मानसिक विकास (Mental Development) – Mansik Vikas

Mansik Vikas

बालक का मानसिक विकास

(Mental Development of child)

जन्म के समय शिशु असहाय अवस्था में होता है। वह मानसिक क्षमता में भी पूर्ण अविकसित होता है। आयु की वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ बालकों की मानसिक योग्यता में भी वृद्धि होती है। इस पर वंशानुक्रम एवं पर्यावरण दोनों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

जे. एस. रास (U.S. Ross) ने लिखा है-“हमारे मस्तिष्क का विकास, वंशानुक्रमीय प्रभावों के हस्तान्तरण एवं अर्जित प्रभावों के मिश्रण के परिणामस्वरूप, सम्पूर्ण रूप से संगठित होता है।” (Our mind grow as a result of the innate dispositions, acquired dispositions are formed and these in turn and welded into an  organised whole.)

शैशवावस्था में मानसिक विकास

(Mental Development in Infancy)

शैशवावस्था में बालकों में होने वाले परिवर्तनों को विकास एवं अभिवृद्धि पर निर्भर होना पड़ता है। यह परिवर्तन बहुत ही तीव्र एवं अचानक होते हैं। इसी से वैयक्तिक भिन्नता का आभास होता है।

सोरेन्स ने लिखा है-“जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन, प्रतिमास, प्रतिवर्ष बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसकी मानसिक शक्तियों में परिवर्तन होता जाता है।

जन्म के साथ शिशु कुछ क्रियाओं का प्रदर्शन स्वतः ही करता है। जैसे-छींकना, हिचकी लेना, चूसना, हाथ पैर हिलाना, रोना एवं चौंकना आदि। इसके साथ उसका मानसिक विकास ज्ञानेन्द्रियों पर निर्भर करता है। वह अपने मानसिक विकास को वस्तु का आधार मानकर विकसित करता है इसीलिये बालकों को विभिन्न प्रकार के प्रतिरूप दिये जाते हैं। इनको देखकर वे मस्तिष्क में वस्तु के अनुरूप प्रतिमा बना लेते हैं। मानसिक विकास के द्वारा ही वे शरीर के अंगों का सही प्रयोग करना प्रारम्भ करते हैं।

प्रथम वर्ष में मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिशु ध्यान लगाना, संवेगों का प्रकट करना, शारीरिक अंगों में परिवर्तन लाना, विभिन्न ध्वनियाँ करना, वस्तु को पकड़ना, अपनी पसन्द एवं नापसन्द प्रकट करना, अनुकरण के द्वारा सीखना आदि क्रियाओं का प्रयोग करना प्रारम्भ कर देता है।

प्रथम वर्ष की समाप्ति पर एवं द्वितीय वर्ष के प्रारम्भ में शिशु दो चार शब्द बोलना प्रारम्भ कर देता है। द्वितीय वर्ष के अन्त तक उसको 100 से लेकर 200 शब्द तक बोलने आने लगते हैं।

तृतीय एवं चतुर्थ वर्ष में शिशु बोलना एवं लिखना सीखता है। इस समय वह अपने हाथों पर नियन्त्रण करना प्रारम्भ कर देता है। शैशवावस्था के अन्तिम दिनों में नाम बोलना, लिखना, गिनती का प्रयोग करना एवं जटिल वाक्यों को दोहराना आदि का विकास होता है।

निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि इस अवस्था को बालक स्थल से सक्षम की ओर, अस्पष्टता से स्पष्टता की ओर तथा अनिश्चित से निश्चित की ओर प्रस्तुत रहता है।

जैसा कि क्रो एवं क्रो ने लिखा है- “समय अपने इस रूप में कुछ भी महत्त्व नहीं रखता है। बच्चे को आज, कल एवं सप्ताह में कोई भी अन्तर स्पष्ट नहीं दिखलायी देता। समय की अवधि के सूचक सभी शब्द उसे मात्र शब्द प्रतीत होते हैं।

बाल्यावस्था में मानसिक विकास

(Mental Development in Childhood)

बाल्यावस्था में मानसिक विकास बड़ी तीव्र गति से होता है। इस समय बालक की सहज प्रवृत्तियाँ एवं मूलवृत्तियाँ उसके सीखने में सहयोग प्रदान करती हैं जिससे उसकी जिज्ञासा शान्त होती है। उसमें रुचि, चिन्तन, स्मरण, निर्णय एवं समस्या समाधान आदि गुणों का स्वतः ही विकास होता है।

जैसा कि क्रो एवं क्रो ने लिखा है-“जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है तब उसकी मानसिक शक्तियों और योग्यताओं का पूर्ण विकास हो जाता है।” अत: बाल्यावस्था में मानसिक विकास निम्न प्रकार से प्रस्फुटित होता है-

बाल्यावस्था के प्रारम्भिक वर्षों में बालक मातृभाषा के स्वर एवं व्यंजन तथा गिनती पर अधिकार प्रकट करता है। अपने शरीर के अंगों को बताना एवं वस्तुओं में अन्तर स्थापित करना प्रारम्भ कर देता है। वह छोटी-छोटी घटनाओं का वर्णन एवं जटिल वाक्यों का प्रयोग करना प्रारम्भ करता है। दैनिक प्रयोग की समस्याओं का समाधान भी करना प्रारम्भ कर देता है।

बाल्यावस्था के मध्य वर्षों में बालक की रटन एवं ग्रहण शक्ति में तीव्र वृद्धि होती है। वह छोटी-छोटी पंक्तियों को दोहराना, कहानी को सुनाना आदि सीख जाता है। वह दैनिक व्यवहार को करना सीख जाता है। दिन, तारीख, वर्ष एवं सिक्कों का पूर्ण ज्ञान प्रकट करने लगता है। वह देखी हुई घटना का स्पष्ट वर्णन करना आरम्भ कर देता है।

बाल्यावस्था के अन्तिम वर्षों में वह छोटी-छोटी कहानियों को सुना सकता है। उसके बोलने की गति 3 मिनट में 60-70 शब्दों तक होती है। वह सामाजिकता के प्रति जागरूक होने लगता है।

इस समय बालक स्व-निरीक्षण एवं परीक्षण में विश्वास करता है। यह जिज्ञासा, निरीक्षण और तर्क आदि शक्तियों का प्रयोग करके मानसिक चेतना को प्रकट करता है। वह संसार की विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करता है। वह देखी हई फिल्म अथवा कहानी का 3/4 भाग तक सुनाने में सफल होता है।

किशोरावस्था में मानसिक विकास

(Mental Development in Adolescence)

किशोरावस्था में मानसिक विकास की स्थिति निम्न प्रकार से विकसित होती है –

1. बुद्धि में स्थिरता (Stability in intelligence)

किशोरावस्था में बुद्धि का विकास पूर्ण हो जाता है। इसीलिये इस अवस्था को बुद्धि में स्थिरता लाने वाली अवस्था भी कहा जाता है। टरमन, जोन्स एवं कोनाई और स्पीयरमैन आदि विद्वानों ने बुद्धि का पूर्ण विकास 14 से 16 वर्ष के बीच माना है। मनोशास्त्रियों के अनुसार, बुद्धि में प्रखरता का विकास ही सम्भव है, क्योंकि बुद्धि तो जन्मजात होती है।

2. मानसिक शक्तियाँ (Mental powers)

इस अवस्था में बालकों एवं बालिकाओं की संवेदना, प्रत्यक्षीकरण,अवधान, स्मृति, विस्मृति, कल्पना, चिन्तन, तर्क और समस्या समाधान आदि मानसिक शक्तियों का पूर्ण विकास हो जाता है। वह इनका प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में आसानी से करते हैं।

3. चिन्तन में स्वाभाविकता (Reality in thinking)

इस आयु में चिन्तन में नवीनता और स्वाभाविकता आना प्रारम्भ हो जाता है। किशोर सामाजिक रूढ़ियों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों एवं अन्ध-विश्वासों आदि का विरोध करता है और नये मापदण्डों का प्रयोग करता है। अत: उसके चिन्तन को एक नयी दिशा मिलती है।

4. कल्पना शक्ति में तीव्रता (Sharpness in imagination power)

किशोरावस्था में कल्पना शक्ति का बाहुल्य रहता है। किशोर अपनी इच्छाओं की पर्ति के लिये दिवास्वप्न देखते हैं। उनकी इस कल्पना शक्ति को सही मार्ग-दर्शन देकर कला, संगीत, खेल, साहित्य एवं अन्य रचनात्मक कार्यों में मौलिकता का प्रदर्शन किया जाता है। अध्ययनों से स्पष्ट होता है, कि कल्पना शक्ति की अधिकता बालिकाओं में अधिक होती है, अपेक्षाकृत बालकों के।

5.रुचि में विविधता (Differences in interest)

किशोरावस्था में रुचियों का विकास तीव्रता से होता है। स्त्री एवं परुष अपनी-अपनी रुचियों का चुनाव भिन्न-भिन्न तरीके से करते हैं। बालिकाओं में स्त्रियोचित रुचियों का विकास होता है और बालकों में पुरुषोचित रुचियों का। अत:रुचि विविधता होना स्वाभाविक है।

मानसिक विकासको प्रभावित करने वाले कारक

(Factors Effecting to the Mental Development)

विभिन्न कारक मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं। मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक इस प्रकार है-

1. आनुवांशिकता (Heredity)

मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि बालक को कुछ मानसिक गुण तथा योग्यताएँ आनुवांशिकता से प्राप्त होते हैं। पर्यावरण इनको प्रभावित नहीं करता। वंशानुक्रम ही किसी बालक का विकास निर्धारित करता है।

2. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical health)

बालक का शारीरिक स्वास्थ्य उसके मानसिक विकास को प्रभावित करता है। एक स्वस्थ बालक का मानसिक विकास अस्वस्थ बालक की अपेक्षा शीघ्र होता है।

3. परिवार (Family)

परिवार का प्रेमपूर्ण व्यवहार बालक के मानसिक विकास में सहायक होता है। परिवार में पति-पत्नी के सम्बन्ध यदि मधुर हैं तो वे अपने बालक की ओर अधिक ध्यान दे सकते हैं। इसके फलस्वरूप, बालकों का मानसिक विकास स्वस्थ ढंग से होता है।

4. माता-पिता की सामाजिक स्थिति (Social status of parents)

जिन बालकों के माता-पिता की सामाजिक स्थिति उच्च होती है, उन बालकों का मानसिक विकास अधिक होता है। ऐसे बालकों को मानसिक विकास के अनेक साधन उपलब्ध हो जाते हैं।

5. माता-पिता की आर्थिक स्थिति (Economic status of parents)

निर्धन परिवार के बालकों का मानसिक उचित ढंग से नहीं हो पाता। धनी परिवार के बालक अपनी सभी आवश्यकताओं को पूरा कर लेते हैं परन्तु निर्धन बालकों को भोजन, वस्त्र तथा पुस्तकों का अभाव रहता है। इसी कारण उनका मानसिक विकास रुक जाता है।

6. विद्यालय का वातावरण (Environment of school)

विद्यालय का वातावरण भी बालकों के मानसिक विकास को प्रभावित करता है। यदि विद्यालय का वातावरण अनुशासित है तो बालकों का मानसिक विकास अच्छी तरह से होता है। एक अच्छा विद्यालय अपने छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओंको पूरा करता है और इस प्रकार उनके मानसिक विकास में सहायक होता है।

7. रोचक शिक्षण विधियाँ (Interested teaching methods)

प्रसिद्ध दर्शनिक अरस्तू का कथन है, “शिक्षा मनुष्य की शक्ति का विशेष रूप से उसकी मानसिक शक्ति का विकास करती है। अत: बालक के मानसिक विकास में रोचक शिक्षक विधियों का विशेष महत्त्व है।

8. शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य (Mental health of teacher)

यदि शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा है तो वह अपने छात्रों के मानसिक विकास में योगदान दे सकता है। बालक के मानसिक विकास में शिक्षक का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। यदि बालकों को अपने शिक्षक से सहानुभूति मिलती है तो उनका मानसिक विकास शीघ्रता से होता है।

9. समाज (Society)

किसी देश का समाज बालकों को जैसी सुविधाएँ प्रदान करता है, उसी प्रकार से उनका मानसिक विकास होता है। समाज ही मानसिक विकास की गति और सीमा निर्धारित करता है।

उपर्युक्त कारकों के अतिरिक्त पुस्तकालय, वाचनालय, मनोरंजन के साधन आदि भी बालक के मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं।

Mansik Vikas - Mental Development

मानसिक विकास

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विकासात्मक प्रक्रिया के स्तर एवं आयाम:

  1. शारीरिक विकास (Physical development)
  2. मानसिक विकास (Mental development)
  3. सामाजिक विकास (Social development)
  4. भाषा विकास (Language development)

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