बुद्धि के सिद्धांत (Theories of Intelligence)
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को निश्चित करने और इसकी पर्याप्त व्याख्या करने के विभिन्न प्रयत्न किये हैं, लेकिन हम यहाँ पर गणितीय विश्लेषण कर सर्वमान्य सिद्धान्तों का वर्णन करेंगे। इससे पहले ‘बुद्धि’ किन बातों पर निर्भर करती है?’ यह देखना होगा।
बुद्धि का निर्धारण (Assessment of intelligence)
शिक्षाशास्त्री मन (Munn) ने बुद्धि के निर्धारण के लिये तीन बातों को मुख्य माना है-
- बालक का जन्म के समय कैसा मस्तिष्क था? उसकी बनावट का अध्ययन बुद्धि की मात्रा को निश्चित करता है।
- बचपन और किशोरावस्था में मस्तिष्क की वृद्धि किस औसत में हुई है? अर्थात् सामान्य बालकों, सामान्य से कम या सामान्य से अधिक (तीव्र) वृद्धि हुई है।
- व्यक्ति को अवलोकन करने, सीखने और कार्य करने के कितने अवसर मिले हैं? इस प्रकार से उसकी बुद्धि में प्रखरता आ जाती है।
बुद्धि के तीन प्रमुख सिद्धान्त
- द्वि-खण्ड सिद्धान्त (Two-factor Theory)
- प्रतिचयन का सिद्धान्त (Sampling Theory)
- खण्ड विश्लेषण सिद्धान्त (Factor Analysis Theory)
द्वि-खण्ड सिद्धान्त (Two-factor Theory)
बुद्धि का प्रथम सिद्धान्त चार्ल्स स्पियरमैन (1863-1945) के द्वारा प्रतिपादित किया गया। इसको द्वि-खण्ड के नाम से पुकारते हैं। आपने इस सिद्धान्त का निर्माण सन् 1904 में पूर्ण किया। जब यह सिद्धान्त मनोविज्ञान के क्षेत्र में आया तब राष्ट्रीय विवेचन का विषय बना। यह बुद्धि के गणितीय आधार पर प्रथम सिद्धान्त माना गया, जिसने बुद्धि के क्षेत्र को आज तक प्रभावित किया है।
स्पियरमैन के अनुसार, सम्पूर्ण मानसिक कार्यों में दो प्रकार की योग्यताओं का प्रयोग होता है-
- पहली– सामान्य योग्यता (General ability, G) है।
- दूसरी– विशिष्ट योग्यता (Specific ability, S) है।
सामान्य योग्यता (G) सभी कार्यों में कम या अधिक मात्रा में पायी जाती है, लेकिन विशिष्ट योग्यता (S) किसी कार्य के लिये विशेष रूपसे आवश्यक होती है। इस प्रकार से सामान्य योग्यता एक प्रकार की होती है और विशिष्ट योग्यताएँ विभिन्न बौद्धिक कार्यों के अनुसार अनेक हो सकती हैं।
विज्ञान, दर्शन, कला, शिल्प आदि में सामान्य योग्यता के स्थान पर विशिष्ट योग्यता की आवश्यकता होगी। जिस व्यक्ति में जिस बौद्धिक क्रिया से सम्बन्धित विशिष्ट योग्यता होती, वह उसी क्रिया में विशेष उन्नति करेगा।
द्वि-खण्ड सिद्धान्त को और सरल बनाने के लिये निम्न रेखाचित्र का वर्णन करना अति आवश्यक है-
- A – शब्दावली परीक्षण
- V – गणित परीक्षण
- G – सामान्य तत्त्व
- S1 – विशिष्ट शाब्दिक योग्यता
- S2 – विशिष्ट संख्यात्मक योग्यता
उपर्युक्त आकृति के अनुसार दो परीक्षण चुने गये, जो निम्न हैं-
- A – शब्दावली परीक्षण, और
- V – गणित परीक्षण।
दोनों ही परीक्षणों में सामान्य योग्यता (G) की आवश्यकता होती है। अत: दोनों आकृतियाँ इसको निश्चित करती हैं। शब्दावली परीक्षण में विशेष योग्यता शब्दों के विशिष्ट चयन एवं प्रयोग में होती है। अत: वहाँ पर उसकी विशिष्ट योग्यता S1 का प्रयोग होता है और गणित परीक्षण में विशिष्ट योग्यता की आवश्यकता विशिष्ट संख्यात्मक विवेचन के रूप में होती है। अत: वहाँ पर S2 होता है।
अत: यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रत्येक बौद्धिक कार्य के लिये सामान्य योग्यता (G) की आवश्यकता होती है, क्योंकि उनमें धनात्मक सहसम्बन्ध होता है। लेकिन पूर्ण सहसमबन्ध इसलिये नहीं होगा, क्योंकि दोनों ही में विशिष्ट योग्यताओं की भी आवश्यकता पड़ती है।
स्पियरमैन ने आगे चलकर अपने सिद्धान्त में संशोधन किया। उन्होंने G तथा खण्डों के साथ ‘समूह खण्डों’ को भी स्वीकार किया। इसको उन्होंने मध्यवर्ती माना, यानी सामान्य और विशिष्ट तत्वों के बीच की मिलान पर यह तत्त्व स्थित होते हैं। इस प्रकार से सामान्य एवं विशिष्ट तत्त्वों के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है।
अत: यह सिद्धान्त बतलाता है कि जो बालक एक बौद्धिक क्षेत्र में जो योग्यता दिखाते हैं। वे अन्य क्षेत्रों में भी योग्य होते हैं।
प्रतिचयन का सिद्धान्त (Sampling Theory)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जी. एफ. थाम्पसन (1881-1955) द्वारा किया गया। इसको प्रतिचयन के सिद्धान्त के नाम से पुकारते हैं। थाम्पसन का कहना है कि बौद्धिक व्यवहार ऐसी अनेक स्वतन्त्र योग्यताओं पर निर्भर करता है, जो अपने विस्तार में सीमित होने पर भी अनेक कार्यों में प्रविष्ट होती हैं।
अतः विभिन्न प्रकार के प्रतिचयनों का पता या योग अलग-अलग परीक्षणों से होता है। इसलिये संज्ञानात्मक परीक्षणों में धनात्मक सहसमबन्ध पाया जाता है, वह विभिन्न रूपों के कारण होता है।
प्रतिचयन के सिद्धान्त को प्रस्तुत रेखाचित्र में समझा जा सकता है-
![]() |
चेपलिन तथा कारविक के आधार पर |
वर्णित चित्र में A और B दो बड़े गोले परीक्षणों को परिभाषित करते हैं। छोटे गोले बुद्धि के विशिष्ट खण्डों अर्थात् प्रतिचयनों को परिभाषित करते हैं। वृत्त A में आठ विशिष्ट खण्डों के प्रतिचयन है तथा वृत्त B, में ग्यारह। इन दोनों में छ: विशिष्ट खण्ड सामान्य हैं।
इनमें धनात्मक सहसम्बन्ध है। अत: थाम्पसन ने स्पियरमैन के समान ‘विशिष्ट खण्डों’ में संकीर्णता नहीं मानी और न सामान्य खण्डों’ को अधिक विस्तृत माना। फिर भी दोनों ही मानसिक योग्यताओं की व्याख्या के लिये समूह खण्डों को मानते हैं।
खण्ड विश्लेषण सिद्धान्त (Factor Analysis Theory)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन एल. एल. थर्स्टन (1887-1955) ने किया था। थर्स्टन ने खण्ड विश्लेषण विधि का प्रयोग समूह खण्डों का पृथक्करण करने के लिये किया था। प्राथमिक मानसिक योग्यताओ की विधि तथा खण्ड विश्लेषणात्मक विधि के कारण ‘थर्स्टन’ का नाम मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रसिद्धि पा गया।
थर्स्टन का कहना है कि स्पियरमैन का ‘सामान्य तत्त्व‘ सम्बन्धित योग्यताओं के समूह में विभक्त किया जा सकता है। इन विभाजित योग्यताओं को उन्होंने प्राथमिक मानसिक योग्यताओं का नाम दिया। यदि छात्रों को विभिन्न प्रकार के परीक्षण दिये जायें तो वे सभी एक स्थान पर सामान्य (Common) होंगे। जैसा कि चित्र द्वारा प्रस्तुत किया गया है-
यहाँ पर-
- V= ‘शाब्दिक योग्यता परीक्षण’ और V1, V2, V3, V4 उसके विभिन्न खण्ड हैं।
- S= ‘स्थानीय योग्यता, मापन परीक्षण’ और S1, S2, S3, S4 उसके विभिन्न खण्ड हैं।
दोनों ही चित्रों में विशेष सहसम्बन्ध है और दोनों में ही एक सामान्य (Common) स्थान भी है। अतः प्रत्येक चित्र में जो सामान्य (Common) स्थान है, वह प्राथमिक मानसिक योग्यता की व्याख्या करता है।
थर्स्टन की प्राथमिक योग्यताएँ
थर्स्टन (Thurston) ने सांख्यिकीय विधि का उपयोग करके निम्न सात प्राथमिक योग्यताएँ बतलायी हैं-
- मौखिक योग्यता (Verbal ability)– शब्दों को समझना एवं उनका ठीक प्रकार से प्रयोग करना।
- संख्यात्मक योग्यता (Numerical ability)– गणित सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करना।
- स्थानीय योग्यता (Spatial ability)– स्थानीय वस्तुओं में सम्बन्ध देखना।
- प्रत्यक्षात्मक योग्यता (Perceptual ability)– इस योग्यता से वस्तुओं को ठीक प्रकार से पहचान लिया जाता है और पढ़ने में विशेष सहायता मिलती है।
- स्मृति (Memory)– यह योग्यता सीखने एवं धारण करने में सहायता देती है।
- तर्क (Reasoning)– इसके द्वारा अमूर्त सम्बन्धों को देखना एवं समस्याओं के समाधान में अनुभवों की सहायता लेना आता है।
- शब्द-प्रवाह (Word fluency)– इसके द्वारा शब्दों पर शीघ्रता से विचार किया जाता है।
इस प्रकार से थर्स्टन ने परीक्षण माला में प्रत्येक योग्यता के लिये तीन-तीन परीक्षणों को लिया है। अत: कुल मिलाकर इक्कीस परीक्षण हुए।
मूल्यांकन (Measurement)
थर्स्टन के सिद्धान्त का प्रभाव छोटे बालकों के लिये न होकर प्रौढों के लिये है। छोटे बालकों की बुद्धि को विभाजित नहीं किया जा सकता। वे जसे-जैसे बड़े होते हैं, वैसे ही क्षेत्र विशेष में कुशलता प्राप्त करते हैं। अत: इसी कुशलता के आधार पर उसकी बुद्धि को मापा जा सकता है। इस समय ‘सामान्य तत्त्व’ का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।
बुद्धि के मापने के लिये उपयुक्त परीक्षण
इस प्रकार से यह निष्कर्ष निकलता है कि छोटे बालकों की सामान्य बुद्धि को मापने के लिये स्टेन्फोर्ड-बिने परीक्षण उपयुक्त होगा और किशोरावस्था एवं प्रौढ़ावस्था की बुद्धि मापन ‘खण्ड विश्लेषण‘ पर आधारित ‘थर्स्टन परीक्षण‘ सही होगा, क्योंकि इससे पता चल सकेगा कि छात्र जीवन में क्या बन सकता है?
स्टेगनर (Stegner) के बुद्धि के सिद्धान्त के बारे में विचार
स्पियरमैन की सामान्य योग्यता का विचार प्रतीकात्मक विभेद के लिये महत्त्वपूर्ण है, किन्तु हमें अपने जीवन में अनेक प्रकार के प्रतीक मिलते हैं, कुछ व्यक्ति शाब्दिक प्रतीकों में अच्छे होते हैं और कुछ संख्यात्मक प्रतीकों में। प्रारम्भिक जीवन में (G) का आगणन अधिक होता है, किन्तु आगे चलकर किशोरावस्था अथवा प्रौढ़ावस्था में ‘प्राथमिक योग्यता’ की माप काम देती है।
मानसिक विकास:
⮚ बुद्धि का परिचय ⮚ बुद्धि की परिभाषाएँ ⮚ बुद्धि की प्रकृति या स्वरूप ⮚ बुद्धि एवं योग्यता ⮚ बुद्धि के प्रकार ⮚ बुद्धि के सिद्धान्त ⮚ मानसिक आयु ⮚ बुद्धि-लब्धि एवं उसका मापन ⮚ बुद्धि का विभाजन ⮚ बुद्धि का मापन ⮚ बिने के बुद्धि-लब्धि परीक्षा प्रश्न ⮚ बुद्धि परीक्षणों के प्रकार ⮚ व्यक्तिगत और सामूहिक बुद्धि परीक्षणों में अन्तर ⮚ भारत में प्रयुक्त होने वाले बुद्धि परीक्षण ⮚ शाब्दिक एवं अशाब्दिक परीक्षणों में अन्तर ⮚ बुद्धि परीक्षणों के गुण या विशेषताएँ ⮚ बुद्धि परीक्षणों के दोष ⮚ बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता।
पढ़िए मनोविज्ञान या बाल मनोविज्ञान और बाल विकास के अन्य चैप्टर:
- बाल विकास
- विकास की अवस्थाएँ
- शैशवावस्था
- बाल्यावस्था
- किशोरावस्था
- शारीरिक विकास
- मानसिक विकास
- बुद्धि का परिचय
- बुद्धि के सिद्धान्त
- मानसिक आयु
- बुद्धि-लब्धि
- बुद्धि परीक्षण
- सामाजिक विकास
- भाषा विकास
- सृजनात्मकता
- वैयक्तिक विभिन्नताएँ
- कल्पना
- चिन्तन
- तर्क
- बाल विकास के आधार
- बाल विकास के प्रभावित कारक
- अधिगम का अर्थ
- अधिगम के वक्र
- अधिगम पठार
- अधिगम स्थानान्तरण
- अभिप्रेरण