व्यक्तित्व (Personality) – व्यक्तित्व का विकास, अर्थ, परिभाषा

Vyaktitva

व्यक्तित्व (Personality)

मनोविज्ञान के विकास ने व्यक्तित्व की पुरानी धारणाओं को बदल दिया है। ‘व्यक्तित्व का आधार‘ क्या होना चाहिये? यह प्रश्न मनोवैज्ञानिकों के लिये जटिल बन गया था। उन्होंने विभिन्न रूपों एवं दृष्टिकोणों से व्यक्ति का अध्ययन किया और व्यक्तित्व की प्राचीन अवधारणाओं को समाप्त कर नवीन अवधारणा को स्थापित किया।

गैरिसन, कार्ल सी. और अन्य ने लिखा है – “व्यक्तित्व सम्पूर्ण मनुष्य है, उसकी स्वाभाविक अभिरुचि तथा क्षमताएँ और उसके भूतकाल में अर्जित किये गये ज्ञान, इन कारकों का संगठन तथा समन्वय व्यवहार प्रतिमानों, आदर्श, मूल्यों तथा अपेक्षाओं की विशेषताओं से पूर्ण होता है।

Personality is the whole man, his inherited aptitudes and capacities, all his past learning, the integrations and synthesis of these factors into characteristics behavior patterns, his ideals, values and expectations.

व्यक्तित्व का कोई स्थायी प्रत्यय नहीं है। समय-समय पर व्यक्तित्व का स्वरूप बदलता रहता है। वास्तव में व्यक्तित्व उस ढंग को कहते है, जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अपने परिवेश के साथ अनुकूलन करता है। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि यदि किसी व्यक्ति का अपने परिवेश के साथ समुचित अनुकूलन है तो उसका व्यक्तित्व उत्तम है।

विभिन्न व्यक्तियों का अपने परिवेश के साथ भिन्न प्रकार का अनुकूलन होता है। इसी कारण से उनका व्यक्तित्व भी भिन्न-भिन्न माना जाता है। व्यक्तित्व सदैव ही व्यवहार द्वारा ज्ञात होता है। व्यवहार व्यक्तित्व का बाहरी रूप है। व्यवहार में जितना अधिक संकलन (Integration) होगा उतना ही सुदृढ़ व्यक्तित्व माना जायेगा।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे पर्सोना (Persona) शब्द का अर्थ परिवर्तित होता चला गया। ईसा-पूर्व पहली शताब्दी में रोम के प्रसिद्ध लेखक और कूटनीतिज्ञ सिसरो (Cicero) ने उसका प्रयोग चार अर्थों में किया-

  1. जैसा एक व्यक्ति दूसरे को दिखायी देता है, पर वैसा वह वास्तव में नहीं है,
  2. वह कार्य जो जीवन में कोई करता है, जैसे कि दार्शनिक,
  3. व्यक्तित्व गुणों का संकलन जो है एक मनुष्य को उसके कार्य के योग्य बनाता है,
  4. विशेषता और सम्मान जैसा कि लेखन शैली में होता रहा है।

इस प्रकार तेरहवीं शताब्दी तक पर्सोना (Persona) शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में होता रहा। चौदहवीं शताब्दी में मनुष्य की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करने के लिये एक नये शब्द की आवश्यकता का अनुभव किया जाने लगा। इन आवश्यकताओं का पूर्ण करने के लिये पर्सोना (Persona) को पर्सनल्टी (Personality) शब्द में  रूपान्तरित कर दिया गया।

व्यक्तित्व की प्रकृति

Nature of Personality

व्यक्तित्व के ऊपर मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने अपने-अपने आधार पर चिन्तन प्रस्तुत किया है। अत: हमें इस विगत कार्य को ध्यान में रखकर व्यक्तित्व के स्वरूप की विवेचना करनी होगी। इसके लिये व्यक्तित्व के अर्थ एवं स्वरूप के सन्दर्भ में निम्न तीन बातों को आधार मानकर कार्य करना है-

  1. व्यक्तित्व से सम्बन्धित विभिन्न परिभाषाओं में भिन्नता देखना।
  2. व्यक्तित्व की एक अवधारणा का चयन करना।
  3. सबसे अच्छी परिभाषा कौन-सी होगी? जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व को परिभाषित कर सके, को निश्चित करना।

व्यक्तित्व का प्राचीन मत (Old Concept of Personality)

व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी शब्द Personality का हिन्दी रूपान्तर है। Personality शब्द लैटिन भाषा के Persona से विकसित हुआ है। जिसका अर्थ है Mask (नकली चेहरा)

सिसरो ने Persona शब्द का विवेचन निम्न रूपों में किया है-

  1. भूमिका के अनुसार अपने चेहरे को बदलना।
  2. उपयुक्त भूमिका के आधार पर सम्पूर्ण व्यक्तित्व की भूमिका बनाना।
  3. भूमिका के आधार पर गुणों का विकास करना।
  4. एक नवीन व्यक्तित्व को धारण करना, जो वास्तविक से सर्वथा भिन्न है।

व्यक्तित्व के क्षणिक परिवर्तित स्वरूप को वास्तविक व्यक्तित्व मानना गलत है। अतः आज व्यक्तित्व की नवीन अवधारणा का उदय हुआ, जो सम्पूर्ण शक्तियों, क्षमताओं आदि का सम्मिश्रण है।

व्यक्तित्व का आधुनिक मत (Modem Concept of Personality)

व्यक्ति और व्यक्तित्व दोनों ही अलग-अलग शब्द है, जिनका एक-दूसरे से अकाट्य सम्बन्ध होते हुए भी बहुत विभेद है। यदि ध्यानपूर्वक विचार किया जाय तो स्पष्ट होता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने गुणों से अन्य को प्रभावित करता है और अन्य लोगों से प्रभावित होता है। अत: वर्तमान समय में व्यक्तित्व को मध्यवर्ती चर के रूप में माना जा रहा है।

मनोविज्ञान में अब सिद्ध हो चुका है कि किसी उद्दीपक के द्वारा अनुक्रिया तुरन्त या स्वत: नहीं हो जाती है। उद्दीपक सम्पूर्ण प्राणी को प्रभावित करता है और जो अनुक्रिया होती है, वह उद्दीपक तथा प्राणी दोनों का कार्य होता है।
उदाहरणार्थ– जब एक बच्चा भूखा होता है तब मिठाई के प्रति उसकी प्रतिक्रिया एक प्रकार की होती है, किन्तु जब वह तृप्त हो जाता है, तब उसकी प्रतिकिया भिन्न प्रकार की होती है। उद्दीपक और अनुक्रिया के बीच में मध्यवर्ती चर (Intervening variable) होते हैं, जो व्यवहार को प्रभावित करके उसको निश्चित करते हैं।
मध्यवर्ती चर हैं- बुद्धि, प्रेरक, पूर्व अनुभव, अभिवृत्ति, मानसिक सुझाव आदि।

अत: हम यहाँ पर दो प्रमुख मनोवैज्ञानिकों के विचारों को स्पष्ट करेंगे जिन्होंने मध्यवर्ती चरों को मानकर व्यक्ति के स्वरूप (व्यक्तित्व) को स्पष्ट किया है-

1. आलपोर्ट की व्याख्या (Explanation of Alport)

व्यक्तित्व व्यक्ति की उन  मनोभौतिक पद्धतियों का गतिशील संगठन है, जो पर्यावरण के प्रति अपूर्व समायोजन स्थापित करता है।”

Personality is the dynamic organisation within individual of those psychological system that determine his unique adjustment to his environment.

आपने व्यक्तित्व से सम्बन्धित विभिन्न परिभाषाओं का विश्लेषण करके, व्यक्तित्व की अपनी परिभाषा मध्यवर्ती चरों को आवश्यक मानकर की है।

इस परिभाषा ने व्यक्तित्व के स्वरूप के सम्बन्ध में आने वाली विभिन्न उलझनों को दूर कर दिया है। यह व्यक्तित्व को ‘गतिशील संगठन‘ मानती है, जिससे यह अभिप्राय है कि व्यक्तित्व का स्वरूप परिवर्तनशील होता है। इससे व्यक्तित्व का आन्तरिक पक्ष स्पष्ट होता है, बाह्य नहीं। यहाँ ‘मनोभौतिक पद्धतियों‘ से तात्पर्य आदतों, अभिवृत्तियों तथा लक्षणों से है।

सामाजिकता की भावना का प्रकटीकरण ‘पर्यावरण के प्रति समायोजन‘ का उपयोग करके किया जाता है। इससे अभिप्राय यह है कि व्यक्ति अपने पर्यावरण के साथ समायोजन करके उसके प्रति कार्यात्मक व्यवहार
करता है। इसके अन्दर व्यक्ति की सृजनात्मक एवं स्वत: होने वाली क्रियाएँ भी शामिल हैं। अत: आपकी व्याख्या वैज्ञानिक पहुँच की द्योतक है।

2. स्टैगनर तथा कारवोस्की की व्याख्या (Explanation of Karwoski and Stegner)

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्टैगनर तथा कारवोस्की ने भी व्यक्तित्व को उद्दीपक तथा अनुक्रिया के बीच मध्यवर्ती अवस्था माना है। उन्होंने लिखा है- “व्यक्तित्व अभिप्रेरणाओं तथा प्रत्यक्षों का ऐसा विलक्षण प्रतिरूप है, जिससे एक विशिष्ट व्यक्ति का पता चलता है।

यह दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि व्यक्ति की इच्छाएँ क्या हैं और उनकी पूर्ति करने वाले साधनों की ओर वह किस प्रकार देखता है? महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति सम्मान रूपी व्यक्तित्व से अभिप्रेरित रहता है, जबकि क्रूर व्यक्ति उनको अपने उद्देश्य के लिये साधन मात्र मानता है।

आपने विस्तृत रूप से व्यक्तित्व की परिभाषा करते हुए लिखा है-

वास्तविक व्यक्तित्व किसी विशेष व्यक्ति की बाह्य अनुक्रिया का प्रतिरूप मात्र नहीं होता और न एक व्यक्ति के सामाजिक प्रभाव होते हैं। वस्तुत: व्यक्तित्व प्रेरकों, संवेगों, प्रत्यक्षों तथा स्मृतियों का ऐसा आन्तरिक संगठन होता है, जो व्यवहार की दिशा को निर्धारित करता है।

उपर्युक्त परिभाषा का विश्लेषण करने पर व्यक्तित्व के चार अवयव स्पष्ट होते हैं- गत्यात्मक प्रतिरूप, प्रत्यक्ष अवयव, सीखना तथा बुद्धि। ये अवयव, व्यक्तित्व के स्वरूप को स्पष्ट करने में समर्थ होते हैं।

  1. गत्यात्मक प्रतिरूप: गत्यात्मक प्रतिरूप से तात्पर्य व्यक्ति विशेष के प्रेरकों एवं संवेगों का प्रभाव, जो उसके व्यवहार में परिवर्तन उत्पन्न करता है। 
  2. प्रत्यक्ष अवयव: प्रत्यक्ष अवयव से तात्पर्य व्यक्ति विशेष का आन्तरिक आवश्यकताओं की पूर्ति से होता है। वह प्रेरणा एवं आवश्यकता में विभेद स्थापित करके सुखानुभूति की ओर अग्रसर होता है। बच्चा अपने शैशवकाल में अपरिचित व्यक्तियों और माता-पिता में भेद स्थापित करता है। ये भेद उसकी प्रत्यक्ष आवश्यकता (सुख) से प्रभावित रहता है जिससे वह माता-पिता के समीप रहना पसन्द करता है। 
  3. सीखना: सीखना व्यक्ति की जन्मजात क्रिया है, जो अनुक्रियाएँ (प्रत्यक्ष एवं भूल द्वारा) उसको सुख एवं सन्तोष प्रदान करती हैं, उनको वह शीघ्र ग्रहण कर लेता है, अन्य को नहीं। अत: ज्ञान भण्डार में वृद्धि उसके सीखने की प्रक्रिया पर ही निर्भर होती है। परिपक्वावस्था आने पर वह अपना जीवन-दर्शन निश्चित कर लेता है, जिससे उसके व्यक्तित्व में एकीकरण आ जाता है। 
  4. बुद्धि: बुद्धि का मानसिक प्रक्रिया में सबसे प्रमुख स्थान है। यह व्यक्तित्व निर्माण में प्रभावशाली कार्य करती है। एक व्यक्ति के जीवन में यह बात बड़ी महत्त्वपूर्ण है कि वह अपने अनुभवों के सम्बन्ध में विचार करने की कैसी योग्यता रखता है और उनका सामान्यीकरण किस प्रकार करता है?

व्यक्तित्व से सम्बन्धित सभी व्याख्याओं पर दृष्टिपात करने से स्पष्ट होता है कि व्यक्ति के समग्र लक्षण व्यक्तित्व में आते हैं। वह विशेष लक्षणों का योगमात्र न होकर उनका एक विशिष्ट संगठन होता है। वह व्यक्ति के व्यवहार का समग्र गुण होता है। व्यक्तित्व दूसरों पर अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहता।

अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्व के अन्दर व्यक्ति के लक्षण, योग्यताएँ, रुचियाँ, अभिवृत्तियाँ, मूल्य, प्रेरक तथा समायोजन करने के स्वाभाविक ढंग सम्मिलित हैं। इसके अन्दर स्वभाव (Temperament), भाव, दशाएँ, व्यक्ति के गुण, आचरण, नैतिक और मानवीय विचार का प्रमुख स्थान रहता है।

व्यक्तित्व का अर्थ

Meaning of Personality

विभिन्न विद्वानों के दृष्टिकोण से व्यक्तित्व के अर्थ को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. दार्शनिक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व का अर्थ (Philosophical view)

दर्शन के अनुसार इसकी परिभाषा निम्न प्रकार से है- “व्यक्तित्व आत्म-ज्ञान का ही दूसरा नाम है, यह पूर्णता का प्रतीक है। इस पूर्णता का आदर्श ही व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है।

Personality is the ideal of perception of it self-realization.

2. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से व्यक्तित्व का अर्थ (Sociological view)

इस दृष्टिकोण के अनुसार-व्यक्तित्व उन सभी तत्वों का संगठन है, जिनके द्वारा व्यक्ति को समाज में कोई स्थान
प्राप्त होता है, इसलिये व्यक्तित्व का एक सामाजिक प्रभाव है।

फारिस (Faris) के अनुसार- “व्यक्तित्व संस्कृति का वैयक्तिक पक्ष है।

Personality is the subjective side of culture.

3. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व का अर्थ (Psychological view)

इस दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्तित्व का अर्थ वंशानुक्रम एवं वातावरण का ही एक रूप है।

मार्टन के अनुसार- “व्यक्तित्व व्यक्ति के जन्मजात तथा अर्जित स्वभाव, मूल प्रवृत्तियों, भावनाओं तथा इच्छाओं आदि का समुदाय है।

वूडवर्थ (Woodworth) के शब्दों में- “व्यक्ति के व्यवहार का समूचा सार ही उसका व्यक्तित्व होता है।

“Personality is the total quality of individual behavior.”

4. मनोविश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व का अर्थ (Psycho-analysis view)

इस दृष्टिकोण के जन्मदाता फ्रायड हैं, जिन्होंने व्यक्तित्व को तीन भागों में बाँटा है- इदम् (Id), अहम (Ego)
तथा परम अहम् (Super ego)

  • इदम् चेतन मन में स्थित प्राकृत शक्तियाँ हैं, जो अबोध या अज्ञान की अवस्था में मृत हैं। इसे शीघ्र ही सन्तुष्टि मिलनी चाहिये।
  • अहम् वह चेतन तथा चेतन शक्ति है, जिसमें तर्क और बुद्धि का समावेश है। इसका सम्बन्ध इद्म तथा अहम् दोनों से है।
  • परम अहम् व्यक्ति का आदर्श होता है। वह नैतिकता के आधार पर अहम् की आलोचना करता है तथा उसे सही मार्ग दिखाता है।

युंग के अनुसार व्यक्तित्व के दो भाग हैं-

  1. व्यक्तिगत अज्ञात-मन (Personal unconscious mind)
  2. सामूहिक अज्ञात-मन (Collective unconscious mind)

व्यक्ति के अज्ञात मन में दबी हुई इच्छाएँ संचित होती रहती हैं। साथ ही जीवन के वे अनुभव जिन्हें समय धीरे-धीरे, भुला देता है, उनके स्मृति चिह्न भी मन के इस भाग में बने रह जाते हैं।

सामूहिक अज्ञात मन में जातीय गुण समाविष्ट रहते हैं। अत: यह भाग जातीयता के गुणों अर्थात् पूर्वजों से प्राप्त गुण एवं विशेषताओं का कोष है।

5. सामान्य दृष्टिकोण से व्यक्तित्व का अर्थ (Layman view)

व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के प्रभाव के उन गुणों से लिया जाता है, जो दूसरों के हृदय पर विजय पाने में सहायक होते हैं। इसी के कारण कहा जाता है कि- व्यक्तित्व वह उद्दीपक मूल्य है, जो एक व्यक्ति दूसरे के लिये रखता है।

Personality is the stimulus value which one individual has for another.

इस प्रकार मनुष्य के व्यक्तित्व के पक्षों में शारीरिक पक्ष, बौद्धिक पक्ष, भावात्मक पक्ष, सामाजिक पक्षसंकलनात्मक पक्ष तथा नैतिक पक्ष आदि सम्मिलित होते हैं।

व्यक्तित्व की परिभाषाएँ

Definitions of Personality

व्यक्तित्व के सम्बन्ध में विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों के द्वारा दी गयी परिभाषाएँ निम्न है-

1. मन (Munn) के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन, व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है।

Personality may be defined as the most characteristic integration or an individual’s structures, modes of behavior, interest, attitudes, capacities, abilities and aptitudes.

2. वारेन (Warren) के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व व्यक्ति का सम्पूर्ण मानसिक संगठन है, जो उसके विकास की किसी भी अवस्था में होता है।

Personality is the entire mental organisation of human being at any stage of his development.

3. रैक्स (Rex)के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व समाज द्वारा मान्य तथा अमान्य गुणों का संगठन है।

Personality is the balance between socially approved and disapproved traits.

4. डैशील (Daisheel) के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व, व्यक्ति की सम्पूर्ण प्रतिक्रियाओं एवं प्रतिक्रियात्मक सम्भावनाओं का संस्थान है; जैसा कि उसके परिवेश में जो सामाजिक प्राणी है, उसके द्वारा आंका जाता है। यह व्यक्ति के व्यवहारों का एक समायोजित संकलन है, जो व्यक्ति अपने सामाजिक व्यवस्थापन के लिये करता है।

5. प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मन (Mann N.L.) के शब्दों में व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व एक व्यक्ति के गठन, व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं और तरीकों का सबसे विशिष्ट संगठन है।

Personality may be defined as the most characteristic integration of an individual’s structures, modes of behavior, interests, attitudes, capacities, abilities and aptitudes.

6. आलपोर्ट (Alport) के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनोदैहिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो परिवेश के प्रति होने वाले उसके अपूर्व अभियोजनों का निर्णय करते हैं।

Personality is the dynamic organization with in the individual of those psychological systems that determine his unique adjustment to his environment.

7. मार्टन प्रिंस (Morrain Prince) के शब्दों में व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व समस्त शारीरिक तथा अर्जित वृत्तियों का योग है।

Personality is the sum total of all the biological innate and acquired tendencies.

8. गुथरी (1944) (Guthrie) के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व की परिभाषा सामाजिक महत्त्व की उन आदतों तथा आदत संस्थानों के रूप में की जा सकती है जो स्थिर तथा परिवर्तन के अवरोध वाली होती है।

Personality is defined as those habits and habit systems of social importance that are stable and resistant to change.

9. एस. सी. वारेन (H.C. Warren) के शब्दों में व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व व्यक्ति के विकास की किसी भी अवस्था में होने वाला समग्र मानसिक संगठन है।

Personality is the entire mental organization of a human being at any stage of his development.

10. वाट्सन (Watson) के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

हम जो कुछ करते हैं, वही व्यक्तित्व है।

Personality is everything that we do.

11. मे एवं हार्टशार्न (May and Hartshorn) के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व, व्यक्ति का वह स्वरूप है जो उसे प्रभावशाली बनाता है और दूसरों को प्रभावित करता है।

Personality is that which makes one effective and gives influence over others.

12. बिग एवं हण्ट (Bigge and Hunt) के शब्दों में व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व एक व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार-प्रतिमान और विशेषताओं के योग का उल्लेख करता है।

Personality refers to the whole behavioural pattern of an individual to the totality of its characteristics.

13. आइजनेक (1970) (HJ.Eysenek) के मत में व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्ति की अभि-प्रेरणात्मक व्यवस्थाओं का व्यक्तित्व सापेक्ष रूप से वह स्थिर संगठन है जिसकी उत्पत्ति जैविक अन्तनोंदों, सामाजिक तथा भौतिक वातावरण की अन्त:क्रिया के फलस्वरूप होती है।

Personality is the relatively stable organization of person’s motivational dispositions, arising from the interaction between biological drives and social and physical environment.

14. परविन (Pervin) (1971) के अनुसार व्यक्तित्व की परिभाषा

व्यक्तित्व किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के उन रचनात्मक और गत्यात्मक गुणों का प्रतिनिधित्व करता है जो किसी परिस्थिति के प्रति विशिष्ट प्रतिक्रियाओं द्वारा परिलक्षित होते हैं।

Personality represents those structural and dynamic properties of an individual or individuals as they reflect themselves in characteristic responses to situations.

उपर्युक्त परिभाषाएँ, व्यक्तित्व की स्पष्ट रूप से व्याख्या करती हैं, क्रियाशील बनाती हैं, व्यवस्थित व्यवहार की ओर इंगित करती हैं तथा व्यक्तित्व के वंशानुक्रम और वातावरण के महत्त्व की ओर ध्यान आकर्षित करती हैं।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि व्यक्तित्व एक अति जटिल धारणा है। इसके अन्तर्गत मनुष्य के सब प्रकार के आन्तरिक एवं बाहरी गुणों का समावेश होता है। व्यक्ति के व्यवहार से जो कुछ भी होता है वह सब उसके व्यक्तित्व का ही प्रतीक है।

यदि इन सभी परिभाषाओं का विश्लेषण किया जाय तो हम सभी निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि-

  1. व्यक्तित्व को परिभाषाबद्ध करना कभी भी सम्भव नहीं है।
  2. व्यक्तित्व गतिशील होता है।
  3. व्यक्तित्व वह नहीं जो कुछ बाहर से दिखायी देता है।
  4. व्यक्तित्व मनुष्य के बाह्य रूप एवं उसके अन्तर्निहित गुणों का सम्मिलित स्वरूप है।

अन्य शब्दों में व्यक्तित्व-

व्यक्तित्व में शारीरिक और संज्ञानात्मक दोनों प्रकार के गुण सम्मिलित हैं परन्तु इसमें अधिकांश और मुख्य गुण – प्रभावोत्पादक संज्ञानात्मक गुण, स्थायीभाव, अभिवृत्तियाँ, मानसिक ग्रन्थियाँ (Complexes) तथा अचेतन मनोरचनाएँ, रुचियाँ और विचार आदि होते हैं।

व्यक्तित्व के पहलू

Aspects of Personality

गैरिसन तथा अन्य (Garrison and Other) ने व्यक्तित्व के निम्न पहलू बताये हैं-

1. क्रियात्मक पहलू (Action aspect)

व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मानव की क्रियाओं से है। ये क्रियाएँ व्यक्ति की भावुकता, शान्ति,  नोदप्रियता, मानसिक श्रेष्ठता आदि को व्यक्त करती है।

2. सामाजिक पहलू (Social aspect) 

व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मानव द्वारा दूसरों पर डाले जाने वाले सामाजिक प्रभाव से है। इस पहलू में उन सभी बातों का समावेश हो जाता है, जिनके कारण मानव दूसरों पर एक विशेष प्रकार का प्रभाव डालता है।

13. कारण-सम्बन्धी पहलू (Cause aspect)

व्यक्तित्व के इस पहलू का सम्बन्ध मानव के सामाजिक या असामाजिक कार्यों के कारणों और उन कार्यों के प्रति लोगों की प्रतिक्रियाओं से है। यदि व्यक्ति के कार्य अच्छे हैं तो लोग उसे पसन्द करते हैं, अन्यथा नहीं।

4. अन्य पहलू (Other aspect)

व्यक्तित्व के अन्य पहलू हैं – दूसरों पर हमारा प्रभाव, हमारे जीवन में होने वाले बातों और घटनाओं का हम पर प्रभाव, हमारे गम्भीर विचार, भावनाएँ और अभिवृत्तियाँ।

निष्कर्ष रूप में-

गैरिसन एवं अन्य (Garrison and Other) ने लिखा है – “ये सभी पहलू महत्त्वपूर्ण हैं, परन्तु इनमें से कोई एक या सम्मिलित रूप से सब पूर्ण व्यक्तित्व का वर्णन नहीं करते । व्यक्तित्व इन सबका और इनसे भी अधिक का योग है। यह सम्पूर्ण मानव है।

All these aspects are important. None of them alone or even all of them together describes the whole of personality. It is all of these and more. It is the whole of man.

व्यक्तित्व के ये पहलू उसके विभिन्न गुणों तथा पक्षों पर प्रकाश डालते हैं। ये पक्ष व्यक्तित्व के संगठनात्मक स्वरूप पर प्रकाश डालते हैं।

इसीलिये बीसेन्ज एवं बीसेन्ज के शब्दों में, “व्यक्तित्व मनुष्य की आदतों, दृष्टिकोण तथा विशेषताओं का संगठन है। यह जीव-शास्त्रीय सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारण के संयुक्त कार्यों द्वारा उत्पन्न होता है।

व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing to Development of Personality)

रैक्स एवं नाइट (Rex and Knight) के शब्दों में, “मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों से भी है। इनमें से कुछ कारक शारीरिक रचना सम्बन्धी और जन्मजात एवं दूसरे पर्यावरण सम्बन्धी है।

अत: व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का क्रमबद्ध विवरण इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-
1. वंशानुक्रम (Heredity), 2. जैविक कारक (Biological factors), 3. शारीरिक रचना (Physical structure), 4. दैहिक प्रवृत्तियाँ (Physiological tendencies), 5. मानसिक योग्यता (Mental ability), 6. विशिष्ट रुचियाँ (Specific interest), 7. भौतिक वातावरण (Physical environment), 8. सामाजिक वातावरण (Social environment), 9. सांस्कृतिक वातावरण (Cultural environment), 10. परिवार (Family), 11. विद्यालय (School) और 12. अन्य कारक (Other factors)। पढ़ें इन सब के बारे में विस्तार से “व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारक”।

व्यक्तित्व के प्रकार (Types of Personality)

व्यक्तित्व के सन्दर्भ में अलग-अलग शिक्षाशास्त्रियों ने अपने विचार पृथक्-पृथक् किये हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. केश्मर (Kreschmer) ने व्यक्तित्व के चार प्रकार बताये हैं – केश्मर (Kreschmer) का व्यक्तित्व वर्गीकरण
  2. शेल्डन ने तीन प्रकार के व्यक्तित्व बताये हैं – शेल्डन का व्यक्तित्व वर्गीकरण
  3. विलियम जेम्स ने दो प्रकार के व्यक्ति बताये हैं – विलियम जेम्स का व्यक्तित्व वर्गीकरण
  4. न्यूमैन तथा स्टर्न ने व्यक्तित्व को दो भागों में वर्गीकृत किया है – न्यूमैन तथा स्टर्न का व्यक्तित्व वर्गीकरण
  5. शैल्डन ने शारीरिक गुणों के आधार पर व्यक्तित्व तीन भागों में बाँटा है – शैल्डन का व्यक्तित्व वर्गीकरण
  6. मनोविश्लेषणवादी युंग ने व्यक्तित्व को दो भागों में बाँटा है – युंग का व्यक्तित्व वर्गीकरण

विस्तार से पढ़ें “व्यक्तित्व के प्रकार”।

व्यक्तित्व निर्धारण (Personality Assessment)

व्यक्ति का बाह्य आचरण उसकी जन्मजात तथा अर्जित वृत्तियाँ, उसकी आदतें और स्थायी भाव, उसके आदर्श और जीवन के मूल्य,ये सभी मिलाकर एक ऐसे प्रमुख स्थायी भाव (Master sention) या’ आदर्श-स्व’ (Ideal-self) को जन्म देते हैं, जो मानव के व्यक्तित्व का प्रमुख आधार है।

मानव विकास के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व का निर्धारण करना एक समस्या रही है। प्रत्येक देश की संस्कृति ने विभिन्न साधनों के द्वारा व्यक्तित्व मापन में रुचि दिखलायी है। आज कपाल विद्या (Phrenology), मुख के लक्षण (Physiognomy), आकार के आधार पर (Graphology) और हस्तरेखा (Palmistry) आदि साधनों के द्वारा मानव व्यक्तित्व को मापा जा रहा है।

वर्तमान समय में सम्पूर्ण व्यक्तित्व का मूल्यांकन आवश्यक नहीं माना जाता है, बल्कि किसी प्रयोजन हेतु व्यक्तित्व का मापन आवश्यक होता है; उदाहरण के तौर पर कर्मचारी वर्ग के मनोविज्ञानी (Personal psychologists) ऐसे व्यक्तित्व के गुण अच्छे विक्रेता बनने में सहायता करते हैं। फलत: व्यक्तित्व निर्धारण की विभिन्न विधियाँ अलग-अलग प्रयोजनों में प्रयोग की जाती हैं। विस्तार से पढ़ें “व्यक्तित्व निर्धारण की विधियाँ, तत्व एवं सिद्धांत”।

समायोजन (Adjustment)

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अन्त समय तक समाज में ही रहना चाहता है। वह उसी समय अधिक प्रसन्न दिखायी देता है, जबकि वह स्वयं की रुचि, पसन्द और अभिवृत्तियों वाले समूह को प्राप्त कर लेता है। इस व्यावहारिक गतिशीलता का ही नाम समायोजन है। जब व्यक्ति अप्रसन्न दिखायी देता है तो यह उसके व्यवहार का कुसमायोजन होता है।

और अधिक पढ़ें – “समायोजन का अर्थ, कुसमायोजित व्यवहार के कारण: भग्नाशा या कुण्ठा (Frustraion), मानसिक संघर्ष (Mental conflict), मानसिक तनाव (Mental tension) और रक्षातन्त्र कवच या रक्षा युक्ति (Deffence Mechanism) आदि।”