अधिगम पठार – अर्थ एवं परिभाषा, समय, कारण एवं निराकरण

Adhigam Pathar

अधिगम पठार का अर्थ एवं परिभाषाएँ

Meaning and Definitions of Learning Plateau

अधिगम पठार का अर्थ

जब हम कोई नयी बात सीखते हैं तब हम सीखने में लगातार उन्नति नहीं करते हैं। हमारी उन्नति कभी कम और कभी अधिक होती है। कुछ समय पश्चात् ऐसा अवसर भी आता है जब हमारी उन्नति बिल्कुल रुक जाती है। ऐसा अनेक कारणों से हो सकता है; जैसेज्ञानावरोध (Knowledge limit), प्रेरणा बोध (Motivation limit) एवं शारीरिक क्षमता अवरोध (Physiological limit); जैसे – थकान, अरुचि, सिरदर्द आदि।

सीखने की इस प्रकार की अवस्था जिसमें सीखने की उन्नति रुक जाती है। इस अवस्था में अधिगम वक्र ऊपर चढ़ने के स्थान पर समान्तर चलने लगता है और अधिक देर तक कोई प्रगति नहीं दिखायी पड़ती है। इस सपाट स्थल (Flattered surface) को अधिगम का पठार (Plateau of learning) कहते हैं।

Learning Plateau
Plateau of learning

अधिगम पठार की परिभाषा

  1. रॉस (Ross) के अनुसार, “पठार सीखने की प्रक्रिया की प्रमुख विशेषता है, जो इस अवधि को सूचित करते हैं, जब सीखने की क्रिया में कोई उन्नति नहीं होती है।
  2. स्किनर (Skinner) के अनुसार, “पठार क्षैतिज प्रसार है, जिससे सीखने में उन्नति का प्रत्यक्ष बोध नहीं होता है।
  3. रैक्स एवं नाइट (Rex and Knight) के अनुसार, “सीखने में पठार तब आते हैं, जब व्यक्ति सीखने की एक अवस्था पर पहुँचकर दूसरी अवस्था में प्रवेश करता है।

अधिगम पठार का समय

Time Period of Learning Plateau

रैक्स एवं नाइट (Rex and Knight) के अनुसार, “सीखने में पठार जब आते हैं तब व्यक्ति सीखने की एक अवस्था पर पहुँच जाता है।

सीखने में पठार कब एवं कितने समय के लिये आयेगा, यह निश्चित नहीं रहता? एक व्यक्ति शीघ्र सीख सकता है, दूसरे को बिलम्ब हो सकता है। सीखने की प्रक्रिया में पठारों का आना अनिवार्य है पर यह व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करता है कि वह पठारों में कितनी देर में पहुँचता है और पठार कितनी देर तक रहते हैं?

उदाहरण के लिए – एक टाइपिस्ट 5 मिनट तक केवल AAAAA ही टाइप करता रहता है, ठीक 5 मिनट पश्चात् उससे DLGNX टाइप करने को कहा जाता है, उसके ठीक 5 मिनट पश्चात् उससे पूरे-पूरे वाक्य (जिनकी पुनरावृत्ति न की गयी हो) टाइप करने को कहा जाता है। 5 मिनट पश्चात् टाइपिंग बन्द कर दी जाती है तब यह देखा गया कि पहली से दूसरी में एवं दूसरी से तीसरी में प्रवेश करता है तो पठार आवश्यक रूप से सामने आते हैं।

Time Period of Learning Plateau

पठार कब तक रहते हैं यह इस तथ्य पर निर्भर करता है कि व्यक्ति ने सीखने की क्रिया में कब तक उन्नति नहीं की?

सोरेन्सन (Sorenson) के अनुसार, “सीखने की अवधि में पठार साधारणतया कुछ दिनों, कुछ सप्ताहों या कुछ महीनों तक रहते हैं।

अधिगम पठार के कारण

Causes of Learning Plateau

अधिगम पठार बनने के प्रमुख कारण निम्न हैं-

1. मनोशारीरिक सीमा (Psychophysical limits)

अधिगम में पठार इसलिए आता है कि व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक सीमा होती है। उसके पश्चात् उसे थकान आ जायेगी, सिरदर्द प्रारम्भ हो सकता है। सीमा के पश्चात् व्यक्ति कुछ नहीं सीख सकता।

मनोशारीरिक सीमा सभी व्यक्तियों में एक-सी नहीं होती। विभिन्न व्यक्तियों के लिये एक ही प्रकार के सीखने में और एक ही व्यक्ति के लिये विभिन्न प्रकार की क्रियाओं में सीमा भिन्न-भिन्न होती है।

सीखते-सीखते एक ऐसी स्थिति आ जाती है, जब सीखने वाला थकान अनुभव करने लगता है। ऐसी स्थिति में सीखने की प्रगति प्रभावित होती है और वहीं पर पठार बन जाता है।

रायबर्न (Ryburn ) के अनुसार, “प्रत्येक कार्य के लिये प्रत्येक व्यक्ति में अधिकतम कुशलता होती है, जिससे आगे वह नहीं बढ़ सकता। इसको शारीरिक सीमा कहते हैं। जब व्यक्ति इस सीमा पर पहुँच जाता है तब उसके सीखने में पठार बन जाता है।

2. नकारात्मक कारक (Negative factors)

अनेक नकारात्मक कारक भी अधिगम में पठार बनने में सहायक होते हैं, जिसमें से प्रमुख हैं – सीखने में रुचि का अभाव, व्यक्ति की परिपक्वता का अभाव, ज्ञान का अभाव, प्रेरणा, जिज्ञासा का अभाव, थकान, निराशा, आलस्यता, उत्साहहीनता का अभाव, दूषित वातावरण एवं पारिवारिक कठिनाइयाँ, बीच-बीच में ध्यान भंग होना, भविष्य में पुरस्कार की आशा न होना इत्यादि ऐसे कारक हैं, जिनसे सीखने की गति बहुत ही धीमी, लगभग रुक जाने की स्थिति में आ जाती है, जिससे पठार बन जाते हैं।

3. कार्य की जटिलता (Complexity of the work)

सीखे जाने वाले कार्य में जितनी अधिक जटिलता होगी, उसके सीखने में शिथिलता आती जायेगी। यहाँ तक कि पठार बन जायेगा। बालक की क्षमता, योग्यता एवं रुचि के अनुसार ही सीखने का कार्य बालक को दिया जाना चाहिये अथवा पठार को दूर करने के उपाय खोजने चाहिये।

4. सीखने की अनुचित विधि (Wrong method of learning)

शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने नयी-नयी विधियों का आविष्कार किया है। छोटे बालकों को खेल के माध्यम से ज्ञान दिया जाना सम्भव हो गया है। छात्र, विषय, रुचि एवं क्षमताओं के अनुसार अध्यापन की विधियों का चुनाव करके छात्र को ज्ञान दिया जाना चाहिये।

इसी प्रकार यदि किसी छात्र ने सीखने की कोई गलत विधि अपना ली है तो उसके अधिगम में शीघ्र ही पठार आ जायेगा। जैसे उँगलियों की सहायता से गिनती गिनना, लिखने में कलम को कसकर पकड़ना, प्रत्येक शब्द को रुक-रुक कर पढ़ना ये सभी विधियाँ अनुचित हैं और सीखने की प्रगति को रोककर पठार बना देती हैं।

5. पुरानी आदतों का नयी आदतों से संघर्ष (Conflict between old and new habits)

अधिगम में पठार उत्पन्न होने का एक कारण है – पुरानी आदतों का नयी आदतों से संघर्ष। पुरानी आदतों से अभ्यस्त छात्र जब नये तरीके को अपनाता है तो उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे पठार आ जाता है।

बायें हाथ से लिखने का आदी छात्र यदि दायें हाथ से लिखने के लिये बल देता है तो उसको अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वास्तव में पुरानी आदतें शक्तिशाली होने के कारण नयी आदतों के सीखने में बाधा डालती हैं।

6. जटिल कार्य के केवल एक पक्ष पर ध्यान (Emphasis on one aspect of complex work)

किसी भी जटिल कार्य को सीखने के लिये उसके प्रत्येक अंश पर ध्यान देना चाहिये। जटिल कार्य के प्रत्येक भाग के एक-एक भाग को सीखने के बजाय समग्र रूप से सीखना चाहिये।

उदाहरण के लिए – सितार बजाने के लिये सितार को ठीक ढंग से सम्भालने, उँगलियों को तार पर रखकर उसे बजाने, ताल ठीक रखने एवं उपकरण को एक साथ सम्भाले रखना चाहिये। यदि केवल उँगलियाँ चलाते रहें और सितार को सम्भालना न आया तो शीघ्र ही पठार आ जायेगा।

7. अभ्यास का अभाव (Lack of exercise)

थॉर्नडाइक ने सीखने का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक अभ्यास माना है। यदि अभ्यास गलत तरीके से हुआ है तो सीखने में पठार शीघ्र आ जायेगा।

8. उपयुक्तता न होना (Lack of appropriateness)

यदि बालक की रुचि एवं स्तर के अनुरूप सीखने वाला विषय नहीं होगा तो बालक उस विषय के सीखने में रुचि नहीं लेगा, जिससे पठार उत्पन्न हो जायेगा।

9. आवश्यकता के अनुरूप नहीं (Not according to needs)

यदि बालक को यह ज्ञात हो कि वह जो सीख रहा है वह उसकी आवश्यकता की पूर्ति नहीं करेगा तो बालक उसमें रुचि नहीं लेगा एवं पठार शीघ्र आ जायेगा।

10. व्यवधान (Disturbance)

सीखते समय अधिक शोरगुल या अन्य प्रकार से व्यवधान होने पर सीखने की गति रुक जाती है। ध्यान को केन्द्रित करने की विधियों से छात्रों को अवगत कराया जाना चाहिये।

11. प्रेरणा का अभाव (Lack of motivation)

सीखते समय यदि छात्र को उत्साहित एवं प्रेरित नहीं किया गया तो कुछ देर पश्चात् ही बालक में सीखने के प्रति अरुचि जागृत हो जायेगी जिससे पठार बन जायेगा।

अधिगम पठारों का निराकरण

Removal of Learning Plateau

पठार सीखने वाले की उन्नति में बाधा डालते हैं और उसके समय को नष्ट करते हैं। अत: कुछ लोगों का विचार है कि पठारों को समाप्त कर देना चाहिये।

सोरेन्सन (Sorensen) के अनुसार, “शायद ऐसी कोई भी विधि नहीं है, जिससे पठारों को बिल्कुल समाप्त कर दिया जाये पर उनकी संख्या और अवधि को कम किया जा सकता है।

सीखने की क्रिया में पठार अध्यापक और छात्र होने पर शिक्षक को छात्र के थकने की सूचना मिल जाती है और वह अधिगम को उपयुक्त बनाने के लिये प्रयास कर सकता है। छात्र पठार की जानकारी प्राप्त कर अपने ज्ञान का समुचित ढंग से संगठन कर सकते हैं।

अधिगम पठार को दूर करने के लिये शिक्षक निम्न विधियों को अपना सकता है-

1. सीखने के समय का वितरण (Distribution of learning time)

सीखने के समय का कुशलतापूर्वक वितरण अधिगम पठार को दूर करने में सहायक होता है। मानसिक विषय के अध्ययन में सीखने के समय का वितरण सदैव लाभदायक रहता है। अधिक लम्बे समय तक लगातार एक कार्य को करते रहने की अपेक्षा उसे समय पर छोड़-छोड़कर करना उसके सीखने में अधिक सहायक होता है।

बिना व्यवधान के सीखने (Unspaced learning) से व्यवधानयुक्त अधिगम (Spaced learning) अधिक लाभदायक होता है। इसलिए अध्यापक को चाहिये कि जब वह पठार अनुभव करे तो उसे एक विषय को पढ़ाना बन्द करके दूसरे विषय का पढ़ाना आरम्भ कर देना चाहिये।

2. उत्साह के साथ अधिगम (Learning with excitement)

अधिगम एक सक्रिय और सचेष्ट प्रक्रिया है, जितने अधिक उत्साह के साथ उसको प्रारम्भ किया जायेगा उसमें उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त होगी। रुचि के अभाव में प्रत्यक्षात्मक (Perceptual) अथवा विचारात्मक (Conceptual) कोई भी विषय सीखा नहीं जा सकता है।

सीखने की क्षमता 25 वर्ष की आयु तक बढ़ती है और 45 वर्ष की आयु के पश्चात् तीव्रता से कम होती है। आयु का सीखने में इतना अधिक महत्त्व नहीं है जितना अध्यवसाय का होता है।

3. पाठ्य-सामग्री का संगठन (Organising of curriculum)

अध्यापक को पठार की स्थिति से बचने के लिये पाठ्य सामग्री का संगठन “सरल से कठिन की ओर” सिद्धान्त के आधार पर करना चाहिये। बालकों के मनोविज्ञान का पूरा-पूरा ध्यान इस सन्दर्भ में रखा जाना चाहिये। सामग्री के क्षेत्र के अनुसार समग्र (Whole) अथवा खण्ड (Part) करके शिक्षण सामग्री का संगठन करना उपयुक्त माना जाता है।

4. शिक्षण विधि में परिवर्तन (Change in method of teaching)

अध्यापक जब यह अनुभव करे कि अधिगम में पठार आ रहा है तो उसे तुरन्त ही शिक्षण विधि बदल देनी चाहिये। पाठ को रोचक बनाना चाहिये एवं उसमें नवीनता लानी चाहिये।

5. प्रेरणा तथा उद्दीपन (Motivation and stimulation)

अधिगम की क्रिया उस समय तक प्रभावहीन रहती है, जब तक छात्रों में अध्यापक क्रिया अथवा विषय विशेष के प्रति प्रेरणा तथा उद्दीपन नहीं भरता। पुरस्कार (Reward) तथा दण्ड (Punishment) के माध्यम से अध्यापक छात्रों में प्रेरणा उत्पन्न कर सकता है।

6. अच्छी आदतें (Good habits)

अधिगम में उचित आदतों का विशेष महत्त्व है। शिक्षार्थी को सफल होने के लिये शब्द कोष का प्रयोग करने, अध्ययन हेतु नियमित और निश्चित समय स्थान की पाबन्दी करने, थकने पर कार्य न करने, रेखाचित्रों, चित्रों, नोट्स तथा सार आदि का प्रयोग करने, सुबह शाम अकेले पढ़ाई करने, पाठ को दोहराने, नियमित और योजनाबद्ध तैयारी करने, मन में से कम से कम होंठ हिलाकर पढ़ने तथा मन को एकाग्र करने आदि की उचित आदतें ना लेने पर सीखना सरल हो जाता है।

7. विश्राम (Rest)

पठार की स्थिति आ जाने पर अध्यापक को चाहिये कि वह छात्रों को विश्राम देकर उनकी थकान दूर करे।