वक्र के चढ़ाव और उतार के कुछ प्रमुख कारण हैं-
-
उत्तेजना (Excitement)
-
सन्तुलन (Adaptation)
-
थकान (Fatigue)
-
अभ्यास (Exercise)
-
प्रोत्साहन (Stimulation)
अधिगम वक्र के प्रकार (Types of Learning Curve)
अधिगम वक्र निम्न प्रकार के होते हैं-
1. सरल रेखीय वक्र (Straight line curve)
यह वक्र सीखने की प्रगति को लगातार बढ़ते हुए व्यक्त करता है। यह वक्र बहुत कम दशाओं में पाया जाता है।
2. उन्नतोदर वक्र अथवा ऋणात्मक उन्नति सूचक वक्र (Convex curve or Negative accelerated curve)
इस प्रकार के वक्र में अधिगम की क्रिया में आरम्भ में अधिक प्रगति दिखायी पड़ती है। अभ्यास के बढ़ने के साथ-साथ उन्नति की गति शिथिल पड़ती जाती है और अन्त में वक्र एक सीधी रेखा या पठार के रूप में हो जाता है, जो यह बताता है कि अब अभ्यास के फलस्वरूप अधिक उन्नति सम्भव नहीं है।
अधिकतर अधिगम में इसी तरह के वक्र प्राप्त होते हैं। वर्गांकित कागज पर जब ऐसा चित्र उभर कर आता है तो वह ऋणात्मक उन्नति सूचक या उन्नतोदर वक्र कहलाता है।
3. नतोदर वक्र या धनात्मक उन्नति सूचक वक्र (Concave curve or positive accelerated curve)
इस प्रकार के वक्र में उन्नति धीर-धीरे होती है। जब सीखने की गति प्रारम्भिक काल में धीमी रहती है और बाद में सीखने की गति में उन्नति होती है तब जो वक्र बनेगा वह नतोदर प्रकार का होगा।
प्रारम्भ में सीखने की गति धीमी इसलिये है कि वह कार्य से भली-भाँति परिचित नहीं हो पाया था, उसने सीखने की सही विधि का चुनाव नहीं किया अथवा उसका अभ्यास उचित नहीं था। जब सीखने वाले की विधि में स्थिरता आ जाती है तो वह अपने कार्य से भली-भाँति परिचित हो जाता है और फिर सीखने की गति तीव्र होने लगती है।
4. मिश्रित वक्र या अवग्रहास वक्र (Mixed curve or Combination type curve or Sigmoid curve)
मिश्रित या अवग्रहास वक्र अलग से कोई वक्र नहीं है। वास्तव में यह नतोदर एवं उन्नतोदर वक्रों (Convex and concave curves) का मिश्रण मात्र है। इस प्रकार के वक्र में प्रारम्भिक घण्टों में गति धीमी रहती है फिर तीव्र हो जाती है। इसके पश्चात् धीमी और फिर तीव्र हो जाती है।
प्रारम्भिक गति धीमी → तीव्र गति → धीमी गति → तीव्र गति = मिश्रित वक्र
अधिगम वक्र प्रभावित करने वाले तत्त्व या कारक (Influencing Factors of Learning Curve)
अधिगम वक्र पर निम्न तत्त्वों का प्रभाव पड़ता है-
1. पूर्वानुभव (Pre-experience)
अधिगम में पूर्वानुभव प्रगति का प्रदर्शन करते हैं। वक्र में बालक द्वारा पूर्व ज्ञान का लाभ उठाने, नवीन ज्ञान प्राप्त करने की क्रिया और उसका परिणाम स्पष्ट हो जाता है।
2. आभास (Feeling)
अधिगम की जाने वाली क्रिया का यदि आभास मात्र भी हो जाय तो उसका भी प्रभाव वक्र में परिलक्षित हो जाता है। परीक्षा के समय एक सूत्र का आभास मिलने पर छात्र अच्छे अंक प्राप्त कर लेता है।
3. सरल से कठिन की ओर (From easy to complex)
अधिगम की क्रिया यदि सरल से कठिन की ओर सिद्धान्त पर आधारित है तो वक्र पर उसका अंकन उन्नति सूचक होगा।
4. कौशल (Skill)
अधिगम की क्रिया में कौशल का अर्जन होने पर मापन के समय इसका प्रभाव स्पष्ट प्रकट होता है।
5. उत्साह (Excitement)
अधिगम की क्रिया के लिये यदि सीखने वाले में क्रिया के प्रति यदि अपूर्व उत्साह है तो उसका दर्शन भी वक्र में हो जायेगा।