कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ
वर्तमान में देश में एक हजार पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की संख्या मात्र 914 प्रति 1000 पुरुष है। अल्ट्रा साउंड की नयी तकनीक ने इस समस्या को और भी बढ़ा दिया है.जिसके माध्यम से माता पिता बच्चे के लिंग की पहचान कर पाते हैं और अपनी इच्छा के विरुद्ध लिंग वाले बच्चे को विकसित होने से रोक देते हैं। यद्यपि देश में गर्भस्थ शिशु के लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध कड़ा कानून बनाया गया है, फिर भी एक अनुमान के अनुसार देश में प्रतिवर्ष छः लाख बेटियों की गर्भ में मौत दे दी जाती है।
कन्या भ्रूण हत्या प्रथा के कारण
- अध्ययन आर्थिक उपयोगिता के बारे में यह इंगित करते हैं कि पुत्रियों की तुलना में पुत्रों द्वारा पुश्तैनी खेत पर काम करने या पारिवारिक व्यवसाय, आय अर्जन या वृद्धावस्था में माता-पिता को सहारा देने की सम्भावना अधिक होती है।
- विवाह होने पर लड़का, एक पुत्रवधू लाकर घर की लक्ष्मी में वृद्धि करता है जो घरेलू कार्य में अतिरिक्त सहायता देती है एवं दहेज के रूप में आर्थिक लाभ पहुंचाती है जबकि पुत्रियां विवाहित होकर चली जाती हैं तथा दहेज के रूप में आर्थिक बोझ होती हैं।
- स्त्री की हिकारत के पीछे सामाजिक-आर्थिक उपयोगिता संबंधी कारक यह है कि चीन की तरह, भारत में, पुरुष संतति एवं पुरुष प्रधान परिवारों के प्रथा यह है कि वंश चलाने के लिए कम से कम एक पुत्र होना अनिवार्य है, एवं कई पुत्र होना परिवारों के ओहदे को अतिरिक्त रूप से बढ़ा देता है।
भ्रूण हत्या को रोकने के उपाय और सरकार की पहल
सरकार इस कानून को प्रभावकारी तरीके से लागू करने में तेजी लाई और उसने विभिन्न नियमों में संशोधन किए जिसमें गैर पंजीकृत मशीनों को सील करने और उन्हें जब्त करने तथा गैर-पंजीकृत क्लीनिकों को दंडित करने के प्रावधान शामिल है। पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड उपकरण के इस्तेमाल का नियमन केवल पंजीकृत परिसर के भीतर अधिसूचित किया गया। कोई भी मेडिकल प्रैक्टिशनर एक जिले के भीतर अधिकतम दो अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर ही अल्ट्रा सोनोग्राफी कर सकता है। पंजीकरण शुल्क बढ़ाया गया।
कन्या भ्रूण हत्या के सुझाव
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सभी राज्यों से आग्रह किया गया है कि वे अधिनियम को मजबूती से कार्यान्वित करें और गैर-कानूनी तरीके से लिंग का पता लगाने के तरीके रोकने के लिए कदम उठाएं।
- सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया कि वे लिंग अनुपात की प्रवृति को उलट दें और शिक्षा और अधिकारिता पर जोर देकर बालिकाओं की अनदेखी की प्रवृत्ति पर रोक लगाएं।
- स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से कहा है कि वे इस कानून को गंभीरता से लागू करने पर अधिकतम ध्यान दें।
- पीएनडीटी कानून के अंतर्गत केंद्रीय निगरानी बोर्ड का गठन किया गया और इसकी नियमित बैठकें कराई जा रही हैं।
- वेबसाइटों पर लिंग चयन के विज्ञापन रोकने के लिए यह मामला संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के समक्ष उठाया गया।
- राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी समिति का पुनर्गठन किया गया और अल्ट्रा साउंड निदान सुविधाएं के निरीक्षण में तेजी लाई गई। बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में निगरानी का कार्य किया गया।
- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कानून के कार्यान्वयन के लिए सरकार सूचना, शिक्षा और संचार अभियान के लिए राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को वित्तीय सहायता दे रही है।
- राज्यों को सलाह दी गई है कि इसके कारणों का पता लगाने के लिए कम लिंग अनुपात वाले जिलों/ब्लाकों/गांवों पर विशेष ध्यान दें, उपयुक्त व्यवहार परिवर्तन संपर्क अभियान तैयार करे और पीसी और पीएनडीटी कानून के प्रावधानों को प्रभावकारी तरीके से लागू करे।
- धार्मिक नेता और महिलाएं लिंग अनुपात और लड़कियों के साथ भेदभाव के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में शामिल हैं।
- भारत सरकार और अनेक राज्य सरकारों ने समाज में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए विशेष योजनाएं लागू की गई हैं। इसमें धनलक्ष्मी जैसी योजना शामिल है।
दहेज़ समस्या भी भ्रूण हत्या का कारण है
महिला का समाज में स्थान
बेटी के परिवार को निम्न दृष्टि से देखने की प्रवृति
बेटी के अधिकारों का अभाव
- बेटी को उच्च शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा जाता है,बेटी तो पराया धन है उसे अधिक पढाने से क्या लाभ?
- बेटी को पुत्र के समान माता पिता के चरण स्पर्श करना पाप माना जाता है, अर्थात बेटी को अपने माता पिता के चरण स्पर्श की अनुमति नहीं है. वह भी तो संतान ही है.
- परिवार के बहुत सारे संस्कारों में पुत्र का योगदान आवश्यक होता है, पुत्री को ये अधिकार नहीं होते यहाँ तक की यदि परिवार में कोई बेटा नहीं है तो भी बेटी को माता या पिता के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि देने का अधिकार नहीं है.उसके द्वारा किये जाने वाले कृत्य को पाप माना जाता है.यह मान्यता बेटे की चाहना बढाती है.
- बेटी को परिवार की जायदाद में हिस्सेदारी से वंचित रखा जाता है, यद्यपि अब कानून में दोनों को परिवार की जायदाद पर समान अधिकार दिए गए हैं परन्तु समाज अभी भी मूलतः स्वीकार नहीं करता.
- बेटी को माता पिता की सेवा करने से वंचित रखा जाता है या बेटी का कोई कर्तव्य नहीं माना जाता,जब की वह भी अपने माता पिता की सेवा करने की उतनी ही हक़दार है, जितना की बेटा. हमारे देश का कानून भी सिर्फ बेटे पर ही परिवार की जिम्मेदारी सौंपता है, जबकि अधिकार बेटी को बेटों के समान वितरित करता है,आखिर क्यों?
- सामाजिक मान्यता है की बेटी के माता पिता उसके ससुराल के यहाँ कुछ भी नहीं खा पी सकते अर्थात कुछ भी ग्रहण करना,या बेटी की कमाई ग्रहण करना वर्जित(पाप) माना जाता है,आवश्यकता इस धारणा को बदलने की,तभी तो बेटी अपने परिवार में सम्मान पा सकेगी,या परिवार के लिए महत्वपूर्ण बन सकेगी.
- यदि किसी परिवार में बेटा नहीं है और बूढ़े माता पिता के लिए बेटी की कमाई खाना वर्जित है.ऐसी स्थिति में माता पिता को अपना भविष्य(बुढ़ापा) अंधकारमय नजर आता है, अतः बेटे को लेकर उनका महत्वाकांक्षी होना स्वाभाविक ही है.यदि सामाजिक मान्यताओं और सोच में परिवर्तन आ जाय तो बेटियों की उपेक्षा अपने आप समाप्त हो जाएगी
कन्या भ्रूण हत्या एक्ट
भारत सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोकथाम के उद्देश्य से प्रसव पूर्व निदान तकनीक के लिए 1994 में एक अधिनियम बनाया। इस अधिनियम के अनुसार भ्रूण हत्या व लिंग अनुपात के बढ़ते ग्राफ को कम करने के लिए कुछ नियम लागू किए हैं, जो कि निम्न अनुसार हैं-
- गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच करना या करवाना।
- शब्दों या इशारों से गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग के बारे में बताना या मालूम करना।
- गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जाँच कराने का विज्ञापन देना।
- गर्भवती महिला को उसके गर्भ में पल रहे बच्चें के लिंग के बारे में जानने के लिए उकसाना गैर कानूनी है।
- कोई भी व्यक्ति रजिस्टे्रशन करवाएँ बिना प्रसव पूर्व निदान तकनीक(पी.एन.डी.टी.) अर्थात अल्ट्रासाउंड इत्यादि मशीनों का प्रयोग नहीं कर सकता।
- जाँच केंद्र के मुख्य स्थान पर यह लिखवाना अनिवार्य है कि यहाँ पर भ्रूण के लिंग की जाँच नहीं की जाती, यह कानूनी अपराध है।
- कोई भी व्यक्ति अपने घर पर भ्रूण के लिंग की जाँच के लिए किसी भी तकनीक का प्रयोग नहीं करेगा व इसके साथ ही कोई व्यक्ति लिंग जाँचने के लिए मशीनों का प्रयोग नहीं करेगा।
गर्भवती महिला को उसके परिजनों या अन्य द्वारा लिंग जाँचने के लिए प्रेरित करना आदि भू्रण हत्या को बढ़ावा देने वाली अनेक बातें इस एक्ट में शामिल की गई हैं।
उक्त अधिनियम के तहत पहली बार पकड़े जाने पर तीन वर्ष की कैद व पचास हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।दूसरी बार पकड़े जाने पर पाँच वर्ष कैद व एक लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है।लिंग जाँच करने वाले क्लीनिक का रजिस्टे्रशन रद कर दिया जाता है।
कन्या भ्रूण हत्या निष्कर्ष
1990 में चिकित्सा क्षेत्र में अभिभावकीय लिंग निर्धारण जैसे तकनीकी उन्नति के आगमन के समय से भारत में कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिला। हालांकि, इससे पहले, देश के कई हिस्सों में बच्चियों को जन्म के तुरंत बाद मार दिया जाता था। भारतीय समाज में, बच्चियों को सामाजिक और आर्थिक बोझ के रुप में माना जाता है इसलिये वो समझते हैं कि उन्हें जन्म से पहले ही मार देना बेहतर होगा। कोई भी भविष्य में इसके नकारात्मक पहलू को नहीं समझता है। महिला लिंग अनुपात पुरुषों की तुलना में बड़े स्तर पर गिरा है (8 पुरुषों पर 1 महिला)। अगले पाँच वर्षों में अगर हम पूरी तरह से भी कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगा दें तब भी इसकी क्षतिपूर्ति करना आसान नहीं होगा।
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