मानसिक संघर्ष (Mental Conflict)
मानसिक संघर्ष को मानसिक द्वन्द्व के नाम से भी पकारा जाता है। यह संघर्ष पूर्ण रूप से मानसिक होता है और व्यक्ति जब तक किसी निश्चित उद्देश्य का चुनाव नहीं कर लेता यह मानसिक या विचारों का संघर्ष समाप्त नहीं होता। मानसिक संघर्ष विरोधी भावनाओं के कारण उत्पन्न होता है; जैसे- ‘क्रो एवं क्रो‘ ने लिखा है- “मानसिक द्वन्द्व या संघर्ष उस समय उत्पन्न होते हैं, जब एक व्यक्ति को पर्यावरण की उन शक्तियों का सामना करना पड़ता है, जब उसकी स्वयं की रुचियों और इच्छाओं के विपरीत कार्य करती हैं।“
बोरिंग, लैंगफील्ड एवं बैल्ड (Boring. Lanfield and Weld) के अनुसार- “मानसिक संघर्ष की क्रियाओं की दशा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिनमें दो या दो से अधिक सामान्य व्यवहार उत्पन्न होते हैं, जिन्हें एक ही समय में सन्तुष्ट (प्राप्त) नहीं किया जा सकता।“
मानसिक संघर्षों के प्रकार
Types of Mental Conflicts
व्यक्ति अपने को दो धनात्मक कर्षण शक्तियों के बीच पा सकता है अथवा दो ऋणात्मक कर्षण शक्तियों के बीच अथवा धनात्मक एवं ऋणात्मक कर्षण शक्तियों के बीच । संघर्ष को जीव और पर्यावरण के बीच अन्योन्य क्रिया के रूप में समझना चाहिये। इसको कर्टजीवन ने अपने सिद्धान्त ‘फील्ड थ्योरी‘ (Field theory) के द्वारा विकसित किया था। आपने मानसिक संघर्षों के उत्पन्न होने की तीन स्थितियाँ बतलायी हैं-
- उपागम-उपागम संघर्ष
- परिहार-परिहार संघर्ष
- उपागम परिहार संघर्ष
1. उपागम-उपागम संघर्ष (Approach-approach conflict)
उपागम-उपागम संघर्ष तब उत्पन्न होता है, जबदो ऐसे धनात्मक लक्ष्यों में संघर्ष होता है, जो एक ही समय में समान रूप से व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करते हैं; जैसे– किसी व्यक्ति को अर्थशास्त्र और नागरिकशास्त्र दोनों विषय प्रथम प्रिय हैं। लेकिन दोनों के घण्टे एक ही साथ हैं। अत: एक को त्यागना पड़ेगा। यह त्यागना और स्वीकार करना, निश्चित करना ही मानसिक संघर्ष कहलायेगा।
जैसे– कहा जाता है कि एक गधा दो घास के ढेरों के बीच में खड़ा रहा और भूख से मर गया क्योंकि वह यह निश्चय न कर सका कि घास के किस ढेर को खाना प्रारम्भ करे?
2. परिहार-परिहार संघर्ष (Avoidance-avoidance conflict)
इस प्रकार के संघर्ष में दो ऋणात्मक संघर्ष व्यक्ति के समक्ष होते हैं। जैसे– यदि छात्र पढ़ने में परिश्रम नहीं करेगा तो फेल हो जायेगा। यहाँ पर छात्र दोनों ही परिस्थितियों में बचना चाहता है। अत: वह संघर्ष की अवस्था में पहुँच जाता है। इसमें व्यक्ति परिस्थिति के साथ संघर्ष तथा अनिश्चय का व्यवहार करने लगता है जैसे– कोई सिपाही न युद्ध में मरता है और न वह ‘नकारा‘ साबित होना चाहता है।
3. उपागम-परिहार संघर्ष (Approach-avoidance conflict)
जब एक ही समय में व्यक्ति किसी को चाहता भी है और उससे घृणा भी करता है तो वहाँ पर उपागम-परिहार संघर्ष होता है। इस प्रकार से उसमें आन्तरिक तनाव उत्पन्न होते हैं; जैसे– कोई बालक फुटबाल भी खेलना चाहता है और चाहता है चोट भी न लगे।
संघर्षों के प्रकारों को भली प्रकार से समझने के लिये डॉ. जे. डी. शर्मा ने विभिन्न चित्रों को दर्शाया है। ये चित्र व्यक्ति एवं वातावरण दोनों की अन्तःक्रियाओं को स्पष्ट करते हैं-
समायोजन: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अन्त समय तक समाज में ही रहना चाहता है। वह उसी समय अधिक प्रसन्न दिखायी देता है, जबकि वह स्वयं की रुचि, पसन्द और अभिवृत्तियों वाले समूह को प्राप्त कर लेता है। इस व्यावहारिक गतिशीलता का ही नाम समायोजन है। जब व्यक्ति अप्रसन्न दिखायी देता है तो यह उसके व्यवहार का कुसमायोजन होता है।…Read More!
भग्नाशा या कुण्ठा: भग्नाशा उस आवश्यकता की पूर्ति या लक्ष्य की प्राप्ति में विफल होने या अवरुद्ध होने की भावना है, जिसे व्यक्ति महत्त्व देता है।…Read More!
रक्षातन्त्र कवच या रक्षा युक्ति: यह व्यक्तियों की प्रतिक्रिया के वह विचार हैं, जिनसे व्यक्ति में उपयुक्तता की भावना बनी रहती है तथा इनकी सहायता से व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से दबावपूर्ण परिस्थितियों से सामना करता है, बहुधा परिक्रियाएँ चेतन तथा वास्तविकता को विकृत करने वाली होती हैं।…Read More!
मानसिक संघर्ष: मानसिक संघर्ष को मानसिक द्वन्द्व के नाम से भी पकारा जाता है। यह संघर्ष पूर्ण रूप से मानसिक होता है और व्यक्ति जब तक किसी निश्चित उद्देश्य का चुनाव नहीं कर लेता यह मानसिक या विचारों का संघर्ष समाप्त नहीं होता। मानसिक संघर्ष विरोधी भावनाओं के कारण उत्पन्न होता है।…Read More!