प्रकृति भाव संधि
प्रकृति भाव संधि का सूत्र ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम् होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम प्रकृति भाव संधि का अध्ययन करेंगे !
प्रकृति भाव संधि किसे कहते हैं?
‘ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम्’ भवति। अर्थात् ईदूदेद्विवचनं प्रगृह्यम् ‘प्रगृह्य संज्ञा का विधान करने वाला संज्ञा सूत्र ईकारान्त, अकारान्त तथा एकारान्त द्विवचन प्रगृह्य संज्ञक होते हैं।
- प्रकृति भाव संधि (प्रगृह्य संज्ञा) करने वाला सूत्र = ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम् (उतर ऊत् एत् द्विवचनमं प्रगृह्यम्)
- दीर्घ ईकारान्त/ऊकारान्त/एकारान्त + स्वर वर्ण = प्रकृति भाव (प्रगृह्य संज्ञा) के कारण प्राप्त संधि आदेश बाधित हो जाता है।
उच्चारण भाव में आने वाले अर्थ रहित स्वर को निपात माना जाता है, जिसे एकल स्वर की निपात संज्ञा दी जाती है। उस निपात संज्ञा के बाद स्वर वर्ण आने पर संधि कार्य नहीं होता। इसी प्रकार प्लुत स्वर के बाद स्वर आने पर भी संधि कार्य नहीं होता है। जैसे – र राम, इ इन्द्र, कृष्ण३ आगच्छ।
प्रकृति भाव संधि की परिभाषा
जब किसी संधि पद के अंतर्गत संधि योग्य दशा की प्राप्ति होने पर संधि का प्रतिपादन नहीं होता है, तो उसे व्याकरण में प्रकृति भाव संधि कहा जाता है।
प्रकृति भाव संधि के नियम
नियम – ईकारान्त, उकारान्त , और एकारान्त द्विवचन रूप के बाद यदि कोइ स्वर आये तो प्रक्रति भाव हो जाता है। अर्थात् ज्यो का त्यो रहता है ।
प्रकृति भाव संधि के उदाहरन्
- हरी + एतो = हरी एतो
- विष्णू + इमौ = विष्णु इमौ
- लते + एते = लते एते
- अमी + ईशा = अमी ईशा
- फ़ले + अवपतत: = फ़ले अवपतत:
“ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम्” इति सूत्रस्योदाहरण
“ईदूदेद्द्विवचनं प्रगृह्यम्” इस सूत्र का उदाहरण:
- हरी एतौ = हरी + एतौ (ई + ए)
- विष्णू इमौ = विष्णु + इमौ (ऊ + इ)
- गंगे अनू = गंगे + अमू (ए + अ)
महत्वपूर्ण संधि
- स्वर संधि – अच् संधि
- दीर्घ संधि – अक: सवर्णे दीर्घ:
- गुण संधि – आद्गुण:
- वृद्धि संधि – ब्रध्दिरेचि
- यण् संधि – इकोऽयणचि
- अयादि संधि – एचोऽयवायाव:
- पूर्वरूप संधि – एडः पदान्तादति
- पररूप संधि – एडि पररूपम्
- प्रकृति भाव संधि – ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम्
- व्यंजन संधि – हल् संधि
- विसर्ग संधि