गुण संधि
गुण संधि का सूत्र आद्गुण: होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम गुण संधि का अध्ययन करेंगे !
गुण संधि के चार नियम होते हैं!
अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं। जैसे –
नियम 1.
- अ + इ = ए ; नर + इंद्र = नरेंद्र
- अ + ई = ए ; नर + ईश= नरेश
- आ + इ = ए ; महा + इंद्र = महेंद्र
- आ + ई = ए ; महा + ईश = महेश
नियम 2.
- अ + उ = ओ ; ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
- आ + उ = ओ ; महा + उत्सव = महोत्सव
- अ + ऊ = ओ ; जल + ऊर्मि = जलोर्मि
- आ + ऊ = ओ ; महा + ऊर्मि = महोर्मि
नियम 3.
- अ + ऋ = अर् ; देव + ऋषि = देवर्षि
नियम 4.
- आ + ऋ = अर् ; महा + ऋषि = महर्षि
महत्वपूर्ण संधि
- स्वर संधि – अच् संधि
- दीर्घ संधि – अक: सवर्णे दीर्घ:
- गुण संधि – आद्गुण:
- वृद्धि संधि – ब्रध्दिरेचि
- यण् संधि – इकोऽयणचि
- अयादि संधि – एचोऽयवायाव:
- पूर्वरूप संधि – एडः पदान्तादति
- पररूप संधि – एडि पररूपम्
- प्रकृति भाव संधि – ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम्
- व्यंजन संधि – हल् संधि
- विसर्ग संधि