मानव केवल शारीरिक गुणों से ही एक दूसरे से अलग नहीं होते बरन मानसिक एवं बौद्धिक गुणों से भी एक दूसरे से अलग होते हैं। इनमें से कुछ भिन्नताऐं जन्मजात भी होती हैं। कुछ लोग जन्म से ही तेज बुद्धि के तो कुछ मन्द बुद्धि होते हैं। आज के समय में बुद्धि को बुद्धि लब्धि के रूप में मापते हैं जो एक आंकिक मान है।
बुद्धि परीक्षण का आशय उन परीक्षणों से है जो बुद्धि-लब्धि के रूप में केवल एक अंक के माध्यम से व्यक्ति के बौद्धिक एवं उसमें विद्यमान विभिन्न विशिष्ट योग्यताओं के सम्बंध को दर्शाता है।
कौन सा व्यक्ति कितना बुद्धिमान या प्रतिभावान है, यह जानने के मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रयास किए। बुद्धि को मापने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने “मानसिक आयु” और “शारीरिक आयु” के कारक प्रस्तुत किये हैं और इनके आधार पर व्यक्ति की वास्तविक बुद्धि-लब्धि ज्ञात की जाती है।
- बुद्धि परीक्षणों के प्रकार
- व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण
- सामूहिक बुद्धि परीक्षण
- क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण
- समय-सीमा युक्त परीक्षण
- समय-सीमा रहित परीक्षण
- व्यक्तिगत और सामूहिक बुद्धि परीक्षणों में अन्तर
- भारत में प्रयुक्त होने वाले बुद्धि परीक्षण
- शाब्दिक एवं अशाब्दिक परीक्षणों में अन्तर
- बुद्धि परीक्षणों के गुण या विशेषताएँ
- बुद्धि परीक्षणों के दोष
- बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता
बुद्धि परीक्षणों के प्रकार
Kinds of Intelligence Tests
बुद्धि परीक्षण निम्नलिखित प्रकार के हैं-
1. व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण (Individual intelligence test)
एक निश्चित समय में एक व्यक्ति का बुद्धि परीक्षण करना, वैयक्तिक परीक्षा कहलाती है। बिने-साइमन बुद्धि परीक्षा के अतिरिक्त बैरल पामर की परीक्षा भी उपयोगी सिद्ध हुई है। इसमें 38 प्रश्न होते हैं, यह डेढ़ से साढ़े पांच वर्ष तक के बच्चों के लिये है। दो भिन्ने सोटा प्रिस्कूल स्केल भी इसी आयु वर्ग के लिये है। अमेरिका के डिटरमैन का प्रयास तथा बर्ट का प्रयास भी प्रशंसनीय है। ‘वैशलट-बैलेबिन इन्टेलीजेन्स टेस्ट‘ तथा ‘ड्रायन्स एमेन टेस्ट‘ आदि 10 वर्ष और इससे बड़े बालकों के लिये है।
2. सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group intelligence test)
प्रथम विश्व युद्ध (1974-1918) में सेना की भर्ती के लिये सामूहिक परीक्षा का प्रयोग किया गया ताकि योग्यता के अनुरूप वहाँ के सैनिकों एवं अधिकारियों का चयन किया जा सके। सामूहिक परीक्षा के लिये बिने एवं टरमैन के बुद्धि परीक्षण सिद्धान्तों को स्वीकार तो किया, परन्तु उनके आधार पर अलग से परीक्षाएँ निर्मित की गयी।
सामूहिक बुद्धि परीक्षण दो प्रकार की होती हैं-
- शाब्दिक या भाषायी परीक्षा (Verbal test)
- क्रियात्मक या नान-वर्बल परीक्षा (Non-verbal test)
अत: आर्मी अल्फा टेस्ट तथा आर्मी जनरल क्लासिफिकेशन टेस्ट का विकास क्रमशः प्रथम विश्व युद्ध एवं द्वितीय विश्व युद्ध में हुआ।
शाब्दिक परीक्षा (Verbal test) में कुछ प्रश्न या अभ्यास हल करने के लिये दिये जाते हैं, किन्तु अशिक्षित लोगों के लिये क्रियात्मक परीक्षा (Non-verbal test) का प्रयोग किया जाता है।
सामूहिक शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Group verbal test of intelligence)
जब एक समय में एक से अधिक व्यक्तियों की परीक्षा ली जाये, उसे सामूहिक बुद्धि परीक्षण कहते हैं। अमेरिका में आर्मी एल्फा परीक्षण, थॉर्नडाइक का CAVD परीक्षण तथा टरमैन मेकनेयर परीक्षण हैं। भारत में डॉ. जलोटा ने सन् 1972 में, डॉ. मोरे ने सन् 1921 डॉ. सी. एच. राइस ने हिन्दुस्तानी बिने कार्यात्मक परख, डॉ. भाटिया ने कार्यात्मक परख पत्र तैयार किये।
अशाब्दिक हिन्दी में निम्नलिखित बौद्धिक परीक्षाएँ उपलब्ध हैं-
- सामूहिक बुद्धि परीक्षण (12 से 18 वर्ष तक) निर्माणकर्ता पी. मेहता।
- साधारण मानसिक योग्यता (12 से 16 वर्ष तक) निर्माणकर्ता एस. जलोटा।
- शाब्दिक बौद्धिक परीक्षा (VIII, X एवं XI स्तर के लिये) निर्माणकर्ता यू. पी. ब्यूरो ऑफ साइक्लोजो।
- टेस्ट ऑफ जनरल मेण्टल एबिलिटी (10.से 16 वर्ष तक) निर्माणकर्ता शिक्षा विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय।
- सी. आई. ई. शाब्दिक सामूहिक बुद्धि परीक्षा (11 से 14 वर्ष तक के बालकों के लिये) 4 परीक्षाएँ-निर्माणकर्ता सी. आई. ई. दिल्ली।
व्यक्तिगत अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Individual non-verbal test of intelligence)
इन परीक्षाओं में भाषा प्रयोग नहीं होता तथा एक समय में एक ही व्यक्ति की परीक्षा ली जाती है। इन परीक्षाओं से व्यक्ति का व्यवहार तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं का भी निरीक्षण किया जाता है। इसके लिये भाटिया का निष्पादन परीक्षण, कोहलर का ब्लाक डिजायन टेस्ट, आर्थर का निष्पादन परीक्षण तथा एलेक्जेण्डर का पास एलांग परीक्षण प्रचलित है।
सामूहिक अशाब्दिक वृद्धि परीक्षण (Group non-verbal test or intelligence)
इन परीक्षणों में भी भाषा का प्रयोग नहीं होता तथा एक समय में एक से अधिक व्यक्तियों की परीक्षा ली जाती है। इस वर्ग में मख्यत: आर्मी बीटा परीक्षण, शिकागो अशाब्दिक परीक्षण भाग-1, पिजन अशाब्दिक परीक्षण ए. आई. पी. 70/23 तथा रेवन प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज परीक्षण आते हैं।
3. क्रियात्मक परीक्षण (functional testing)
उपर्युक्त दोनों (व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण, सामूहिक बुद्धि परीक्षण) प्रकार के परीक्षणों द्वारा केवल शिक्षित व्यक्तियों की ही परीक्षा ली जाती थी। उन व्यक्तियों के परीक्षण का कोई प्रबन्ध नहीं था, जो भाषा का प्रयोग नहीं करते थे, जैसे-गूंगे, बहरे, अन्धे तथा अशिक्षित व्यक्ति। अत: क्रियात्मक परीक्षण इस प्रकार के लोगों के लिये सफल रहा। इन प्रश्नों का उत्तर देने पर कोई कार्य करना पड़ता था। इस प्रकार परीक्षार्थी के आत्मविश्वास, दृढ़ता, धैर्य एवं स्थान अन्तर्दृष्टि की जाँच ठीक प्रकार से हो जाती थी।
क्रियात्मक परीक्षण के प्रकार
प्रमुख प्रकार के क्रियात्मक परीक्षण इस प्रकार हैं-
(i) आकृति फलक परीक्षण (Form board test)
इस परीक्षण के आविष्कार का श्रेय सैंग्विन (Sangvin) को है। उन्होंने लकड़ी के एक तख्ते में विभिन्न आकृतियों को फिट करने योग्य स्थान बनवाये तथा अलग से त्रिभुजाकार, गोलाकार, अर्द्धगोलाकार, चतुर्भुजीय एवं त्रिकोणीय आदि आकार बनवाये।
अब परीक्षार्थी से नियत समय में इन आकृतियों को तख्ते में फिट करने को कहा जाता है। जो जितना शीघ्र इन आकृतियों को सही स्थान पर फिट कर देता है वह तीव्र बुद्धि का माना जाता है, जो यह नहीं कर पाता वह बुद्धि में हीन माना जाता है।
(ii) चित्रांकन परीक्षा (Picture drawing test)
इस परीक्षा में बालक को मनुष्य, हाथी, घोडा एवं कत्ता आदि के चित्र खींचने को कहा जाता है तथा चित्र पर अंक पूर्णता के आधार पर दिये जाते हैं। सुन्दरता के आधार पर नहीं। चित्रांकन परीक्षण 1 से 10 वर्ष के बालकों के लिये उपयुक्त होता है।
(iii) चित्र पूर्ति परीक्षण (Picture completion test)
चित्र पूर्ति परीक्षण परे चित्र में से कुछ वर्गाकार टुकड़े काटकर अलग रख दिये जाते हैं तथा बालक से कहा जाता है कि वह भिन्न-भिन्न टकड़ों को यथास्थान रख दे जिससे चित्र पूर्ण हो जाय। जो बालक शीघ्र तथा ठीक प्रकार इन टुकड़ों को लगाकर चित्र पूरा कर देता है, उसे तीव्र बुद्धि वाला माना जाता है। इस परीक्षण में बालकों की कल्पनाशीलता तथा तत्परता की जाँच होती है।
(iv) वस्तु संयोजन परीक्षण (Object assembly test)
इस परीक्षण का प्रयोग वैशलर (Weschlar) ने किया है। उनकी वैशलर-वैलेव्यू की बुद्धि परीक्षण में (Weschlar believe intelligence test) में मानव-आकृति के पार्श्व-चित्र और हाथ के तीन अलग-अलग पटल होते हैं, जिनके अनेक अफकड़ों को मिलाकर पूरा आकार बनाना पड़ता है।
(v) भूल-भुलैया परीक्षण (Maze test)
सबसे पहले पोर्टियस (Portius) ने इस विधि का प्रयोग किया। इसमें सादा रंगों से चित्र बना रहता है तथा निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचने के लिये बालक को खुले मार्ग में से बीच में होकर पेन्सिल से मार्ग बताना पड़ता है। बन्द गली के पार जाने की मनाही है। जो बालक बिना बन्द गली से भटककर नहीं लौटते तथा शीघ्र एवं सही मार्ग बताते हैं वे तीव्र बुद्धि के माने जाते हैं।
उपर्युक्त व्यावहारिक परीक्षाएँ स्थूल वस्तुओं से सम्बन्ध रखती हैं अत: परीक्षाएँ बालक के प्रत्यक्षीकरण (Perception) शक्ति की जाँच करती हैं, क्योंकि हमारी ज्ञानेन्द्रियां एवं कामेन्द्रियां ही अनुभव एवं ज्ञान की वाहक है। अत: उपर्युक्त परीक्षाएँ बुद्धि की परीक्षा करती है। इनका प्रयोग अशिक्षित व्यक्तियों या छोटे बालकों पर किया जाता है।
क्रियात्मक परीक्षाओं में परीक्षार्थी को लकड़ी या गत्ते के टुकड़े के नमूने बनाने को दिये जाते थे। अल्प समय में उन टुकड़ों को यथास्थान लगाना होता था। इसमें भूल-भुलैया विधि से बुद्धि की परीक्षा ली जाती थी। अनेक बार दर्पण में भी दिखाकर किसी आकृति को बनाने के लिये कहा जाता था।
समय-सीमा युक्त परीक्षण
ऐसे परीक्षण में परीक्षार्थियों को निश्चित प्रश्न निश्चित समय में करने को दिये जाते हैं। इस परीक्षा में गति को प्रधानता दी जाती है लेकिन उपयुक्त समय में उपयुक्त उत्तर प्राप्त होने पर परीक्षार्थी की बद्धि उत्कष्ट मानी जाती है। कम प्रश्न करने या गलतियाँ करने पर परीक्षार्थी के अंक काट लिये जाते हैं। इस परीक्षण में परीक्षार्थियों की बुद्धि के साथ-साथ गति की भी जाँच हो जाती है।
समय-सीमा रहित परीक्षण
इस परीक्षण में परीक्षार्थी को सभी प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य होता है, वह चाहे जितना समय ले सकता है। समय की कोई सीमा नहीं होती। परीक्षार्थी को प्रश्नों का उत्तर सही रूप में देना इस परीक्षण का अनिवार्य अंग है। इस प्रकार परीक्षार्थी की शुद्धता की जाँच की जाती है।
व्यक्तिगत और सामूहिक बुद्धि परीक्षणों में अन्तर
Difference between Individual and Group Intelligence Tests
व्यक्तिगत और सामूहिक बुद्धि परीक्षणों में निम्न अन्तर है-
- व्यक्तिगत परीक्षणों में वस्तुनिष्ठता और प्रामाणिकता कम होती है, जबकि सामूहिक परीक्षणों में ये गुण अधिक होते हैं।
- व्यक्तिगत परीक्षण एक ही व्यक्ति के लिये होता है, जबकि सामूहिक परीक्षण परे समह के लिये होता है।
- परीक्षणों द्वारा छोटे और बड़े दोनों ही का परीक्षण हो सकता है, लेकिन सामूहिक परीक्षणों द्वारा बहुत छोट बालकों का परीक्षण नहीं हो सकता।
- व्यक्तिगत परीक्षणों में बालक से निकट का सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इस प्रकार उस बालक/बालिका के व्यक्तित्व का ज्ञान भली-भांति हो सकता है परन्तु सामूहिक परीक्षणों में ऐसा सम्भव नहीं है।
भारत में प्रयुक्त होने वाले बुद्धि परीक्षण
Intelligence Tests Used in India
भारत में प्रयुक्त होने वाले बुद्धि परीक्षण निम्न है-
1. शाब्दिक व्यक्तिगत परीक्षण (Verbal individual test)
इसके अन्तर्गत निम्न परीक्षण आते हैं-
- डॉ. कामत की आयु मापन पुनरावृत्ति बुद्धि परीक्षण (Dr. Kamat’s age scale revisions test) – यह परीक्षण मराठी और कन्नड़ भाषा के बालकों हेतु बनाया गया है।
- स्टैनफोर्ड हिन्दुस्तानी रिवीजन (Stanford hindustani revision) – इसे शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय पटना द्वारा निर्मित किया गया है।
- सी. आई.ई. बुद्धि परीक्षण (C.I.E intelligence test) – प्रो. उदयशंकर द्वारा सन् 1453 में सी. आई. ई. (Central Institution of Education) संस्थान में यह परीक्षण तैयार किया गया था।
2. शाब्दिक सामूहिक परीक्षण (Verbal group test)
इसके अन्तर्गत निम्न परीक्षण आते हैं-
- झा का सामूहिक परीक्षण (Jha’s group test) – इसका निर्माण सन् 1933 में श्री लज्जाशंकर झा ने बनारस के शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के छात्रों के लिये किया था।
- जलोटा का सामूहिक परीक्षण (Jalota’s group test) – इसका निर्माण सन् 1951 में डॉ. जलोटा द्वारा बनारस विश्वविद्यालय में किया गया, जो हिन्दी रूपान्तर में भी है।
- कुमारिया का सामूहिक परीक्षण (Kumaria’s group test) – इसका निर्माण प्रो. आर. ए. कुमारिया ने किया था।
- मनोविज्ञानशाला, इलाहाबाद (Test by bureau of psychology. Allahabad) – इसका निर्माण 11-12 वर्ष के बालकों तथा 8 से 14 वर्ष के बालकों हेतु किया गया है।
- देसाई की सामूहिक परीक्षाएँ (Desai’s group test) – इसका निर्माण गुजराती भाषा में किया गया है।
- जोशी द्वारा सामूहिक परीक्षण (Joshi’s group test) – इसका निर्माण बनारस हिन्दू वि. वि. में डॉ. एस. सी. जोशी ने किया।
3. व्यक्तिगत अशाब्दिक या भाषा रहित परीक्षण (Non-verbal individual test)
इसके अन्तर्गत निम्न परीक्षण आते हैं-
- भाटिया की कार्य-परीक्षा बैटरी (Bhatia’s battery of performance test) – इसका निर्माण डॉ. सी. एम. भाटिया द्वारा भारतीय परिस्थितियों के अनुसार किया गया है। इसमें पाँच परीक्षाएँ हैं तथा प्रत्येक की उप-परीक्षाएँ हैं। प्रत्येक उप परीक्षा के लिये समय निर्धारित है।
- अलेक्जेण्डर की पास ए लाँग परीक्षा (Alexander’s pass a long test) – इसमें आठ डिजायन सम्मिलित हैं। यह परीक्षण भेद योग्यता से सम्बन्धित है।
- चित्र निर्माण परीक्षण (Picture construction test) – इसमें पाँच तस्वीरों के टुकड़े होते हैं। इन टुकड़ों को जोड़कर चित्र बनाना होता है।
- तात्कालिक स्मृति परीक्षण (Immediate memory test) – इसमें दो परीक्षण सम्मिलित होते हैं, एक साक्षरों के लिये तथा दूसरा निरक्षरों के लिये।
- पैटर्न ड्राइंग परीक्षण (Pattern drawing test) – इसका निर्माण भी स्वयं डॉ. भाटिया ने किया था। आठ कार्डों पर बनी आकृतियों को देखकर पेन्सिल उठाये बिना आकृतियों को बनाया जाता है।
4. सामूहिक अशाब्दिक या भाषा रहित परीक्षण (Non-verbal group test)
इसके अन्तर्गत निम्न परीक्षण आते हैं-
- एम.जी. प्रेमलता कृत परीक्षण (M.G Premlata’s non-verbal group test)
- एन. त्रिवेदी कृत परीक्षण (N. Trivedi’s non-verbal group test)
- टी.आर. शर्मा कृत परीक्षण (T.R. Sharma’s non-verbal group test)
- रेविनस प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स (Raven’s prograssive matrics)
इसके अतिरिक्त और भी बुद्धि परीक्षण तैयार हो चुके हैं तथा उनका प्रयोग परिस्थितियों के अनुरूप अलग-अलग किया जाता है।
शाब्दिक एवं अशाब्दिक परीक्षणों में अन्तर
Difference between Verbal and Non-verbal Tests
दोनों प्रकार के परीक्षण का प्रकृति एवं बुद्धि स्तर के अनुरूप अन्तर निम्न रूप में स्पष्ट किया गया है-
- शाब्दिक या भाषात्मक परीक्षणों द्वारा छोटे बालकों का परीक्षण सम्भव नहीं है, लेकिन शाब्दिक या क्रिया परीक्षणों में ऐसा सम्भव है।
- शाब्दिक परीक्षणों द्वारा व्यक्ति के विभिन्न समूहों की तुलना नहीं की जा सकती, जबकि भाषा रहित (अशाब्दिक) परीक्षणों में ऐसा सम्भव नहीं है।
- शाब्दिक परीक्षणों का प्रयोग पिछड़े या मानसिक रूप से पिछड़े विद्यार्थियों हेतु सम्भव नहीं, परन्तु क्रिया परीक्षणों या भाषा रहित परीक्षणों द्वारा यह सम्भव है।
- शाब्दिक परीक्षणों द्वारा अनपढ़ व्यक्तियों और छोटे बालकों का परीक्षण सम्भव नहीं, परन्तु अशाब्दिक परीक्षणों का प्रयोग छोटे बालकों एवं अनपढ़ व्यक्तियों के लिये किया जा सकता है।
बुद्धि परीक्षणों के गुण या विशेषताएँ
Characteristics or Merits of Intelligence Tests
कोई परीक्षण कैसा है? इसका निर्णय लेने के लिये हमें विभिन्न प्रकार की कसौटियों (Criteria) का प्रयोग करना पड़ता है। यदि इन कसौटियों पर परीक्षण खरा उतरता है तो उसे उत्तम परीक्षण कहा जाता है। उत्तम मनोवैज्ञानिक परीक्षण के निम्न गुण या विशेषताएँ हैं-
1. वस्तुनिष्ठता (Objectivity)
बुद्धि परीक्षण या अन्य किसी भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण का वस्तुनिष्ठ होना अति आवश्यक है। किसी भी परीक्षण की वस्तुनिष्ठता दो बातों पर निर्भर करती है। प्रथम, उस परीक्षण में इस प्रकार के प्रश्नों को स्थान मिलना चाहिये, जो उस स्तर के विद्यार्थियों के अनुकूल हों। परीक्षण में सम्मिलित समस्त पदों (Items) के उत्तर निश्चित है। केवल एक ही सही उत्तर है। दूसरे, परीक्षण का प्रशासन एवं फलांकन वस्तुनिष्ठ ढंग से होना चाहिये। एक निश्चित कुन्जी के आधार पर अंकन किया जाता है।
2. विश्वसनीयता (Reliability)
यदि किसी परीक्षण का प्रयोग करने पर उसके परिणाम एक ही हो तो उसे विश्वसनीय परीक्षण कहेंगे। परिणाम की स्थिरता को विश्वसनीयता कहते हैं। परीक्षण में विश्वसनीयता निर्माण की विभिन्न विधियाँ होती हैं; जैसे-परीक्षण और पुनः परीक्षण (Test and retest), अर्द्ध विभाजन विधि (Split half method) तथा समानवी विधि (Parallel form method) आदि।
3. वैधता (Validity)
प्रामाणिकता या वैधता परीक्षण की प्रमुख विशेषता या गुण है, इसका अभिप्राय है कि जिस योग्यता के मापन के लिये यह परीक्षण बनाया गया है, उस योग्यता का मापन वह करता है या नहीं, इसे ही परीक्षण की सत्यता या वैधता कहते हैं। परीक्षण की वैधता या सत्यता हेतु अनेक प्रकार से परीक्षण की जाँच की जाती है; जैसे-निर्माण सम्बन्धी योग्यता (Construction validity), सामग्री सम्बन्धी योग्यता (Content validity), संगवर्ती प्रामाणिकता (Concurrent validity) तथा भविष्य निर्देशक प्रामाणिकता (Predictive validity) आदि। इसमें एक उत्तम बुद्धि परीक्षण वैध एवं सत्य होता है।
4. सर्वमान्यता (Acceptability)
उत्तम परीक्षण सर्वमान्य होना चाहिये अर्थात् वे परीक्षण समस्त व्यक्तियों तथा परिस्थितियों में सदैव किये जायें; जैसे-बिने साइमन का विदेशों में बना बुद्धि परीक्षण सर्वमान्य है।
5. प्रतिनिधित्वता (Representativeness)
बुद्धि के जिन-जिन क्षेत्रों के मापन हेतु उसकी रचना की गयी है, उनका प्रतिनिधित्व रूप से मापन करना इसकी प्रमुख विशेषता होती है।
6. मुल्यांकन में सुविधा (Easyness in evaluation)
बुद्धि परीक्षणों को मूल्यांकित करने की विधियाँ ऐसी होनी चाहिये, जो सरल हों और जिन्हें सभी व्यक्ति प्रयोग में ला सकें। मूल्यांकन की विधि सरल होनी चाहिये तभी प्राप्तांकों की व्याख्या सरलतम् बन सकेगी।
7. मितव्ययी (Economical)
वह परीक्षण उत्तम होगा, जिसमें समय एवं धन की बचत हो और मानव शक्ति की भी कम खपत हो।
8. व्यापकता (Comprehensive)
बुद्धि परीक्षण में सम्बन्धित पहलुओं के सभी प्रश्नों से सम्बन्धित प्रश्न सम्मिलित होने चाहिये। इनके सम्मिलित होने से सभी पक्षों का मापन हो सकेगा। व्यापकता से भी परीक्षण लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकेगा।
9. व्यावहारिकता तथा रोचकता (Practicable and interesting)
उत्तम परीक्षण रोचक तथा व्यावहारिक होना चाहिये। इसका अभिप्राय है कि परीक्षण में इस प्रकार की क्रिया सम्मिलित करना, जिन्हें व्यक्ति सरलता से कर सके एवं वे रुचिकर हों।
बुद्धि परीक्षणों के दोष
Demerits of Intelligence Tests
क्योंकि बुद्धि का स्वरूप भिन्न-भिन्न अवस्था में है। अत: उसके परीक्षण भी विभिन्नता लिये हुए हैं। इन विभिन्नताओं के कारण ही वे विश्वसनीय तथा प्रामाणिक नहीं होते हैं। अतः इनके दोष निम्न हैं-
1. विश्वसनीयता का अभाव (Lack of reliability)
सामान्य रूप से बुद्धि परीक्षण विश्वसनीय नहीं होते हैं। एक मूल्यांकनकर्ता के बाद दूसरे के जाँचने पर अन्तर पाया जाता है। अत: सही रूप में इनसे योग्यता का परीक्षण नहीं हो पाता।
2. व्यापकता का अभाव (Lack of comprehensive)
बुद्धि से सम्बन्धित पक्षों या पहलुओं पर विस्तृतता का अभाव है, वे सभी पक्षों का मापन नहीं कर सकते। परिणामस्वरूप इनसे उद्देश्यनिष्ठ परिणाम प्राप्त नहीं होते।
3. प्रामाणिकता का अभाव (Lack of authentication)
बुद्धि परीक्षण में बुद्धि की प्रामाणिक परीक्षाओं का सदैव अभाव रहता है। यदि परीक्षण में सत्यता एवं विश्वसनीयता नहीं होगी तो वह प्रामाणिक भी नहीं होगा।
4. मतभेद (View difference)
क्योंकि बुद्धि की परिभाषाओं में अन्तर है। अत: इसकी जटिलता के कारण बुद्धि परीक्षण निर्माण में व्यक्ति रुचि नहीं लेते।
5. यन्त्रों का अभाव (Lack of tools)
प्रयोगशाला में कभी यन्त्रों में दोष आ जाते हैं, खराब होने पर वह समय पर ठीक नहीं हो पाते। अतः प्रत्येक स्थान पर इनका प्रयोग कठिन है।
6. अनुमान का प्रदर्शन (Exhibition of guess work)
बुद्धि परीक्षण के प्रश्नों में छात्र अनुमान से उत्तर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बुद्धि का सही मापन नहीं होता। इससे परिणामों के बारे में सही भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।
इसके साथ ही अध्यापकों का बुद्धिमान बालकों के प्रति पक्षपातपूर्ण रुझान होना तथा सुस्कृति से प्रभावित होना भी स्वाभाविक है, क्योंकि पिछड़े वातावरण से अच्छे बालकों को अच्छे अंक नहीं मिल पाते।
बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता
Utility of Intelligence Tests
जैसा कि हम जानते हैं कि बुद्धि का विकास अधिकतम 16 वर्ष तक ही होता है। नवीन समस्याओं को हल करने की योग्यता एवं अपने आप को व्यवस्थित करने की योग्यता का विकास 30 वर्ष तक धीरे-धीरे होता रहता है। इसके पश्चात् बुद्धि नहीं बढ़ती, ज्ञान बढ़ता है।
ज्ञान एक अर्जित शक्ति है, परन्तु बुद्धि जन्मजात योग्यता है, जिसके द्वारा व्यक्ति किसी भी समस्या को हल करने के लिये यथा सम्भव साधनों को अपनी क्षमता के अनुसार जुटाता है तथा वातावरण के अनुकूल व्यवस्थित करता है।
इस प्रकार जीवन में सफलता पाने एवं समस्याओं का भली-भाँति हल ढूँढने के लिये बुद्धि महत्त्वपूर्ण शक्ति है। मेधावी तथा प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति शासनचलाते हैं। बुद्धि के साथ दो तत्त्व ‘प्रेरणा’ तथा ‘अनवरत अध्यवसाय’ भी जीवन में सफलता दिलाने हेतु सहायक होते हैं। यदि किसी बालक की बुद्धि-लब्धि अधिक हो तो उसकी सफलता कम बुद्धि-लब्धि वाले से अधिक होगा।
अच्छे प्रशासक, वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं इन्जीनियर वही होते हैं, जिनकी बुद्धि-लब्धि अधिक होती है, जबकि अन्य सामान्य व्यवसायों के लिये विशेष अधिक I.Q. की आवश्यकता नहीं होती।
बुद्धि परीक्षणों ने विकास के मानवीय व्यवहार को असाधारण गति प्रदान की है। इसके माध्यम से वह स्वयं को पहचान कर उपयुक्त कार्य कुशलता में प्रगति करता है, जिससे राष्ट्र एवं समाज दोनों का विकास होता है। इसके द्वारा मानव की सामान्य एवं विशिष्ट दोनों ही प्रकार की योग्यताओं का पता लगाया जाता है।
गिलफोर्ड (Guilford) के अनुसार- “बुद्धि परीक्षणों द्वारा मापी जाने वाली सामान्य तथा प्राथमिकता योग्यताएँ भिन्न हैं और उनका विकास क्रम आयु के विकास के साथ-साथ होता है। मध्य अवस्था आने पर उनका ह्रास होने लगता है। इसका अधिक से अधिक विकास 20 वर्ष की आयु तक होता है इस पर यौन भिन्नता का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अत: कछ योग्यताएँ पुरुषों में अधिक होती हैं और कुछ स्त्रियों में। दोनों में ही सामान्य योग्यता समान होती है।”
अतः शिक्षा के क्षेत्र में समान समूह एवं असमान समूह का शिक्षा के प्रबन्ध के लिये बुद्धि परीक्षणों में प्रयोग होता रहा है। इसके उपयोगों का हम निम्न आधारों का वर्णन करेंगे-
1. छात्र वर्गीकरण (Student classification)
ज्ञान की ग्रहणशीलता छात्रों की मानसिकता पर निर्भर करती है। फलस्वरूप, एक ही कक्षा-शिक्षण का निष्पादन भिन्न-भिन्न होता है। ज्ञान अर्जन बालकों की बुद्धि क्षमता पर सीधा प्रभाव डालता है। अतः छात्र वर्गीकरण में बुद्धि परीक्षाएँ उपयोगी होती हैं। वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक कक्षा में सामान्य, सामान्य से उच्च एवं सामान्य से नीचे आदि स्तरों के छात्र-छात्राएँ अध्ययनरत रहते हैं। प्रश्न उठता है कि क्या सभी बच्चों का शैक्षिक विकास उत्तम हो सकेगा? नहीं।
बुद्धि परीक्षाओं के माध्यम से शिक्षक सामान्य, सामान्य से भिन्न एवं उच्च आदि छात्रों का वर्गीकरण करके उपयुक्त शिक्षण का प्रबन्ध करेगा ताकि सभी स्तरों के छात्र-छात्राएँ पाठयक्रम को धारण करके उत्तम निष्पादन प्रस्तुत कर सकें। इस प्रकार से अध्यापकीय, छात्र एवं पाठ्यक्रम सम्बन्धी सभी समस्याएँ आसानी से समाप्त हो जाती हैं।
2. शैक्षणिक मार्ग-दर्शन (Educational guidance)
विज्ञान के साथ-साथ मनोविज्ञान ने मानवीय समस्याओं के समाधान में अपूर्व योगदान दिया है। इसके द्वारा बालकों के भविष्य निर्धारण की योजनाओं को बनाया जा रहा है। इसी प्रकार से शिक्षा के क्षेत्र में सही दिशा एवं लक्ष्य को प्राप्त करने में बुद्धि परीक्षाएँ समर्थ होती हैं। छात्र के विकास के लिये प्राथमिक एवं गौण दोनों ही प्रकार के पाठ्यक्रमों की आवश्यकता होती है।
प्राथमिक पाठ्यक्रम छात्रों को अच्छा नागरिक बनाने के लिये प्रस्तुत किया जाता है, जबकि गौण पाठ्यक्रम उनकी रुचि (Hobbies) के आधार पर निश्चित किया जाता है। बुद्धि परीक्षण के द्वारा प्रत्येक छात्र की सही उन्नति के मार्ग को प्रशस्त किया जाता है।
3. यौन भिन्नता में उपयोगिता (Useful in sex difference)
शोध कार्यों से स्पष्ट होता है कि बालक एवं बालिकाओं में बुद्धि के आधार पर ही कार्य कुशलताओं में अन्तर पाया जाता है। इनका शारीरिक एवं मानसिक विकास का क्रम भिन्न है। अतः इनमें ज्ञान अर्जन की क्षमताएँ भी भिन्न होती हैं।
स्पियरमैन के अनुसार दोनों की सामान्य एवं विशिष्ट बुद्धि में भी अन्तर पाया जाता है। इसी अन्तर को ध्यान में रखकर उनका शैक्षिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र निश्चित किया जाता है। इस प्रकार से कुछ विशेषताएँ जो दोनों में पायी जाती है, का निर्धारण भी बुद्धि परीक्षाओं के आधार पर किया जाता है।
अत: सामाजिक व्यवस्था को सामान्य बनाने के लिये यौन भिन्नता के अन्तरों को ज्ञात करके समायोजन स्थापित किया जाता है।
4. छात्र चयन में उपयोगी (Useful in student selection)
विद्यालय के क्षेत्र में जब छात्र प्रवेश कर जाता है तो उसके विकास का कार्य विद्यालय का होता है। विद्यालय प्रशासन बुद्धि परीक्षाओं का प्रयोग करके निम्न क्षेत्रों में छात्र चयन करता है-
(i) प्रवेश (Admission)
किसी भी कक्षा के लिये छात्र का प्रवेश (Admission) बालक की शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता पर निर्भर करता है। बुद्धि परीक्षाएँ कक्षा प्रवेश में सहायक होती हैं, इससे छात्र उस कक्षा में असफल नहीं होता।
(ii) छात्रवृत्ति (Scholarship)
शिक्षा के क्षेत्र में गरीब और पिछड़े वर्ग के छात्रों का समुचित विकास करना प्रशासन का उद्देश्य रहा है। इसके लिये छात्रवृत्ति, निर्धन पुस्तक सहायता योजना और पिछड़े वर्ग को व्यक्तिगत शिक्षण योजनाएँ वर्तमान सरकार के द्वारा चलायी जा रही हैं। इनमें छात्रवृत्ति का प्रारूप बुद्धि-लब्धि के ऊपर ही निर्भर करता है। अत: बुद्धि परीक्षाएँ छात्रवृत्ति के निर्णय में सहायक होती हैं।
(iii) विशिष्ट योग्यता (Specific ability)
प्रौद्योगीकरण के विकास ने योग्यता के क्षेत्र को अत्यन्त विशाल बना दिया है। आज प्रत्येक क्षेत्र में नवीन प्रतिभाओं की खोज हो रही है। प्रतिभा खोज का प्रमुख आधार बुद्धि परीक्षाओं को ही माना जा रहा है।
5. स्वयं का ज्ञान (Self understanding)
शिक्षा का उद्देश्य बालकों का सामान्य विकास करना है। बालक अपने अन्दर की क्षमताओं एवं शक्तियों को पहचान कर अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति आसानी से कर सकते हैं। अत: बद्धि परीक्षाएँ उनके व्यक्तित्व के स्वरूप को स्पष्ट करती हैं। वह अपने अन्दर से विघटित तत्त्वों को निकाल देते हैं और संकलित तत्त्वों को विकसित करता है। इस प्रकार से वह स्वयं को जानकर सन्तुष्ट हो जाता है।
6. अधिगम प्रणाली में उपयोगी (Useful in leaming process)
सीखने की प्रक्रिया बुद्धि पर निर्भर करती है। छात्र की लगन, अभ्यास प्रक्रिया, त्रुटियों का निराकरण, धारणा, प्रोत्साहन, अधिगम स्थानान्तरण आदि में बुद्धि का सबसे अधिक प्रभाव होता है। बुद्धि परीक्षणों ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रतिभाशाली बालक कम समय में अधिक अधिगम एवं ज्ञान का स्थानान्तरण करने में समर्थ होते हैं।
7. व्यावसायिक मार्ग-दर्शन (Vocational guidance)
व्यवसाय में मनोविज्ञान ने पदार्पण करके विभिन्न समस्याओं का समाधान निकाला है। विभिन्न व्यवसायों के लिये भिन्न प्रकार के मानसिक स्तर के व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। उपयुक्त मानसिक स्तर का व्यक्ति अपने व्यवसाय वो उन्नतिमय बनाने में सहायक होता है। जब गलत व्यवसाय का चुनाव कर लेते हैं तो हमारी अभिरुचि एवं कार्यक्षमता में ह्रास होने लगता है, फलस्वरूप व्यवसाय और व्यक्ति दोनों का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
8. अनुसन्धान (Research)
शिक्षा के क्षेत्र में विकास अनुसन्धानों के ऊपर निर्भर करता है। बालकों को कक्षा के अन्दर की समस्याएँ और सामान्य समस्याओं के समाधान के लिये अनुसन्धान का सहारा लेना पड़ता है। प्रत्येक अनुसन्धान के लिये बुद्धि परीक्षण आवश्यक होता है। विभिन्न घटकों का चयन करना होता है तो बुद्धि भी एक आधार होता है ताकि कम से कम त्रुटि रहे।
मानसिक विकास
⮚ बुद्धि का परिचय ⮚ बुद्धि की परिभाषाएँ ⮚ बुद्धि की प्रकृति या स्वरूप ⮚ बुद्धि एवं योग्यता ⮚ बुद्धि के प्रकार ⮚ बुद्धि के सिद्धान्त ⮚ मानसिक आयु ⮚ बुद्धि-लब्धि एवं उसका मापन ⮚ बुद्धि का विभाजन ⮚ बुद्धि का मापन ⮚ बिने के बुद्धि-लब्धि परीक्षा प्रश्न ⮚ बुद्धि परीक्षणों के प्रकार ⮚ व्यक्तिगत और सामूहिक बुद्धि परीक्षणों में अन्तर ⮚ भारत में प्रयुक्त होने वाले बुद्धि परीक्षण ⮚ शाब्दिक एवं अशाब्दिक परीक्षणों में अन्तर ⮚ बुद्धि परीक्षणों के गुण या विशेषताएँ ⮚ बुद्धि परीक्षणों के दोष ⮚ बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता।