विकासात्मक प्रक्रिया के स्तर एवं आयाम
(Dimensions and Stages of Developmental Process)
बालक का विकास विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरता है, जैसा कि हम पूर्व पृष्ठों (शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था) में वर्णन कर चुके हैं। इन विभिन्न अवस्थाओं में बालक का ‘स्व’ या ‘व्यक्तित्व’ अनेक प्रकार से विकसित होता है। इस प्रक्रिया के स्वरूप में अपूर्व शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक तत्त्वों का संकलन होता है।
इस प्रकार विकास की प्रक्रिया बालक के शैशव काल से प्रारम्भ होकर किशोरावस्था के समापन काल तक चलती है। अत: इसका स्पष्ट वर्णन प्रस्तुत कर रहे हैं-
- शारीरिक विकास (Physical development)
- मानसिक विकास (Mental development)
- सामाजिक विकास (Social development)
- भाषा विकास (Language development)
1. शारीरिक विकास
मानव जीवन का प्रारम्भ उसके पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले ही प्रस्फुटित होने लगता है। वर्तमान समय में गर्भधारण की स्थिति से ही मानवीय जीवन का प्रारम्भ माना जाता है। माँ के गर्भ में बच्चा 280 दिन या 10 चन्द्रमास तक विकसित होकर परिपक्वावस्था प्राप्त करता है। अतः शारीरिक दशा का विकास गर्भकाल में निश्चित किया जा सकता है। मानव की विभिन्न अवस्थाओं में शारीरिक विकास को विस्तार से पढ़ें – “शारीरिक विकास (Physical Development) – Sharirik Vikas“
2. मानसिक विकास
जन्म के समय शिशु असहाय अवस्था में होता है। वह मानसिक क्षमता में भी पूर्ण अविकसित होता है। आयु की वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ बालकों की मानसिक योग्यता में भी वृद्धि होती है। इस पर वंशानुक्रम एवं पर्यावरण दोनों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जे. एस. रास (U.S. Ross) ने लिखा है-“हमारे मस्तिष्क का विकास, वंशानुक्रमीय प्रभावों के हस्तान्तरण एवं अर्जित प्रभावों के मिश्रण के परिणामस्वरूप, सम्पूर्ण रूप से संगठित होता है।” विस्तार से पढ़ें – “मानसिक विकास (Mental Development) – Mansik Vikas“
3. सामाजिक विकास
शिशु का व्यक्तित्व सामाजिक पर्यावरण में विकसित होता है। वंशानुक्रम से जो योग्यताएँ उसे प्राप्त होती हैं, उनको जाग्रत करके सही दिशा देना समाज का ही कार्य है। इस प्रकार एलेक्जेण्डर ने लिखा है- “व्यक्तित्व का निर्माण शून्य में नहीं होता, सामाजिक घटनाएँ तथा प्रक्रियाएँ बालक की मानसिक प्रक्रियाओं तथा व्यक्तित्व के प्रतिमानों को अनवरत रूप से प्रभावित करती रही हैं।” विस्तार से पढ़ें – “सामाजिक विकास (Social Development) – Samajik Vikas“
4. भाषा विकास या अभिव्यक्ति क्षमता का विकास
भाषा विकास, बौद्धिक विकास की सर्वाधिक उत्तम कसौटी मानी जाती है। बालक को सर्वप्रथम भाषा ज्ञान परिवार से होता है। तत्पश्चात विद्यालय एवं समाज के सम्पर्क में उनका भाषायी ज्ञान समृद्ध होता है।
कार्ल सी. गैरिसन के अनुसार-“स्कूल जाने से पहले बालकों में भाषा ज्ञान का विकास उनके बौद्धिक विकास की सबसे अच्छी कसौटी है। भाषा का विकास भी विकास के अन्य पहलुआ के लाक्षणिक सिद्धान्तों के अनुसार होता है। यह विकास परिपक्वता तथा अधिगम दोनों के फलस्वरूप होता है। इसमें नयी अनुक्रियाएँ सीखनी होती हैं और पहले की सीखी हुई अनुक्रियाओं का परिष्कार भी करना होता है।” विस्तार से पढ़ें – “बालक का भाषा विकास (Language Development) – Balak Ka Bhasha Vikas“