दृष्टान्त अलंकार – Drashtant Alankar परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी

Drashtant Alankar
Drashtant Alankar

दृष्टान्त अलंकार

परिभाषा– जहाँ उपमेय और उपमान के साधारण धर्म में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दिखाया जाए, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। या  जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता हो वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती -जुलती बात उपमान रूप में दुसरे वाक्य में होती है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।

यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण

उदाहरण 1.

एक म्यान में दो तलवारें, कभी नहीं रह सकती हैं।
किसी और पर प्रेम नारियाँ, पति का क्या सह सकती है।।

उदाहरण 2.

पापी मनुज भी आज मुख से राम-नाम निकालते।
देखो भयंकर भेड़िये भी आज आँसू ढालते।

स्पष्टीकरण– यहाँ पापी मनुष्य का प्रतिबिम्ब भेड़िये में तथा राम-नाम का प्रतिबिम्ब आँसू से पड़ रहा

Example of Drashtant Alankar

उदाहरण 3.

एक म्यान में दो तलवारें,
कभी नहीं रह सकती है।
किसी और पर प्रेम नारियाँ,
पति का क्या सह सकती है।।

स्पष्टीकरण– इस अलंकार में एक म्यान दो तलवारों का रहना वैसे ही असंभव है जैसा कि एक पति का दो नारियों पर अनुरक्त रहना। अतः यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगत हो रहा है।

दृष्टांतालंकारः संस्कृत

‘दृष्टांतः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम्’ – अर्थात् उपमान, उपमेय, उनके विशेषण और साधारण धर्म का भिन्न होते हुए भी औपम्य के प्रतिपादनार्थ उपमान वाक्य तथा उपमेय वाक्य में पृथगुपादानरूप बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होने पर दृष्टांत अलंकार होता है।

उदाहरणस्वरूपः

उदाहरण 1.

त्वयि दृष्ट एव तस्या निर्वाति मनो मनोभवज्वलितम् ।।
आलोक ही हिमांशोर्विकसति कुसुमं कुमुद्वत्याः ।

स्पष्टीकरण– यहाँ नायक -चन्द्रमा, नायिका -कुमुदिनी और मन -कुसुम का मनोभव
सन्तप्तत्व तथा सूर्यसंतप्तत्व का निर्वाण और विकास का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होने के
कारण दृष्टांत अलंकार हुआ है।
उदाहरण 2.

तवाहवे साहसकर्मशर्मणः करं कृपाणान्तिकमानिनीषतः ।।
मटाः परेषां विशरारूतामगः दधत्यवातेस्थिरतां हि पासवः ।

स्पष्टीकरण– यहाँ ‘धूल’ तथा ‘शत्र सैनिकों का और पलायन एवं अस्थिरत्व का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव है।

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