बाल विकास के आधार एवं उनको प्रभावित करने वाले कारक
Foundations of Child Development and Factors Influence Them
- वंशानुक्रम
- वातावरण (पारिवारिक, सामाजिक, विद्यालयी एवं संचार माध्यम।
मानव विकास की प्रक्रिया में वंशानुक्रम एवं वातावरण (Heredity and Environment in Developmental Process)
विकास प्रक्रिया से तात्पर्य बालक में शनैः-शनैः उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों से है। यह परिवर्तन वंशानुक्रम और वातावरण के परिणामस्वरूप बालकों में उत्पन्न होते रहते हैं। परिवर्तन का प्रारम्भ गर्भावस्था से होता है। इसी परिवर्तन का परिणाम मानव जाति है। अतः इसी परिवर्तन को विकास की प्रक्रिया कहा जाता है।
बालक का विकास जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न प्रकार से होता रहता है। आज, मनोवैज्ञानिकों और शिक्षाशास्त्रियों ने विकास की इस दशा एवं स्थिति का अध्ययन किया और नये आयामों एवं उपादानों को स्थापित किया है। इस प्रकार से बालक का विकास सही, सन्तुलित एवं निश्चित दिशा में हो सकता है।
जैसा कि हरलॉक ने लिखा है- “विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और नवीन योग्यताएँ प्रस्फुटित होती हैं।“
Development results in new characteristics and new abilities.
स्पष्ट है कि वंशानुक्रम एवं वातावरण का बाल विकास या मानव की अभिवृद्धि और विकास में योगदान सर्वविदित है। इन दोनों का विकास प्रक्रिया में प्रभाव भी किसी से छिपा नहीं है। (पढ़ें – विस्तार से वंशानुक्रम, वातावरण और पर्यावरण के बारे में)
बालक के विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव
Influence of Heredity on Child’s Development
मनोवैज्ञानिकों ने वंशानुक्रम के प्रभाव को रोकने के लिये विभिन्न प्रयोग किये और उन्होंने यह सिद्ध किया कि छात्र का विकास वंशानुक्रम से प्रभावित होता है। हम यहाँ पर वंशानुक्रम के प्रभाव का विभिन्न क्षेत्रों में वर्णन कर रहे हैं-
1. तन्त्रिका तन्त्र की बनावट (Structure of Nervous System)
तन्त्रिका तन्त्र में प्राणी की वृद्धि, सीखना, आदतें, विचार और आकाक्षाएं आदि केन्द्रित रहते हैं। ये प्राणी की क्रियाओं को एकीकरण प्रदान करता है। तन्त्रिका तन्त्र छात्र में वंशानुक्रम से ही प्राप्त होता है।
तन्त्रिका तन्त्र से ही ज्ञानेन्द्रियाँ, पेशियाँ तथा ग्रन्थियाँ आदि प्रभावित होती रहती हैं। छात्र की प्रतिक्रियाएँ तन्त्रिका तन्त्र पर निर्भर करती हैं।
अत: हम छात्र के तन्त्रिका तन्त्र के विकास को सामान्य, पिछड़ा एवं असामान्य आदि भागों में विभाजित कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अपने परीक्षणों से यह सिद्ध कर दिया है कि छात्र का भविष्य तन्त्रिका तन्त्र की बनावट पर भी निर्भर करता है।
2. बुद्धि पर प्रभाव (Effect on Intelligence)
मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों से यह स्पष्ट कर दिया कि वंशानुक्रम के द्वारा ही छात्र में बुद्धि आती है। अत: बुद्धि को जन्मजात माना जाता है। ‘स्पियरमैन‘ ने बुद्धि में विशिष्ट एवं सामान्य तत्त्वों को वंशानुक्रम की देन माना है।
‘गोडार्ड‘ महोदय ने वंश का बुद्धि पर प्रभाव देखने के लिये ‘कालिकाक‘ नामक एक सैनिक के वंशजों का अध्ययन किया। इससे निम्न निष्कर्ष ज्ञात हुए –
कालिकाक ✕ मन्द बुद्धि स्त्री | – | कालिकाक ✕ तीव्र बुद्धि स्त्री |
---|---|---|
480 | कुल वंशज | 496 |
143 | मन्द बुद्धि | 03 |
46 | सामान्य | ✕ |
36 | अवैध सन्तान | ✕ |
32 | वेश्याएँ | ✕ |
24 | शराबी | ✕ |
08 | वेश्यालय का स्वामी | ✕ |
03 | मिर्गी रोगी | ✕ |
03 | अपराधी | ✕ |
✕ | सम्मानित स्थान | शेष |
अत: प्रो. ट्रायोन, न्यूमैन एवं कॉलसनिक आदि के समान ही उपर्युक्त निष्कर्ष प्राप्त हुए। अतः हम कह सकते हैं कि छात्र की बुद्धि वंशानुक्रम से ही निश्चित होती है।
3. मूल प्रवृत्तियों पर प्रभाव (Effect on Instincts)
मूल प्रवृत्ति व्यक्ति के व्यवहार को शक्ति प्रदान करती है। इसको हम देख नहीं सकते बल्कि व्यक्ति के व्यवहार को देखकर पता लगाते हैं कि कौन-सी मूल प्रवृत्ति जागृत होकर व्यवहार का संचालन कर रही हैं?
‘मैक्डूगल‘ ने मूल प्रवृत्तियों का पता लगाया था और इनको जानने के लिये उन्होंने प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के साथ एक संवेग को भी जोड़ दिया, जो मूल प्रवृत्ति का प्रतीक होता है।
हम संवेग को देखकर मूल प्रवृत्ति का पता लगा लेते हैं। इन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि ये भी वंश से ही प्राप्त होती हैं। कुछ प्रवृत्तियाँ एवं सहयोगी संवेग नीचे दिये जा रहे हैं-
मूल प्रवृत्ति | संवेग |
---|---|
पलायन | भय |
निवृत्ति | घृणा |
जिज्ञासा | आश्चर्य |
युयुत्सा | क्रोध |
आत्म-गौरव | सकारात्मक आत्मानुभूति |
4. स्वभाव का प्रभाव (Effect of nature)
बच्चे के स्वभाव का प्रकटीकरण उनके माता-पिता के स्वभाव के अनुकूल होता है। यदि बच्चे के माता-पिता मीठा बोलते हैं तो उसका स्वभाव भी मीठा बोलने वाला होगा। इसी प्रकार से क्रोधी एवं निर्दयी स्वभाव वाले माता-पिता के बच्चे भी निर्दयी एवं क्रोधी होते हैं।
वर्ष 1940 में ‘शैल्डन‘ महोदय ने मानवीय स्वभाव का अध्ययन किया और उसे निम्न तीन भागों में विभाजित किया-
- विसेरोटोनिया (Viscerotonia)– इस प्रकार के स्वभाव के अन्तर्गत समाज प्रिय व्यक्ति आते हैं। ये आराम पसन्द होते हैं, स्वादिष्ट भोजन में रुचि रखते हैं और बडे ही हँसमुख होते हैं।
- सोमेटोटोनिया (Somatotonia)– इस प्रकार के स्वभाव के अन्तर्गत महत्त्वाकांक्षी लोग आते हैं। ये क्रोधी, निर्दयी, ताकतवर, सम्मानप्रिय, स्वाग्राही और दृढ़ प्रतिज्ञ आदि विशेषताओं वाले होते हैं।
- सेरेब्रोटोनिया (Cerebrotonia)– इस प्रकार के स्वभाव के अन्तर्गत वे सभी व्यक्ति आते हैं, जिनमें चिन्तन शक्ति की प्रबलता होती है। ये एकान्तप्रिय होते हैं, ये अधिक नियन्त्रण पसन्द, दमित-स्वभाव, अवरुद्ध समाज से दूर एवं विचारशील व्यक्ति होते हैं।
5. शारीरिक गठन (Physical structure)
बालक का शारीरिक गठन एवं शरीर की बनावट उसके वंशजों पर निर्भर करती है। कार्ल पियरसन ने बताया है कि माता-पिता की लम्बाई, रंग एवं स्वास्थ्य आदि का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है।
वर्ष 1925 में ‘क्रेश्मर‘ महोदय ने एक अध्ययन किया और शारीरिक गठन के आधार पर सम्पूर्ण मानव जाति को निम्न तीन भागों में बाँटा है-
- पिकनिक (Picnic)– इस प्रकार का व्यक्ति शरीर से मोटा, कद में छोटा, गोल-मटोल और अधिक चर्बीयुक्त होता है। उसका सीना चौड़ा लेकिन दबा हुआ तथा पेट निकला (तोंद) हुआ होता है। चेहरा लालिमायुक्त एवं गोल होता है।
- एथलैटिक (Athletic)-इस प्रकार का व्यक्ति शारीरिक क्षमताओं के आधार से युक्त होता है, जैसे- सिपाही या बलाड़ी। इसका सीना चौड़ा, कन्धे ताकतवर एवं पैर और भुजाएँ पुष्ट माँसपेशियों से युक्त होते हैं। इसकी चाल में मस्ती एवं प्रभाव झलकता रहता है।
- ऐस्थेनिक (Asthenic)– इस प्रकार का व्यक्ति दुबला-पतला और शक्तिहीन शरीर का होता है तथा यह संकोची स्वभाव का होता है। इनकी पतली भुजाएँ और कन्धे तथा सीना दबा हुआ होता है। यह लोग किसी भी प्रकार से अन्य लोगों को प्रभावित नहीं कर पाते हैं।
6. व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव (Effect on vocational ability)
वंशानुक्रम के यन्त्र विज्ञान से यह स्पष्ट हो चुका है कि बच्चों में माता-पिता की विशेषताएँ हस्तान्तरित होती हैं। इन विशेषताओं में व्यावसायिक योग्यता की कुशलता भी सम्मिलित है।
‘कैटेल‘ ने 885 अमेरिकन वैज्ञानिकों के परिवारों का अध्ययन किया और पाया कि उनमें से 2⁄5 व्यवसायी वर्ग, 1⁄2 भाग उत्पादक वर्ग और केवल 1⁄4 भाग कृषि वर्ग के थे। अत: स्पष्ट होता है कि व्यावसायिक कुशलता वंश पर आधारित होती है।
7. सामाजिक स्थिति पर प्रभाव (Effect on social status)
सामाजिक सम्मान या प्रतिष्ठा पाना स्वयं की विशेषता नहीं होती, जो लोग वंश से अच्छा चरित्र, गुण या सामाजिक स्थिति सम्बन्धी विशेषताओं को लेकर उत्पन्न होते हैं, वे ही सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करते है।
अत: ‘विनसिप‘ का मत है कि “गुणवान एवं प्रतिष्ठित माता-पिता की सन्तान ही प्रतिष्ठा प्राप्त करती है।” विनसिप ने ‘रिचर्ड एडवर्ड‘ नामक परिवार का अध्ययन किया।
‘रिचर्ड‘ प्रतिष्ठित एवं गुणवान नागरिक था। उसके अपने समान स्तर वाली ‘एलिजाबेथ‘ नामक स्त्री से विवाह किया था। इनकी सन्तानें (वंशज) विधान सभा के सदस्य एवं महाविद्यालयों के अध्यक्ष आदि प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हुए।
उनका एक वंशज अमेरिका का उपराष्ट्रपति भी बना। अतः स्पष्ट होता है कि सामाजिक स्थिति वंशानुक्रमणीय होती है।
मानव विकास पर वातावरण का प्रभाव
Influence of Environment on Human Development
वर्तमान मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों ने यह सिद्ध कर दिया है कि वंशानुक्रम के साथ-साथ वातावरण का भी प्रभाव बालक के विकास पर पड़ता है। अत: यहाँ पर उन पक्षों पर विचार करेंगे, जो वातावरण से प्रभावित होते हैं-
1. मानसिक विकास पर प्रभाव (Influence on mental development)
बालक का मानसिक विकास सिर्फ बुद्धि से ही निश्चित नहीं होता है, उसमें बालक की ज्ञानेन्द्रियाँ, मस्तिष्क के सभी भाग, ग्राह्य एवं मानसिक प्रक्रियाएँ आदि सम्मिलित होती हैं। अत: बालक वंश से कुछ लेकर उत्पन्न होता है, उसका विकास उचित वातावरण से ही हो सकता है।
वातावरण से बालक की बौद्धिक क्षमता में तीव्रता आती है और मानसिक प्रक्रिया का सही विकास होता है। ये दोनों ही बच्चे के विकास में सहयोग देते हैं। कैण्डोल, गोर्डन एवं फ्रीमैन आदि विद्वानों ने अपने-अपने अध्ययनों से स्पष्ट किया है कि अच्छा वातावरण बच्चों के मानसिक विकास में सहयोग देता है।
‘इयोवे विश्वविद्यालय‘ में 150 बच्चों का अध्ययन किया गया। इनका पालन-पोषण 6 वर्ष तक पालनगृह में हुआ था। अतः पालनगृह की अच्छी व्यवस्था और सुन्दर वातावरण ने उनकी बुद्धि लब्धि 117 तक बढ़ा दी।
2. व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव (Influence on personality development)
व्यक्ति का गठन या विकास आन्तरिक क्षमताओं का विकास करके और नवीनताओं को ग्रहण करके किया जाता है। इन दोनों ही परिस्थितियों के लिये उपयुक्त वातावरण को उपयोगी माना गया है।
‘कूल‘ महोदय ने यूरोप के 71 साहित्यकारों का अध्ययन किया और पाया कि उनके व्यक्तित्व का विकास स्वस्थ वातावरण में पालन-पोषण के द्वारा हुआ।
3. शिक्षा पर प्रभाव (Influence on education)
बालक की शिक्षा बुद्धि, मानसिक प्रक्रिया और सुन्दर वातावरण पर निर्भर करती है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सामान्य विकास करना होता है। अत: शिक्षा के क्षेत्र में सभी बच्चों का सही विकास हो सके, यह उपयुक्त शैक्षिक वातावरण पर ही निर्भर करता है।
सामान्यत: यह पाया जाता है कि उच्च बुद्धि वाले बच्चे भी सही वातावरण के बिना उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। भारतीय मनोवैज्ञानिकों ने वर्ष 1971 में आई. ए. एस. में उत्तीर्ण छात्रों का अध्ययन किया और पाया कि 44% छात्रों ने पब्लिक स्कूलों में शिक्षा पायी थी और उनके परिवार की मासिक आय एक हजार रुपये या उससे अधिक थी। इससे स्पष्ट होता है कि अच्छा वातावरण ही उनको आई. ए. एस. पद पर आरूढ़ कराने में सक्षम हुआ।
4. सामाजिक गुणों का प्रभाव (Influence on social merits)
बालक का समाजीकरण उसके सामाजिक विकास पर निर्भर होता है। समाज का वातावरण उसे सामाजिक गुण एवं विशेषताओं को धारण करने के लिये उन्मुख करता है। न्यूमैन, फ्रीमैन एवं होलिंजगर ने 20 जोड़े बच्चों का अध्ययन किया।
इन्होनें जोड़े के एक बच्चे को गाँव में और दूसरे बच्चे को नगर में रखा। बड़े होने पर गाँव के बच्चे में अशिष्टता, चिन्ताएँ, भय, हीनता और कम बुद्धिमता सम्बन्धी आदि विशेषताएँ पायी गयी, जबकि शहर के बच्चे में शिक्षित व्यवहार, चिन्तामुक्त, भयहीन एवं निडरता और बद्धिमता सम्बन्धी आदि विशेषताएँ पायी गयीं। अत: स्पष्ट होता है कि वातावरण सामाजिक गुणों पर भी प्रभाव डालता है।
5. बालक के सर्वांगीण विकास पर प्रभाव (Influence on whole development of child)
शिक्षा का परम उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है। यह विकास तभी सम्भव हो सकता है जब उसे अच्छे वातावरण में रखा जाय। यह वातावरण ऐसा हो जिसमें बालक की वंशानुक्रमीय विशेषताओं का सही प्रकाशन हो सके।
भारत एवं विदेशों में जिन बच्चों को जंगली जानवर उठाकर ले गये और उनको मारने के स्थान पर उन्होंने उनका पालन-पोषण किया। कुछ समय पश्चात् वे पकड़े गये। उनका सम्पूर्ण व्यवहार जानवरों जैसा था, बाद में उनको मानव वातावरण देकर सुधार लिया गया।
अतः स्पष्ट होता है कि वातावरण ही बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। जैसा कि स्टीफैन्स ने लिखा है- “एक बालक जितना अधिक समय उत्तम वातावरण में रहता है, वह उतना ही अधिक इस वातावरण की ओर उन्मुख रखता है।“
वंशानुक्रम एवं वातावरण का महत्त्व
Importance of Heredity and Environment
बालक का विकास एवं वृद्धि उसके वंशानुक्रम तथा पर्यावरणीय स्थिति पर निर्भर करती है। अत: प्रश्न उठता है कि क्या वंशानुक्रमणीय विशेषताएँ ही बालक के विकास के लिये उत्तरदायी हैं? क्या वातावरण ही अकेला बालक का विकास कर सकता है? या वंशानुक्रम और वातावरण दोनों के सहयोग से बालक का विकास होता है।
निष्कर्षों के आधार पर बालक का विकास वंशानुक्रम और वातावरण दोनों के परस्पर सहयोग से होता है, यह सिद्ध हो चुका है। अत: हम यहाँ पर दोनों के सम्मिलित प्रभावों का अध्ययन करेंगे-
1. अपृथकता (Inseparability)
बालक के विकास में वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का योग रहता है। हम दोनों के प्रभावों को अलग-अलग मापना चाहें तो सम्भव न हो सकेगा। वंशानुक्रमणीय विशेषताएँ आठ पीढ़ियों से सम्बन्ध रखती हैं और वातावरण बहुत ही विस्तृत होता है।
अत: दोनों के प्रभावों को प्रदान नहीं किया जा सकता है। जैसा कि मेकाइवर एवं पेज महोदय का भी मत है- “जीवन की प्रत्येक घटना दोनों का परिणाम होती है। इनमें से एक के परिणाम के लिये उतना ही आवश्यक है जितना दूसरा। कोई न तो कभी हटाया ही जा सकता है और न ही कभी पृथक् किया जा सकता है।“
Every phenomenon of life is the product of both. Each is so necessary to the result as the other. Neither can ever be eliminated and milter can ever be isolated.
2. पूरकता (Complementary)
वंशानुक्रम एवं वातावरण के सम्बन्ध पर यदि गहन दृष्टि डाली जाय तो स्पष्ट होता है कि दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। बालक जन्म से जिन विशेषताओं को लेकर उत्पन्न होता है, उनका विकास वातावरण के द्वारा ही हो पाता है।
अत: दोनों ही एक-दूसरे को सहायता देते रहते हैं ताकि बालक का सामान्य विकास हो सके। इसीलिये आज उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रत्येक बच्चे को उपलब्ध कराया जा रहा है।
इसी प्रकार के विचार को गैरट ने भी प्रकट किया है- “इससे और अधिक निश्चित कोई बात नहीं हो सकती है कि वंशानुक्रम और वातावरण परस्पर सहयोगी प्रभाव हैं और दोनों ही सफलता के लिये अनिवार्य हैं।“
Nothing is more certain than that heredity and environment are co-acting influences and the both are achievement.
3. स्वतन्त्र इच्छा शक्ति (Free will power)
बालक के विकास पर व्यक्तिवादी और समाजवादी आदि दृष्टिकोण का प्रभाव पड़ता है। व्यक्तिवादियों का मत है कि बालक का विकास ‘स्वतन्त्र इच्छा शक्ति‘ पर अधिक निर्भर करता है और यह शक्ति वंशानुक्रम एवं पर्यावरण पर निर्भर रहती है। अत: बच्चों में शिक्षा के द्वारा इच्छा शक्ति का विकास करना चाहिये।
प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री टी. पी. नन ने लिखा है- “मौलिक सत्य तो यह है कि बालक ही उस रचना-शक्ति का केन्द्र है जो वंशानुक्रम एवं वातावरण को आत्म-प्रकाशन का एक माध्यम बनाता है। प्रकृति एवं शिक्षा से जो कुछ भी बालक प्राप्त करता है उसका व्यक्तित्व इन्हीं से निर्मित नहीं हो जाता बल्कि ये दोनों ही स्वतन्त्र इच्छा शक्ति के आधार हैं और यह स्वतन्त्र इच्छा शक्ति स्वयं सिद्ध वस्तु हैं।“
बालक के उचित विकास के लिए ध्यान देने योग्य बातें
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि बालक के विकास पर दोनों का सम्मिलित प्रभाव पड़ता है। अतः शिक्षा देते समय शिक्षक को निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
- प्रत्येक माता-पिता का यह कर्त्तव्य है कि वे वंशानुक्रम के प्रभाव से परिचित हों और स्वस्थ एवं अच्छे बच्चों को जन्म दें।
- मानव समाज सम्पन्न वातावरण को तैयार करे ताकि सभी बच्चों की क्षमताओं का उत्तम विकास हो सके।
- शिक्षक बालकों को पहचानें और उनके विकास के लिये सही वातावरण तैयार करें।
- मानव समाज को विकारग्रस्त बच्चों के लिये विशेष प्रकार का प्रबन्ध करना चाहिये ताकि उनमें निम्नता की भावना ग्रन्थि विकसित न हो सके।
- शिक्षक को वंश से प्राप्त शक्तियों का सामाजिक मानदण्डों के अनुसार विकास करने के लिये रचनात्मक कार्य करने चाहिये।
- वंशानुक्रमणीय विशेषताओं में पविर्तन सम्भव नहीं। अतः सुन्दर वातावरण देकर बच्चों को सही दिशा दी जा सकती है; जैसा कि रूथवैनेडिक्ट, सोरेन्सन तथा वुडवर्थ आदि का मत है।
- शिक्षक की भूमिका सबसे अधिक प्रमुख होती है। बच्चों का विकास शिक्षक पर निर्भर करता है। जैसा कि सोरेन्सन ने लिखा है- “वंशानुक्रम एवं वातावरण का मानव विकास पर प्रभाव और उसका सापेक्षिक सम्बन्ध का ज्ञान शिक्षक के लिये विशेष महत्त्व रखता है।“
विद्यालय का बाल विकास में सहयोग
Co-operation of School in Child Development
बाल विकास की प्रक्रिया में विद्यालय का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। परिवार के बाद बालक विद्यालय के वातावरण में पहुँचता है। विद्यालय में वह शिक्षक को अपना आदर्श मानकर नवीन गतिविधियों को आत्मसात् करता है।
विद्यालय के स्वस्थ वातावरण से बालक स्वस्थ परम्पराओं को सीखता है। इसके विपरीत यदि विद्यालय का वातावरण अच्छा नहीं होगा तो बालकों का विकास भी उचित नहीं होगा।
अत: बाल विकास में विद्यालय का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहता है। बाल विकास में विद्यालय के सहयोग को निम्न रूप में स्पष्ट किया जाता है-
1. शारीरिक विकास में सहयोग (Cooperation in physical development)
विद्यालय में बालकों के आयु वर्ग के अनुरूप खेल एवं शारीरिक गतिविधियों की व्यवस्था की जाती है, जिससे बालकों का शारीरिक विकास सम्भव होता है। विद्यालय में प्रचलित खेलों में यह ध्यान रखा जाय कि बालकों के सम्पूर्ण अंग क्रियाशील रहे तथा बालकों का सन्तुलित शारीरिक विकास सम्भव हो सके। विद्यालय में प्रतिदिन की पी. टी. भी इस कार्य में पूर्ण सहयोग प्रदान करती है।
2. मानसिक विकास में सहयोग (Co-operation in mental development)
बालकों के मानसिक विकास में विद्यालय का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। बालकों को अनेक कार्ड देकर जिनमें कि अक्षर लिखे हों शब्द निर्माण करने के लिये दिये जायें। बालकों को कहानी सुनाने के लिये कहा जाय। बालकों से छोटी-छोटी पंक्तियों के आधार पर कहानी बनाने के लिये कहा जाय। विद्यालय में इस प्रकार की गतिविधियाँ बालकों के मानसिक विकास में सहयोग करती हैं।
3. संवेगात्मक विकास में सहयोग (Co-operation in emotional development)
विद्यालय में शिक्षकों द्वारा इस प्रकार की गतिविधियों का आयोजन करना चाहिये, जिससे कि बालकों में अपने संवेगात्मक विकास के साथ-साथ स्थिरता को जन्म मिले। विद्यालय में विभिन्न प्रकार के खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में बालकों को भाग लेने का अवसर दिया जाय, जिससे कि परिस्थिति विशेष में अपने संवेगों को प्रकट कर सकें तथा उन पर आवश्यकता के अनुसार नियन्त्रण कर सकें।
4. भाषा विकास में सहयोग (Co-operation in language development)
विद्यालय में इस प्रकार की गतिविधियों का आयोजन करना चाहिये, जिससे छात्र शुद्ध भाषा का उच्चारण एवं लेखन कर सकें। जैसे- वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन, बाल सभा का आयोजन, कहानी लेखन प्रतियोगिता एवं विचार व्यक्त करना आदि। इन सभी कार्यक्रमों से बालकों का भाषायी विकास होता है।
5. सामाजिक विकास में सहयोग (Co-operation in social development)
विद्यालय में सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से बालक उनमें भाग लेकर सामाजिक गतिविधियों से परिचित होता है। समाज में अपने से छोटे व्यक्तियों के प्रति किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये तथा बड़े व्यक्तियों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये? इसके अतिरिक्त विद्यालय द्वारा बालकों के सामाजिक व्यवहार को भी परिमार्जित किया जाता है।
6. चारित्रिक विकास में सहयोग (Co-operation in character development)
विद्यालय द्वारा बालक में चारित्रिक गुणों का विकास किया जाता है। विद्यालय में शिक्षक का समानता से युक्त व्यवहार सद्आचरण एवं सत्य सम्भावना आदि के द्वारा बालों में चारित्रिक विकास की सम्भावना को प्रबल बनाया जाता है क्योंकि बालक शिक्षक को आदर्श मानकर अनुकरण करता है।
7. सृजनात्मकता के विकास में सहयोग (Co-operation in development of creativity)
विद्यालय में बालकों को विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं खिलौनों के निर्माण करने के लिये कहा जाता है। कार्यानुभव विषय में छात्रों को विभिन्न प्रकार की उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करने की शिक्षा प्रदान की जाती है। इससे व्यर्थ के पदार्थ भी उपयोग में आ जाते हैं। अत: विद्यालय का सृजनात्मक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
8. शैक्षिक विकास में सहयोग (Co-operation in educational development)
विद्यालय में बालकों के मानसिक एवं आयु स्तर के अनुसार शिक्षकों द्वारा शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार की शिक्षण विधियों के प्रयोग से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सरल एवं प्रभावी बन जाती है, जिससे बालकों का श्रेष्ठ शैक्षिक विकास सम्भव होता है।
9. मूल्यों के विकास में सहयोग (Co-operation in-development of values)
मूल्यों के विकास में भी विद्यालय का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। विद्यालय में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के आयोजन से प्रेम, सहयोग, परोपकार एवं श्रम निष्ठा आदि मूल्यों का विकास होता है। पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के माध्यम से मूल्यों का विकास सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
10. सौन्दर्यानुभूति का विकास (Development of aesthetic feeling)
विद्यालय में अनेक प्रकार की पद्य, गद्य, कहानी एवं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के माध्यम से उनमें केन्द्रीय भाषा ग्रहण करने की योग्यता बालकों में विकसित की जाती है। बालक गद्य एवं पद्य को उसके माप के अनुरूप ग्रहण करता है। अतः सौन्दर्य की अनुभूति करता है।
11. श्रम की महत्ता का विकास (Development of importance of work)
बालकों में श्रम के प्रति विकास विद्यालय के द्वारा ही उत्पन्न किया जाता है। इसके लिये अध्यापक साथ मिलकर विद्यालय में सफाई के कार्यों में बालकों के साथ भाग लेते हैं।
बाल विकास पर समुदाय तथा आस-पड़ोस का प्रभाव
Effect of Community and Neighborhood on Child Development
बालक अपने परिवार से निकलकर अपने समीप के समुदाय में विचरण करता है। प्राय: व्यक्ति जिस स्थान पर निवास करता है। उस समुदाय के द्वारा बाल विकास को पूर्णत: प्रभावित किया जाता है। बाल विकास के अनेक पक्ष ऐसे हैं, जो कि समुदाय द्वारा प्रभावित होते हैं क्योंकि बालकों में अनुकरण की आदत पायी जाती है। इसलिये समुदाय के व्यक्तियों में जिस प्रकार की आदतें होंगी उसका प्रत्यक्ष प्रभाव बालकों पर अवश्य पड़ता है।
बाल विकास पर समुदाय के पड़ने वाले प्रभावों को निम्न रूप में स्पष्ट किया जा सकता-
1. शारीरिक विकास पर प्रभाव (Effect on physical development)
जिस समुदाय में शारीरिक विकास को महत्व देने वाले व्यक्ति निवास करते होंगे उस समुदाय में बालकों का शारीरिक विकास तीव्र गति से होगा तथा उनका स्वास्थ्य भी उत्तम होगा क्योंकि बालक समुदाय में रहने वाले व्यक्तियों से अनेक प्रकार के व्यायाम सीखेंगे। इस प्रकार समुदाय की सोच का प्रत्यक्ष प्रभाव शारीरिक विकास पर पड़ेगा।
2. मानसिक विकास पर प्रभाव (Effect on mental development)
जिस समुदाय में बौद्धिक क्षमता से युक्त कार्यक्रमों को आयोजित किया जाता है, उस समुदाय के बालकों में चिन्तन एवं तर्क शक्ति का विकास होता है, जिस समुदाय में वाद-विवाद कार्यक्रम सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं विज्ञान विषयों से सम्बन्धित कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं उस समुदाय के बालकों का मानसिक विकास तीव्र गति से होता है।
इसके विपरीत जिस समुदाय के व्यक्तियों को तर्क, चिन्तन एवं ज्ञान सम्बन्धी कार्यक्रमों में कोई रुचि नहीं होती है। उस समुदाय में बालक का मानसिक विकास तीव्र गति से नहीं होगा।
3. संवेगात्मक विकास पर प्रभाव (Effect on emotional development)
संवेगात्मक विकास एवं संवेगात्मक स्थिरता में समुदाय का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है, जब बालक समुदाय में आये दिन विवाद एवं कलह देखता है, व्यक्तियों को क्रोधित एवं चिन्तित अवस्था में देखता है तो उसका प्रभाव बालक के संवेगों पर पड़ता है।
इसलिये जिस समुदाय के व्यक्तियों में संवेगों का सन्तुलित स्वरूप दृष्टिगोचर होता है तो उस समुदाय के बालकों का संवेगात्मक विकास सन्तुलित होगा। इसके विपरीत अवस्था में बालकों में संवेगों का विकास असन्तुलित होगा।
4. भाषायी विकास पर प्रभाव (Effect on linguistic development)
समुदायगत भाषायी दोषों का प्रभाव बालकों के भाषायी विकास पर स्पष्ट रूप से पड़ता है। राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्रों में क को कै तथा ख को खै बोलना समुदाय के प्रभाव को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जो बालकों के भाषायी विकास पर समुदाय के प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं।
जिस समुदाय में भाषागत शुद्धता एवं स्पष्ट उच्चारण को ध्यान में रखा जाता है, उसके बालक भी शुद्ध उच्चारण एवं स्पष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं।
5. सामाजिक विकास पर प्रभाव (Effect on social development)
जिस समुदाय में व्यक्ति सामाजिक गुणों से युक्त होते हैं तथा प्रेम एवं सहयोग की भावना परस्पर व्यवहार करते हैं उस समुदाय में बालक सामाजिक विकास आदर्श रूप में होता है। बालकों में सामाजिक गुण विकसित होते हैं। बालकों द्वारा परस्पर सहयोग की भावना से कार्य किया जाता है। इसके विपरीत स्थिति में सामाजिक विकास श्रेष्ठ नहीं माना जा सकता है।
6. चारित्रिक विकास पर प्रभाव (Effect on character development)
समुदाय की गतिविधियों का बालक के चरित्र पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। समुदाय के व्यक्ति यदि चारित्रिक गुणों से युक्त होंगे तो बालक भी चरित्रवान एवं मानवीय गुणों से युक्त होंगे। प्राय: चोर एवं शराब पीने वाले समुदाय में बालक चोरी एवं शराब पीना सीख जाते हैं क्योंकि उस समुदाय का प्रभाव उन पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। अतः समदाय चारित्रिक विकास को निर्धारित करता है।
7. सृजनात्मकता पर प्रभाव (Effect on creativity)
जिस समुदाय में सृजन सम्बन्धी व्यवसाय को अपनाने वाले व्यक्तियों का बाहुल्य होगा, उस समुदाय में बालकों की सृजनात्मकता का विकास तीव्र गति से होता है। चित्रकार एवं हस्त कौशल से युक्त समुदाय के बालक प्राय: चित्र बनाने में एवं अन्य वस्तुओं के सृजन में शीघ्र कुशल हो जाते हैं क्योंकि अधिकांश समय बालक जिस कार्य को देखता है उसको सीखने में कम समय लगता है।
8. शैक्षिक विकास पर प्रभाव (Effect on educational development)
जिस समुदाय में व्यक्ति शिक्षित होते हैं तथा शिक्षा के महत्त्व को समझते हैं उस समुदाय में शिक्षा की स्थिति सुदृढ़ होती है। इसका प्रभाव बालकों पर भी पड़ता है। इस प्रकार के समुदाय में बालकों का शैक्षिक विकास तीव्र गति से होता है। इसके विपरीत अशिक्षित समुदाय में शिक्षा के महत्त्व को व्यक्ति नहीं समझते हैं तथा बालकों की शिक्षा पर भी ध्यान नहीं देते हैं। इस स्थिति में बालकों का शैक्षिक विकास उचित नहीं होता है।
9. मूल्यों के विकास पर प्रभाव (Effect on development of values)
जिस समुदाय में व्यक्ति आदर्शवादी मूल्यों से युक्त होंगे उस समुदाय के बालकों में भी आदर्शवादी एवं समाजोपयोगी मूल्यों का विकास होगा। जिस समाज में स्वार्थपरक मूल्यों का प्रभाव होगा। उस समाज के बालक स्वार्थी प्रवृत्ति के होंगे तथा उनके व्यवहार में छल एवं कपट की भावना निहित होती है। इस प्रकार बालकों के मूल्य विकास पर समुदायगत मूल्यों का पूर्ण प्रभाव पड़ता है।
10. दक्षताओं के विकास पर प्रभाव (Effect on development of competencies)
समुदाय का प्रभाव बालक की दक्षताओं पर विशेष रूप से पड़ता है। समुदाय में रहने वाले व्यक्तियों में नेतृत्व, समूह शक्ति, त्याग एवं कार्यकुशलता आदि दक्षताएँ होती हैं। उस समुदाय के बालकों का विकास अनेक दक्षताओं से युक्त होता है क्योंकि बालकों में अनुकरण की प्रवृत्ति पायी जाती है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि समुदाय की विशेषताएँ एवं समुदाय के व्यक्तियों की आदतें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से बालकों के विकास को प्रभावित करती हैं। बालकों के विकास का प्रत्येक पक्ष समुदायगत गुण एवं दोषों से प्रभावित होता है।
परिवार का बाल विकास पर प्रभाव
Effect of Family on Child Development
बालक जन्म के तीन-चार वर्ष परिवार में व्यतीत करने के बाद सामाजिक एवं विद्यालयी परिवेश में पहुँचता है। बाल विकास की प्रथम सीढ़ी परिवार में ही विकसित एवं पल्लवित होती है। परिवार के संस्कार एवं गतिविधियाँ बालक के कोमल मन पर अंकित हो जाती हैं। इन्हीं विचारों एवं तथ्यों पर वह अपने विकास का भव्य महल खड़ा करता है। परिवार का वातावरण बाल विकास के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित करता है।
परिवार के बाल विकास पर प्रभाव को निम्न रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
1. शारीरिक विकास पर परिवार का प्रभाव (Effect of family of physical development)
जिन परिवारों में रहन-सहन का स्तर उच्च होता है। स्वाभाविक रूप से उन परिवारों में बालकों को पौष्टिक आहार प्राप्त होता है। सन्तुलित भोजन में वे सभी आवश्यक तत्त्व होते हैं, जोकि एक बालक विकास के लिये आवश्यक समझे जाते हैं।
इसके अतिरिक्त जिन परिवार में सुबह घूमना एवं स्वच्छता के साथ कार्य सम्पन्न करना आदि को महत्त्व प्रदान किया जाता है, उन बालकों का स्वास्थ्य उच्च स्तर का होता है अर्थात् बालकों के शारीरिक विकास की निर्भरता परिवार की पृष्ठभूमि पर निर्भर करती है।
2. मानसिक विकास पर प्रभाव (Effect on mental development)
पारिवारिक पृष्ठभूमि का बालक के मानसिक विकास पर भी प्रभाव पड़ता है, जिन परिवारों में व्यक्तियों की सोच श्रेष्ठ होती है तथा बालकों को पोषक तत्त्वों से युक्त भोजन प्रदान किया जाता है। बालकों के उचित आहार एवं विश्राम का ध्यान रखा जाता है। उन परिवारों में बालकों का मानसिक विकास उच्च स्तरीय होता है। इसके विपरीत स्थिति में बालकों का मानसिक विकास सन्तुलित रूप में नहीं होता है।
3. संवेगात्मक विकास पर प्रभाव (Effect on emotional development)
जिन परिवारों में माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों में संवेगात्मक स्थिरता पायी जाती है तथा वे अपने संवेगों पर आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार नियन्त्रण भी कर सकते हैं। उन परिवारों के बालकों का संवेगात्मक विकास सन्तुलित होता है क्योंकि बालकों में अनुकरण की प्रवृत्ति पायी जाती है। इस प्रवृत्ति के अनुरूप ही बालक संवेगात्मक स्थिरता एवं आत्म नियन्त्रण आदि तथ्यों को सीखता है।
4. भाषा विकास पर प्रभाव (Effect on language development)
भाषा विकास पर भी परिवार का पूर्ण प्रभाव पड़ता है। बालकों की भाषा का विकास उनके परिवार में बोली जाने वाली भाषा एवं शुद्धता के ऊपर निर्भर करता है। जो परिवार अशुद्ध उच्चारण करते हैं तथा अपभ्रंश भाषा बोलते हैं, उन परिवारों में बालकों का भाषायी विकास उचित रूप में विकसित नहीं होता है। इसलिये परिवार के भाषायी विकास का बालकों के भाषायी विकास पर पूर्णरूप से प्रभाव पड़ता है।
5. सामाजिक विकास पर प्रभाव (Effect on social development)
सामाजिक विकास पर भी परिवार का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है, जब परिवार के सदस्यों को बालक सामाजिक गतिविधियों में भाग लेते हुए देखता है तो वह भी सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने की इच्छा रखता है। इसके लिये वह परिवारीजनों के साथ सामाजिक क्रियाकलापों को सम्पन्न करता है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक कार्यों को सम्पन्न करने वाले परिवारों में बालकों का सामाजिक विकास तीव्र एवं उच्च स्तरीय होता है। इसके विपरीत स्थिति में सामाजिक विकास तीव्र गति से नहीं होता है।
6. चारित्रिक विकास पर प्रभाव (Effect on character development)
परिवार के सदस्य उच्च चरित्र वाले हैं तथा उनमें पूर्ण चारित्रिक गुण पाये जाते हैं तो परिवार का यह प्रभाव बालकों पर अवश्य पड़ता है। ऐसे परिवार के बालक भी पूर्णतः गुणयुक्त होंगे तो उनमें चरित्रहीनता उत्पन्न नहीं होगी। इसके विपरीत परिवार के सदस्य चरित्रहीन होंगे तो बालकों के चारित्रिक गुण विकसित नहीं होंगे।
7. सृजनात्मक विकास पर प्रभाव (Effect on creative development)
सृजनात्मक विकास पर भी पारिवारिक पृष्ठभूमि का प्रभाव पड़ता है। जिन परिवारों का शैक्षिक स्तर उच्च होता है तथा उनका किसी सुजनात्मक कार्य से सम्बन्ध होता है। उन परिवारों के बालकों की सृजन शक्ति तीव्र गति से विकसित होती है।
उदाहरणार्थ खिलौने बनाने वाले के परिवार में विभिन्न प्रकार की मूर्तियों की रचना करना बालक स्वतः ही सीख जाते हैं तथा इंजीनियरों के बालक भी अपने पैत्रक व्यवसाय की ओर ही उन्मुख होते हैं।
8. शैक्षिक विकास पर प्रभाव (Effect on educational development)
जिन परिवारों में शिक्षा का स्तर उच्च होता है, उन परिवारों में शिक्षा को महत्त्व प्रदान किया जाता है। बालक को अध्ययन की विशेष सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बालकों का शैक्षिक विकास तीव्र गति से होता है। इसके विपरीत जिन परिवारों में बालकों के लिये शैक्षिक वातावरण उपलब्ध नहीं होता है, वहाँ बालकों का शैक्षिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
9. मूल्यों के विकास पर प्रभाव (Effect on development of values)
जिन परिवारों का वातावरण नैतिक मूल्य, मानवीय मूल्य एवं सामाजिक मूल्यों से युक्त होता है। उन परिवारों के बालक भी मूल्यों के सन्दर्भ में समृद्ध होते हैं। जिस प्रकार के मूल्य परिवार के सदस्यों में पाये जायेंगे उसका प्रभाव बाल विकास में भी दृष्टिगोचर होगा। अत: परिवार की मूल्य विकास में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
10. दक्षता के विकास पर प्रभाव (Effect on competency development)
जिन परिवारों में विभिन्न प्रकार के कौशलों से युक्त कार्य किये जाते हैं, उन परिवारों के बालको में दक्षताओं का विकास तीव्रता से होता है; जैसे- लेखक के परिवार में बालकों का कहानी लेखन एवं पत्र लेखन आदि में दक्षता प्राप्त करना तथा मूर्तिकार के परिवार में बालकों का मूर्ति निर्माण की दक्षता प्राप्त करना आदि।
इससे यह स्पष्ट होता है कि दक्षताओं के विकास में भी परिवार का योगदान होता है।
जन संचार माध्यमों का बालकों के विकास पर प्रभाव
Effect of Mass Media on Development of Children
वर्तमान समय में जन संचार माध्यमों का प्रभाव भी बाल विकास पर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। दूरदर्शन का प्रभाव तो बालकों पर तीन या चार वर्ष की आयु से पड़ने लगता है। टेपरिकॉर्डर, रेडियो एवं चलचित्र आदि का प्रभाव बहुत पहले से ही पड़ने लगता है।
समाचार-पत्र, टेलीफोन, पत्रिका एवं पुस्तकों का प्रभाव विद्यालय में प्रवेश तथा अध्ययन करने के पश्चात् पड़ता है क्योंकि इन साधनों के लिये शैक्षिक ज्ञान की आवश्यकता होती है। जब बालक पढ़ना सीख जाता है तब इन संचार साधनों से प्रमाणित होता है।
इस प्रकार बाल विकास में संचार साधनों की भूमिका को वर्तमान समय में पूर्णरूप से स्वीकार किया गया है।
बालकों के विकास में संचार साधनों की भूमिका को निम्न शीषर्कों के द्वारा समझा जा सकता है-
1. शारीरिक विकास संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on physical development)
वर्तमान समय में संचार साधनों के माध्यम से बालकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त होती हैं, जिनके माध्यम से बालक अपने शारीरिक विकास को सन्तुलित रूप प्रदान कर सकते हैं।
जैसे- दूरदर्शन पर योग सम्बन्धी कार्यक्रमों एवं आसनों के माध्यम से बालक अपनी शरीर सम्बन्धी विकृतियों को दूर कर सकते हैं तथा शरीर का सन्तुलित विकास कर सकते हैं।
इसी प्रकार अनेक संचार माध्यमों से ज्ञान प्राप्त करके शारीरिक विकास को नवीन दिशा प्रदान कर सकते हैं।
2. मानसिक विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on mental development)
मानसिक विकास में भी संचार साधनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। संचार साधनों के द्वारा बालक नवीन तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करते हैं, जिनसे उनमें तर्क एवं चिन्तन का विकास होता है। दूरदर्शन के माध्यम से बालक नवीन घटनाओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
जैसे डिसकवरी चैनल द्वारा बालकों की तर्क एवं चिन्तन शक्ति का महत्त्वपूर्ण विकास सम्भव हुआ है। इस प्रकार के अनेक कार्यक्रम हैं, जो कि इण्टरनेट एवं विभिन्न वेबसाइटों के माध्यम से देखे जा सकते हैं।
इस प्रकार के बालकों का सन्तुलित मानसिक विकास होता है।
3. संवेगात्मक विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on emotional development)
संचार साधनों के माध्यम से छात्र विभिन्न प्रकार के नाटक, कहानी एवं कविताओं को आत्मसात करता है। उनमें संवेगों की स्थिरता एवं संवेगों पर नियन्त्रण करते हुए अन्य पात्रों को सुनता और देखता है। इसके सुखद एवं अच्छे परिणामों से परिचित होता है। इस प्रकार वह संवेगों पर नियन्त्रण एवं संवेगात्मक स्थिरता को सीखता है।
इन सभी संचार साधनों से उसमें विभिन्न प्रकार के संवेग क्रोध, प्रेम एवं भय आदि का सन्तुलित विकास होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि बालकों के सन्तुलित संवेगात्मक विकास में संचार साधनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
4. भाषायी विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on linguistic development)
बालकों के भाषायी विकास भी पर संचार साधनों का विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि भाषायी विकास में श्रवण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। संचार साधनों में कुछ साधन ऐसे हैं, जो शृव्य-दृश्य हैं; जैसे-दूरदर्शन, चलचित्र एवं वीडियो आदि।
इस प्रकार के साधन बालकों के भाषायी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं क्योंकि इसमें बालक किसी भाषा के शब्दों के उच्चारण की प्रक्रिया एवं बोलने वाले के हावभाव को समझ सकता है।
इसी प्रकार सुनने वाले तथा देखने वाले संचार साधनों के माध्यम से भी भाषायी विकास प्रभावित होता है। जिस देश के संचार साधन उन्नतिशील होते हैं, वहाँ पर भाषायी विकास भी उच्च स्तरीय होता है।
5. सामाजिक विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on social development)
जन संचार माध्यमों में सामाजिक एवं सांस्कृतिक सामग्रियों का प्रचार-प्रसार किया जाता है। इस प्रचार से बाल विकास भी प्रभावित होता है। इससे बालकों में सामाजिक गुणों का विकास होता है, प्रायः बालकों द्वारा टेलीविजन देखते समय अनेक नाटक एवं फिल्म देखे जाते हैं। जिनमें हमारे सामाजिक एवं सांस्कृतिक भाव छिपे होते हैं। इन भावों को छात्र ग्रहण करता है तथा अपने व्यवहार में प्रदर्शित करता है।
इसी क्रम में पत्रिका, रेडियो, टेपरिकॉर्डर एवं समाचार-पत्रों के माध्यम से छात्रों में सामाजिक विकास की तीव्रता पायी जाती है। इससे यह सिद्ध होता है कि संचार माध्यम सामाजिक विकास को प्रभावित करते हैं।
6. चारित्रिक विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on character development)
संचार साधनों में अनेक साधन ऐसे होते हैं, जिनके द्वारा चारित्रिक विकास सम्भव होता है; जैसे समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में अनेक कहानियाँ एवं लघु कथा निकलती हैं, जिन्हें पढ़कर या सुनकर बालक अपने अन्दर प्रेम, सहयोग एवं परोपकार आदि चारित्रिक गुणों को समाहित करते हैं।
टेलीविजन पर नाटक एवं फिल्म देखकर स्वयं उन गुणों को अपने व्यवहार में प्रदर्शित करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि चारित्रिक विकास पर संचार साधनों का प्रभाव पड़ता है।
7. सृजनात्मक विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on creative development)
संचार साधन बालक के सृजनात्मक विकास में भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। दूरदर्शन पर ज्ञान दर्शन के माध्यम से शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। उनमें विभिन्न आकृतियों के निर्माण तथा विज्ञान सम्बन्धी प्रयोगों का प्रसारण होता है।
इन कार्यक्रमों को देखकर बालकों में सृजनात्मकता का विकास होता है। संचार के अन्य साधन समाचार-पत्र पत्रिका इण्टरनेट एवं कम्प्यूटर आदि भी सृजनात्मकता का विकास करते हैं।
8. शैक्षिक विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on educational development)
कम्प्यूटर एवं इण्टरनेट के माध्यम से हम संसार के किसी भी देश के शैक्षिक कार्यक्रमों को देख सकते हैं। जिनके द्वारा बालक अपनी रुचि एवं इच्छा के अनुसार शैक्षिक गतिविधियों का निरीक्षण कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त पत्रिकाओं एवं रेडियो पर भी अनेक शैक्षिक कार्यक्रम आते हैं। दूरदर्शन पर भी विज्ञान एवं गणित से सम्बन्धित शैक्षिक कार्यक्रम आते हैं। इन सभी से बालकों का शैक्षिक विकास तीव्रगति से होता है तथा बालकों का अधिगम स्तर उच्च होता है।
9. मूल्यों के विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on development of values)
संचार साधनों के द्वारा जीवन मूल्य, सामाजिक मूल्य, नैतिक मूल्य एवं मानवीय मूल्यों को अनेक प्रकार की कथाओं एवं नाटकों के माध्यम से विकसित किया जाता है। इन नाटकों को देखकर छात्र अपने विवेक द्वारा उक्त गुणों को अपने अन्तर्गत समाहित करते हैं।
समाचार-पत्रों में भी विभिन्न शीर्षकों के माध्यम से मूल्यों को विकसित करने वाली लघु कथाएँ प्रकाशित होती हैं; जैसे- धर्मक्षेत्र, परोपकारी बालक एवं परिश्रम का फल आदि। इस प्रकार संचार साधन मूल्य विकास को भी प्रभावित करते हैं।
10. दक्षताओं के विकास पर संचार साधनों का प्रभाव (Effect of mass media on development of competencies)
कम्प्यूटर एवं इण्टरनेट के माध्यम से छात्र अनेक प्रकार के खेलकूद एवं पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकता है। दूरदर्शन पर, टेन स्पोर्ट चैनल तथा अन्य पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं से सम्बन्धित चैनलों को देखकर बालक विभिन्न क्षेत्रों में दक्षताओं को प्राप्त कर सकता है।
छात्र कम्प्यूटर पर पेन्टिंग प्रोग्राम के माध्यम से पेन्टिंग की दक्षता प्राप्त कर सकता है। अत: इससे यह सिद्ध होता है कि संचार साधन बालकों में विभिन्न प्रकार की दक्षताओं के विकास को प्रभावित करते हैं।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि संचार साधन बालकों के विकास में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। संचार साधनों के विकास से ही बालकों का सर्वांगीण विकास सम्भव हुआ है। संचार साधनों के प्रयोग के अभाव में उत्तम बाल विकास की सम्भावना करना अनुचित होगा।